Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 20
________________ मैं आभारी हूं श्री अभयसागरजी जैन ज्ञान भंडार (इन्दौर) एवं मुनिराज श्री अनुपम सागरजी म.सा. की जिन्होने मुझे शोधप्रबंध हेतु समस्त साहित्य उपलब्ध कराया । श्री राजेन्द्र उपाश्रय-जुनी कसेरा बाखल एवं गुमास्ता नगर के त्रिस्तुतिक जैन श्री संघ - इन्दौर के श्रावक-श्राविकाएँ एवं श्री राजेन्द्र महिला मण्डल, इन्दौर तथा श्रीमती रेखा मेहता, इन्दौर की मैं सविशेष आभारी हुं जिन्होने मेरे इन्दौर के अध्ययनकाल में उनकी विपरीत परिस्थितियों में भी मेरे स्वास्थ्य एवं आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए वैयावृत्त्य का पूरापूरा लाभ उठाया एवं इस ज्ञानार्जन में संपूर्ण सहयोगी बनी रही । साधु के जीवन में श्रीसंघ के सहयोग के बिना मुनिजीवन की मर्यादानुरुप साध्वाचार का पालन करते हुए व्यवहारिक अध्ययन और अभिधान राजेन्द्र कोश जैसे विश्वकोश, एक जैनागम कोश पर शोध-प्रबंध लिखना कथमपि संभव नहीं । तद्हेतु सहयोगी थराद, अहमदाबाद, सुरत, मुम्बई, राजगढ, मंदसौर, धार, इन्दौर, बडनगर, आलोट, महिदपुर सीटी, उज्जैन ( नयापुरा), रतलाम, पिपलोदा, दसाई, निम्बाहेडा. कुक्षी, के श्रीसौधर्म बृहत्तपागच्छीय त्रिस्तुतिक जैन श्वेताम्बर श्री संघ, एवं उन श्रीसंघो के गुरुभक्त श्रुतप्रेमी सुश्रावकगण श्री इन्द्रमलजी, धरमचंदजी, सोहनलालजी पारीख, सुरेन्द्रजी लोढा, देवेन्द्रजी चपरोत, मनोहरलालजी पुराणिक, यतीन्द्रजी, हेमन्तजी, मुकेशजी जैन, संजयजी डुंगरवाल, प्रकाशजी डुंगरवाल, रसिकभाई दोशी, भावीनभाई, महेन्द्रभाई, प्रो. एम.एल. सुराणा, समरथमलजी जैन, डॉ. एम.पी. त्रिपाठी, अहमदाबाद स्थित श्री सेवंतीभाई वोरा (सरकार), श्री जीगरभाई संघवी आदि - ख्यातनाम - ज्ञातनाम, अज्ञातनाम प्रत्यक्ष - परोक्ष सहयोग करनेवाले सभी सज्जनगण धन्यवाद के पात्र | अन्तर्बाह्यतः शोभन ज्ञाननिधि के द्वार का उद्घाटन होने पर ही वह किसी के लिए कार्यकारी हो सकती है। इस शोध प्रबन्ध का पौगलिक स्वरुप सम्भव हो सका है कम्यूटर पर प्राकृत संस्कृत- गुजराती - इंग्लिश मिश्रित वर्णसंयोजन से, सचित्रकरण से और सजिल्दीकरण से । देव ग्राफिक्स, अहमदाबाद के संचालक श्री तपन शाहने सम्पूर्ण शोधप्रबन्ध का वर्तमान ग्रन्थ स्वरुप में जितना सुन्दर और यथासम्भव त्रुटिरहित वर्णसंयोजन किया, मैं आप को हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ, एवं श्री बकुल संघवी(अहमदाबाद)ने इस ग्रंथ का मुद्रण कार्य पूर्ण कीया यह भी अभिनंदनपात्र है । श्री थराद त्रिस्तुतिक जैन संघ - मुंबई (थरादवाला) ने इस ग्रन्थ-रत्न का प्रकाशन कराकर श्रुतभक्ति का सुंदर लाभ लिया एतदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं। ज्ञानपंचमी वि.सं. 2061 बाग (जि. धार) म.प्र. Jain Education International മലാല വ CALL नवलगता गताच चच च For Private & Personal Use Only शोधाध्येत्री साध्वी डो. दर्शितकला www.jainelibrary.org

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