Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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(4) जैन परंपरा के भिन्न-भिन्न संप्रदायों में आचार की सूक्ष्म भिन्नता को रेखांकित करना । विषयवस्तु एवं विधि -
जैन परंपरा के आचारपरक दार्शनिक शब्दों का एक क्रियाविशेष के साथ या पदार्थ विशेष के साथ वाच्य-वाचक संबंधी है। जैसे, किसी भी तप करनेवाले को 'श्रमण' नहीं कहा जा सकता, परन्तु जैन परंपरा में दीक्षित होकर उसकी विधियों के साथ आत्मविशुद्धि के लिये तप करनेवाले साधु को ही 'श्रमण' कहा जा सकता है, उसी प्रकार यद्यपि सामान्य निर्वचन होने पर किसी सामान्य पदार्थ का बोध हो सकता है, परन्तु जैन परम्परा में उनका विशेष अर्थ होता है। उस विशेष अर्थ को स्पष्ट करने के लिये साधारण अर्थो के साथ उनकी तुलना करने के लिये जैन आगम ग्रन्थ, जैन कोश ग्रन्थ एवं संस्कृत प्राकृत कोश ग्रन्थ, तथा अन्य दर्शनों के आचार सम्बन्धी ग्रन्थ, समीक्षा ग्रन्थ, शोध प्रबन्ध संबंधित पत्र पत्रिकाएँ आदि सामग्री के रुप में शोध प्रबन्ध संबंधी इस कार्य को सम्पन्न करने के लिये ली गयी। इसके साथ ही प्रसंगानुसार अभिधान राजेन्द्र कोश में संदर्भ के रुप में संकेतित संदर्भ ग्रंथों का मूल रुप में देखकर प्रत्यक्ष प्रमाणीकरण किया गया।
सर्वप्रथम अभिधान राजेन्द्र कोश में से आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का ससंदर्भ संकलन किया गया। तत्पश्चात् इस शब्दावली को जैन सिद्धांतो के आधार पर वर्गीकृत किया गया। यह वर्गीकृत शब्दावली विषयशः अध्यायों में व्यवस्थित की गयी एवं एकवाक्यता का ध्यान रखते हुए प्रत्येक सिद्धान्त का निर्वचन, निरुक्ति, परिभाषा, लक्षण आदि के रुप में किये गये विवेचन को प्रस्तुत करते हुए जैन परंपरा के अन्य कोश ग्रंथों, आगम ग्रंथों एवं समीक्षा ग्रंथों के साथ तुलनात्मक समीक्षा की गयी। जैन परम्परा से भिन्न ब्राह्मण परम्परा अथवा बौद्ध परम्परा में उस शब्द के वाच्य पदार्थ के बारे में जो जो विशेषताएँ प्राप्त हुई उन वाच्यपदार्थो के साथ तुलनात्मक समीक्षा की गयी ।
समग्र सामग्री का अनुशीलन जैन दर्शन के आचार विज्ञान की दृष्टि से किया गया एवं उसी आधार पर समग्र विषयवस्तु को विभाजित करके शोधप्रबन्ध के रुप में प्रस्तुत किया जा रहा है। इसकी संक्षिप्त रुप रेखा निम्न प्रकार से है :
प्रथम परिच्छेद : आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वर का व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
द्वितीय परिच्छेद :
1.
2.
3.
जैन कोशपरम्परा
कोश साहित्य और अभिधान राजेन्द्र कोश
अभिधान राजेन्द्र कोश की उपादेयता
क.
पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि में
ख.
भारतीय विद्वानों की दृष्टि में
ग.
शोध अध्येताओं की दृष्टि में सन्तों की दृष्टि में
घ.
अभिधान राजेन्द्र कोश की रचना का उद्देश्य एवं पृष्ठभूमि अभिधान राजेन्द्र कोश का रचनाकाल एवं स्थान
अभिधान राजेन्द्र कोश : विषयवस्तु का वर्गीकरण एवं शैली अभिधान राजेन्द्र कोश : स्वरुप एवं प्रकाशन
4.
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6.
7.
तृतीय परिच्छेद : अभिधान राजेन्द्र कोश की शब्दावली का परिचय
1.
साहित्यिक शब्दावली
2. सांस्कृतिक शब्दावली
3.
राजनैतिक शब्दावली
दार्शनिक शब्दावली
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4.
चतुर्थ परिच्छेद : आचारपरक शब्दावली का आकलन एवं अनुशीलन
क.
साधुपरक शब्दावली
1.
2.
3.
4.
5.
जैनधर्म का उद्देश्य एवं लक्ष्य
जैनधर्म में मुक्ति का मार्ग : सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान- सम्यक् चारित्र
चारित्र का सैद्धान्तिक पक्ष
गुणस्थान
मुनियों की आचारपरक शब्दावली का समीक्षण
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