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है, परंतु शहद का यह ज्यादा प्रयोग आरोग्य को बिगाड़ेगा। यह हमारा निश्चित मत है। आरोग्य के नियमों को बिचार करते हुए कोई भी, एक ही रस प्रधान चीज सब को, सर्वदा सर्वथा माफिक पड़ती ही नहीं। इसी से एसे प्रयत्न हिंसक, प्रजाका धन और भावी आरोग्य को हानिकारक ही हमें मालूम पड़ते हैं। केसी अज्ञानता चल रही है ? समय २ के प्रवाह के अनुसार अनेक प्रवृतिओं जन समुदाय में फैल जाती हैं। उसी तरह की लगन लगी रहती है। उस के उपर से वे सभी ग्राह्य ही हैं, एसा समझना नहीं. परंतु विवेक से अनुभव से विचार कर के हमें ग्रहण करने योग्य वस्तु का ही ग्रहन करना चाहिए। और अग्राह्य का त्याग करना चाहिए। इस लिए मधु मक्खी को पालने की प्रवृत्ति में सहयोग देना उचित नहीं है। सरकार की तो यह इच्छा है, फीर कमीशन नीमकर, प्रजा में मत प्रचारकर, प्रजाकी तर्फ से मधु भक्षण का उच्छेर कराने का आग्रह कराने की तरकीब रची गइ है !]
७ मदिरा-इस का सर्वथा त्याग करने वाले को विलायती दवा का भी त्याग करना चाहिए। केफी (शराब) द्रव्यों से मिश्रित दवाइए तत्काल लाभ करती हैं, परंतु उसका असर जाने के बाद ज्यादा निर्वलता आती है । इस लिए दवाइयों में भी इस का उपयोग उचित तो नहीं है। कारण कि-उस में
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