Book Title: Aagam 45 Anuyogdwaar Haaribhadriyaa Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 8
________________ आगम (४५) प्रत सूत्रांक [२] गाथा II-II दीप अनुक्रम [२] श्री अनु हारि. वृचौ ॥ ४ ॥ “अनुयोगद्वार” - चूलिकासूत्र -२ (मूलं + वृत्ति:) मूलं [२] / गाथा [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हरिभद्रसूरिजी - रचिता वृत्तिः: क्त्रिणा दिवि से सकिरियावज्जिया सत्त चैव बंदजगा पुथ्वकम्मेणेव भवति, जया पुण अणुओगो अणुण्णविज्जति तदा इमो विही-पसत्येसु तिहीकरण मुहुचणक्खचेसु पसत्ये य खेत्ते जिणाययणादौ भूमी पमचित्ता दो पिसिजाओ कीरंति, एका गुरुथो बितिया अक्खाति, चरिमफाले पवेदिते णिसज्जाए णिमण्णा गुरू अहजा उबगरपोडिओ सीखो ततो दोवि ते गुरू सीखो य मुहपोचियं पडिलेहिन्दि, तओ सीसो बारसावत्तगं बंदणगं दाउ भणति संदिसह सम्झायं पट्टवेमि, तओ दुययावि सज्झायं पट्टवेति ततो पढविते गुरू णिसीदति, बतो सीसो बारसा| वत्तेष्य वंदति, ततो दोषि उट्ठेत्ता अणुओगं पट्टवेंति, ततो पढविते गुरू विसीदति, ततो सीसो बारसावचेण वंदति, वंदिते गुरुका अक्वामंतणे ते गुरु निसेज्जाओ उद्वेति, ततो निसेल्जं पुरओ का अधयसूयं सीस वामपाले ठबेत्ता चेतिए बंदति, समत्ते चेइयवंदणे गुरू ठितो. देव णमोकार का किति, तीसे य अन्ते भणति इमस्स साहुस्स अणुओगं अणुजाणामि खमासमणाणं हत्येणं दव्वगुणपज्जयेहिं अण्णाभो, ततो सीसो बंदणगं देइ, उहितो भणति - संदिसह किं भणामो १, तओ गुरू भणति-बंदणं दाडं पवेदेह, ततो वंदति, वंदिता उहितो भणति तुमेहिं मे अणुजोगो अणुष्णाओ, इच्छामो अणुसडिं, ततो गुरू भणति सम्मं धारय अण्णसिं च पवेदय, ततो बंदति, वंदिता गुरु पदक्खि जेति, एवं ततो बारे, वाहे गुरू निसेज्जाए णिसीयति, वाहे सीसो पुरओ ठितो भण्णति-तुम्भं पवेदितं संदिसह साहूणं पवेदयामि एवं शेष प्राग्वत् । ततो उसमास्ते वंदेत्ता सीसो गुरुं सह निसेज्जार पदक्खिणीकरेति, बंदेइ य, एवं ततो वारा, ताहे उट्टेत्ता गुरुस्स दाहिणासण्णे णिसीदति, ततो से गुरू गुरुपरंपरागए मंतपए कहेति ततो वारा, ततो बतियातो ततो अक्खमुट्टीतो गंधसहियातो देति, ताहे गुरू निसज्जाओ उडेइ, सीसो तत्थ निसीदति, ताहे सह गुरुणा अहासणिहिता साहू वंदणं देति, ताहे सोऽवि निसेज्जाटिओ अणुओगी 'पाणं पंचविहं पण्णत्त' मित्यादि सुत्तं कद्रुति, काङ्क्षत्ता जहासत्तिं वक्खाणं करेति वक्खाणे य कते साहूणं बंदणं देति, ताहे सो उडेइ, नि ~8~ उद्देशादि विधिः ॥ ४ ॥

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