Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 02
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
Catalog link: https://jainqq.org/explore/010247/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. TFIC tries to address these needs too. Our intent is to aid all these repositories and digitization projects and is in no way to undercut them. For more information about our mission and our fair use guidelines, please visit our website. Note that we provide this book and others because, to the best of our knowledge, they are in the public domain, in our jurisdiction. However, before downloading and using it, you must verify that it is legal for you, in your jurisdiction, to access and use this copy of the book. Please do not download this book in error. We may not be held responsible for any copyright or other legal violations. Placing this notice in the front of every book, serves to both alert you, and to relieve us of any responsibility. If you are the intellectual property owner of this or any other book in our collection, please email us, if you have any objections to how we present or provide this book here, or to our providing this book at all. We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जनकथा रत्नकोप: नाग बीजो. या पुस्तकमां पंमित श्रीपद्मविजयजी विरचित बाबीशमा तीर्थकर श्री नेमीश्वर जगवानी सम दाखन को तिमां far कारनीयादिक उत्पन्न करनारी आवर्यकारक कथाओं अली है. ग्रंथ चतुर्विध श्रीसंघ ने भगवा वांचवाने अ आवक, जीमसिंह माणके श्री मुंबइबंदरमध्ये निर्णयसागर छापखानामा छपावी प्रसिद्ध करचं द. सं १९४८-सी आ पुस्तकने फरीथी छापवानो हक सरकारना कायदा मुजब नोधाव्यो छे. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. सनी दानना, लोक वसे धनवंत ॥ ल ॥ महोटा आवासें कोरणी, को रणी नहिं जसवंत ॥ ल० ॥ ज० ॥ ६ ॥ मंगा पारका दोषने. कहेवा ले वा अजाण ॥ ल ॥ अंध जे परस्त्री देखवा, इणिपरें नयर मंमाण ॥ल ॥॥॥ जनाकीर्ण ते नयरमां,बंधन कुसुमने होय ॥ला निर्दयता पणुं खड्गमां, ए जनने नहिं कोय ॥ लम् ॥ ॥ ७ ॥ प्रासाद शृंगनी ऊपरें, दंम देखीजें त्यांहि ॥ लम् ॥ नाकारो को नवि कहे,वात देवानी ज्यांहि ॥ ल ॥ जं० ॥ ५ ॥ यउक्तं ॥ यत्रनिःस्तूंशता खड्ने, बंधनं कुमुमेषु च ॥ मः प्रासादशृंगेषु, जनेषु न कदाचन ॥ २ ॥ विक्रमधन तिहां राजीयो, जे धर्मे आसक्त ॥ लम् ॥ विक्रम धन जे जेहने, नाम यथार्थ ने युक्त ॥ लम् ॥ ज० ॥ १० ॥ शत्रुने त्रास पमाडतो, यम उपम घटमान ॥ लम् ॥ मित्रनेत्रने शशी समो, पाणंद देवा ठाण ॥ ॥ जं० ॥ ११ ॥ कल्प वृद सम लोकने, वैरीने वजझम ॥ ॥ न्यायमार्ग तिम चालतो, दीपे तेज प्रचंझ ॥ ल० ॥ जं० ॥ १२॥ दश दिशथी आवे संपदा, जिम नई समुश्मा सार ॥ ॥ कीर्ति प्रगट जिम गिरिथकी, नीकरणां निरधार ॥ लम् ॥ जं० ॥ १३ ॥ नीम कांत गुण जेहना, शत्रु मित्रने नाम ॥ ल॥ अब्धि रत्न मत्स्यादिकें, जिम तिम नृप गुणधाम ॥ ल॥ जं० ॥ १४॥ यऊ तं ॥ नीमकांतनृपगुणैः, स बनूवोपजीविनाम् ॥ अष्यश्चानिगम्यश्चं, या दोरत्नै रिवार्णवः ॥ ३ ॥ धर्मचारिणी तस धारणी, धरणी परें थिर जेह ॥ज॥राणी निर्मल गुणधरा, शीलानरपी देह ॥ लम् ॥ जं० ॥१५॥ सर्व अंग रूप शोनतुं,पुण्य लावण्यनुं गेह ॥ लम् ॥ मूर्तिवंत मानुं संपदा, नूपतिने अति नेह ॥ लम् ॥ जंग॥ १६ ॥ वाणी वाणी सारिखी, तस वा हन गति खास ॥०॥ अधिकी इंशाणीथकी, नहिं उपमा जग जास ॥ लम् ॥ जं० ॥ १७ ॥ राय राणी सुख जोगवे,बीजी ढाल रसाल ल॥ पद्म कहे श्रोता घरे, होजो मंगलमाल ॥ ॥ जं० ॥ १७॥ सर्वगाथा ॥ ५३ ॥ सर्वश्लोक तथा गाथा मली ॥ ए॥ ॥दोहा॥ ॥ एक दिन राणी स्वपनमां, देखे अंब अनिराम ॥ कोयलड़ी टदुका करे, फलियो गुणनो धाम ॥ १ ॥ कोइ पुरुष ते आम्रने, वावे अंगण मुफ ॥ तस अवदात उंचे स्वरें, सांजलजे कहूँ तुफ ॥ ॥ काल केतो Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंग पहेलो. Ա क जायशे, वपशे नवले गए । इम नव चार ववायशे, फल अधिकेरुं जाए || ३ || इणि परें स्वप्न सोहामणं, तहि जागी परजात ॥ यावी कहे जरतारने, स्वप्ननी सघली वात ॥ ४ ॥ स्वामी याज में स्वप्न में, दीवो चूत उदार ॥ फल नांखो मुऊ तेहनुं, गुं होशे जयकार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ कपूर होये प्रति कजलो रे || ए देशी || राजा निमित्तधर पूजीने रे, खेतेने एम ॥ सुत होशे गुनलक्षणो रे, वलि होशे सुख खेम रे || राणी सुसुपनानी वात, एहथी बेहशो अधिक सुखशात रे ॥०॥१ ॥ ए की ॥ म्रनुं फल एलिपरें कयुं रे, पण न लहुं वलि एह ॥ नव नव था ॥ वाय रे, जाणे केवली तेहरे ॥ रा० ॥ २॥ वचन सुणी एम नूपनां रे, राणी हरखित होइ ॥ गर्न धरें सा कामिनी रे, जिम नू निधि घरे जोय रे रा०॥ ३ ॥ उपनो पुत्र जे दिवसथी रे, ते दिनथी होय वृद्धि ॥ चार प्रकार ग मादिका रे, पुत्र पुष्य इविधरे ॥ ० ॥ ४ ॥ अनुक्रमें प्रसव्यो पुत्रने रे, धा रणी राणीयें चंग ॥ जगतने हर्षकारी घणुं रे, संपूरण सवि अंग रे ॥ रा० ॥ ५ ॥ लक्षण लक्षित देहडी रे, जस खाकार पवित्र ॥ पूरव दिशि जिम अर्कने रे, प्रसवे तिम ए पुत्र रे || रा० ॥ ६ ॥ जन्मोत्सव करे पुत्रनो रे, राज प्रतिहि उदार ॥ दानादिक खापे घणां रे, यावे वधामणी सार रे ॥ रा० ॥ ७ ॥ रायघरे धन बहु वधे रे, तिम वली हर्ष वर्धत ॥ स्वजन कुटुंब मी सवेरे, हर्षे नाम धरंत रे ॥ रा० ॥ ॥ शुभदिवसें गुन लग्न मां रे, धन कुमर प्रति चंग ॥ रायने कुमर देखी वधे रे, दिनदिन प्रति नवरंग रे ॥ रा० ॥ ए ॥ अनुक्रमें यौवन यावियो रे, सकलकला लहि ते ॥ श्वर्य उपजे विबुधने रे, थोडा दिनथी जेल रे ॥ रा० ॥ १० ॥ तनुनय करि जीतिया रें, कनक कमल कुश केश ॥ मानुं तेणें कारण कस्यो रे, जल जलें परवेश रे ॥ रा० ॥ ११ ॥ पंच धावें माता पिता रे, एक अंकथी लहे एक || स्नेहने धन साथें वधे रे, जिम विद्या ने वि वेरे ॥ ० ॥ १२ ॥ बीजनो चंद वधे यथा रे, गिरिमां चंपक बो ड ॥ नागरवेली तरुमधें रे, तिम वधे पुत्र न खोड रे ॥ रा० ॥ १३ ॥ रूपें अनंगने कींपतो रे, अन्यस्यो शास्त्र अशेष ॥ सकल करना शीखी ति ऐसें रे, कोइ नहीं तस शेष रे ॥ रा० ॥ १४ ॥ कलहंसें राजहंसलो रे, Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. हो कां न करो काणि के ॥ क० ॥ १७ ॥ वचन अपूर्व सुणी करि, चिंते विस्मित हो केम ए कहे वात के ॥ कहे रे वत्स वेहेंचे हवे, केहनी सा थें हो वेहेंची किहां जात के ॥ क० ॥ १७ ॥ तुम विषु माहारे कुण अने, मुफ विणुं नवि हो तुफ कोई अन्य के ॥ एटला दिन लगें नवि कह्यु, तुक अप्रिय हो में कां अधन्य के ॥ क ॥ १५ ॥ में अविनय तुमने कस्यो, तो मुखथी हो नांखी देखाव के ॥ स्नेहबदथको केम कहे, वहें चणनो हो अकालें पाराव के ॥ क० ॥२०॥ सवि लखमी विलसो तु में, ए लखमी हो सघली ने तुज के ॥ स्नेहवचन जुगतें करी, फरी ते कहे हो नवि वहेंच, मुफ के ॥ क० ॥ २१ ॥ आवी कहे निजनारी ने, मुफ नाइ हो कहे एणि परें वाच के ॥ तव ते त्रटकीने कहे, एह वचने हो कहूँ तुं मत माच के ॥ क० ॥ २२ ॥ वचनें तुऊ ललचावी यो, धूतारा हो बोले मीतां वयण के ॥ शादुकार परें देखीयें, तेहनी गति हो नवि जाणे सयण के ॥ क० ॥ २३ ॥ ___यतः ॥ खलः सक्रियमाणोपि, ददाति कलहं सताम् ॥ उग्धधौतोऽपि किं याति, वायसः कलहंसताम् ॥ ३ ॥ पण जाणुं तुफ मति खसी, घर णीनुं हो जे न करे वयण के ॥ ते यंतें मुखिया होये, ते माटें हो मानो मुक वयण के ॥ क० ॥ २४ ॥ तुं तो नोलो थ रह्यो, कोण मूके हो ह स्तागत जेह के ॥ जो न कहे तुफ इणि परें, केम होवे हो विश्वासनुं गेह के ॥ क० ॥ २५ ॥ तुं सुखें दास पणुं करे, ढुं नवि करुं हुं दासी पणुं कोय के ॥ पण जाणीश अंतें वली, शिशु साथें हो पंचत्व ते जोय के ॥ क० ॥ २६ ॥ दूं तो पीयरमां जइ, रहेगुं सुखें हो नवि कोश्नी आश के ॥ ते सुणि दयिताने कहे, थिर था हो थोडा दिन खास के ॥ का ॥ २७ ॥ एणी परें सातमी ढालमां, कहे मुनिवर हो निज वीतक जेह के ॥ पद्मविजय कहे सांनलो, आगल कहे हो वैराग्य सनेह के ॥क० ॥ २० ॥ सर्व गाथा ॥ २१ ॥ श्लोक तथा गाथा मली ॥१॥ ॥दोहा॥ ॥ एक दिन मागे नाग ते, वलि समजावे सोय ॥ श्म नारी बांधव त णे. वचनें मोलित होय ॥ १ ॥ यतः ॥ सुगुणा एह सहावो, अवगुण सिंचंति दियय मयंमि ॥ महिलानामपि नाहो, जाणंति न जंपए जीहा Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम पहेलो. १५ ॥१॥ एम करतां एकदिन हवे, नारीनो प्रेयो तेह ॥ नाइ नोजाइ कपरें, पाम्यो क्षेष अलेह ॥ २ ॥ हीणां वचन घणां लवे, नाणे काही लाज ॥ १६ बात समझावीने, कहे तें झुं कस्यो आज ॥ ३ ॥ तो पण नवि मा ने वचन, चिंते बांधव जेठ ॥ जगमां सदु दीतुं अडे, पण नारीथी हेह ॥४॥ नारी कपटनी कोथली, नारी नरकनुं क्षार ॥ नारीपाशे जे प ज्या, ते न तस्या संसार ॥ ५॥ नारीथी मुन मुंजडो, रावण गयां दश शीश ॥ रामजी वनवासें वस्या, नहिं कहि नारि जगीश ॥ ६ ॥ ॥ढाल आहमी ॥ ॥ मोरा साहिबा हों श्री शीतलनाथ के,अरज सुणो एक मोरडी ॥ ए देशी ॥ तिहां लगे रहे हो पुण्यवंत विवेक के, नारी लोचन जब नवि प ड्यां ॥ सन्मार्गे हो इंघिय रहे ताव के, नारी नयण जब नाथज्यां ॥१॥ लजाविनय ते हो तिहां लगे रहे सर्व के, नारीलोचन जब नावीयां॥ चा हो आकर्षीने जाम के, मूके शर तब सवि गयां ॥२॥ यतः ॥ ताव देव कतिनामपि स्फुर, त्येपनिर्मलविवेकदीपकः ॥ यावदेव न कुरंगचक्षुषा, ताज्यते चटुललोचनांचलैः ॥ २ ॥ सन्मार्गे तावदास्ते प्रनवति पुरुषस्ता वदेवेंशियाणां, लज़ा तावधित्ते विनयमपि समालंबते तावदेव ॥ चापा कृष्टमुक्ताश्रवणपथजुषो नीलपक्ष्माण एते, यावन्नीलावतीनां न हृदि धृति मुषो दृष्टिबाणाः पतंति ॥ ३ ॥ घनश्रेणी हो कत वन एह के, शोक कासार पाली कही ॥ मराली हो नवकमलने नाम के,पाप तोयनीकज सही ॥३॥ पेटी कपटनी हो चेटी मोहराय के, विषविषय सापण कही। दुःखदायक हो कही एहवी नारि के, पापिणी कामिनी तनुदही ॥ ४ ॥ यतः ॥ उरितवनघनाली शोककासारपाली, नवकमलमराली पाप तोयप्र गाली ॥ विकट कपटपेटी मोहनुपालचेटी, विषय विषजुजंगी सुखसारा कृशांगी ॥५॥ जूतुं बोले हो साहस यति धैर्य के, माया मूर्खपणुं घj॥ अतिलोनता हो अशुचि दयाहीन के, सहजयी दोष स्त्रीना नणुं ॥ ५ ॥ यतः ॥ अनृतं साहसं माया, मूर्खत्वमतिलोनता ॥ अशौचं निर्दयत्वं च, स्त्रीणां दोषाः स्वजावजाः ॥ ५ ॥ रवि ग्रह ने हो तारा ने राह के, जाणे चार ते पंमिता ॥ नवि जाणे हो महिलानो चार के, तेहमां बुद्धि होय खंमिता ॥ ६ ॥ यतः ॥ रविचरियं गहचरियं, तारा चरियं च रादुच Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. हां०॥ राजा पूजे रण शुं ने तुम स्वामी जो,अम सरिखाने युद्ध होये किम ताहरे रे लो ॥ ६ ॥ हां० ॥ मुनि कहे जिम ताहरे तिम माहरे यु६ जो, रात दिवस नवि फीटे नित्य करवो पडे रे लो ॥ हां ॥ कुतूहल राय बदुल धरि मनमां हर्ष जो, कहे किम यु६ करीजें जिम वयरी रडे रे लो ॥॥ हां ।। करि प्रसादने यो आस्वाद मुज नाथ जो, कहे मुनिवर सुण नरवर मोह ले नूपति रे लो ।। हां० ॥ सवि प्राणीने जाणीने दिये फुःख जो, कोहलोहमय जोह परिवत नरपति रे लो॥ ॥ हां॥ जग जीतीने करिय विदीती वात जो, तिणे अवसर चारित्रनृप शरणें गयो रे लो ॥हां। जिनशासननो नासन वप्र आधार जो, सेनापति सदागम माहारे थिर थयो रे लो॥ ए॥ हां ॥ शम दम संयम सम्यग ने संतोष जो, कोडि गमें सुनटें करि ढुं पण परिवस्यो रे लो॥हां ॥ अमरपथी करूं तेह सरिस हवे युद्ध जो, महारा रे ए शिष्यथकी पण थरहस्यो रे लो ॥१॥हा॥ काढी तप करवाल कराल ले हाथ जो, खंतिफलक विवेककवच अंगें धरे रे लो ॥ हां ॥ जे संतोषनो पोष ते तुरगारूढ जो, झानादिक त्रिक तीखां शस्त्र धरे करें रे लो॥११॥हां ॥ मर्दव महोटो नहिं बोटो गजराज जो, अऊव कुंता नेदे रिपुवर्गने रे लो॥ अध्यवसाय गुन थाय ते रथवर जाणी जो, जावधनु यष्टि ग्रहि हणता गर्गने रे लो ॥१॥हा॥बाण ते जाणीसुदेशना रूपमहंत जो,शुनसाधनना योग सुनट समवायगुं रे लो॥हा॥ ढंढेरो सद्धा गमनो तिहां वाय जो, बंदीपोसथकी होय तोस सफायगुं रे लो ॥१३॥हा॥ शत्रु हणिया नवि गणिया को रीत जो, बीजा पण बहु शत्रुथी मूका विया रे लो॥ हां ॥ ए मुनिवर ढुं सूरीश्वर मध्य ठाय जो, विचरंतो यहां तुफ मूकाववा यावीयो रे लो॥११॥ हां० ॥ कहे राजा महाराजा रण गुन तुज जो, करि नपगारने स्वामी नलें पानधारिया रे लो ॥ हां ॥ घर पुर देश तथा वली परिजन सहीत जो, पीडा रे पामंता अमने तारिया रे लो॥ १५ ॥ हां ॥ ए वयरीथी नयरीलोक अशेष जो, पीड्यो ते मूका वी बीजो नवि शके रे लो ॥ हां ॥ हे मुनिनाह अथाह करुणनंमार जो, मूकावो ए वयरी जिम मुफ नवि टके रे लो ॥ १६ ॥ हां ॥ तेइ दीक्षा ने ग्रहि शिदा तुम्हें राय जो, न करो ए प्रतिबंध तथा वयरी ग्रहो रे लो ॥ हां० ॥ धनवती पूत जयंत ठवे निज गण जो, धन धनवती के मंत्री Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम बीजो. सामंत करी महा महो रे लो॥१॥हा॥सूरि सकारों गुनधारों ग्रहि दिरक जो,धन राजर्षि तिहां संयम उक्कर पालता रे लो ॥हा॥ था गियन गयड सूरिपद होय जो, जव्यांबुज सूरजनी परें अजुवाजता रे लो ॥१॥हा॥ केश नरिंद वरिंदने देई दिरक जो, मासखमणर्नु अणसण पालीने थया रे लो ॥ दां॥ धनवती पण सती पाली अगसण शुक्ष जो, सामानिक सुर सौधर्मे ते बिटुंगयां रेलो ॥ १५ ॥ हांगाचाता दोय तस गुणज्ञाता गु रावंत जो, धनदेवने धनदत्त पण नेला ऊपना रे लो ॥ हां० ॥ गुण याग र रतिसागरमां अवगाढ जो, एह प्रनाव जनमांतर संचित पुण्यना रेलो ॥२०॥हा॥ धन धनवती नेमी राजिमतीना जीव जो, सुरजव सहित कह्यो ए पहिलो नव नलो रेलो ॥हा॥ बारमी ढाल रसाल ए पहेले खंग जो,पहेलो ए अधिकार थयो अति गुणनिलो रे लो ॥१॥ हां ॥ वैरागी त्यागी वडनागी जेह जो, पंमित श्रीजिन विजय गुरु शुन संयमी रे लो॥ हां० ॥ नत्तम विजय विनेय अ गुणवंत जो,पद्मविजय कहे वात ए मुफम नमा रमी रे लो॥२॥सर्व गाथा ॥३७॥श्लोक॥३३॥ इति श्रीमन्नेमरा जिमत्योः सुरसहितःप्रथमनवः समाप्तः॥इति प्रथमाधिकारः समाप्तः ॥१॥ ॥अथ दितीयाधिकारः प्रारभ्यते ॥ ॥दोहा॥ - ॥ प्रणमी पास जिणंदने, जास महिम विख्यात ॥ त्रीजो नव हवे दा खवं, ते सुणजो अवदात ॥ १॥ जरत खेत्रमाहे अने, गिरिवैताढय महं त ॥ रूपमयी लवणाधिगत, पूर्वापर जस अंत ॥ २॥ उंचो पणविस जो यणा, पहोलो मूल पञ्चास ॥ दश जोयण तिहाथी जइ, एहवा तिहां वि लास ॥ ३ ॥ दक्षिण उत्तर श्रेणि तिहां, खेचरनां रहेगण ॥ दश योज न पहोला अजे, तिहां सुगजो मंमाण ॥४॥ नगर पंचास दक्षिण दिशे, उत्तर दिशिमां साठ ॥ रतन कनकमय कूट नव, जिहां दीसे बहु तात ॥ ५ ॥ सिम कूट तेहमां अजे, कोश माठेरो ऊंच ॥ कोश आयाम अध कोश पृथु, जंबूनदम संच ॥ ६ ॥ जिनवर चैत्य ते वर्णवू, प्रतिमा ए कशो पाठ ॥ देवनुवन सम दीपतुं, इणिपरें सूत्रे पाठ ॥ ७ ॥ अंब बकुल चंपक खजुर, शख चंदनवन ज्यांहिं ।। जे मुनिवर पण देखीने, विस्मय Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. गरने आयुखे, पढ़ी चंमालिणी थाय ॥ तेहने गर्न रहे थकें, जगडो शोक्य कराय ॥ ६ ॥ शोक्यवेध अति आकरा, जेहवां तीखां तीर ॥ नालां शू ल तणी परें, परपर दाखे.पीर ॥ ७ ॥ मारी तेहने कर्तिका, नदर वि दारे शोक ॥ मरी बीजे नरकें ग, पाप तणुं फल रोक ॥ ७ ॥ तिहाथी लर तिर्यचपएं, जशे वली नरकें तेह ॥ ते संसार अनंत एम, जमशे कुःख अह ॥ ए ॥ प्रायें तिरिय मनुष्यना, जव करशे ते असार ॥ कहिं शस्त्रे कहिं विषयकी, किहां दग्धे होये मार ॥ १० ॥ सम्यग्दृष्टि जीवनो, नावथकी उपधात ॥ कीधा ते अनुनव्या विना, कबहीं ते नवि जात ॥११॥ यमुक्तं ॥ कतकर्मक्ष्योनास्ति,कल्पकोटिशतैरपि ॥ अवश्यमेव नोक्त व्यं कृतं कर्मगुनाशुनम् ॥१॥ कर्म कस्यां जे जे नरें,ते ते केडें धाय ॥ गाय ह जार मले थके,पण वन वलगे माय ॥१२॥ यउक्तं ॥ श्लोक ॥ यथा धेनु सहस्त्रेषु,वत्सो विंदति मातरम् ॥ तथा पूर्वक कर्म,कर्तारमनुगवति ॥२॥ ॥ ढाल चोथी॥ ॥ जंबुदीप मझार रे ॥ ए देशी ॥ सांजली एणी पेरें वाणी रे, नरपति चिंतवे ॥ जुन जुन कर्म विटंबणा ए ॥ जेहनें काजें काम रे, की ते इहां अजे॥ ते तो कुःख सहे ने घणां ए॥१॥ सांजली कुमर सुमित्त रे,नणे पति प्रति ॥ करकज जोडी एणि पेरें ए॥ कर्म बंधननो हेतु रे, हूँ थ यो तात जी ॥ न घटे मुफ रहे घरें ए ॥२॥ अनुमति द्यो मुफ तात रे, ले दीदा हवे ॥ सर्व जीवने हितकरी ए ॥ कर्म तणो क्ष्य थाय रे, सु ख लहे शाश्वतां ॥ कारणबंधनो नवि वरी ए ॥३॥ यतः॥ धन्ना ते सप्पुरि सा, जे नवर मनुत्तरंगयामुरकं ॥ जम्हा ते जीवाणं,न कारणं कम्म बंधस्स ॥१॥ पूर्व ढाल ॥ मुख मलकावी राय रे, नांखे एणि पेरें ॥ पुत्र अम्हें तें जीतीया ए ॥ जेह अह्मारुं कृत्य रे,ते तुम्हें आदरो ॥ वयथी तो अम्हें वीतीया ए॥ ४॥ धर्म ते करवो तात रे, बागलथी करो ॥ पुत्र तो पाबल कह्यो ए ॥ सुमित्र कहे सुणो तात रे, नियम न एहमां ॥ संसार कुःख सायर लह्यो ए ॥ ५ ॥ घर बलतुं जव होय रे, तव अनुक्रम किस्यो ॥ अवसर लहि नासे सदु ए॥रणमा हणतां शत्रु रे, नही क्रम को क हो ॥ अवसर सहि मारे बद्ध ए॥ ६ ॥ कहे नृप सांजल पुत्त रे, नुक्त जोगी अम्हो ॥ ते कारण व्रत अमें ग्रहुँ ए ॥ नव सागरमां काज रे, गुरु Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नेमिनाथनो रास खंम बीजो. ३५ राजा हर्षित १० ॥ सुमित्र म्हें पामीया || तेणें घर रहो तुम्हें अम्हें कहुं ए ॥ ७ ॥ प्रजा पाल‍ काज रे, राज करोतु ॥ खम्हें अंतर रिपुने हणुं ए ॥ पुत्रने थापी राज्य रे यादरजो तुम्हें ॥ दीक्षा एसि पेरें अम्हें नएं ए ॥ ८ ॥ कुमर कहे सुणो तात रे, नवि मुक मन रमे ॥ दुःखदायक ए जोगमां ए ॥ तो पण हुं अंतराय रे, न करूं तुम्ह प्रतें ॥ एम कहे ते सवि लोगमां ए उचित करी सहु मुफ रे, हमलां ने पढ़ें ॥ जे तुम्ह मन रुचे ते करो ए होय रे, विनय ते देखीने ॥ पुत्र विनय रयणायरो ए ॥ 1. कुमरने राज्य रे, थापे नरपति ॥ महा विनूतियें करी ए ॥ दान दीये क रे पूजा रे, जिनप्रतिमा ती ॥ बहु लोकें नृप परवरी ए ॥ ११ ॥ केक सामंत साधें रे, दीक्षा पडिवजे ॥ केवली पासें विधिथकी ए ॥ राय क षि सुग्रीव रे, विहार करे सदा || पाले दीक्षा सुखकारकी ए ॥ १२ ॥ पाले राज्य सुमित्र, लघु बांधव प्रतें ॥ ग्रामादि करे थापे बहु ए ॥ पण नाव्यो संतोष रे, बाहिर नीसरखो || निंदा करे तेहनी सहु ए देश सन्मान ते तास रे, वली संतोषियो | उत्तम नीच न होय कदा ए ॥ चित्रगति कहे मित्र रे, सघलुं तें कर ॥ नुवनमां करवुं ते तदा ए॥ १४ ॥ स्वर्गापवर्गनो हेतु रे, जिनवर धर्मनो ॥ तुं मुने कारण मल्यो ए ॥ वा ट जुए मुकतात रे, तेणें अम्हें जायचं ॥ प्रवसरें वली मलयुं वढ्यो ए ॥ ॥ १५ ॥ बोजे गदगद वाली रे, यांसुं रेडतो ॥ चित्रगति तमें गुं कहो ए ॥ मन चिंते माहाराय रे, मागे भूषणां ॥ तेहथी कहो केम सुख लहो ए ॥ ॥ १६ ॥ जे परदेशी लोक रे, तेहयुं प्रीतडी ॥ डुःखदायी थाये घणी ए ॥ प्रीति करीने जाय रे, पढें मजे दोहिला, केवल लहे बात दुःख तली ए ॥ १७ ॥ यांसू पडते धार रे, एसि पेरें वीनवे, मित्रजी वेहला यावजो ए ॥ विद्याधरनी सायें रे, सुखशाता ती ॥ वात निरंतर काहावजो ए ॥ १८ ॥ वोलाव्या एम जांखी रे, वैताढ्यें गया ॥ मात पितादिकने मव्या ए ॥ म १३ ॥ मां दुःख बहु खाली रे, सुमित्र प्रमुख जे ॥ अनुक्रमें सद्दु घर जणी व व्या ए ॥ १९ ॥ जिनवरनी करे पूजा रे, वंदे साधु || दान दीये अटल कपणे ए ॥ जेह सिद्धांतनां शास्त्र रे, सांनले विधिधकी ॥ वडे ते नि नित गणे ए ॥ २० ॥ व करे नित तेह रे, जिनवर मंदिरें ॥ रथया त्रा करे राजीयो ए ॥ साधर्मिक वाचल्य रे, संग तेहनो करे | एम जगमां Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. नहीं कोई हाण ॥ पु० ॥ २॥ नूपतियें तस मानी वातडी, तेहने दी, सन्मान ॥पु॥ तेह जश्अनंगसिंहने कहे,हरख्योनृप तिणे थान ॥पु॥रए॥ एक दिन रत्नवतीने मोकली, पाणिग्रहणने काज ॥ पु० ॥ महा था बरें परण्यां ते बेदु, शोने घणुं युवराज ॥पु० ॥ ३०॥ सुख जोगवे ते सं सारनां, जेम महर्षिक देव ॥ पु०॥ पुण्य कस्यां ते कहिं जाये नहीं, क रें वली धर्मनी सेव ॥ पु० ॥३१॥ लोक प्रशंसा करता अति घणी, दे आणंद मन नयण ॥ पु० ॥ बंदीलंद पढे गुण जेहना, संतोषे वदु सयण ॥ पु०॥३५॥ रत्नवती\ करे जिन नक्तिने, वंदे नित्य गुरु पाय } पु० ॥ शास्त्र सुणे ते अति सोहामणां, दानी झानी ते थाय ॥ पु० ॥ ३३ ॥ बीजे अधिकारें सोहामणी, नाखी बातमी ढाल ॥॥ पु० ॥ पद्मविजय कहे पुण्य संचयथकी. नित्य होय मंगलमाल ॥ पु० ॥ ३४ ॥ सर्व गाथा ॥ १ ॥ ॥दोहा॥ ॥धनदेवने धनदत्त बडु, लघु चाता थया तास ॥ देवलोक मांथी च वी, पुण्य प्रबल जास ॥२॥ मनोगतिने चपलगति, नाम अडे सुखका र॥ नंदीश्वर प्रमुखें नमे, चैत्य घणां जण चार ॥२॥ विहरमान जिनवर कनें, सुणे हर्ष उपदेश ॥ पदकज सेवे ऋषि तणां, नमतो देश विदेश ॥३॥ काल एणि पेरें निर्गमे, लहि एकदिन संवेग ॥ वय परिपाक जाणीकरी. धरे नृप मन नछेग ॥४॥ राज्य ठवी तव कुंवरने, आप थयो मुनिनूप ॥ घाती अघाती क्ष्य करी; पाम्यो सिम स्वरूप ॥ ५ ॥ ॥ ढाल नवमी॥ ॥ धारा ढोला ।ए देशी॥ चित्रगति विद्याधरु रे, पाले राज्य उदार ॥ गुणना जोगी॥ पठितमात्र आवे कला रे, विद्या सि६ श्रीकार ॥गु० ॥ ॥१॥आण वहे विद्याधरा रे, पुण्य प्रबल जग जास ॥ गु० ॥ रत्नवती करे पाटवी रे, अंतेवरमां खास ॥ गु० ॥२॥ खेचर एक एणि अवसरें रे, मणिचूड जस नाम ॥ गु० ॥ एक दिन ते परजव गयो रे, दोय पुत्र तस गम ॥ गु० ॥३॥ शशी सूर नामें अजे रे, राजनिमित्त करे यु६ ।। गु०॥ चि जगति वहेंची दीये रे,राज्य तास अविरु६ ॥गु०॥॥ युक्ति वचनें समजा विया रे, नवि समजे पण मूढ । गु० ॥ कलह करे अति आकरो रे, वैर थयों अति गूढ ॥ गु० ॥ ५ ॥ युरू थयां तस बाकरां रे, मरण लयां ते दोय॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नेमिनाथनो रास खंग बीजो. ४५ " गु० ॥ चित्रगति नृपने कहे रे, वात ते खावी कोय ॥ गु० ॥ ६ ॥ परलोकें ते बेदु गया रे, राज्य लूंटे पर खाय ॥ गु० ॥ सुणी वैराग्य ते उपनो रे, म न चिंते माहाराय ॥ गु० ॥ ७ ॥ कर्म विचित्रगति देखीयें रे, विषया मिशना गिद्ध ॥ गु० ॥ मूढता जुन प्राणी तणी रे, मदिरा होय जेम पीध ॥ गु० ॥ ॥ ८ ॥ इवा करे प्राणी घणी रे, पण इचित नवि थाय ॥ गु०॥ ज्ञानी नवि चिंता करे रे, अज्ञानी खेदाय ॥ गु० ॥ ९ ॥ यतः ॥ यन्नं चिंतियमानं, नद यपगे अन्ना जायं ॥ चिंतोदय विवरीयं, मुरादो नो चिंतए नाणी ॥ १ ॥ लखमी राखे प्राणिया रे, ढंमे लखमी तास ॥ गु०॥ दान पुण्य न करे कदा रे, पडे दुर्गति पास ॥ गु० ॥ १० ॥ केइ पुरुष इबे घणा रें, दानादिक म हा नाग ॥ गु० ॥ पुत्रादिक विघन करे रे, रोगादिक अथ लाग ॥ गु० ॥ ॥ ११ ॥ लखमीने मूकी गया रे, करे कलहो तस पुत्र ॥गु॥ गुनकपरें ऊग डी मरे रे, होय जे तास कुपुत्र ॥ गु० ॥ १२ ॥ केइ पुरुष पामी करी रे, चक्रवर्तीनी ऋद्धि ॥ गु० ॥ मीने पट खंमने रे, तृण परें नवि हुआ गिद्ध ॥ ० ॥ १३ ॥ वांबे कोई ती सिरी रे, करता क्लेश अनेक ॥ गु० ॥ जाइ तु तो घरे रे, मूके जेह विवेक ॥ गु० ॥ १४ ॥ यतः ॥ संतेवि के न प्र के संतेवि हिलसइ नोए ॥ चयइ परचए एवि, पजवो दधूण जह जंबू ॥ २ ॥ पाप करे जीव प्रति घणां रे, वांबे लखमी सार ॥ गु० ॥ तेतो धर्म यात बेरे, केम पामे व्यविकार ॥ गु० ॥ १५ ॥ विषजोगी केणी पेरें करे रे, अमृत संभव सुख ॥ गु० ॥ नमता एह संसारमां रे, पामे अनंतां दुःख ॥ ० ॥ १६ ॥ सेव्यां कार्य एणें घणां रे, राज्य अनंती वार ॥ गु० ॥ पण नवि तृप्ति कदा नही रे, दुःखदा विषय विकार || गु० ॥ १७ ॥ सिद्धि सुख एक शाश्वतुं रे, अमर खजर कलंक ॥ गु० ॥ पूर्वै कदा नवि जोग व्युं रे, मानो एह निःशंक ॥ गु० ॥ १८ ॥ जेनी उपमा जग नही रे, राग द्वेषा दि यत्र ॥ गु०॥ ते सुखने नवि उलखे रे, विषयासंगें यत्र ॥ गु० ॥ १९॥ ते माटें धन्य तेहने रे, जेणें तज्या विषय विकार ॥० ॥ स्वजन कुटुंब तज्यां जेणें रे, तजे लक्ष्मी जे प्रसार || गु०॥ २० ॥ पाम्या परमाणंदने रे, वली सुमित्रमित्त ॥ ० ॥ यौवनमां तजि राजने रे, साध्युं कार्य सुचित्त गुं० ॥ २१ ॥ वयपरित प्रायें थयो रे, पण नवि ढंमधुं राज्य ॥ गु० ॥ पण धन्य नित्य सुख बेरे, त्यजीयें ए हवे खाज ॥ गु० ॥ २२ ॥ ढंके तृण परें Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ամ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो.' देखी, कां जुए मनहुं चाली हो ॥ ८ ॥ दोहा ॥ सरोवर जल तंबोल मणि, वृक्ष निशा ने नार ॥ नोजन मेघ वाहन प्रमुख, ए सवि वन न सार ॥ ३ ॥ स्त्री तो पाकी बोरडी, होंश सहूनें थाय ॥ सहुने लागे वहा, मूल्य विना वीकाय ॥ ४ ॥ सुरिकंत हवे हरिगयो तेहने, खाणी इहीज गणे हो ॥ प्र०॥ एहनी प्रतिज्ञा पूरण करवा, अग्निरची ए टा ऐ हो ॥ प्र० ॥ ए ॥ हुं सुरकंत ते जाणो कुंअरजी, कांइ नाम ग्रहण न वि योग्य हो ॥० ॥ रत्नमाला ए नारी जालो, कांइ नवि खावी मुऊ नोग हो ॥ प्र० ॥ १० ॥ उत्तम पुरुषने योग्य न सुबुं, कां नांख्युं में तुम्ह या हो ॥ प्र० ॥ माहरु पाप गयुं सवि विजयें, कां तुम्ह दरिसाने रा में हो ॥ प्र० ॥ ११ ॥ विद्याधर कहे चरित्र कहो तुम्ह, कांई मंत्रिसुत स विनांखे हो ॥ प्र० ॥ ते सवि वात रत्नमाला तिहां, सांजली चित्तमां रा खें हो ॥ प्र० ॥ १२ ॥ मन चिंते वरशे के नांही, कां गुणवंतो उपगारी हो ॥ प्र० ॥ केम याव्यो ए एणे थानक, चिंतवे एम विचारी हो ॥ प्र० ॥ १३ ॥ कामदृष्टि थ३ एहनी उपर, कांई ए जरतार ते माहरो हो ॥ प्र० ॥ मानुं मूकावणना मिषथी, कां श्राव्यो परणवा त्यारो हो ॥ प्र० ॥ १४ ॥ नारीनां मात पिता त्यां याव्यां, कांइ बात कही सवि तेहने हो ॥ प्र० ॥ पूर्वे पण नूपतियें दीठो, कांइ खावी प्रतीत सदु केहने हो ॥ प्र० ॥ १५ ॥ रत्नमाला परगावी तेहने, कांइ अपराजित तिलवारें हो ॥ प्र ॥ सूरकंतने मूकाव्यो तिहां, कांइ रायने नांखे तेवारें हो ॥ प्र० ॥ १६ ॥ तुझ पुत्री पहचावज्यो त्यारें, कां म्हे घेर जइयें ज्यारें हो ॥ प्र० ॥ ए मकही सहु निज थानकें पहोतां, कां सूरिकंत हवे पारे हो ॥ प्र० ॥ ॥ १७ ॥ मूलिका मणि या मंत्री सुतने, कां वेश फेरववानी गोली हो ॥ प्र० ॥ नवि वंबे पण या पराणे, कांइ घर जाये बहु गुण बोली हो ॥ प्र० ॥ १८ ॥ कुंवर पण खागल हवें विचरया, कांइ त्रीजे ए व्यधिकारें दो ॥ प्र० ॥ पद्मविजय कहे चोथी ढालें, कांइ पुण्यें कष्ट विदारे हो ॥ प्र०॥१९॥ा ॥ दोहा ॥ ॥ तिरषा लागी वाटमां, बेठा अंबनी बांय ॥ उदक गवेषणने गयो, मंत्रीसुत ति वा ॥ १ ॥ जल लेने खावीयो, तिपहिज थानक तेह || नवि देखे ते कुमरने, ए आश्चर्य बेह ॥ २ ॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. सवि मलि आव्या, ताहरा गुण मनमांही नाव्या ॥ गु० ॥२७॥ देश कदं बनो स्वामी एह, नुवनचंद नामें गुणगेह ॥ गु० ॥ पुत्रादिकथी ए परिव रीयो, पूर्ववधू तिलक ज एह करियो ।गु॥ २७॥ सुनटचरित्रे करीने दूर, रिपुदलने जस दिसे गयो जूर ॥ गु० ॥ दक्षिण देशपति एह राय, समरके तु प्रणमें सद् पाय ॥ गु० ॥ ए॥ वरुणं नाम पश्चिम दिशि राय, जेह ना गुण दश दिशिमां गवाय ॥ गु० ॥ सुनट गुणी दानी मानी होवे,जस नामें रिपु दल सवि रोवे । गु० ॥ ३० ॥ उत्तर दिशिनो नाथ कुबेर, नृप गुणमांही अनुत्तर मेर ॥ गु० ॥ सोमप्रन नामें पण दीपे, सूरतेजथी र पुबल जीपे ॥ गु० ॥ ३१ ॥ नाम धवल ए राजा रूडो, कृष्ण करे रिपु ब ल तिहां नमो । गु० ॥ शूर नीम आदि बह राजा, देखावे बेद पदमा हे ताजा ॥ गु० ॥ ३२ ॥ एह धनंजय सुजस डे सार, कलिंग शूरसेन मं गल धार ॥ गु० ॥ खेंचरपति मणिचूड ए राय, विद्या सि६ घणी जस थाय ॥ गु० ॥ ३३ ॥ रत्नचूड मणिप्रन वली जाण, सुमनस विद्याधर मां प्रमाण ॥ गु० ॥ शूरसेन सुसेन राजान, अमितप्रनने दिये बदु मा न॥ गु० ॥३४॥ रूपं सौनाग्य ने तेज वखाणे, वर कुमरी जो तुज मन जाणे ॥ गु० ॥ एह राजाना पुत्र युवान, कला बहोंनेर वली रूपनिधा न ॥ गु० ॥ ३५ ॥ त्रीजे ए अधिकारें नारखी, नृप वर्णव कस्या बहु जन साखी ॥ गु० ॥ आतमी ढाल अधिक उन्नासें, पद्मविजय कहे गुन अन्या ॥ गु०॥३६ ॥ सर्वे गाथा ॥७३॥ ॥दोहा ॥ ॥कुमरी दृष्टि करे यदा,नाला परें अति तीद ॥ कुमर हृदय जेम कमल दल, शव्य सहित थयां वीद ॥ १ ॥ अबला थया अबलालये, सबला स बला राय ॥ पण वामा वामांग जस, नूषे ते वर थाय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल नवमी ॥ ॥ थारा मोहला नपर मेह,जबूके वीजली हो लाल ॥जबूके वीजली ॥ ए देशी॥ एणि अवसर तिहां प्रीति,मती कला वरसती हो लाल म०॥ गीत विचार करती, पूर्वपदें सती हो लाल ॥ पू० ॥ तिहां कोई कुमरना मु खथी, वचन नवि नीकल्यु हो लाल ॥ व ॥ श्रावी गले ग्रहे तेम, मन सर्वनुं संकल्यु हो लाल ॥ म० ॥१॥ कोश्क स्खलना बोलतां, पामे प्रा Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंग पहेलो. पिया हो लाल ॥ पा० ॥ कोइक मौन धरी रह्या, मानु अजाणीया हो लाल ॥ मा० ॥ कोश्क बोले असंबद्ध, लोक हसावता हो लाल ॥ लो०॥ पण को उत्तरपद, करण नवि पावता हो लाल ॥ क० ॥२॥ सर्व निलीन थया जब, प्राणी बक परें हो लाल ॥ प्रा० ॥ तब हसता देता ली, कहे के इणिपरें हो लाल ॥ कण्॥ नो नो सरस्वती नारी, तेणें स्त्री पद करे दो साल ॥ ते ॥ कोई कहे जीत्या नारी, तोही जीवित धरे हो लाल ॥ तो० ॥ ३ ॥ कोइ कहे त्रिया राज्य, ए कारण जाणीयें हो लाल ॥ ए० ॥ एणिपरें थयो कोलाहल, ते जनवाणियें हो लाल ॥ते०॥ एम असंबद देखी, नूपति मन चिंतवे हो लाल ॥४०॥ कृष्ण करी मुख दृष्टि, जूनाग समी तवे हो लाल ॥ ॥ ॥ गुण सवि जगमां आय, रह्या गुं एटला हो लाल ॥र० ॥ राजकुमर मलिया डे, बहोत ते केटला हो लाल ॥ ब० ॥ विधि पण नूट्यो वात, ए करतां गुन परें हो लाल ॥ ए ॥ प्रीतिमती पति नवि, निपजाव्यो कोइ घरें हो लाल ॥ नि० ॥ ५॥ अथवा खिन्न थयो विधि, तिणे एह सारिखो हो लाल ॥ ति० ॥ नवि निपजावी शक्यो एम, करुं मन पारखो हो लाल ॥ क०॥ मंत्री कहे सुण स्वामी, विपाद न कीजीयें हो लाल ॥ वि० ॥ उद्यम क रता इबित, फल सविसीजीयें हो साल ॥ फ० ॥ ६ ॥ राजकुमर असं ख्य, मव्या इहां तुम घरे हो लाल ॥ म० ॥ नवि लहियें को जीत्यो, न जीत्यो नली परें हो लाल ॥ न० ॥एम कही करे उदघोषणा, सुगो स वि राजीया हो लाल ॥ सु० ॥ खेचर कुमार प्राकृत नर, जे गुण गाजिया हो लाल ॥ जे ॥ ७ ॥ मुफ पुत्री जे जीतशे, तस परणावगुं हो लाल ॥ त॥ युक्तिसंगत उद्घोषणा, सांजली जावगुं हो लाल ॥सांग ॥ मन चिंते अपराजित, कुंवर ए स्त्री अबे हो लाल ॥ कुं० ॥ एहनी साथें जीत,थए परणयुं पढ़ें दो लाल ॥ ५० ॥॥ नवि घेटानी साथै के,गजने रण घटे हो लाल ॥ग ॥ नारी स्वनावें दोष, संयुत ते नवि मटे हो लाल ॥सं०॥ जो न करूं विवाद तो, ए पण मद धरे हो लाल ॥ ए. ॥ शास्त्र थलीक होय नरपद, हारे एणी परें हो लाल ॥ हा ॥ ए ॥ एम चिं तवीने थावे, सदु मुख आगलें हो लाल ॥ स० ॥ रूपांतर रह्यो तोहि, शोने लावण्पबलें हो लाल ॥ शो ॥ अचपटल अंतरित, शशी पण उ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. रक शोधन नृप करे, करे अमारीना घोष रे ॥ दश दिन सघला देशमा, क रता बदु जन पोष रे ॥ १५ ॥सां०॥ सघले जिनने देहरे, पूजा विरचे जिन रायो रे ॥ दंम निवारे नूपति, दश दिन नवि कर थायो रे ॥ १६ ॥ सां ॥ कुंधर तणे पुण्य करी, मणि कनक ने निधानो रे ॥सुर यावी तस घर न रे, प्रगट पुण्य अमानो रे ॥ १७ ॥ सां० ॥ उंछुहि वाजे आकाशमां, नाचे रमणीयो झारो रे ॥ पहेरे नूषण अति अनिनवां,बदु मूलां बदु नास्यो रे ॥ ॥ १७ ॥ सां० ॥ पुप्फ तंबोल प्रमुख घणां,आपे ने वली लेय रे ॥ भोजन पान करे सुखें, प्रमुदित नगरनां लोय रे ॥१५॥ सांग ॥ एम दश दिन सुविनूतिथी, हर्षित राय करंत रे ॥ वारमे दिन अनिधा नर्बु, शंखकुमार तवंत रे ॥ २० ॥ सांग ॥ स्नान मऊन मंझन वली,क्रीडा ने वली अंक रे॥ पंच धाव्ये पालीजतो, वधतो कुंअर निःशंक रे ॥ २१ ॥ सांग ॥ वयरी मित्र घरे नित वधे, नपघात ने वली मोद रे ॥ नृप घर कुंधर वधे घj, न पजे सदुने विनोद रे ॥ २२ ॥ सांग ॥ लेखाचारजनी कने, मूके नगवाने राय रे ॥ बुध पण कुंधर देखीने, मनमां हर्षित थाय रे ॥ २३ ॥ सां० ॥ व्याकरण निमित्त गणित नण्यो, आगम मंत्र ने तंत्र रे ॥ विद्या वैदक शा स्त्रने, अलंकार बंद यंत्र रे ॥ २४ ॥ सांग ॥ ज्योतिष गारुड काव्यने, नाटि क मदननां शास्त्र रे॥ महा नारत धनुषकला, हस्ती शीदा वली वस्त्र रे॥ ॥२५॥सां॥ धातुर्वाद ने द्यूतनी, लदाण पुरुष ने नार रे॥ कागरुतादिक शकुनना, अंग विद्या मन धार रे ॥ २६ ॥ सां० ॥ नाटक गीतादिक कला, पुरुषनी कला बहोंतेर रे ॥ दिन थोडामां शीखियो, थयो वृहस्पति पेर रे ॥ ॥ २७ ॥ सां० ॥ ए चोथा अधिकारनी, पहेली ढाल रसाल रे ॥ पद्मविज य कहे पुण्यथी, होवे मंगलमाल रे ॥२७॥ सां० ॥ सर्वगाथा ॥ ३३ ॥ ॥ दोहा॥ ॥ यौवन प्रारंन्यो हवे, पसरतो कंदर्प ॥ तरुणी हृदय तपावतो, श्वा ज्वाल प्रसर्प ॥ १ ॥ विमलबोध पण कपनो, गुणनिधि मंत्री पूत ॥ मति प्रन नाम ले जेहन, जे राखे घरसूत्र ॥॥ पांशुक्रीडा साथै नण्या, यौवन पाम्या साथ ॥ बीजा पण राजपुत्रगुं, रमतो हाथो हाथ ॥३॥ पुर उद्याने जायतां, नास्यो बोले एम ॥ हर्ष धरी उत्साहरां, दाखे बहुविध प्रेम ॥४॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. हारो कंत ॥ जा० ॥ ६ ॥ मु खर्थे दुःख बहु सयुं रे, जुन ए कर्म वि चित्त ॥ जा० ॥ पूरवधी वली प्रीतडी रे, अधिकी हुई सुविदित्त ॥ ला० ॥ ७ ॥ सुख जोगवे तिहां दंपती रे, दिन दिन अधिके नेह ॥ ला० ॥ रा ज्य देश हवे जानुने रे, पाम्यो पंचत्व तेह || ला० ॥ ८ ॥ जानुने हवे सरस्व ती रे, जोगवे जोग रसाल ॥ जा० ॥ एक दिन सरस्वती अंगमां रे, उपनो गढ़ असराज ॥ ला० ॥ ए ॥ दाघज्वर यति करो रे, देखाडे बहु वैद्य ॥ सा० ॥ नरपति इव्य आपे घणुं रे, पण नवि टाले सद्य ॥ला० ॥ १० ॥ वैद्ये तजी ते नारीने रे, नृप मन चिंता याय ॥ जा० ॥ चिंतवे जीव तां एहने रे, मरण जो महारुं थाय ॥ ना० ॥ १ ॥ तो दुःख देखें हुं नहिं रे, विरह ते दुःख दातार ॥ जा० ॥ ण एक हुं नवि रहि शकुं रे, ए मुफ प्राण याधार ॥ जा० ॥ १२ ॥ हवे मुऊ ऊंपा रुयडो रे, हवे जीवे गुं होय ॥ जा० ।। प्राणप्रिया मरवा पडी रें, ए सम अवर न कोय ॥ जा० ॥ १३ ॥ सातमे मार्ले ते चढ्यो रे, करवा जीवितत्याग ॥ ला० ॥ चारण मुनिवर तिले समे रे, दीठो ते महानाग ॥ ला० ॥ १४ ॥ मुनि कहे तुं धुं करे रे, आप तो वध एम ॥ला० ॥ बालजनें जे याचयुं रे, ते करीयें कहो केम ॥ ० ॥ १५ ॥ प्रविधि मुखाने सुख नहिं रे, परजव पण हो य दुःख || ला० ॥ तव कहे मुनिवर सांजलो रे, मुऊने नहिं इहां सुख ॥ ॥ ला० ॥ १६ ॥ गुं करुं स्वामीजी ते कहो रे, नवि सहेवाये वियोग ॥ ला० प्राण धरी हुं नवि शकुं रे, उपनो सरस्वती रोग ॥ ला० ॥ १७ ॥ तव क हे मुनिवर एलि परे रे, धर्म करो तुम्हें राय ॥ जा० ॥ धर्म सकल दुःख त्रायको रें, बाल युवा वृद्ध थाय ॥ ला० ॥ १८ ॥ देव ते रिहा यादरी रे, रागद्वेषादिक मुत्त ॥ ला० ॥ पंच महाव्रत पालतां रे, गुरु सुसा धु उत्त ॥ ला० ॥ १९ ॥ यतः ॥ रागाइ दोस रहिन्, चनत्तीसाइसय संजुन धीरो ॥ परवगारं मिरज, देवो महएरि सो हवइ ॥ १ ॥ अवद्यमुक्ते पथियः प्रवर्त्तते, प्रवर्त्तयत्यन्यजनं च निःस्पृहः ॥ सएव सेव्यः स्वहितैषिणा गुरुः, स्वयं तरंतारयितुं दमः परम् ॥ २ ॥ तत्त्व महो जिन नांखीयो रे, पापनां ठा ए दार || ला० ॥ विरति करो तुम्हें तेहनी रे, एलि परें धर्म उदार ॥ ॥ जा० ॥ २० ॥ धर्म ते सार संसार बे रे, जग आधार ए धर्म ॥ ला० ॥ सद्गति पहोंचाडे नलो रे, बांधे नवि ते कर्म ॥ला ॥ २१ ॥ एलि परें उ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम पदेलो. न्य देश संनालीरे, अंगीकरे तेह राय ॥ ला ॥ सरस्वती पासें लावीयो रे, नू पति ते ऋषिराय ॥ ला॥ २२ ॥ वंदना करी ते नावथी रे, देश विरति क रे अंग ॥ ला ॥ पाप विलय गयां तेहनां रे, रोग गयो मुनिसंग ॥ ला ॥२३॥ राज्य सिरी एम जोगवे रे, वृक्ष थया नानुराय ॥ ला ॥राय राणी मन चिंतवे रे, दीदा लिनं जिनराय ॥ ला ॥ २४ ॥ पुत्रने राज्य थापी करी रे, सुगुरु तणे पायमूल ॥ला ॥ दीदा आदरे राजीयो रे, पाले व्रत अनुकूल ला॥२५॥ साधवी पासें सरस्वती रे, लिये दीदा गुनयोग ॥ ला० ॥ गीतारथ नानु थयो रे, देई गुरु नपयोग ॥ला॥२६॥याणा एकाकी तणी रे, यद्यपि शास्त्रे निषिदला॥ तो पण शास्त्र जाणीकरी रे, तेहने आणा दीध ॥ ला ॥ १७ ॥ ते नानु ढुं जाणजे रे, या वेठो तुम पास ॥ ला० ॥ मरण लहंत नृपवच सुणी रे, तो किम जिन धर्मवास ॥ ला॥ २७ ॥राज्य पालत कुण एणि परें रे, श्रेय परंपरा एम ॥ ला० ते कारण तुं धर्मने रे, कर वली कांक नेम ॥ला ॥ २ ॥ बाल मरण करी वेगलु रे, पामें जेहथी श्रेय ॥ ला ॥ चं कहे तव मुनि प्रतें रे, यो मुंऊ जेह आदेय ॥ ला ॥ ३० ॥ ए चोथा अधिकारनी रे, नांखी बही ढा ल ला॥ पद्मविजय कहे जिनतणारे, धर्मथी मंगलमाल ॥ला ॥३१॥ ॥ दोहा ॥ ॥ चंकहे सुणो स्वामीजी, अनवस्थित चित्त मुफ ॥ मित्र वियोगी धन विरहो, जावू विनयें तुम॥१॥ ते कारण किरपा घणी,करि आपो मुफ तेह ॥ स्वस्थ चित्त जेम माहरूं, थाये धर्म सनेह ॥ २॥ वली विशेष अवसर लही, आदरयुं व्रतनार ॥ तव मुनिवर एणि परें कहे, शीखो तुम्हें नवकार ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ ॥ देशी चोपाई ॥सांनल तुं हवे चंकुमार, जावं फल ढुं श्रीनवकार ॥ एहनां पद नव संपद आठ, जपतां नासे कर्मकुकाठ ॥ १ ॥ लघु अदर एकसहि वखाण, एहमां सात अदर गुरु जाण ॥ सर्व मलीने अडसर था य, सडसन पण कोश्क कहेवाय ॥ ५ ॥ दो मंगल माने जे जेह, पण अ युक्त नारख्युं एह ॥ निशीथचूर्णिमांही ए कह्यु, प्रवचन सार नहारें ल युं ॥ ३ ॥ कोई कारण एहनी चूलिका, आराजे शिवतरु मूलिका ॥ कमल बत्रीश पांखडीनुं करे, एक एक तिहां यदर जरे ॥४॥ ते जरतां बत्रीस न Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. राय, पण मोमो मध्य खाली गय ॥ हवश्मंगलं कहेतां तेह,कंणो पण पूरो थाय एह ॥ ५॥ बीजे पण बहु ग्रंथें सुण्यु, गुरु परंपरायें पण मुण्यं ॥ ए क नवकार कहे गुन नाव, सागर सातनुं फेडे पाव ॥६॥ जो नमो अ रिहंताणं गणे, पाप सागर पञ्चासनु हणे ॥ जो संपूर्ण गणे नवकार, पांच शे सागर पापनिवार ॥७॥ यतः ॥ नवकार इक अरकर, पावं फेडे सत्तय यराइं॥ पन्नासं च पएणं,सागर पणसय समग्गेणं ॥१॥ आठ कोडी ने वलि लख यान, यात सहस असत वली पाठ॥गणतां शाश्वत थानकलहे, ए अधिकार जिनेश्वर कहे ॥ ७ ॥ यतः ॥ अवय असया, असहस अफ लरक कोडीन॥ जो गुएनतिजुत्तो, सो पावई सासयं गाणं ॥२॥ शिवकु मार ने वली श्रीमती, श्रीजिनदास श्रावक गुनमति ॥एहनीया नव पूगी आश, परनव पण नवि थाय निराश ॥ए ॥ चंमपिंगल हुंमक बिद्ध चोर, जे करतां नित्य पाप अघोर ॥ ते पण सुरपद पाम्या वही, महिमा ए नव कारनो सही॥१०॥ श्रीश्रीपाल नरिंद वली जुन, ए नवपदयी नीरोगी दु॥ एम शास्त्रे कह्यां बहु विरतंत, ते कहेतां नवि आवे अंत ॥ ११॥ जंबुद्धी प अनाहत देव, पूरव नव करी नव पद सेव ॥ ए सवि श्रुतखंधमांहीरह्यो, महिमा नवि जाये को कह्यो ॥१२॥ एहज चौद पूरवनो सार, ग्रंथें जा रख्यो श्रीनवकार ॥ चौद पूरवना अरथ जे कह्या, पहेला पदमां अरिहंत लह्या ॥ १३ ॥ ते अरिहंत पण साधे सिह, बीजा पदमां तेह प्रसि ॥ सूत्र तणा करता गणधरा, ते त्रीजे पदें सूरिवरा ॥१४॥ सूत्र तणा कह्या पाठक जेह, चोथा पदमां जांख्या तेह ॥ सूत्रमांही कह्यो जे निरुपाध, मारग साधे तेहज साध ॥ १५॥ तिवं नवकार पूरवनो सार, जगत जी व सदुने हितकार ॥ चौद पूरवी गरढा थया, सूत्रारथ उपयोगी न नया ॥ १६ ॥ अंतश्रवस्थायें श्रीनवकार, तेहने पण होवे आधार ॥ए नव कार समो नहिं मंत्र, हे सदु मणिमंत्र ने यंत्र ॥ १७ ॥ खलने बोलण योग्य झुं नहिं, नूख्यो अ॒ नवि खाये ग्रही ॥ व्यापारीने नहिं परदेश, वज अनेद्य किस्युं सुविशेष ॥ १७ ॥ शी वस्तु जगमां ने जेह, जे नवपद साधे नहिं तेह ॥ ऋदि वृद्धि दिये था नव घणी, अनुक्रमें पदवी मोदज तणी ॥ १५॥ एम सांनलीने चंकुमार, जक्तं शीखे श्रीनवकार ॥ विचस्यो मुनिने करी प्रणाम ॥ अनुक्रमें पहोतो कुसुमपुरें गम ॥ २० ॥ मांझयो Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंग पदेलो. | ០១ तिहां चंड़े व्यापार, फलीयो तेहने श्रीनवकार॥ माहा इक्विंतो ते थयो, एक दिन निमित्तने पूण गयो ॥१॥ माहारा मित्र जीवे के नहिं,मुक मल शे के वली कहीं ॥ कहे निमित्तियो दिन थोडले,त्रणे मित्र मलशे जोडले ॥२२॥ अन्य अन्यपुरथीयावशे, ते पण दिघणी लावशे ॥ एम सांजली ने दीधुं दान, निमित्तियो पहोतो निजथान ॥२३॥ हवे थोडा दिनमांहे ते ह, नानु शिव ने कृष्ण सनेह ॥ वद्ध कदि आव्या सद्ध मल्या, सुख दुःख नी वातोमां नव्या ॥ २४ ॥ निज निजनी जे वातो थर, जांखे जेहअती तें गइ ॥ चार मित्र हवे रहे सुखवास, विपयसुख नोगवे आवास ॥२५॥ ते सदनकनावी थया, श्री नवकार शीखण सज थया ॥ चंकुमार नुं सुणी चरित्र,मनमा नावे कर्म विचित्र ॥ २६ ॥ए चोथेअधिकारें कही, ढाल सातमी एणि पेरें लही ॥ पद्मविजय कहे जपो नवकार, जेहथी हो वे जयजयकार ॥ २७ ॥ सर्व गाथा ॥ २२ ॥ ॥दोहा॥ ॥बह धन पाम्या तिगपुरे, एकदिन बेग चार ॥ करे विचार ते एणि परें, जखमीनो नहिं पार ॥ १ ॥ ते धन पामे पण किस्युं, जो रहे सजन वियोग ॥ तस जखमी विफली लहो, अन्यदेशमा जोग ॥ २ ॥ यतः॥ किं ताए सिरीए, सुंदरी विजा हो अगदेसंमि ॥ जाइन मित्तेहि समं, जा य न दिघा अमित्तेहिं ॥ १ ॥ निज देशे जावा जणी, सम्मत कीध विचा र ॥ प्रवहण जरीचाल्या हवे, सायर पाम्या पार ॥३॥ वेलानलमां कत री. वेची वस्तु अनेक ॥ करियाणां अन्यदेशने, योग्य नरे सुविवेक ॥४॥ जयपुर नगर नग। हवे, थलमारग करी। जाय ॥ कोश्क थानक तस्या. वे ठा सह समवाय ॥ ५॥ सामग्री जोजन तगी, करी अनेक प्रकार ॥ जो जन करवाने सदु, वेठा चित्त उदार ॥ ६ ॥ ॥ढाल आठमी॥ ॥वे बे मुनिवर विहरण पांगुख्या जी ॥ ए देशी ॥ एणि अवसर मुनिव र तिहां आवीया जी, धरता निर्मल ध्यान रे ॥ पंच माहाव्रत पालता जी, चरण दर्शन धरे ज्ञान रे ॥१॥ एणि॥ देयावच्च करे मुनि दश नेदथी जी, संजम सत्तरे प्रकार रे ॥ दशविध साधुधर्म अजुवालता जी, ब्रह्मचर्य गु प्तिना धार रे ॥२॥ एणि॥ बार जेदें तप यादरे जी, क्रोध मान माया Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४ __ जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो. ॥ ढाल अगियारमी ॥ ॥ लाबलदे मात मल्हार ॥ ए देशी ॥ एम कही अनंग देव, युवती व शें हेव ॥ आज हो ॥ लांबो रे धुंघट करीने ते नीकल्यो रे ॥ १ ॥ शिबि कायें वेतो तेह, अनुक्रमें पहोतो गेह ॥ या० ॥ मंगलना तिहां तूर घणां वाजी रह्यां रे ॥२॥ नाटक होवे धार, गावे बहुजन बार ॥ आ० ॥प व्यंकें जश् सूतो ते थाकापरें जी ॥ ३ ॥ प्रावी तिणे ठगम, रतिमाला ए णि नाम ॥ आ ॥ रतिसुंदरीना मामानी पुत्री अबे रे ॥ ४॥ विवाह अर्थे तास, विजयपुरथी निज पास ॥ या० ॥ तेडी ते अनंगदेव पामें उपविशे जी ॥५॥ रतिमाल कहे एम, बहिन सांजलो तुक नेम ॥ आ॥ रतिवईन मूकीने अन्य पुरुष तणो रे ॥ ६ ॥ रतिवईन तुक नांहि, मली यो चोरीमांहि ॥ आ० ॥ तो पण तुं पुण्यवंतमांहि शिरोमणी रे ॥ ७ ॥ वनन साथै मेलाप, करी टाल्यो संताप ॥ आ० ॥ बहु दिन लगें ते या तम निज सफलो कस्यो रे ॥ ७ ॥ पुण्यहीन ढुं नार, ते पण न ययुं सा र ॥ था ॥ बहेनी रे सांजल तुं म्हारी वातडी रे ॥ ॥ गजयी राखी मुफ, हरि मुफ हृदयनुं गुफ ॥ आ० ॥ वहिनी रे गयो खबर न तेहनी को पड़ी रे ॥१०॥ खोली नगरी तेह,गढुंमां कंकर रेह ॥आ॥ लीयो रे न वि कोइ नपायें वालहो रे ॥ ११ ॥ तेह अनंगदेव ताम, करे ढुंकार ते काम ॥ श्रा० ॥ वातो रे सघली कहे ते नठी करी रे ॥१२॥लाज करी ते दूर, पुरुषवेप करे तूर ॥ आ० ॥बांहडी रे जालीने उठाडे तदा रे ॥१३॥ लोक मल्यां बदु वार, गीत वाजित्र प्रकार ॥ आ० ॥ नाशी रे जश्य पश्चि म हारें करी रे ॥ १४ ॥ शब्दथी उजवी तास, मान्युं वचन ते खास ॥ श्रा० ॥ नागरे ते बिहुँ जण थक्ने एकमना रे ॥१५॥ विश्वपुरें गयां तेह, चार मव्या ससनेह ॥ था ॥ सकल साय तिहां नलो थयो तिणे समे रे ॥ १६ ॥ मांड्यो तिहां व्यापार, पाम्या इव्य अपार ॥ आ० ॥ तिहां प्रासाद बनावीने रहे सुखनरे रे ॥ १७ ॥ नाशिकपुरथी स्वजन्न, तेडे रतिवदन ॥ ७ ॥ ब्रह्मस्थलथी अनंगदेव तेडे कुटुंबने रे ॥ १७ ॥ चंसेन नामें राय, सुंदरजीव ते थाय ॥ श्रा० ॥ राज्य पाले विख्यात वि कम न्यायें करी रे ॥१॥ राजा साथ तास, दु व्यापार विलास ॥ा॥ स्नेह वध्यो पूरवनवना अन्यासथी रे.॥ २० ॥ रतिसुंदरी वीजी नारी, Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम पहेलो. रतिमाला अवधारी ॥ आ ॥ तेहने पण राय आदर मान दे अति घणो रे ॥ २१ ॥ पांच जणाने प्रीत, दुइ जगमां सुविदित्त ॥ या ॥ एक दि ने रे तिहां केवलनाणी समोसस्या रे ॥ २२ ॥ जर सदु केवली पास, सां नने धर्म नन्नास ॥ प्रा० ॥ पामी रे अवसरे ते पूले नूपति रे ॥ २३ ॥ नपना दे ताम, किम ने स्नेह नद्दाम ॥ आ ॥ ज्ञानी रे तव चंशदिक नो नव कहे जी॥ २४ ॥ जातिसमरण पाम, वाणी सुणी तिणें ठाम ॥ प्रा०॥ पांचे रे जगने वैराग्य ते नपनो रे ॥२५॥ मुनिनें दान प्रनाव, कर्म दुयां हलुनाव ॥ ॥ राज्ये रे थापे निज सुतने राजीयो रे ॥२६॥ रतिवर्कन अनंगदेव, निज निज सुतने हेव ॥ आ ॥ थापे रे कुटुंब त णा सवि नारने रे ॥ २७ ॥ लीये दीदा सदु तेह, केवली पास सनेह ॥ प्रा० ॥ करता रे सदु उग्र तपस्या ते नवें रे ॥ २७ ॥ घातिकर्म करी नाश, केवल ज्ञान विलास ॥ आ॥ ते नवमां सदु सिदि वस्या सुख शा श्वतां रे ॥ २०॥ रतिप्रन कहे एणि नांत, शंखकुमरने वात ॥ ७ ॥ सांजली रे मनमा घणुं शंख खुशी थयो रे ॥ ३० ॥ एम चोथे अधिकार, ढाल थइ अगियार ॥श्रा०॥ नांवे रे मुनि पद्मविजय सुणो नविजना रे॥३१ ॥ दोहा ॥ ॥ मतिप्रन नाम साधु कयुं, एह कहे अवदात ॥ विसयो तव मंत्रि सुत, श्राप निशमां थात ॥ १ ॥ मध्यरात्रिने अवसरें, रुदननो शब्द सुणं त ॥ जे सुणी करुणा उपजे, दूरथकी आवंत ॥ २ ॥ कौतुकनो लीधो ति हां, करतो खङ्ग सहाय ॥ शब्द तणा अनुसारथी, ते चाल्यो नजाय ॥३॥ अनुक्रमें पहोतो शुन परें, दीठी तिहां एक नार || मध्यम वयें यावी ने. करे विलाप पुःख धार ॥४॥ कहे कुमर माता सुगो, धीरा थान ए वार ॥ संजलावो दुःख तुम्ह त', करीयें तास विचार ॥ ५॥ उत्तम पुरु पजाणी करी, कहे सांजल वत्स वात ॥ नाग्यहीन हुँ अति निपट, शिथि ल थयुं मुफ गात ॥ ६ ॥ रतननिधान देखावीने, दैवें ते हरी लीध ॥ सां नल कुंधर ते ढुं कहूं, मुफ वंबित नवि सि६॥ ७ ॥ ॥ढाल वारमी॥. ___॥पीनजी पीनजी नाम, जपुं दिन रातीयां ॥ पीजी चले परदेश, त पे मोरी बातीयां ॥ ए देशी ॥ अंगदेश चंपा नगरी, अति दीपती॥ विपु Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए६ जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो. लपणाथी मानु, आकाशने जीपती॥ ते नगरीनो वर्णन, केटलो कीजीये ॥ वासुपूज्यना पंच, कल्याणक लीजीयें ॥१॥ नाम जितारि ते, नगरीनो राजीयो ॥ तेज प्रताप महिमाथी, जे जग गाजीयो ॥ चोर चरर ने नवि, सहेवाये तेजथी। मित्र प्रजा सदु लोक,बोलावे हेजथी॥ २॥ जे अहंकारी शत्रु,सुनटने देखवा॥माया विनीत गुण,आबादन लेखवा॥ जसलेवाने लो नी, परधने पांगलो॥परस्त्री देखण जेह, कह्यो ने अांधलो ॥३॥ कीनिमती तस राणी, गुणखाणी कही। शुज सुपने सूचित, गर्ने पुत्री रही। रोहणा चल परवतमा, रतनशुचिजीस।।। तनुकांत अजुयाल,करे जे दश दिशी ॥४॥ जनम समय वधामणु, महामोन्लव करी ॥ जितारि नृप जसमती, तस अनिधा धरी ॥ गिरुया लोकने पर, उपगारनी बुद्धि परें । साननी सु खदायक,गोठडी ज्युं धरे॥५॥ तिणपरें दिन दिन वधती,नागर वेलडी ॥ अ ण अन्यसित तस ावी, कला सुखवेलडी ॥ अनुक्रमें यौवन याव्युं, ते नारी तणुं ॥ महिमामात्र ते यौवन ढुं, किणिपरें नपुं ॥६॥ तो पण सां जल हूं, तुमने कांयक कहुँ॥ मानुं जस पद अंगुली, अलतापणे ल ढुं॥ नहमणि किरण परें नह, किरण ते जाणीयें ॥ नाद मधुर कल हंस, परें वखाणीयें ॥ ७ ॥ कमलिनीनाला उपम, जंघा जेहनी ॥ चा लती थल कमलिनी परें, सोहे मोहनी ॥ नानिमंमलविपुल, मृफु अति सोहती ॥ मदन तणी मानुं शय्या, जन मन मोहती ॥ ७ ॥ मुक्ताफल ना हार, थकी विराजती ॥ कुचफल कतिण विशाल, कलशपरें नाज ती ॥ कर पदनां तल जेहनां, कमल समां कह्यां ॥ श्वासोवास सुरनि घj, चंदन परें लह्या ॥ए ॥ बोले वचन ते वीणा,वेणुनी परें ॥ अधर अरुण जिम कुंकुम, राग वदन धरे ॥ अणमातुं मानुं सरलपj, जसल दयेंवसे ॥ आवी रह्यं नासिकायें, सरल पणे नवि वचें ॥ १० ॥ नेत्र क मलनां पत्र, बन्यां गुन श्रवण ते ॥ जास कपोल ज्योत्स्नायें, पखाले वयण ते ॥ पंचमी चंपरें शुन, जाल ते धारत। ॥ वाद लता मानं कुटिल, पणाने वारती ॥ ११ ॥ मालती कुसुमने केतकी, सहित वे णी नली ॥ मृड स्निग्ध कुटिल, कृष्ण पणुं जिहां वली ॥ कनक कां ति जस देह, घणुं जोवा जिसी ॥ जो सुरगुरु अावी वणवे, पण नवि क हे तिसी ॥ १५ ॥ पण अनुरूप पुरुप कोइ, जगमां नवि जड्यो ॥ जा Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. यां, तेम मंत्रि सामंत प्रमोद ॥ गुणधर गुणधर पासे लीये, दीक्षा विधिथी लहि मोद ॥ १० ॥ न० ॥ जणी सूत्रने गीतारथ यया, करे उग्र तपस्या साध ॥ निरतिचार चारित्र पालता, नवि करतां को अपराध ॥ ११ ॥ ॥न ॥ हवे शंखराय पाले राज्यने, वश करी वयरीनो व्रात ॥ पटदेवी जसमतीने करे, मतिप्रन मंत्रिपदें थात ॥ १२ ॥ न ॥ आया वहे स दु परजा तिहां, सीधां सघलां नृपकाज ॥ पूरवें जे उःसाध्यने साधिया, पाले अखंम एम राज ॥ १३ ॥ न० ॥ देशमाहे सघने करावतो, जिनव रनां चैत्य विशाल ॥ करे स्वर्गलं तेह विवादने, वली करतो तास संजाल ॥१४॥ न॥करे रथयात्रा तेहवी, देखीने थाय आव्हाद ॥ करे दा नशाला पगपगें, नवि स्वपर विशेष विवाद ॥ १५ ॥ न ॥ पडह वजा वे अमारीना,करे साहमीवबल राय ॥ जे निर्धन ते धनवंत कखा,त्रण नु वनने आनंद थाय ॥ १६॥ न॥ श्रीषेण मुनिश्वर विचरता, करे कर्म त यो नित्य घात ॥ तपरूप अनि पेदा करी, घातीकर्म इंधण करे पात ॥ ॥१७॥न । एम सकल घातीकर्म क्ष्य करी, ऋषि पाम्या केवल ज्ञान ॥प्रतिबोध करे सूरजपरें. नवि लोककमल अज्ञान ॥ १७ ॥न ॥ एक दिन हलियानरें आविया, अनुक्रमें विहार करंत ॥ रचे कनककमल सुर वर तिहां, गंधोदक फूल वरसंत ॥ १५ ॥न ॥ सहसंबवन नद्यानमां,या वी समवसस्या गुड़ गय ॥ उद्यानपाल नूपालने, वधामणी दिये तिहां श्रा य ॥ २० ॥न॥ तस दान दे संतोषियो, हरव्यो मन राय अपार ॥ हवे के वलीने वंदन जणी, सऊ थाय करि शणगार ॥ १॥न०॥ एम ए चोथा अधिकारनी, नांखी पन्नरमी ढाल ॥ गुरु उत्तम विजय रूपाथकी, होय प भने मंगलमाल ॥ २२ ॥ न० ॥ सर्वगाथा ॥ ४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ गज तुरंगम अति जना, रथ नटनो नहिं पार ॥ सामंत मंत्रीसरस हित, पुरजन लोक अपार ॥ १ ॥ जसमती प्रमुख अंतेनरी ले सघलो परिवार ॥ पहोतो राय उद्यानमां, उतरे गजथी तिवार ॥२॥ पंच अनि गम साचवी, करे प्रदक्षिणा तीन ॥ विनयें केवलीने नमी, बेठो आणंद पीन ॥ ३ ॥ शंख नूपति नांखे इस्युं, करी कपा मुज स्वाम ॥ जे मुफ करवा योग्य ते, नांखो करुं शिर नाम ॥ ॥ एक पिताने मुनिवरु, वली लह्यु Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो. कहे सुण बाल रे ॥ रा० ॥ क० ॥ पुत्री कोइक परणावगुं रे, जाचीने तत काल रे॥रा० १३ ॥ क० ॥ धीरो थाजे बालका रे, तव चिंते नंदिपेण रे ॥ रा ॥ क० ॥ माग्लपुत्री ने नहिं रे, अन्य वांडे कहो केण रे ॥ राण ॥१४॥ क० ॥ ढुं तो सुःखित रूपथी रे, इम मन धरी वैराग्य रे॥ राम ॥ क० ॥ निकल्यो मान्ल घरथकी रे, कीधो नंदीपुर त्याग रे ॥रा ॥ १५ ॥क ॥ रत्नपुरें पहोतो वही रे, क्रीडा करतां जाम रे॥रा०॥ क० ॥ दंप तीने देखी तिहां रे, निज निंदा करे ताम रे ॥ रा० ॥ १६ ॥ क ॥ मर वानी श्बा करी रे, कोइ वनांतरें जाय रे ॥रा० ॥ क ॥ देखीने प्रणमे तिहां रे, सुस्थित मुनि कपिराय रे ॥रा० ॥ १७ ॥ क० ॥ जाणी झानथी मुनिवरु रे, नाखे एणि परें वाण रे ॥रा० ॥क० ॥ मरण न कर महा नाग तुं रे, पामीश दुःखनी खाण रे ॥ रा० ॥ १७ ॥ क० ॥ धर्म न कीधो परनवें रे, दुःख पामे तिणें आज रे ॥रा० ॥ क० ॥ सुख अर्थी करो ध मने रे, धर्मथी लहो शिवराज रे ।। रा० ॥ १५ ॥ क० ॥ आत्मघात कीधां थकां रे, सुख नवि होवे कोय रे ॥रा ॥क० ॥ धर्म दीदाथी पामीयें रे, जव जव सुख लहे सोय रे ॥ रा० ॥ २० ॥क ॥ सुणी प्रतिबोध ते पा मीयो रे, लीये महाव्रत मुनिपास रे ॥रा० ॥ क० ॥ गीतारथ अनिग्रह क रे रे, साधु वैयावच्च खास रे॥रा० ॥१॥क० ॥ बाल ग्लानादिक साधु नी रे, वेयावच्च करे तेह रे॥ रा ॥ क० ॥ अनिग्रह ते पूरी करे रे, गु गगनो मुनिगेह रे॥रा० ॥ २२ ॥क० ॥ एक दिन इं५ प्रशंसता रे, देवसना मांही सार रे ॥रा० ॥ क० ॥ नंदिपेण समो नहिं रे, वेयावच्च करनार रे ॥ रा० ॥ ॥ २३ ॥ क० ॥ शक्रवचन अणमानतो रे, देव एक कहे एम रे ॥ रा० ॥ क० ॥ पूणीथीनगर चंपास्युं रे, ते मानुं कहो केम रे।। रा० ॥ २४ ॥ क ॥ रूप धरी ग्लान साधुनुं रे, रतनपुर उद्यान रे ॥ रा ॥ क ॥ वेसारी ते साधुने रे, कूट धरी मन ध्यान रे ॥रा ॥ २५ ॥क० ॥ रूप बीजुं वली साधुनुं रे, करी जाये पुरमांह रे ॥ रा० ॥ क०॥ मुनिवसतियें आवतो रे, मनमां धरी उत्साह रे ॥ रा० ॥ २६ ॥ क० ॥ बीजे खंमें वीजी थई रे, ढाल प्रथम अधिकार रे ॥रा॥क०॥ पद्मविजय क हे सांजलो रे, मुनिदृढता अधिकार रे॥रा ॥२७॥क० ॥ सर्वगाथा॥७३॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. ता प्रतें । ला० ॥ ला० ॥ ब्राह्मण थाको एह ॥ ७ ॥ कुं० ॥ बेसारो रथ ऊपरें ॥ला० ॥ला ॥ सुगी बेसारे नार ॥ कुं० ॥ अनुक्रमें पहोता ते गाममां ॥ ला० ॥ ला० ॥ स्नान करे वली आहार ॥ ए ॥ कुं० ॥ य व तणे देउल जइ ॥ ला॥ ला ॥ सूतो संध्याकाल ॥ कुं ॥ पांडव पु में आवीया ॥ लाला० ॥ जाएयो वसुदेव काल ॥ १० ॥ कुं० ॥ खेद लहे सदु यादवा ॥ ला ॥ ला ॥ करे आकंद पोकार ॥ कुं० ॥ हा वसु देव तुं किहां गयो ॥ला० ॥ला०॥ तुं अमचो आधार ॥ ११॥ कुं० ॥ समुविजय बहु विलपता ॥ला ॥ ला ॥ किहां मुफ लागुं पाप ॥कुं॥ लोक वचनथी राखीयो ॥ ला० ॥ ला ॥ घरमां कहीने आप ॥ १२॥कुं॥ तुम मुख क्यारें देखयुं ॥ला ॥.ला० ॥ करे मृत्युनां काम ॥ कुं० ॥ वात सुणी वसुदेवजी ॥ला ॥सा०॥ थिर मन थाये ताम॥१३॥ कुं० ॥ वि जय खेटकपुरें बावियो । ला॥ला०॥ तिहां सुग्रीव ले राय ॥ कुं० ॥ श्यामा विजयसेना धुवा ॥ला ॥लाणा रूप कलानो गाय ॥१॥०॥ तेह कलाथी जिंतीयो ॥ला ॥ला०॥ परणे तिहां दोय नार ॥ कुं०॥ सुख जोगवतां तेहगुं ॥ ला० ॥ ला ॥ देवपरें अति सार ॥ १५ ॥ कुं॥ नामें अक्रूर नंदन थयो ॥सा ॥ला०॥ विजयसेनाने तेह ॥ कुं०॥ते प ए वसुदेव सारिखो ॥ ला॥ ला ॥ मूके प्रबन्न गेह ॥ १६ ॥ कुं० ॥ घो र अटवीमाही गयो ॥सा ॥ला० ॥ तरपा लागी तास ॥ कुं०॥ पोहतो सरतीरें जिसे ॥ला ॥ला ॥ याव्यो गज तस पास ॥ १७ ॥ कुं० ॥ विंध्याचल पर्वत समो॥ ला ॥ ला॥ चढीयो तस शिर तेह ॥ कुं०॥खे द पमाडी गजप्रतें ॥सा ॥ला ॥ बेठो शिर करी देह ॥ १७ ॥ कुं०॥ अचिमाली पवनंजयो.ला०॥ला ॥ विद्याधर ए दोय ॥कुं०॥ देखी वसु देव कोडतो ॥ ला० ॥ ला ॥ तेह हरी गया सोय ॥ १५ ॥ कुं० ॥ कुंजरा वर्त उद्यानमां ॥ला॥ला ॥ मूक्यो आणी त्यांही ॥ कुं० ॥ विद्याधर नरपति जलो.॥ला० ॥ला ॥ अशनिवेग वसे ज्यांही ॥२०॥ कुं० ॥श्या मा नामें कन्या नली ॥ ला॥ ला० ॥ परणावे तेह राय ॥ कुं० ॥ सुख जोगवे संसारनां ॥ला० ॥ला ॥ दंपती काल गमाय ॥ १कुं० ॥ एकदि न वीण वजावतां ॥ ला०॥ ला० ॥ तूतो वसुदेव तास ॥ कुं० ॥ माग तुं वर मुफ पासथी ॥ ला० ॥ ला० ॥ तव कहे ते सुविलास ॥ २२ ॥ कुं० ॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम बीजो. २३५ तुम्ह विरह मुफ मत होजो ॥ ला ला ॥ पूछे कारण तास कुं॥ तव श्यामा कहे एणि परें ॥ला ।ला० ॥ सांजलो धरि नन्नास ॥२३॥कुं॥ किन्नर गीतपुरी जली ॥ ला ॥ला ॥ गिरि वैताढयमा सार ॥ कुं० ॥ अर्चिमाली तिहां राजियो ॥ ला ला॥ तेहने दोय कुमार ॥२॥कुं॥ ज्वलन अशनिवेग नामथी ॥ला० ॥ला० ॥ ज्वलनवेग वे राज्य ॥ कुं॥ अर्चिमाली व्रत आदयुं ॥ ला॥ ला ॥ साधे बातमकाज ॥कुं॥२५॥ अंगारक तस सुत नपनो ॥ला ला॥ ज्वलननी विमला नारि ॥कु०॥ अशनिवेगनी हुँ धुवा लागला ॥ सुप्रना मात मलार कुं० ॥ २६ ॥ अशनिवेग जाइ प्रतें ॥ला ॥ला० ॥ ज्वलनवेग वे राज ॥ कुं०॥ देवलोक ते पामीया ॥ला ॥ला॥ नूपात थयो मुफ ताय ॥२७॥कुं०॥ राज्य ग्रहे विद्या बलें ॥ला ॥ला०॥ अंगारक नत्रीज ॥ कुं०॥ अशनिवे ग अष्टापर्दै ॥ला ॥ला० ॥ यावे मन धरि खीज ॥२७॥ कुं०॥ चार एणमुनि तिहां पेखीयो ॥ला० ॥ला० ॥ पूरे प्रश्न उदार ॥ कु० ॥राज्य थ को मुफ के नहिं ॥ ला० ॥ ला० ॥ मुनि बोले तिणि वार ॥ २ ॥ कुं० ॥ तुफ पुत्री श्यामापति ॥ला०॥ला० ॥ गज जीत्याथी जाण ॥ कुं० ॥ तास प्रनावथकी हो ॥ ला ॥ला ॥ हरव्यो मुनिवर वाण ॥३०॥ कुं० ॥ नगर वसावी मुफ पिता ॥ ला० ॥ला०॥ मुनिवचनें कहां गाय ॥ कुं० ॥ विद्याधर दोय मोकले ॥ला ॥ला० ॥ जलावर्ते नित राय ॥ ३१ ॥ कुं० ॥ देखी गज ऊपर चढयो ॥ ला० ॥ला ॥ आण्या तुम इण ठार ॥ कुं० ॥ मुफ परणावी वेगमु ॥ ला॥ला ॥ श्यामा नामें नार ॥३२ ॥ कुं० ॥ बीजे खंमें सातमी लामाला॥ ढाल प्रथम अधिकार॥ कुं० ॥ पद्मविजय कहे पुण्यथी ॥ ला ॥ ला० ॥ होवे जयजयकार ॥३३॥ कुं० ॥ ॥दोहा॥ ॥ श्यामा कहे सुण स्वामीजी, पुण्यवंत शिरदार ॥ तुम्हने घात करे र खे, ते अंगार कुमार ॥१॥ धरणें विद्याधरें, कीधो ने बाचार ॥ अतीत काल बहु नपरें, सांजलजो निर्धार ॥२॥ जिनवर चैत्यनी ढकडां, नारीत था मुनिपास ॥ मारे विद्या तेहनी, होवे सर्व निराश ॥ ३ ॥ ते कारण तु म्ह वीन, विरह म थाजो स्वाम ॥ एकाकी तुम्ह पापीयो, रखे हणे को ६ गम ॥ ४ ॥ वाणी तेहनी सांजली, अंगीकरे वसुदेव ॥ काल विनोद Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. प्रवहण नांग्युं त्यांही ॥ १ ॥ पुण्यसंयोगें यावि, फलक एक मुफ हाथ ॥ सात दिवस सायर जम्यो, पण ते फलकनी साथ ॥२॥ पाम्यो पार सायर तणो, राजपुरें वली जाय ॥ तेह नगर उद्यानमां, आश्रम एक गुन गय ॥ ३ ॥ दिनकरप्रन नामें वसे, परिव्राजक अनिराम ॥ शांत दांत घणुं देखीयें, धर्मतणुं मानुं धाम ॥ ४ ॥ ॥ढाल बारमी॥ ॥ किसके चेले किसके पूत ॥ ए देशी ॥ तेह त्रिदंमी देखी मुक, कहे सांनल कहुँ वात तुज ॥ बाबू मान ले ॥ए आंकणी ॥ तुं केम दुः खीयो एवडो बाज, तुं थाइश महोटो माहाराज ॥ १ ॥ बा० ॥ तेराः ख में खम्या न जाय, मेरा मनमें प्रारति थाय ॥बा०॥ गुरुकी हम हे ऐसी शीख, जपो अलख र जावकीनीख ॥ २॥ बा ॥ कंथा पहेरूं लगा, विनति, परदुःखीये दुःखीयो सुण पूत ॥ बा० ॥ जगकुं सुख तब हमकुं सुख, जग फुःखीयो तब हमकुं दुःख ॥३॥ बा ॥ मायामें सह जग लपटाय, हम तो नित्य निरंजन ध्याय ॥बा०॥ वात कहे वे तेरी जे ह, तुज देखी मुफ थरहरे देह ॥ ४ ॥ बा० ॥ तव प्रणमी कहे चारुदत्त, पाउनी जेटली थइ निज वत्त ॥ बा० ॥ चारुदत्तनां सांजली वयण, अव धूत आंसुं नरियां नयण ॥ ५ ॥ बा॥ रे वत्स तुं हवे धीरो थाय. धीरजें सवि दोलत मले बाय ॥ बा ॥ तें धन अर्थी हे सुण बहोत, धन दे वरा, आव तुं पहोत ॥ ६ ॥ बा ॥ तेरे घरकी दासी होय, लखमी ते म करिये तुं जोय ॥ बा॥ ते सुणी चाल्यो चारुदत्त, लोनीने होय बद्ध लुं सत्त ॥ ७ ॥ बा० ॥ बीजे दिन एक अटवीमांही, पहोतो मन धरतो उन्नाही ॥ बा ॥ तिहां एक पर्वतमांहे जाय, निवड शिला उघाडे पाय ॥ ७ ॥ बा ॥ उर्गपाताल नामें बिल तेह, तेहमां पेगे त्रिदंमी जेह ॥ वा० ॥ जमतां नमतां दीठो कूप, रस थानक महा दारुण रूप ॥णाबा॥ चार हाथनो ते विस्तार, मानुनरकतणुं ए हार ॥ बा० ॥ तुंबडं आपी कहे मुफ एम, सुण कहूं वत्स धरी तुज प्रेम ॥१०॥ बा० ॥ एहमा रस जरीने तुं प्राव, एम कही मंचिकामांही ठाव ॥बा॥ र काली मोकल्यो त्यांहि, मेखला दीठी में तेह मांहि ॥ ११ ॥ बा॥ तिहां रस नरीयो दी गे जोर, लेतां वारे को तिणे तोर ॥ बा० ॥ चारुदत्त छे माहीं नाम, Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम बीजो. १३५ मोकव्यो नगवंतें ए वाम ॥ १२॥ बा ॥ शे मुझने तुं करे निषेध, महारे ए रसगुंडे वेध ॥ बा ॥ ते पण कहे सुण महारी वात, वणिकने धनवां बक ढुं थात ॥ १३ ॥ बा ॥ एह त्रिदंमीये नाख्यो मुफ, सुण वली या गल नां तुऊ ॥ बा० ॥ रसमां मत तुं बोले हाथ, कोहीने थाशे ते का थ ॥१४॥ बा० ॥ नरीने आपुं तुमने एह, पण मत बोलजे ताहरी देह ॥ बा ॥ तव में तुंबडं प्राप्युं तास, रस नरी आप्यो मुजनें खास ॥ १५ बा० ॥ मांची हे ते बांध्युं तुंब, रड हलावी पाडी बुंब ॥ बा० ॥ खेंची काढे तापस ताम, कूपने तटें घाव्यो ढुं जाम ॥ १६ ॥ बा० ॥ मागे तुं बडु माहरी पास, तव ही लोनी लह्यो तास ॥ बा०॥ में रस ढोली नारख्यो सार, नाखी दीधो मुफ तिवार ॥ १७ ॥ बा० ॥ तेह अकारण बंधू ताम, कहे मत कर तुं खेद ए ठाम ॥वा०॥ रसमां तो नयी पडीयो अत्र, रोगनी उत्पत्ति थाये यत्र ॥ १७ ॥ बा० ॥ बीजो नहिं उपाय ते को य, निकलवानो सुण कहूँ तोय ॥ वा० ॥ गोधा जब आवे इण गम, ते हने पूंबडे वलगजे ताम ॥ १५ ॥ बा० ॥ तव लग तुं इहां रहे शुनध्या न, करी पंच परमेष्ठीनुं ज्ञान ॥ बा० ॥ तास वचनें दुं लह्यो अानंद, तेह पंचत्व लह्यो सुखकंद ॥२०॥बा॥नीपण शब्द सुण्यो एकदिन्न, तव बीहिनो याकुल थयो मन्न ।। वा० ॥ संजारी ते पुरुषy वयण,गोधा जागी निश्चय नयण ॥ २१॥ बा० ॥ पान करीने पाडी जाय, पूंबडे वलग्यो ढुं तिण वाय ॥ बा ॥ गाय पूंबडे वलगे गोवाल, तेम वलग्यो ढुं अति सुकुमाल ॥ २२॥बा० ॥ नरकमांहिथी निकले जेम, अथवा ग वासथी तेम ॥ बा ॥ देखी जीव लोकने बहार, नवो जनम एवं अवतार ॥२३॥बा॥ मूकी दी, पूंबडं जाम, मूळ यावी मुझने ताम ॥ बा० ॥ पडियो नूमि वली लाधुं चेत, सो एक धायो दुःख देत ॥ २४ ॥ बा० ॥ एक शिला नपर चढयो रंग, तेह शिला चाले निजशृंग ।। ब० ॥ अजगर वननेंसाने खाय, तव नाशी गयो तिहाथी पलाय ॥ २५ ॥ बा० ॥ अटवी अंतें पा म्यो गाम, तिहां मुफ माउल मित्रनुं धाम ॥ बा० ॥ कुःखनी श्रेणि लही में तत्र, किम कही शकिये ते दुःख अत्र ॥ २६ ॥ बा ॥ बीजे खंमें बार मी ढाल, पहेले अधिकारें ए रसाल ॥ बा ॥ पंमित उत्तम विजयनो शिष्य, पद्मविजय कहे पुण्ये जगीश ॥ २७ ॥ बा ॥ सर्वगाथा ॥ १० ॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. कलाकलापी पूर्ण ए, देखी विस्मित थाय ॥ तेह सेवा गइ जेटले, अ चरिज होय तिण नाय ॥ ३ ॥ ॥ ढाल बीजी॥ ॥ मालीकेरे बागमां दो नारिंग पक्के रे लो, अहो दो नारिंग पक्के रे लो॥ ए देशी ॥ जाये तेहने कालवा, तव तेह कलापी रे लो ॥ अहो तव ॥ गरुडपरें ऊडी गयो, निज खंध आरोपी रे लो ॥ अहो निज ॥१॥ के डें वसुदेव दोडीया, पण नारी न लही रे लो ॥ अहो पण॥ रात रही को ३ थानकें, चाल्यो ते सवही रे लो ॥ अ० ॥ २ ॥ दक्षिण दिशि जातां थ कां, गिरितट नामें नयरी रेलो ॥ अ० ॥ वेदध्वनि महोटी सुणी, पूजे ति हां शौरी रे लो ॥ अ० ॥ ३ ॥ वेदपाठ किणे कारणे, करे लोक ए हरखें रे लो ॥ १० ॥ तव दशग्रीव ब्राह्मण कहे, इण नयरीयें निरखे रे लो ॥ अ० ॥ ४ ॥ सुरदेव ब्राह्मण अने, एह ग्रामनो स्वामी रे लो ॥ १० ॥ त्रियाणी तस नारजा, जेहने सुता पामी रे लो ॥ अ० ॥ ५॥ वेदनी जा ण ते कन्यका, देखी तस तातजी रे लो ॥ अ० ॥ ज्ञानीने पूछे तव कहे, इणि परें सुणो वातजी रे लो ॥ य० ॥ ६ ॥ वेदथी जीतशे एहने,ते पर पशे नारी रे लो ॥ १० ॥ तेहने जीतवा कारणें, बीजां काम निवारी रे लो ॥ अ० ॥॥ वेद अन्यास करे सदु, ब्रह्मदत्तनी पासें रे लो ॥०॥ तेह सुणी हर्षित थयो, करतो सुविलासें रे लो ॥ १० ॥ ७ ॥ ब्राह्मण रूप धरी करी,गया ब्रह्मदत्त पासें रे लो ॥ अ० ॥ स्कंदिलनामें ब्राह्मणो, गौतम गोत्रवासें रे लो ॥ अ० ॥ ए ॥ वेद नणावो मुझने, तव ब्रह्मद त नांखे रे लो ।। अ० ॥ आर्य अनार्य वे नेदथी, आचारिज दाखे रे लो ॥ अ० ॥१०॥ तेहनी उत्पत्ति सनिलो, आर्यवेद तो कीधा रे लो ॥ अ० ॥ जरत चक्रीयें जाणजो, तेह जग प्रसिहा रे लो ॥ अ०॥ ११ ॥ वेद अनारज उपना, तेहनी सुणो वात रे लो ॥ अ० ॥ चारण युगल पुरें वसे, अयोधन नृप रख्यात रे लो ॥ अ० ॥ १२ ॥ सुलसा नामें वर सुता, मांझे स्वयंवरा मंझप रे लो ॥ अ० ॥ तव तस माता रोवती, देखी ते अजंप रे लो ॥ अ० ॥ १३ ॥ पूढे वात ते मातने, तव कहे तस का में रे लो॥ अ० ॥ तहारा तातनो नाणेजो, मधुपिंगल नामें रे लोग अ०॥ १४ ॥ वरवो तुमने ते घटे, बीजाने वरतां रे लो ॥ १०॥ मुफ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम बीजो. १४५ ने फुःख बदु कपजे, तिणे रुदन ते करतां रे लो ॥ १०॥ १५ ॥ तव क हे सांजलो मातजी, बीजो नहिं पर| रे लो ॥ थम् ॥ एह वात करतां थकां, थयुं एम तस हरणुं रेलो ॥ अ॥ १६ ॥ चेटी सगरराजा तणी, बानी वात ते जागीरे लो ॥ ॥ सगर रायनी अागलें, मं दोदरीयें वखाणी रे लो ॥ अ॥ १७ ॥ सगरराय पण तिणे समे, उत्कट महा बलियो रे लो ॥ १०॥ काढी मुकाव्यो तिहाथकी, मनमा खलनलीयो रेलो ॥अ० ॥१७॥ वलीया आदमी जे करे, ते सघरों बाजे रे लो॥ अ॥ जयजयकार सदु कहे, उपर तूर वाजे रे लो॥०॥ ॥ १ ॥ गलीया आदमी जे करे, ते सघटुं वाय रेलो ॥ य० ॥ को व चन माने नहिं, गडदा पाट खाय रे लो॥ ॥२०॥ बलीयो जानु नरपति, काढी मूक्यो तेह रे लो ॥१०॥ मधुपिंगल मन चिंतवे, जुगुं करे ए हरेलो ॥ अ॥१॥ विष्णुराय सुत हुँ जलो, अजोधननो नाणेज रे लो॥ अ॥ सोमवंशमां कपनो, दीपतो के तेज रे लो ॥ अ० ॥ २ ॥ सूर्यवंशी ए नारी, मुफने घटे देवी रे लो ॥ अ॥ तो पण मुफ अप मानियो, ए वात ते कदेवी रेलो ॥ ॥ २३ ॥ एणि परें प धरी करी, थयो तपसी बाल रे लो॥ अ० ॥ काल करीने कपनो, देवता महा काल रे लो॥ अ॥ २४ ॥ परमाधामी पनो, अति ते विकराल रे लो ॥ अ०॥ साठ सहस्त्र सुर थधिपति, माहापापनो ढाल रेलो ॥॥२५॥ चिंते मनमां देवता, मगरादिक राजा रे लो ॥०॥ पुःख पामे तिम दं करूं, नवि रहे जेम ताजा रे लो॥ अ०॥ २६ ॥ शुक्तिमती नयरी जली. तिहां दुन विवाद रे लो ॥ अ॥ यज्ञ पशुना नांखीया, पर्वतें ते विषाद रे लो॥अ० ॥ २७ ॥ लोके काढी मूकीयो, तस पासे यावे रे लो॥ अ॥ तेह देवता इम कहे, एक वात सुहावे रे लो ॥ अ० ॥ २७ ॥ खीरकदंब क ताहरो, अध्यापक रूडो रे लो ॥ अ० ॥ पण तेहनो शिष्य बुं, लोकें कह्यो तुझ कूडो रे लो ॥ अ० ॥ २५ ॥ ते सांजलीने आवियो, ताहरोप द थापुं रे लो॥०॥ तेहवो उपाय करूं हवे, तुफ जस आरोपुं रे लो ॥०॥ ३० ॥ एम कहीने देवता, विकुर्वे मारी रे लो॥ अ० ॥ विविध रोग करे लोकने, एणि परें मन धारी रे लो ॥ अ० ॥ ३१ ॥ पर्वत यज्ञ. करावतो, सदु लोकने त्यारें रे लो॥०॥ रोग विलय जाये तिहां, देव Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो. माया धारे रे लो॥ अ० ॥ ३२ ॥ पर्वतपासें भावी करी, करे यज्ञ ते रा जा रे लो॥अ० ॥ थलचर खेचर जीवना, वधथी थाये साजा रे लो॥ अ॥ ३३ ॥ सगररायनो पण करे, परिवार ते मांदो रे लो ॥ य० ॥ अंतेनर परिजन सवे, बहु रोगें फांदो रेलो ॥ अ॥ ३४ ॥ एक हजार ने आठ ते, करे यज्ञ उदारा रे लो ॥ अ० ॥ बहु धन तिहां खरचावियु, जेम मेघनी धारा रे लो ॥ अ० ॥३५॥ जीवनो वध तिहां बदु थयो, क हेतां नावे पार रे लो ॥ अ० ॥ ब्राह्मणने संतोषिया, देश दान नदार रे लो॥ १० ॥ ३६ ॥ ब्राह्मण पण सदु लोनिया, प्रशंसा करे तेहनी रे लो ॥०॥ नाम दिवाकर राजीयो,करे यानी श्रेणी रे लो ॥ अ॥३७ ॥ तिण अवसर नारद ऋषिले जाये ते पगुयारे लो॥ अ० ॥ जाणे देव ते वातडी, देखी वात विरसुआरे लो ॥ अ० ॥ ३० ॥ पडिमा रुपन जि नंदनी, थापे मनोहारी रेलो ॥ अ० ॥ विघन विघातनें कारंणे, मंगलसु खकारी रे लो ॥ अ० ॥ ३५ ॥ देखाडे ते विमानने, एणि परें कहे सुण जो रेलो ॥ अ०॥ मरण लहे जे यज्ञमां, देवता थाये मुगज्यो रे लो। अ॥४०॥ लोक प्रवाद थयो तिहां, यझथी सुर थाये रे लो ॥ध॥ ते दि नथी मामी करी, गोमेधादि कराय रे लो ॥ अ० ॥ ४१ ॥ स्वर्गहेतु जाएगी करी, सगर ने सुलसा रेलो ॥०॥होमाणां ते यज्ञमां, पामे : ख विलसा रेलो॥ अ० ॥ ४२ ॥ एणि परें पर्वतथी वली, मधुपिंगल बीजो रे लो ॥ अ० ॥ तेम पिप्पलाद ते जाणीयें, अनारय खीज्यो रे लो ॥ अ० ॥ ४३ ॥ इणि परें वेद अनार्यनी, नत्पत्ति मन आयो रे लो॥०॥ परण्यो विद्याधर सुता, नारद तेणें नागो रेलो ॥ अ०॥ ४॥ तेहना वंशमा ए थई, सोमश्री अनिरामा रे लो ॥ अ० ॥ ते कारण सद् अन्य से, जीत्याना नामा रे लो ॥ अ॥ ४५ ॥ आर्य अनार्य दोये नपुं, तव तेह नावे रे लो॥ अ॥ अनुक्रमें जीती कुमरीने, तस पियु परगावे रे लो ॥ अ० ॥ ४६ ॥ तिहां सुख नर लीला करे, बीजे खंमें रसाल रे लो ॥ १० ॥ बीजे अधिकारें कही, पढ़ें बीजी ढाल रे लो ॥थ ॥४॥ ॥ दोहा ॥ . ॥ एकदिन रमवाने गयो, ते उद्यान मकार ।। इंशर्मा नामें तिहां,देखे त्यां इंजाल ॥ १ ॥ कहे वसुदेवजी तेहने, विद्या आप तुं मुज ॥ ते कहे Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. वातो सुणजो, नमिवंशें थयो राजा ॥ नामे पुलस्तनो मेघनाद सुत, जस पख बिदुबे साजा ॥ २५ ॥ म्हें० ॥ सुनूम चक्री तास जमाई, दिव्य शस्त्र दियां तेनें ॥ तेह शस्त्रनां नाम सुणो तुम्हें, नामें अर्थ के जेहने ॥ २६ ॥ ||म्हें ॥ १ बंसीर २ यायेय बे बीजुं, ३ दारुण ४ माहिंद जाणो ॥ ५ ज मदंम ६ ईशान वायव नामें, प्यंनोमोह मन प्राणो ॥ २७ ॥ म्हें ० ॥ शल्यु - ६रण ने १० व्रणरोहण वली, ११ नसंयण जस नाम ॥ १२ लोक हरण वली १३ बेदन जीना, १४ सर्वबेंद १५ गुणकाम ॥ २८ ॥ म्हें० ॥ बीजां पण बहु शस्त्र ते पे, श्वगुरनो तेह जमाइ ॥ दोय श्रेणिनी लखमी ग्रा पी, पूरवपुण्य कमाई ॥ २५ ॥म्हें० ॥ तेहने वंशें रावण राजा, वली बि जीप सारो | तेह विजीशणवंशे उपनो, विद्युद्वेग पियु महारो ॥ ३० ॥ म्हे० ॥ कुलकमागत श्राव्यां एह ते, तुमने सफलां थाशे ॥ जाग्य रहित म्हने सवि विफलां, बे म्ह घरमां वासे ॥ ३१ ॥ म्हें० ॥ नाग्य होये तो सफल याये, नहिं तो आपने मारे । जुन प्रतिवासुदेवने मारे, जे पो तें चक्रने धारे ॥ ३२ ॥ म्हें० ॥ एम कहीने शस्त्र ग्रहीने, विधिपूर्वक ते साधे ॥ पुष्यें सिद्धि याये सहु जगमां, देव परें याराधे ॥ ३३ ॥ हें० ॥ पुण्यथ की श्रीशांति जिदें, एक नवपद दोय पाम्यां ॥ तेम कुंथु र नाथने जाणो, पुण्यप्रकर्ष ए जाम्या ॥ ३४ ॥ म्हें० ॥ जुई मरीचि श्रीरूपननो पोत्रो, बा प ते चकी जास ॥ वासुदेव चक्री जिनवरपद, ए सवि पुण्यप्रकाश ॥ ३५॥ म्हें० ॥ वासुदेवनी पदवी नांही, पण वासुदेव सरीखो ॥ त्रण खंमनो जे यो जोक्ता, कोलिक नृप तुम्हें परखो || ३६ || म्हें० ॥ वली कुमारपाल संप्रति राजा, पुण्य अतुल जेणें कीधां ॥ चक्री वासुदेवने बल देवा, एययकी सहु सीधा ॥ ३७ ॥ म्हें० ॥ पुण्य होय तो सघनुं सीके, नहिं तो लढुं खीजे ॥ गांगो तेली पुण्यप्रजावें, राजसना जय लीजें ॥ ३८ ॥ न्हें० ॥ बीजे में बीजे अधिकारें, पांचमी ढाल गएणीजें ॥ पद्मविजय कहे श्रोताने घर, मंगल चार जणीजें ॥ ३५ ॥ हें० ॥ सर्वगाथा ॥ २०६ ॥ ॥ दोहा ॥ पु ॥ चार मंगल घर घर दुवे, पुण्य होय जो श्राप || नहिं तो फुलमाला तो, करमां प्रगटे साप ॥ १ ॥ ऊंधुं ते सवनुं दुवे, पुष्य तो परिमा ए । गांगो तेली पुण्यथी, पाम्यो जयत निशान ॥ २ ॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. री, रूपवंत अतिरेक रे ॥ २५ ॥ क० ॥ तेह देवी हुँ जाणजे, आगल सु ण हवे वात रे ॥ स्वयंवरमंम्प मांमीयो, बदुला राय आयात रे ॥३०॥ क० ॥ पुत्रीयें न वस्यो को राजीयो, तव को कलकलिया रे ॥ यु६ करण ने सामटा, राजा एका मलिया रे ॥३१॥क० ॥ सान्निध में करी रायनी, तव सवि नृप गया हारी रे ॥ तुफ देखी पीडी घj, काममांहे तेह घारी रे ॥३२॥क० ॥ अहम करी आराधती, ढुं पण थइ सुप्रसन्न रे ॥ में प्र तिहार साथ कह्यु, पण न लयुं तुझ मन्न रे ॥३३॥ क० ॥ तुं एहने रे अं गी करे, तव कहे श्रीवसुदेव रे ॥ संनाऊं तुमने जदा, तव आवजे ततखे व रे ॥३॥क०॥ अंगीकार करी ते गश्,बंधुमती घर मूकी रे॥अदृश्य थ हवे कुंमर जी, रात गइ ते विसुकी रे ॥ ३५॥ क० ॥ प्रात समे प्रतिहार गुं, आयतनें वसुदेव रे ॥ आवे ते प्रियंगुसुंदरी, पाणिग्रहणने हेव रे ॥३६ ॥क० ॥ गंधर्व विवाह परणिया, दिवस अढार ते थाय रे ॥रायने वात सकल कही, देवीदत्तवर राय रे ॥ ३७ ॥ क० ॥ इणि परें प्रतिहारें कह्यु, तव जामातने लावे रे ॥ एणीपुत्र निजमंदिरें, सुरखमां काल गमावे रे ॥ ३७ ॥ क० ॥ नवमी ढाल सोहामणी, खम बीजे अधिकार रे ॥ पद्मविजय कहे सांजलो, सुणतां जयजयकार रे ॥ ३५ ॥ क ॥ सर्वगाथा ॥३७२ ॥ ॥दोहा॥ ॥ण अवसर वैताढयमां, गंधसमृ६ पुर सार ॥ प्रनावती कन्यापिता, गंधारपिंगल धार ॥१॥ तेह प्रनावती कन्यका, जमती जमती आय ॥ सुवर्णान नयरें सुखें, क्रीडा करवा जाय ॥ २ ॥ देखे तिहां सोमश्रीप्रतें, सखीपणां करे दोय ॥ पतिविरहो जाणी करी, कहे प्रनावती सोय ॥३॥ मनमां चिंता मत करे, आणुं तुज जरतार ॥ तव नीसासा नाखीने, सो मश्री कहे तिणवार ॥ ४ ॥ वेगवती जेम आणीयो, तेम तुं आणीश आ ज॥ वांढो वष्टीयें कस्यो,ते कहे ढुं वरराज ॥५॥ प्रनावती कहे सांजले,वेग वती सम नांही॥ दूध तक दोय कफलां,महा अंतर ए मांही॥६॥ सावनि नगरी जश्,आण्यो श्री वसुदेव ॥ रूपपरावर्तन करी, सुख जोगवे स्वयमेव ॥७॥ . ॥ ढाल दशमी ॥ ॥ आज हुँतो अलज रे बहेनी ॥ ए देशी ॥ श्री वसुदेवजी रे स्वामी, सुख जोगवता इलाकामी ॥श्री॥ ए आंकणी ॥ जाणे मानस रे वेग, तव Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो णी, करें पूजा नक्ति ते अति घणी ॥ जिनप्रतिमानी करी अर्चा, वली गीत नाटक करे चर्चा ॥१॥ त्रटक ॥ मन धरी पूजे, पाप धूजे, श्रीवसु देवजी, इणि परें ॥ देखि पामे, हर्ष ठामे, वली वली, स्तवना करे ॥ पुण्यवं तो, ए हसंतो, नक्ति करे, जिनवर तणी ॥ करे प्रनावना, जैनशासन, ढुं पण पुण्य, तणो धणी ॥ ॥ एहवं अदनुत में लद्यु, इणि परें श्रीवसुदेवें कह्यु ॥ पूजा संपूरण करि चाल्यो, तव वसुदेवने तिहां नाल्यो ॥३॥०॥ चिंते चित्तमां, कुण डे ए, रूप अनुप, सुहामणो ॥ अमर खेचर, असुरमां हे, रूप नहिं, कहिं कामणो ॥४॥ हस्तसंझायें तेडीयो, मन चिंते वसु देव नेडीयो॥मनुजनें एह ते देव, एहनी जश्ने करवी सेव ॥५॥३॥ सेव करवी, आग धरवी, एम चितवी, ते गयो ॥ धनदनें एक, काम हुँतुं, तिणें आदर, बदु थयो ॥ ६ ॥ पूजा करी ते नली परें, तव बोले वसुदेव शुनस्वरें ॥ एक विनीत ते सहजथी पोतें, वली करी पूजा सदु जोतें ॥ ७ ॥ ॥ सहू जोतें, हाथ जोडी, मान मोडी,ने कहे ॥ करोआ गा, स्वामी मुझने, करुं कारज, गह गहे ॥ ७॥ कहे वैश्रमण सुणो तुमें, एक वात कहुँ तुमने अमें ॥ करो दूतपणुं अमारूं, कारय थाशे वली तुमारूं ॥॥ ॥ तुमथी अमारु, काम थाशे, जा हरिचंद, नृप घरे ॥ कनकवतीने, जई नांखो, अमें कहिये, तिणि परें ॥ १० ॥ तव निज थानक जश् करी, मूके अलंकार ते मन धरी ॥ दूतनेज नचित जे हो य, महेलां वस्त्र पहेरे सोय ॥ ११ ॥०॥ सोय महेला, वस्त्र देखी, धन द जांखे, सांनलो ॥ आबरें सदु, लोक पूजे, तुं केम आव्यो, श्यामलो ॥ १२ ॥ यतः॥ आमंबरोहि सर्वेषां, मान्यो जगति वर्तते ॥ आमंबरेण ही नानां, कोपि नाख्यत्प्रियं वचः॥ १ ॥ शौरी कहे सुणो स्वामीजी, नहिं महेला वस्त्र कामजी ॥ दूतने तो वचन ते सार, तेतो मुझने के आधार ॥१३॥ ० ॥ आधार के एम, कहे जांखी, ढाल चोथी, ए जली ॥ गुरु उत्तम, विजयसाथें, पद्मविजयें ए, कही वली ॥ १४॥ सर्व गाथा ॥१५॥ ॥दोहा॥ ॥ स्वस्ति तुझने होयजो, धनद कहे जा त्यांहि ॥ तव चाव्या ऊता वला, हरिचं गृह ज्यांहि ॥ १॥ हय गेय रह जड बदु मल्या, रोक्युं राय नुं हार ॥ पेशीने को नवि शके, थर अदृश्य तिणि वार ॥२॥ चाल्यो Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७५ श्रीनेमिनाथनो रास खंम बीजो. वायुनी परें, अप्रतिहत गति जास ॥ अंजनसिह योगी परें, आव्यो अंत यावास ॥ ३ ॥ ॥ढाल पांचमी॥ ॥ फूंबरखडं फूंबी रघु, फूंब ते माजिम राती ॥ संयमराय खूबखडं ॥ ए देशी ॥ पहेला घरमां देखतो, बदु परिकरें करि रु६ ॥ वसुदेव चमकतो ॥ चित्रामण जस हाथमां, इंश्नील तल ब६ ॥१॥व०॥ कांति मनोहर जे हनी, निर्मल जल जिहां वाव ॥ वसु० ॥ चम मनमां आवे घणो, देखी मनने नाव ॥व० ॥ २ ॥ दिव्यानरण धरि करी, रंजानो ज्युं द्वंद ॥व०॥ रूपवती सरिखी वयें, देखे मुख ज्युं चंद ॥ व० ॥३॥ आगल चाल्यो अनु कमें, वीजा घरमां जाम ॥ व ॥ मणिमय थंने सोहती, पांचाली जुवे ता म ॥व० ॥ ॥ त्रार्जु घर जब देखीयुं, त्रिनुवनमां अद्भुत ॥ व० ॥ ज्ज्वल गोदीर सारि, देखे धनदनो दूत ॥व०॥५॥ पेसे ऐरावत जिस्यो, दीरसमुश्मां सार ॥ व ॥ देखे तिहां नारी घणी, दिव्य आनरणनी धार ॥व०॥ ६॥ माये नहिं देवलोकमां, तिण आवी मानुं बांही ॥व०॥ चिंते मनमा ए किस्यं, इंजाल के नांही॥व०॥॥चोथे कदांतरेंगयो, जलकुहिम तिहां जोय ॥व॥ वदुलतरंग जिहां अडे, चक्रवाक युग होय ॥व०॥॥ हंस प्रमुख क्रीडा करे, वदन जुवे बदु नार॥व०॥ दर्पण, कारज नहिं, निर्मल ए हवू वार ॥ व ॥णा सारिका शुक मंगल कहे, बदुदासी जन जब ॥व०॥गी त नाटक होय अति घणां, देखे वसुदेव तब ॥वण॥१०॥ पांचमा घरमां हे गयो, मरकत कुट्टिम खास ॥ व० ॥ देवलोकनुं विमान ज्यं, शोने अ ति सुविलास ॥ व ॥ ११ ॥ मोतीनी माला घणी, वली विद्यमनी मा ल ॥ व ॥ चामर ढलके चिढुं दिशे, ते पण अतिहि विशाल ॥ १२ ॥ व० ॥ मानु मायायें कस्यो, ए सवि वात बनाव ॥ व ॥ वेश अलंकत थइ घणु, दासी ते पुतली दाव ॥ व ॥ १३ ॥ हवे बहा घरमां गयो, पद्म कुट्टिम तिहाँ होय ॥व०॥ पद्म सरोवरनी परें, पद्मसमूह सह जो य ॥ व ॥ १४ ॥ मणिनां पात्र देखे तिहां, देव संबंधी तेह ॥ देव संबधी वस्त्रने, देखे तिहां धरि नेह ॥व०॥ १५ ॥ करमजी राग अंशक जलां, पहेयां ले तिहां नार ॥ व ॥ संध्यामूर्ति धररी करी, मार्नु आवी शण गर ॥ व०॥ १६ ॥ चमकी चतुर ते चालीयो, सातमा घरमांहे मोद Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. चरिज एक ते कपन्युं, ते सुणजो उल्लास ॥ ६ ॥ ॥ ढाल दशमी ॥ 0 || महाविदेह क्षेत्र सोहामणुं ॥ ए देशी ॥ इषि अवसर एकहाथीयो, उज्ज्वलवर्ण शरीर लाल रे ।। खावी राय राणी प्रतें, खंधे धरे शौमीर ला ल रे ॥ १ ॥ दान तणां फल देखजो ॥ ए यांकणी ॥ चोक फेर ते फेरवे, हे चरिज सवि लोक लाल रे ॥ पुष्पप्रमुखें पूजा करे, लोक तथा यो के थोक लाल रे ॥ दा० ॥ २ ॥ राज द्वारें यावी करी, उतारे ते दोय लाल रे ॥ जालान मूजें रह्यो, वृष्टि कुसुमरत्न होय लाल रे ॥ दा० ॥ ३ ॥ रा य उतारे आरती, करी पूजा सत्कार लाल रे ॥ चंदन प्रमुख विजेपियां, ग जमुख यागल सार लाल रे || दा० ॥ ४ ॥ मास पूरण थइ अन्यदा, गुनजोग नेवार लाल रे ॥ मेघघटा विद्युत परें, प्रसवे पुत्री नदार लाल रे॥दा ॥५॥ श्रीवच्च ज्युं वदस्यलें, माहापुरुषने होय लाल रे ॥ तेम नाले शोने घ गुं, सहेजे तिलक ते जोय लाल रे || दा० ॥ ६ ॥ तास जनम प्रभावथी, सदु राजा शिरदार लाल रे ॥ जीमनिसीम ते विक्रमें, तेज प्रताप जंमार ला लरे ॥ दा० ॥ ७ ॥ स्वप्न संचारी राय ते, दवथी दंती यायात लाल रे ॥ दवदंती निधावे, कुंमिन नूपति तास लाल रे ॥ दा० ॥ ८ ॥ कन कनी मुडिका ऊपरें, रत्न जडित जेम होय लाल रे ॥ तेम द्युति शोने ए हनी, करे प्रशंस सहु कोय लाल रे || दा० ॥ ए ॥ दिन दिन वधती ते हवे, स्वास सुगंधित तास लाल रे ॥ मात शोक्य पण वाहली, पुण्य प्रबल ने जास लाल रे || दा० ॥ १० ॥ पाय नेनर रणऊण करे, पद चंक्रमणें तेह - जाल रे ॥ लखमी परें क्रीडा करें, तिरों दीपावे गेहं लाल रे ॥ दा० ॥ ११ ॥ आठ वरसनी सा था, जावा मूके तास खाल रे ॥ साक्षी मात्र गुरुने करारी, करती कला अन्यास लाल रे || दा० ॥ १२ ॥ जेम आदर्शमां संक्रमे, प्रतिबिंब परें थाय लाल रे ॥ कर्म पयडी मुख शास्त्रनी, पारंगामी कदेवाय लाल रे ॥ दा० ॥ १३ ॥ स्याद्वाद शै ली नली, जिनधर्मे मति होय लाल रे | पंमित तेहवो जग नहिं, यावी जिंते कोय लाल रे ॥ दा० ॥ १ ॥ कलासायर ते कुंवरी, वाघेश्वरी परें जेह लाल रे ॥ तात पासें आवे हवे, कलाचारय सह तेह लाल रे ॥ दा० ॥ १५ ॥ निजकला कौशल पणुं, देखावे तेह तात लाल रे ॥ तात १८४ वचन विलास ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1GU श्रीनेमिनाथनो रास खंम बीजो. घणुं हर्षित थयो, देखी एहवी वात लाल रे ॥ दा० ॥ १६ ॥ एक लख एक सहस्र दिये, पाठकने दीनार लाल रे ॥ शासनदेवता नारीने, जिन प्रतिमा दिये सार लाल रे ॥ दा० ॥ १७ ॥ कहे दवदंतीने एहवं, शोलमा श्रीजिन शांति लाल रे॥ नावी जिन प्रतिमा अडे,पूजो धरी मनखांत लाल रे ॥दा॥१॥ इम कही अदृश्य ते थइ,प्रतिमा लेई तेह लाल रे ॥ हर्षि त वदने ते नमी, तुरत आवे निजगेह लाल रे ॥दा० ॥ १॥ सखीयोमां रमतीयकी, यौवन पावन पामि लाल रे ॥ पर्वते लावण्यजल तणी, मद न खेलणनुं गम लाल रे ॥दा॥२०॥त्रीजे अधिकारें कहे, बीजे खमें ढाल लाल रे ॥ दशमी उत्तम विजयनो, पद्मविजय सुविशाल लाल रे ॥दा॥२१॥ ॥दोहा॥ ॥ एकदिन दवदंती पिता, देखी यौवन बाल ॥ तस विवाहने कारणें, करे ते सघने जाल ॥ १ ॥ पण तस सरिखो नवि जड्यो, चिंतातुर ते रा य ॥ वरस अढारनी सा थई, पण तस वर नवि पाय ॥ २ ॥ कन्या म होटी घर थई, तस स्वयंवर ते युत्त ॥ को पुरुष एम सनिली, आवी राय ने उत्त ॥ ३॥ स्वयंवर मंझप मांमियो, बहु राजा आवंत ॥ तरुणवयी ब दुराज सुत, ऋद्धिवंत गुणवंत ॥ ४ ॥ निषधराय पण आवियो, कौशलदेश अधीप ॥ नल कुबेर सुत साथ लही, हर्ष लही अति विप्प ॥ ५॥ ॥ ढाल अग्यारमी ॥ ॥ देशी माखीना गीतनी ॥ जे जे आव्या राजवी, दीये सदुने सत्का र ॥राजन जी ॥ पालकनाम विमान ज्यु,मंझप कीध नदार ॥ राजन जी ॥ वात सुणो विवाहनी, वात कहां बां, हर्ष धरां बां, जाणो पुण्यनो खेल ॥राजन जी ॥ वात०॥ १ ॥ए आंकगी॥.मांचा ममिया अति नला, मानुं देव विमान ॥ राजन जी ॥ शक सामानिकनी परें, दीपे तेह राजा न ॥रा ॥ वा ॥२॥ केश्क कमलक्रीडा करे, कुसुमकंक केई सार ॥ ॥रा॥काम समान स्वरूपथी, दीपे. तास देदार ॥ रा० ॥ वा० ॥ ३ ॥ दवदंती यावी तिहां, वर वरवाने हेत ॥ रा० ॥ प्रतिहारी बदु दाखवे, रा य तणा संकेत ॥ रा ॥ वा० ॥ ४॥ पण मनमां कोई नवि रुग्यो, अ नुक्रमें स्तवतां तास ॥रा ॥ कोशलदेशनो नूपति, नामें निषध ते खास ॥रा ॥ वा० ॥ ॥ एहनो सुत नल नामथी, माहाबलवंतो जेह ॥रा॥ २४ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. कुबेर अनुज एहनो अबे, वर जाणी गुणगेह ॥रा०॥ वा० ॥ ६ ॥ वरमा ला तव कुंवरी, नल माहाबल गले थाप ॥ रा ॥ वाणी थइ आकाशमां, वर वस्यो रूडो आप ॥ रा० ॥ वा० ॥ ७ ॥धूमकेतु परेंफतीयो, कृष्णरा य कुमार ॥रा० ॥ खड्ग लेने इम कहे, मूक मूक एह नार ॥रा० ॥वा० ॥ ७ ॥ घाली फ़ोकट माल ए, दवदंतीये तुज ॥रा ॥ केम तुं परणे स हजमां, बलीया बेगा मुफ ॥रा०॥ वा०॥ ए॥ नीमसुता मूको हवे, नहिंतर करो संग्राम ॥रा०॥ कृष्णराय जीत्या विना, केम ले। जाशो धाम ॥ राम् ॥ वा० ॥ १० ॥ तव नल मन हसतो कहे, खेद करे केम मूढ ॥रा०॥ दवदंतीयें मुझने वस्यो, केम न विचारे मूढ ॥ रा० ॥ वा०॥ ११ ॥ परनारीने श्बतां, तुजने केम कल्याण ॥ रा० ॥ एम वाखो पण नवि रह्यो, तव का खग ते पाण ॥रा० ॥ वा० ॥१२॥ नल ते अन ल परें थयो, दीसे अति विकराल ॥रा० ॥ नल ने कृष्ण राजा तणां, अ नीक ते थयां विसराल ॥रा ॥ वा ॥ १३ ॥ दवदंती मन चिंतवे, धि ग धिग मुझने यांही ॥रा० ॥ क्य थाये मुफकारणे, पुण्यहीन ढुं प्राही ॥रा० ॥ वा०॥ १४ ॥ जो टुं दृढ जिनशासनें, तो था ए शांतारा॥ जय थाये नल कुमरनो, दोय कटक सुख शात ॥रा०॥ वा० ॥ १५॥ ३ म कही कलश पाणी तj, लेई बांटे त्रण वार ॥रा०॥ कृष्णराय तव तेम थयो, जेम निर्वात अंगार ॥रा ॥ वा० ॥ १६ ॥ शासनदेवी प्रना वथी, कृष्णराय तरवार ॥ रा ॥ पाकुं फल जेम मथकी, हेठी पडी तेणि वार ॥रा० ॥ वा ॥ १७ ॥ कृष्णराय चिंते इस्युं, नहिं सामान्य ए कोय ॥रा०॥ एतो योग्य ने वंदवा,देव सान्निध्य जस होय ॥रा ॥वा० ॥१॥ करकज जोडी म कहे, तुं मुफ वंदवा योग्य ॥रा०॥ इणि परें कृष्ण ते बोलतो,धरी मनमां गुन योग ॥रा॥वा॥१॥ करी विवाह महोबव ति हां, सहुने विसर्जे राय ॥रा० ॥ हय गय रह जड बदु दीये, करमोचनने गाय ॥रा०॥ वा ॥ २० ॥ गावे मंगल गोरडी, बांधे कंकण हाथ ॥रा० ग्रह देवनी पूजा करे, निषध नीम दोय साथ ॥रा०॥वा०॥१॥ महा नत्सव करीने तिहां, करमोचन करी खांत ॥ राम् ॥ जीम विसर्जे निषध ने, पुत्र सहित नलि नांत ॥ रा॥ २२॥ वा ॥ दवदंतीने शीखवे, मात पिता धरि नेह ॥ रा० ॥ आपढ़े पण तजीयें नहिं, बायापरें पतिदेह ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नेमिनाथनो रास खंग बीजो. १८७ रा० ॥ वा ॥ २३ ॥ बेइ खाणा माय तायनी, रथमां वेसे तेह ॥ रा०॥ कोशला सन्मुख चालीयो, मनमां धरि निजगेह ॥ रा० ॥ वा० ॥ २४ ॥ जलाशय यावे जिहां, कईम शेष रहंत ॥ रा० ॥ धूलें गगन ते बाइ युं, बीजी धरा मानुं हुंत ॥ रा० ॥ वा० ॥ २५ ॥ बीजे खंमें यति नली, कही त्री अधिकार || रा० ॥ ढाल अग्यारमी सांजलो, पद्म कहे सुख कार रा० ॥ वा० ॥ २६ ॥ सर्वगाथा ॥ ३२९ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मारग हवे इण वसरें, अर्क अस्तंगत थाय ॥ तम व्याप्यं सहु लोकमां, तिहां नवि कांइ देखाय ॥ १ ॥ पण निजपुर जावा तली, शबा अधिकी राय ॥ पण यालोक विना थया, परवश सघला जाय ॥ २ ॥ न विस्थलनी मालिम पडे, जल पण नवि देखाय ॥ गर्त्तावृद अल सहु, मानुं चौरिंडिय थाय ॥ ३ ॥ नल दवदंतीने कहे, नालतिलकथी खाज ॥ सहुने जुवानुं करो, ए महोटुं अम काज ॥ ५ ॥ ॥ ढाल बारमी ॥ || देशी रसीयानी ॥ दवदंती निजनाल प्रमार्जती, दूर थयो अंधकार ॥ राजेसर || जालतिलक यादीत्य परें तपे, दु प्रकाश तिवार ॥ रा जेसर ॥ १ ॥ पुष्यतणां फल देखो इणि परें । ए यांकणी ॥ सदु सुखमां हवेागल चालीया, तव मुनिवर तिहां दीव ॥ रा० ॥ मेरु परें काउस्सग्ग मांहे रह्या, सहि उपसर्ग उक्कि || रा० ॥ पु० ॥ २ ॥ तव नल कु मर कहे निज तातने, करो दर्शन ऋषिराज ॥रा० ॥ वाटमांही प्रसंगें फल थयुं, सारो धातमकाज ॥ रा० ॥ पु० ॥ ३ ॥ मदमातो करिवर निज गातनें, खणतो वृहनी जांत ॥रा० ॥ तस मदगंधथी चमर ते याविया, पण मुनिवर अति शांत ॥ रा० ॥ पु० ॥ ४ ॥ पूरव पुण्यथी ए मुनि पामिया, तव ते निषिध राजान ॥ रा० ॥ पुत्र परिवद सहित सेवा करे, जंगम तीरथ मान ॥ रा० ॥ पु० ॥ ५ ॥ नल कुबेर बेहु चा नमी तिहां, करि ऊपसर्ग ते दूर ॥ रा० ॥ करे प्रशंसा हर्ष घरी घणो, जाग्या पुण्यपमूर ॥ रा० ॥ ० ॥ ६ ॥ अनुक्रमें कौशला नयरीने दूक डा, पहोता नल कहे ताम ॥ रा० ॥ दवदंती सुणी कोशला शोनती, जिनवर चैत्य उद्दाम ॥ रा० ॥ पु० ॥ ७ ॥ दवदंती चिंते धन्य हुं य, न Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. नयी रे, ते डुम नग रण एह रे ॥ पण नवि नल देखं किहां रे, प्राणवल्न न मुफ जेह रे ॥ ७ ॥ द्यो० ॥ नवि देखे नल रायने रे, सुपन संनारे ताम रे ॥ अंब समो नल राजियो रे, राज्य फलादिक ठाम रे ॥॥द्यो॥ राज्यनुं सुख फलस्वादजे रे,परिजन जाणो ते नंग रे॥ वनहाथी मल्यो ते हने रे, उपाड्यो ते रंग रे ॥ ए॥ यो० ॥ वृदयकी पंडवं थयुं रे, ते नल राय वियोग रे ॥ जाणुं ए सुपनें करी रे, फुलन पति संयोग रे ॥ १० ॥ यो ॥ महोट स्वर तिहां रोवती रे,कहे इणि परें मुख वाच रे ॥ आपद लहे नारी यदा रे, धीरज रहे किम साच रे ॥ ११ ॥ यो ॥ स्वामी केम मुझने तजी रे, जार जणी थइ तुफ रे ॥ था प्रसन्न वन देवता रे, स्वा मी देखाडो मुफ रे ॥ १२ ॥ यो० ॥ धरती मात विवर दीयो रे, पेसुंध रती मांही रे ॥ नाथ विना नवि रही शकुं रे, नवि पामुं सुख क्यांही रे ॥ १३ ॥द्यो०॥आंसू धारा रेडती रे, सीचे वननां रूंख रे ॥ जल थल आतप बांहिडे रे, नवि पामे कहिं सुख रे ॥ १४॥ द्योग ॥ अटवीमां न मतां थकां रे अदर देखे ताम रे ॥ वस्त्र अंचलें हरखे तदा रे, चिंते मनमां श्राम रे ॥ १५॥ द्यो०॥ पियु मन सरोवर हंसली रे, निश्चय बुं हजी आज रे॥ नहिंतर केम लखे अदरा रे, मुफ पति नल माहाराज रे॥१६॥द्योग ॥ वांची चिंते एहवं रे, जानं तातने गेह रे ॥ नाथ वचन ए मानवं रे, वैयें कह्यु मन जेह रे ॥ १७ ॥ द्यो० ॥ वटमारग चाली हवे रे, जोती अदर तेह रे ॥ जाणे नल पासें अ रे, अदर तेह गुणगेह रे ॥ १७ ॥ द्यो० ॥ वाघ उठे खावा घणारे,दीसे नयंकर रूप रे ॥ पासें नवि आवी शके रे,पासें शील अनूप रे ॥ १ ॥ द्यो॥ फणिधर मणिधर मोटका रे,देखी उपजे त्रास रे ।। पण नवि आवे ढकडा रे, शील अचल जस पास रे॥२०॥द्यो॥ मदक रता मयंगल घणा रे, दीसे जे अति क्रूर रे ॥ सिंह परे नावे कडा रे, जेहने शीन सनर रे॥१॥द्यो० ॥ इत्यादिक नपश्व घणारे, मारग जातां थाय रे ॥ तेहने सहु विलयें ग्रयां रे, जेहने शील सखाय रे ॥ २२ ॥ द्यो॥ केल विंधाय कंथेरथी रे; तेम रुधिरें जरे पाय रे ॥ दव बीहीनी जिम हाथ णी रे, शीघ्र थई तेम जाय रे ॥ १३ ॥ द्यो० ॥ मारगें साथ मल्यो हवे रे, महारि जरपूर रे ॥ देखीने हर्षित थई रे, जिम तरंम जलपूर रे ॥ २४ ॥ द्यो० ॥ पन्नरमी बीजा खममां रे, ढाल त्रीजे अधिकार रे ॥ पद्मविजय Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नेमिनाथनो रास खंग बीजो. २. एय कहे शीलथी रे, होवे जयजयकार रे ॥ २५ ॥ द्यो० ॥ सर्वगाथा ॥ ४६४॥ ॥ दोहा ॥ ॥ साथमांहे नेली थई, तव आव्या तिहां चोर ॥ रूंध्यो यावी साथ ने, करता ते प्रति सोर ॥ १ ॥ बीक होये धनवंतने, निर्धनने शी बीक ॥ बीक साचापक नली, जिम जांखुं हुं लीक ॥ २ ॥ चिंता व्रतवंता जली, पास निरीक || शीलवंत बीये घणुं, नवि जाय नारी नजीक ॥ ३ ॥ जाय होय तेहनुं सदा, नवि होय तस गुंजाय ॥ देवपणुं हारी करी, जु एकेंयि याय ॥ ४ ॥ तेमाटें ए लोकने, लागी महोटी वीक ॥ यामा अव ला नासता याव्या चोर नजीक ॥ ५ ॥ दवदंती कहे सांजलो, न करो बीकलगार || कुलदेवी वाणी परें, सहु सांनजे तिल वार ॥ ६ ॥ ॥ ढाल सोलमी ॥ ॥ ॐ कलाला नर घड़ो हे, दारुडारो मूल सुखाय ॥ ए देशी ॥ मुक ari केम लूंटशो है, इम कहे दवदंती नार ॥ पण नवि जाये तसकरा है, तव कीधो हुंकार ॥ १ ॥ रायजादी बोजे वचन रसाल ॥ ए टेक ॥ तव नाव ते तसकरा है, बधिर ययुं सवि वन्न ॥ तेह साथना सहु जना है, चिंते इणि परें मन्न ॥ २ ॥ रा० ॥ खापणने पुण्यें करी हे, यावी कोइ वन देवि ॥ चोरथकी राख्या इसे हे, हुंकारे ततखेव ॥ ३ ॥ रा० ॥ प्रणमी सा पवनवे हे, केम रमां फरो मात ॥ को तमें बो ते कहो है, तब कही सजीवात ॥ ४ ॥ रा० ॥ सार्थप कहे कर जोडीने हे, नलनारी यम मा य ॥ तस्करथी राख्या वली हे, तिरो तुमें जीवित दाय ॥ ५ ॥ रा० ॥ करी श्राश्वास राखी घरे है, देवीपरें याराध ॥ वर्षा तिल टाणे थई हे, वरसे वारि अगाध || ६ || रा० ॥ त्रण रात्रि वरष्यो तिहां है, विरम्यो, मेघ ति वार ॥ साथ मूकी आागल गई है, दवदंती मनोहार ॥ ७ ॥ रा० ॥ नल वियोगना दिवसथी है, चौथ नक्त करे नीत ॥ मंद मंद जातां थकां है, दे खे एक ते जीत ॥ ८ ॥ रा० ॥ राक्षस एक दीगे तिहां है, यम नृपति मा नुं पूत ॥ श्याम श्रमावास्या परें हे, काजल परें जेम नूत ॥ ए ॥ रा० ॥ खानं खानं करतो थको हे, शेषनाग परे तेह ॥ नारी धैर्य घरी कहे हे, खाएं मारी देह ॥ १०॥० ॥ पण एक माहरी वातडी है, सांनल तुं थिर थाय ॥ जन्म्या ते मरवा जणी हे, तेहमां बीक न कांय ॥ ११ ॥ रा० ॥ कर्म क Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. ॥ १६॥ ना० ॥ तेंहनो पिंगल दास ढुं जाणो, पण मुज व्यसननी टेव ॥ खात्र खणीने वसंतना घरनो, कोश हस्यो ततखेव ॥ १७ ॥ना ॥ नाठो ते धन लेई वेगें, प्राण त्राणने काजें ॥ वाटे चोरें खूट्यो मुझने, पापी पापें दाजे ॥ १७ ॥ ना ॥ इहां ावी राजाने सेव्यो, पण उर्मति नवि नाती ॥ दूध ग्रहण टेवे मांजारी, नवि देखे शिर लाठी ॥ १॥ना० ॥ एक दि न चंश्वती देवीनो, दीठो करंमक रूडो ॥ लेवाने उजमाल थयो ढुं, चोरी व्यसन ने जूमों ॥ २० ॥ ना० ॥ पकडीने बांध्यो कोटवालें, जातां तुमने दीनां ॥ देखी तुमने मुफ पूरवनां,पाप कस्वां ते नीठां ॥ १ ॥ना॥ बीजे खंमें वीशमी ढालें, त्रीजे ए अधिकार ॥ उत्तम विजयनो पद्मविजय कहे, शीलथी जयजयकार ॥ २२॥ ना० ॥ सर्वगाथा ॥ ६२५॥ ॥दोहा॥ ॥ चोर कहे वलि सोनलो, तापसपुरनी वात ॥ जे दिनथी मूकी गया, तापसपुर तुमें मात ॥ १ ॥ सार्थवाह ते दिनथकी, नोजन में मात ॥ आचारिज मुख बदु मली, दे प्रतिबोध विख्यात ॥ ॥ सात दिवस नूरख्यो रह्यो, मुंजे आम्मे दिन ॥ लश् नेटणुं एक दिन गयो,कुवेरने आसन्न ॥३॥ कुबेर बेतो तेहने, तापस पूरनुं राज्य ॥ त्रादिक आपे जलां, निज सा मंत करि साज ॥४॥ वसंत श्रीशेखर दीयुं, नाम ते बीजूं सार ॥ वाजंते वाजे करी, याव्यो निजपुर गार ॥ ५॥ दवदंती कहे चोरने, ल्यो दीदा माहानाग ॥ चोर कहे आणा करुं, मात धरी तुम राग ॥ ६॥ मुनिवर वे श्राव्या तिहां, आहार गवेषण काज ॥प्रतिलानीने इम कहे, सुणो स्वामी माहाराज ॥ ७॥ योग्य पुरुप देखो तुमें, तो द्यो स्वामी दीख ॥ जोग्य जा णी हवे मुनिवरु, लेई तेहनी शीख ॥७॥ देहरामा जइ तेहवे, दीदा श्रा पे तास ॥ मुनिवर चिचरंता गया, अन्याम सुखवास ॥ ए॥ ॥ढाल एकवीशमी॥ ॥ सतिय सुनश ॥ ए देशी ॥जीमराय हवे सांजली, सखि हास्या नल ते राय ॥ परदेशे जमतां थकां, सखि किहां किण ठामें जाय ॥ १ ॥ एह वात ते अति दुःखनी थए ॥ ए आंकणी ॥ जीवे के नथी जीवतो,सखी खबर नहिं तस कोय ॥ पुप्पदंती ते सांजली, सखि रुदन ते ते हने हो य ॥ एह ॥ २॥ आतुरपणुं ययुं नारीने,सखि अश्रुनवि होय दूर ॥ पुष्प Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम बीजो. . ०५ दंती रोवे घj, सखि करे विलाप ते नूर ॥ एह ॥ ३ ॥ हरि मित्र रायें मोकल्यो, सखि ते खोलणने काज ॥ एक बटुक घणु रूयडो, सखि अच लपुरें आव्यो साज ॥ एह ॥ ४॥ पूजे चंजशा हवे, सखि देम कुशल नी वात ॥ ते कहे कुशल ते सदु अजे, सखि पण एक सुणो अवदात ॥ एह ॥ ५ ॥ नल नैमीनी चिंता घणी, सखि द्यूत प्रमुख, कही वात ॥ श्रवणें सांजली नवि शके, सखि कुःख धरे बदु गात ॥ एहए ॥६॥ करे वि लाप ते अति घणा, सखि नूरव्यो बडु तेह ॥ आरतियां सदु देखीने, स खि मागे न नोजन जेह ॥ एह०॥७॥ नख अति जन पुःख दीये.सखि नूख न राखे लाज ॥ नूरखथकी सूजे नहिं, सखि घरमां पण कांहि काज ॥ एह ॥ ७ ॥ नाचे कूदे अन्नथकी, सखि अन्न विना सवि दीन ॥ अन्न विना ए देहडी, सखि पण नवि थाये पीन ॥ एह ॥ ए ॥ शब्द शास्त्र जगतां थकां, सखि काव्यमांहे मन जाय ॥ काव्य पठंतां गीतनी, सखि होंश घणी मन थाय ॥ एह ॥ १० ॥ गीत सुगतां जीवने, सखि ना रीमांही मन जाय ॥ नारी विलास नागे वली, सखि लागे नख जे नाय ॥ एह ॥ ११॥ यतः॥ पेट कपटकी कोट करावही, पेट प्रसाद मही सब गाही ॥ पेट घरोघर टूक मगावहीं,पेट प्रसाद जार गहा ॥पेट सटें नट शीश कटावहीं,पेट प्रसादें लहे दुःख नाइ॥ र देव तजो नर पेट नजो,पेट समो परमेसर नांही ॥१॥ मूकी ते स्थानक हवे, सखि बडु चाल्यो जाय ॥ पहोतो दानशाला हवे, सखि नोज्य चिंतामन थाय ॥ एह ॥ १२॥ जोजन अर्थे उपविशे, सखि दवदंती तव देख ॥ उलखी जीमसुता खरी,सखि मानु चंनी लेख ॥ वात ते अति सुखनी थ॥ए आंकणी॥१३॥ पाय पडे हर्पित थइ, सखि बटु नांखे एम ॥ नूरख तो सदु वीसरी, गइ, सखि तुऊ अवस्था ए केम ॥ एह० ॥१३॥ दीठी जीवती तुऊ प्रतें, सखि सघलु थयुं कव्याण ॥चंजसाने जइ कह्यु, सखी तुफ घर सवि मंमाण ॥ एह॥१५॥चंयशा यावी करी,सखि आलिंगन करे तास ॥ धिक पडो यहां मुझने, सखि नहिं उपयोग ए जास ॥ एह ॥ १६ ॥ तें किम मूक्यो नल प्रति,सखि किम मूकी तुज एह॥गे सूर्य पश्चिमें,सखि पण शीलवंम न देह ॥ एह ॥ १७ ॥ ताहरे नाल तिलक हतुं, सखि तेह गयुं किहां तुऊ ॥ तव परमार्जे नालने, सखि अजुधालु थयुं सुफ ॥ एह ॥ १७ ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. २३॥ या नवमांहे थाशे सिझ, एतो जगमां ने परसि ॥ मो० ॥ तीर्थ कर महाविदेहमांही, विमलनामें विचरंता त्यांही ॥ मो० ॥ २४॥ इंघ सहित वंदनने काज, पहोता अमें सांजल महाराज ॥ मो० ॥ लोकालोक प्रकाशक तेह, केवलझान दर्शनधर जेह ॥ मो० ॥ २५॥ घातीकर्म ग यां क्य जास, लोगवे आतम कति विलास ॥ मो० ॥ जगत जीवने करे उपगार, देशना वरसे अमृत धार ॥ मो० ॥ २६ ॥ दायिक नावें प्रगटीक ६, आयुदये लेहशे जे सिह ॥ मो० ॥ तेहना मुखथी सांजली वात, नां खुं तुऊने ए अवदात ॥ मो० ॥ २७ ॥ कुबेर अदृश्य एम कही थाय, नो गनोगवे ससरा घर गाय ॥ मो० ॥बीजे खंमें त्रीजो अधिकार, प्ररण हा थयो जयजयकार ॥ मो० ॥ २७ ॥ पणवीश ढाल कही एह मांही, दमा विजय जिनसान्निधि आंही ॥ मो० ॥ श्रीगुरु नत्तम विजयनो बाल, पद्मवि जय कहे रंगरसाल ॥ मो० ॥२॥ सर्व गाथा ॥ ७७१ ॥ इति श्रीमन्महा नाष्यादिप्रकरणोक्तन्यायवेत्तारः । वाङ्मयोपनिपातारः उत्तम विजयास्तेषां चरणकजनूंगतुल्येन पद्मविजयेन विरचितेप्रारूतप्रबंधेसुरासुरवंदिते नेमिनेमि चरित्रे कनकवतीपरिणयनतत्पूर्वनववर्णननामक हितीयखंमस्य तृतीयोऽधि कारःसमाप्तः॥प्रथमाधिकारे गाथा ॥४॥हितीयाधिकारे गाथा ॥१०॥ तृतीयाधिकारे गाथा ॥ ७७१ ॥ सर्व गाथा॥ १६६ए ॥ सर्व ढाल ॥४॥ ॥अथ वितीय खंमस्य चतुर्थाधिकारः प्रारज्यते ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ शांतिनाथ समरूं सदा, संनव सुख दातार ॥ बीजा खम तणो क ढुं, हवे चोथो अधिकार ॥ १ ॥ थोडो पण रूडो घणुं, सुणतां आनंद थाय ॥ अमृतना एक लवथकी, ज्वर षट मासनो जाय ॥२॥ गजथी पंचानन लघु, पण नेदे गजवग्ग ॥ अष्टापदसिंहथी लघु, पण देवरावे म ग्ग ॥ ३ ॥ दीवो पण अति नानडो, टालें बहु अंधकार ॥ वजलघुनेदें गिरि, उपध रोग विकार ॥ ४ ॥ लहुडो पण दोहडो कहे, लोक नखाणो न्याय ॥ म्हारे पण आवी मल्यो, ए करवाणो आय ॥ ५ ॥ ते माटे स ज थइ सुणो, ए अधिकार उन्नाही ॥ श्रोता सुणतां देखीने, वक्ता रीके Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. जी, मुझने नोजव्यो ॥ हवे करीयें किश्यो उपाय जी, इम मन चोलव्यो ॥१०॥ण अवसरें नहिल नयरें जी, नाग ते व्यवहारी ।। सुलसा नामें. तस नारी जी, श्रावक व्रतधार ॥ अयमंता कृषियें नांरव्युं जी, ए निंर्ड नारी॥ हरिणगमेषी आराध्यो जी, तन्मय थ प्यारी ॥११॥ जब तु टमान थयो तेह जी, तव सुलसा मागे ॥ मुफ आपो पुत्र ते स्वामी जी, चित्तशुं धरी रागें ॥ तव बोले देवता तेह जी, सोनल रे बाइ ॥ देव कीना पुत्र ते देशू जी, तुमने लाइ ॥ १२ ॥ जे कंसें माग्यो तेह जी, मारणने काजें ॥ श्म कही ऋतुवंती साथें जी, देव करे साजे ॥बेहुयें प्र सव्या पुत्र जी, साथें तेहमां ॥ मृतबालक सुलसा पामे जी, हवे जु एहमां ॥१३॥ ले देवकी गर्न ते पाप्या जी, सुलसाने सारा ॥ सुलसा गर्न ते मूक्या जी, देवकीने न्यारा ॥ ते आपे कंसने गर्न जी, मृ तबालक देखी॥ शिला नपर पहाडे जी, तेहने वेखी ॥ १४ ॥ सुलसाने घर ते वधता जी, पुत्रपरें पाले ॥ तस नाम अनीक जस बीजा जी, अ नंतसेन नाले ॥ वली अजितसेन निहतारि जी, देवजसा नाम ॥ बहा शत्रुसेन ते जाणो जी, रूपकला धाम ॥१५॥ऋतुस्नान कयुं देवकीयें जी, एक दिन सुविलासें ॥ एह सात सुपन ते देखें जी, मनने नल्लासें ॥ सिंह सूर्य अनि ध्वज जाणो जी, वली एकगज राजे॥ वली पद्म सरोवर बहे जी, देव विमान बाजे ॥ १६ ॥ देखे ते रजनी आंतें जी, गंगदत्त रूडो॥ चवी गुक्रथ की ते यायो जी, सुचत नहिं कूडो ॥ श्रावण वदि अाउम जायो जी. दें व सान्निध करे ॥ मूक्या हता जे रखवाला जी, तस निश धरे ॥ १७॥ जेम विष खाईने सुता जी, तेम उंघी गया ॥ ए पुण्य प्रबलनो जोरो जी, देव पदें थया ॥ तेडी वसुदेवने जांखे जी, कंस ते पापियो । कूपमांदी आपण फांसी जी, दोर ते कापीयो ॥१॥ सदु पुत्रने एह तो मारे जी, झुं करीयें हवे ॥ जश् नंदगोकुलमा मूको जी, पुत्र ए तो रहेवे ॥ रूडं रुडं ए म नांखे जी, सुत निज कर ले ॥ देवत्र करे शिर तास जी, चामर करे के॥१ए॥ करे मंगल दीवा आठ जी, मारग अजुयाले ॥ देवता तिहां हार उघाडे जी, पण को नवि नाले ॥ देखे उग्रसेन ते राय जी, पूढे इणिपरें ॥ शुं अचरिज एह उदारें जी, कहे रह्या पंजरें ॥ २०॥ तुऊ वयरी हणशे जेह जी, ते एह जाय ॥ मत को आगल तुमें कहेजो Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंमत्रीजो.. २२५ जी, तस महिमाय ॥ हवे नंदगोपाल घरे पहतो जी, तस घर ति ण समे ॥ पुत्री प्रसवे ते जशोदा जी, नारी अति प्रेमें ॥ २१॥ तस पुत्री ले आपे जी, पुत्र ते आपनो ॥ जस पुण्य प्रबल होय पोतें जी, चारो न पापनो ॥त्रीजे खंमें पहेले अधिकारें जी, ढाल बीजी कही ॥ मुनिप द्मविजय मनरंगे जी, नविजनें सर्दही ॥ २२ ॥ सर्व गाथा ॥६६॥ ॥दोहा॥ ॥ देवकीने पुत्री दीयें, श्रीवसुदेवजी आय ॥ पूछे रक्क पुरुष ते, क हो याव्युं तुम कांय ॥ १ ॥ देखावे तव ते धुया, कंस धुणावे शीश ॥ एह गरन मुफ मारशे, नारीमात्र ते कीश ॥ २ ॥ एहने मारे शुं होये, नाक कान करि वेद ॥ देवकीने पाबी दीये, देखीने स्त्रीवेद ॥ ३ ॥ अंग कम माटें हवे, कम बोलावे नाम ॥ देव घणा सान्निध करे, नंदगोवालने धाम ॥ ४ ॥ देवकी कहे वसुदेवने, जा जोवा पुत्त ॥ कहे वसुदेवजी सांजलो, एक अमारूं नत्त ॥ ५ ॥ सहसा जातां जागशे, कंस तुमारी वात ॥ को कारण नदेशिने, जावू जुगतुं थात ॥ ६ ॥ ॥ढाल त्रीजी॥ ॥ गो वारुयां चारती, आहिरनो अवतार ॥ ए देशी ॥ बहु नारीशुंप रवरी, गोकुल पूजवा जाय॥ मनना मोहनीया ॥ अनुक्रमें पहोती देवकी, जिहां जशोदा धाय ॥मनना मोहनीया॥१॥ श्रीव तर सोहतुं, नीलकमल सम काय ॥ मन० ॥ लक्षण लक्षित देहडी, देखी आणंद थाय ॥ ॥ मन ॥२॥ मन चिंते श्म देवकी, ढुं पापी शिरदार ॥ मन ॥ एह वा पुत्र वियोगथी, ढुं रखें नित घरबार ॥ मन ॥३॥धवरावी पण न वि शकुं, आव्या कीधां पाप ॥ मन ॥ धन्य जशोदा एहने, एह रमाडे या प॥ मन ॥ ४ ॥ इम गोकुल नित पूजवा, मिष करी जाये तेह ॥ म०॥ पुत्र रमाडी मोदा, यावे ते निज गेह ॥ म० ॥५॥शूपेक विद्याधर त गी, आवे पुत्र। दोय ॥ मन ॥ विषमिश्रित थण आपती, कृष्णमुखें ते पलोय ॥ मन ॥ ६ ॥ शकट रच्युं जव मारवा, तव तिहां यावी देव ॥ मन ॥ ते शकटें हणी तेहने, करतां कृष्णनी सेव ॥ मन ॥ ७ ॥ नंद जशोदाने कहे, देखी अचरिज तेह ॥ मन ॥ शूनो नवि मूको तुमें, पुत्र ते गुणनुं गेह ॥ मन ॥ ७ ॥ ढलतो मूकी घृत घडो, पण नविजा Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. क्यांही ॥ मन ॥ आलिंगे ते पुत्रने, मनमां धरी उहाही ॥ मन ॥ ॥ ए॥ पण चपलाइ अतिघणी, बल करी नाशी जाय ॥ मन ॥ उदर दामें करी बांधती, उखला साथे माय ॥ मन ॥ दामोदर नामज थयु, ते दिनथी परसि ॥ मन० ॥ शूर्पकसुत तिहां आवियो, जस बहु विद्या सिम ॥ मन ॥११॥ अर्जुन तृद विकुवीने, जमल परस्पर थाप ॥ ॥ मन ॥ खलथी तिहां लावियो, हावा मां बाप ॥ मन ॥१॥ तिणे समे थावी देवता, नांज्यो अर्जुन रुख ॥ मन ॥जमलार्जुन उन्मू लिया, दूर कयुं ते उःख ॥ मन ॥ १३ ॥ आवे तिहां गोपांगना, तर अंके शिर धारी ॥ मन ॥ रात दिवस नवि वेगली, रहे ते गोपनी नारी ॥ मन ॥ १४ ॥ दूध दहीं लूंटी लीये, कृष्ण ते चपल अपार ॥मन०॥ महियारी पासेंथकी, घृत ले जाय किंवार ॥ मन० ॥ १५ ॥ पण स्नेहें वारे नहीं,कौतुकथी ते नार ॥ मन ॥ करे प्रहार ढोली दीये. तेह दधि दधिसार ॥ मन ॥ १६ ॥ उलंनो दीये नंदने, यावी गोपनी नार ॥ ॥ मन ॥ पण घरे राखी नवि शके, देखी सुत गुणधार ॥मन० ॥१७॥ दिन दिन बलथी वाधतो, वात सुणे वसुदेव ॥मन०॥ विद्याधरी खेचर तणी, तेह मुवां ततखेवामन॥१॥मन चिंते वसुदेवजी,गोप्योपणन गोपाय॥म बल देखे जो एहनु, कंस ते करशे अपाय ॥ मन ॥ १५ ॥ तेडावी बल देवने, शीखामण देश तास ॥ मन ॥ कृष्णरदाने कारणे, मूके तेहनी पास ॥ मन ॥ २० ॥ दश धनु उंचा ते बिद्ध, सुंदर जस आकार ॥म॥ काम मूकी घरनां सङ, जुवे अनिमेष विकार ॥ मन ॥ २१ ॥ बलदेवनी पासेंजणे, कृष्ण कला नंमार ॥ मन ॥ कला बहोत्तर पारंगमी, कम ते पुण्य अपार ॥ मन ॥ २२॥ कोई का. मित्रज होये, याचारय कोका ल ॥ मन०॥ न खमे ते एक एकनो, विरह ते ण संजाल ॥म॥२३॥ पुब ग्रहे पनज तणु, बलवंतो माहावीर ॥म॥ देखी तस बलरामजी, या ये उदासीन धीर ॥ मन०॥ २४ ॥त्रीजीत्रीजा खमनी, ढाल प्रथम अ धिकार ॥ मन ॥ गुरु उत्तम किरपाथकी, पद्मने जयजयकार ॥म॥२५॥ ॥दोहा॥ ॥ के. बहु गोपांगना, मन्मथ प्रेरी जाय ॥ ज्युं नमरी कज ऊपरें, चो क फेर लपटाय ॥ १ ॥ गाय उहे गोपांगना, मन श्रीकृमनी पास ॥ ना Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नेमिनाथनो रास खंम त्रीजो. JJJ जन नुिं हेतुं हे, खबर ते न पडे तास ॥ २ ॥ दधि मयतां करे वात डी, घृत तपावतां तास ॥ जमतां वेगं ऊठतां, कृष्ण तो मन पास ॥ ३ ॥ गीत गायनाटक करे, सिंडवारादिक दाम ॥ गुंथी स्वयंवरनी परें, यापे कंठ उद्दाम ॥ ४ ॥ जेंह तेह प्रकारथी, ध्यावे कृष्ण मनमांहि ॥ दूध दहिं घृत लूटतो, तिहां पण कृष्ण उन्बाहि ॥ ५ ॥ गोपी उलंनो दिये, देखी ए हवी वात ॥ तुं तो व्यो किहांथकी, जिसे अम लूंटी जात ॥ ६ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ ॥ तुंतो किहांनो रसीयो रे ॥ मारा नंदना वाला ॥ मारग यावी वसीयो रें ॥ मारा नंदन वाला ॥ ए देशी ॥ गोपी कहे इम वातो रे ॥ महारा नंदना वाल्हा ॥ श्रमने लूंटी जातो रे ॥ मा० ॥ मानुं ते किहांनो दाली रे | मा० ॥ दहिंनी दोषी ताली ॥ मा० ॥ १ ॥ तुं ते किहांनो ठाकर रे ॥ मा० ॥ बांधे मशुं वाकर रे ॥ मा० ॥ तुं ते किहांनो शेठो रे ॥ मा० ॥ श्रम दुःख देवा बेठो रे ॥ मा० ॥ २ ॥ तुने केले मान्यो रे ॥ मा० ॥ श्रम दधि लूंटवा आयो रे || मा० ॥ तुं ते किहांनो स्वामी रे ॥मा० ॥ श्रमची दोषी नामी रे ॥ मा॥३॥ जो तुम कंस ते जाणे रे ॥ मा० ॥ तो तुक शिक्षा दाणे रे || मा० ॥ मने मत तुमें ब्रेडोरे ॥ मा० ॥ केम पकडो म केडो रे ॥ मा० ॥ ४ ॥ नं द ज जब कहे रे || मा० ॥ नंद ते तबको देशे रे ॥ मा० ॥ गोपी इणि परें. नासे रे ॥ मा० ॥ मनने गमे ते यासे रे ॥ मा० ॥ ५ ॥ ग्रावी रामने नांखें रे ॥ मा० ॥ में कहुं तुमची साखें रे || मा० ॥ दीगं हरतो चित्तडुं रे ॥ मा० ॥ हमने हितडुं रे ॥ मा० ॥ ६ ॥ श्रदीगं जाय प्राण रे ॥ मा० ॥ कृष्ण ते कानें वाल रे ॥ मा॥ मोरली वजावे कान्ह जी रे ॥ मा० ॥ मची हरतो शान जी रे ॥ मा० ॥ ७ ॥ इम लिंनो रामने रे मा० ॥ फोडे यमचा गमने रें ॥ मा० ॥ इम क्रीड़ा करतां गयां रे ॥ मा० ॥ बहु दिन खाणे सदु मया रे ॥ मा० ॥ ८ ॥ शौरीपुर हवे जागो रे ॥ मा० ॥ समु विजय तस राणो रे ॥ मा० ॥ घरमा सुख जोगवतां रे ॥ मा० ॥ मणिदीवा फलफलता रे ॥ मा० ॥ ए ॥ रूडी मोतीमाला रे ॥ मा० ॥ लटके चोक विशाला रे ॥ मा० ॥ कृष्णागरु जिहां दाऊ रे || मा० ॥ गंध ते वे जाऊ रे || मा० ॥ १० ॥ कुसुम तथा तिहां ढगला रे ॥ मा०॥ रमणिक आनक सघां रे ॥ मा० ॥ महोटी शय्या कडी रे ॥ मा० ॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकया रत्नकोष नाग बीजो. कोमल माखण रूडी रे ॥ मा० ॥ ११ ॥ सूती शय्या रातें रे ॥ मा० ॥ शिवादेवी सुखशातें रे ॥ मा० ॥ पाली रातें देखे रे ॥ मा० ॥ चौद सुपन मन हरखे रे ॥मा० ॥१२॥ चौदं तो गजराज रे ॥ मा० ॥बी जे वृषन समाज रे ॥माना सिंह लांगुल नहालतो रे ॥ मा० ॥ त्रीजे सु पन सोहावतो, रे ॥ मा० ॥ १३ ॥ लखमी फूलमाला नली रे ॥ मा० ॥ चंकला अति निर्मली रे ॥ मा० ॥ दिनकर ध्वज ते सोहतो रे ॥मा॥ कनककलश मन मोहतो रे ॥ मा० ॥ १४ ॥ पद्मसरोवर जाणीये रे ॥ ॥ मा० ॥ सागर मनमा आणीय रे ॥ मा० ॥ वली विमान ते बारमे रे ॥मा०॥ रत्नराशि कही तेरमे रे ॥ मा०॥ १५॥ धूमरहित अग्नि कही रे ॥ मा० ॥ चौदमे सुपनें राणी लही रे ॥ मा० ॥ जागी पीयु पा में जा रे ॥ मा० ॥ नांखे सुपनां ते सइ रे ॥ मा० ॥१६॥ चोथीत्रीजा खंमनी रे ॥ मा०॥ ढाल ते रंग अखंमनी रे ॥ मा० ॥ पहेले अधिकारें कही रे ॥ मा० ॥ पद्मविजय नवि सर्दही रे ॥मा०॥१७॥ सर्वगाथा१२०॥ ॥दोहा॥ ॥ समुविजय राजा कहे, सुपन तणुं फल रोक ॥ सुत होशे शुजल क्षणो, कुलदीपक गतशोक ॥ १ ॥ तेह सुणी हर्षित थर, तेह शिवादेवि नार ॥ राजा पण प्रमुदित थया, समुविजय तिण वार ॥ ५॥ मंत्रिसा मंतें परवस्यो, बेगे सना मकार ॥ पूढे कौष्टुक निमित्तीयो, जाव कहे श्म सार ॥ ३ ॥ इण अवसर चारण मुनि, शमतावंत महंत ॥ तपतापित ज स देहडी, आव्या ते गुणवंत ॥ ४ ॥ तव राजा ऊनो थइ, आपे आसन तास ॥ प्रणमी परिगल नावगुं, बेग मुनिनी पास ॥५॥राय निमित्तियो बिद्ध जणां, करकज जोडी जाम॥पू सुपन विचार ते, मुनिवर नांखे ताम॥६॥ . ॥ ढाल पांचमी ॥ ॥ नारी ते पीयुजीने विनवे हो राज ॥ ए देशी ॥ मुनिवर नांखे इणि परें हो राज, आठ प्रकारे निमित्त ॥ वारि मोरा साहिबा ॥ अंग सुपन स्व र जाणीयें दो राज, उत्पाद चोथु चित्त ॥ वा ॥ १ ॥ अंतरिक्ष नौम ने वली हो राज, व्यंजन लक्षण एह ॥ वा० ॥ तेहमां सुपन निमित्त कह्यु हो राज, सुख दुःख आपे देह ॥ वा० ॥ २ ॥ बहोतेर सुपनां नांखीयां हो राज, हीणां तेहमां त्रीश ॥ वा॥ बहेंतालीश उत्तम कह्यां हो राज, तेह Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. कारीयो ॥ ६ ॥ जि० ॥ कुनय कुसंग कुवास, हास मत्सर नग दारणो॥ जि० ॥ जनम जरा रोग शोग, मरण मोहरिपु वारणो ॥ ७ ॥ जि०॥ सायर सम गंजीर, जव विरहो मुफ आपीयें ॥ जि० ॥ सेवक जाणीस्वा मी, सांसारिक दुःख कापियें ॥ ७॥ जि० ॥ स्तवना करे सुर राय, प्रण मे पाय जिनेसा ॥ जि० ॥ जननी पासें यावी, मूके तेह सुरेसरु ॥ ए ॥ जि ॥ रतन सुवर्ण निधान, पूरे जिनवर धामने ॥ जि० ॥ संहरी ते प्रतिबिंब, पाम्या सद् निज तामने ॥ १० ॥ जि ॥ जनम मोहव विस्तार, जंबू पन्नत्तिथी जाणजो ॥ जि० ॥ लेश मात्र ते अत्र, नविजन मनमा आगजो ॥११॥ जि०॥ दुजाम प्रजात, सहस किरण जबन गीयो ॥ जि०॥ दासी जनरराय, पुत्र जनमथी वधावियो ॥१शाजि॥ तद्यथा ॥ तो पियं वश्य नामेण चेडीतया, पीण थण वट्टयोलंत मुत्ताल या ॥ रय समुस्कित्तपय रणिरमंजीरया, व्हसिय धम्मिन्न तह खिसिय उत्त रियया ॥ हरिसरो मंचविंचश्य वर तलया, सेय जल बिंपुरेदंत मुहपंक या ॥ नर वर पुत्तजम्मेण वदावए, सोवि चेडिए बदु दविषु दावावए ॥ मंतिपुरवि सव्वे विसावए, गुरुयवक्षावणं पुरिपय दावणं ॥१॥ जि० ॥ दासी पणुं करें दूर,समुविजय हवे राजीयो । जि० ॥ इंपूजित जोश्ते ह, मोचव करे जग गाजीयो ॥ १३ ॥ जि ॥ पश् गेह पयट्टिय चारुम • हं, चंदणरस सित्तसमग्गयहं ॥ पुर रमणि पवित्तिय मंगलयं, वर नट्ट तुह बदु दार लयं ॥ बंदीयण बिहिय कोलाहलयं, दीसंत विचित्त कुकहलयं ॥ नचाविय वदुजण बाहुलयं, उंचुहि वरपूरिय दिसीवलयं । घरि धरिणीब रुतोरणयं, परिघुम्मिरवामण दासणयं ॥ परितुह नमिर बहुमग्गणयं ॥ अन्य चाल ॥ पवि संत अरकवत्तयं, हीरंतसीसवबयं ॥ वजंत नेरीना गयं, दिजंत नूरि दाणयं ॥ निव६ हट्टसोहयं, सुचंत मदुरगेययं ॥ नु जंतविविह नोजयं, पिजंत नूरिदाणयं ॥ सोहिङ माण चारयं, मुचंतबंदि चारयं ॥ करसोक दंवलियं, सुवस्म कलस सङियं ॥ २ ॥ जि ॥ बारमे दिन हवे राय, मोबव महोटा तिहां करी ॥ जि० ॥ नाम वे नर नाह, गरन सुपन मनमां धरी ॥१४ ॥ जि० ॥ रिष्टरत्न मयी नेम, सुपन मांही देख्या थकी ॥ जि० ॥ अपमंगल थयां दूर, अथवा इष्ट अस्विकी ॥ १५ ॥जि०॥ अरिष्टनां फलसम श्याम, नाम अरिष्ट नेमी क Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंमत्रीजो. २३५ घु ॥ जि ॥ सुर नर सेवित तेह, उपगारें विग्रह धयुं ॥ १६॥ जि. ॥ जिम गिरिमा तरु बोड, बीजनो चंद वधे यथा ॥ जि०॥ रमता नेमि जि पंद, तेह मुणिंद वधे तथा ॥ १७ ॥ जि ॥ समुविजय घर एम, जन म सुणे वसुदेवजी ॥ जि० ॥ मोबव मथुरामांहि, करता ते ततखेव जी ॥ १७ ॥ जि० ॥ नरपति एक दिन कंस ते उष्ट, पहोतो वसुदेवने घरे ॥ न॥कन्या देखी ने ते जिन्न, मनमां चिंते इणिपरें ॥१५॥ न०॥ करतो अतिहि विकल्प, देह प्रकंप थयो तिहां ॥ न ॥पले घर म मित्त, वात कहे मुझने इहां ॥ २० ॥ न० ॥ देवकी सातमो गर्न, मुनियें वध नणी मुफ कह्यो ॥ न ॥ मुनि वच थयुं अलीक, के बलथी ए रिपु लह्यो । १ ॥ न० ॥ अथवा थयो फेरफार,तव नैमित्तियो वोलियो ॥न०॥ अली क न होय वचन्न, मुनि वच किणहीन रोलीयो ॥ २२॥ न ॥ तुक रिपु जीवतो आज, पण तुफ खबर न किहां अ॥न०॥ एक नपाय सुग तुऊ, वली बीजो नांखिश प॥ २३॥ न०॥ अरिष्ट वृषन तुम उष्ट, मा हाबल दर्प घणो धरे ॥ न० ॥ तीखा जेहनां शृंग, जीव घणानो वध करे ॥ २४ ॥ न ॥ घोटक केशी नाम, बलीयो तुम घर बांधीयो ॥ न० ॥ ग ईन पुष्ट शरीर, मेघ दारुण.पण सांधियो ॥ २५॥ न० ॥ वृंदारक वनमा हि, लूटा मूको एहने ॥ न ॥ वध करशे जे आवि, जाणजे वयरी तेहने ॥ ५६ ॥ न ॥ सुण हवे बीजो नपाय, सारंग धनुष ताहरे घरे ॥ न० ॥ पूजाये नित जेह, थारोपण जे तस करे ॥ २७ ॥ न० ॥झानीयें कह्यु ए म, कोइ न आरोपी शके ॥ न० ॥ नरत अरधनो स्वामि, ते एहनी आग लटके ॥ २७ ॥ न०॥ कालीय दमे नागीण, चारगर मननो वधकरु ॥ न॥ पद्मोत्तर ने चंपक, हगाशे हाथी नरवरु ॥णा न०॥ विसर्जे रे नि मित्त, ते सांजली चित्त खलजल्यो ॥ न०॥ निश्चय करवा तेह, कंस चिंते अहो किम बल्यो ॥३०॥न०॥ न लहे हवे रति क्याहि, निश पण सुखें न वि करे ॥ न० ॥ सुख नवि वेदे तेह, कारण विनु कोपज धरे ॥३१॥न०॥ सातमी त्रीजे खम, ढाल ते नांखी मनोहरु ॥नम् ॥ उत्तम विजयनो शिष्य, पद्मविजय कहे सुखकरु ॥ ३२ ॥ सर्व गाथा ।। २३४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ सुखमां नित नवि करे, करे ते कोप अपार ॥अपमाने मंत्रि प्रमुख, Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो. दमे प्रजा तिवार ॥ १ ॥वलगा व्यंतरनी परें, अंतेनर पुर सर्व ॥ विरक्त थ युं मन तेहनु, जाणुं गयो तस गर्व ॥ २ ॥ निज परहित ते नवि लहे, का योऽकार्य विचार ॥ मरण समीपें जेहने, सूफ न तास लगार ॥ ३ ॥ राम कृष्ण कीडा करे, रह्या ते गोकुलमांही ॥ लूटा ते सदु मूकिया, कं में तिण समे त्यांही ॥ ४ ॥ ॥ ढाल आठमी॥ ॥ प्रजुने बोलडीये ॥ ए देशी ॥ तृपन ते हवे इणि अवसरें,मानुं काल नमंतो एह रे ॥ याव्यो बलीयो गोकुलमां, मदवंती जेहनी देह ॥ सांजलो वातडीयां॥ नासे नासे रे सदुण गण ॥ सां० ॥ हाको हाको रे को नर जाण ॥ सांग ॥ मागो मागो रे आपुं दाण ॥ सांग ॥ नांगे नांगे रे अम घर घाण ॥ सांग ॥ पड्यां पड्यां रे बदु नंगाण ॥ सां० ॥ आवे आवे रे नहिं तिणे टाण ॥सां०॥ सुफे सुके रे नहिं को काण ॥सां ॥१॥ ए आंकणी ॥ शिंगें नांगे नाजनां कां, तोडे मेडी माल रे ॥ घृतनाजन ने नांजतो ते, दीसंतो विकराल ॥ सां० ॥२॥ नांजे नाजन दूधनां कांइ, वति दधि केरा नाम रे ॥ गोपी जन बहुत्रासवे तिहां,नासवे गायनो ग्राम ॥ सां० ॥३॥ गोपीनासे दश दिशे कांक्रोध चढ्या गोवाल रे ॥ लकुटने उठीया तस, मारणने ततकाल ॥सां०॥॥ मदमाता मयगल परें कांइ, न गणे तेहलगार रे ॥ कम कम रामरामजी सद, नांखे म तिणि वार ॥ सां० ॥ ५॥ असमंजस ते देखीने हवे, नंद तणो ते बाल रे ॥ सा हमो धावे तिण समे, सतु वारे बाल गोपाल ॥ सां० ॥ ६॥ काम नथी घर गायनु, वली इव्य तणुं इणि वार रे ॥ मत जावो तुम्हें कृष्णजी श्म, १६ वारे वारंवार ॥ सां०॥ ७ ॥ कोटि शिला नपाडशे जे, तस ए कहें तां मात रे ॥ जु कस्यो बहु नंगयी लेइ, पुज माडे गात ॥ सां॥॥ मुष्टि मारे कूरखमां जेम, पाम्यो निधनने वाल रे ॥ जय जय शब्द करतां थकां सदु, गोपीजन तेणे ताल ॥ सां० ॥ ए॥ हृदयें नीडे कृमने करे, आलिंगन वारं वार रे ॥ राग देखाडे परपरें तिहां, गोपी हर्ष अपार ॥ सां० ॥ १०॥ क्रीडा करतां कृष्णने कांइ, कंसनो केशी किशोर रे ॥ तेह कीनाशनी सारिखो प्राव्यो, बीजे दिन तिणे तोर ॥ सांग ॥११॥ लंबोद र दामोदरें कांड, दीतो दाढ विकराल रे ॥ नीषण हेपारव करे मारे, गाय Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंमत्रीजो.. २३४ तणां बहु बाल ॥ सां० ॥१२॥ उष्ट जाली फाले तिहां तस, करतो ६ धा जाग रे ॥ जीरण वस्त्र तणी परें सद्ध, नांखे धन्य महानाग ॥ सांग ॥ १३ ॥ वृंदारक बने एक दिने, गया कम तथा बलदेव रे ॥ जमुना न दी तीरें रहे करे, दंश ए नागनी टेव ॥ सां० ॥ १४ ॥ दृष्टिविष ते नाग ने कांइ, कम ते काढे बार रे ॥ जलक्रीडा सुखें शिशु करे, धरी आणंद अंग अपार ॥ सां० ॥ १५ ॥ मेप ने खंर एकदिन हणे,ते बलदेवने वली का न्ह रे ॥ वात ते कंसें सांजली, तव नाते। तेहनी शान ॥सां०॥ १६ ॥ निश्चय करवा कंसडो, ते पडह वजावे त्यांहि रे ॥ धनुष सनामां मूकीयुं, तस पूजा तणे उत्साह ॥ सांग ॥ १७॥ एह धनुष आरोपतो, जे देखें न जरें अत्र रे ॥ सत्यनामा मुफ बहेनडी, परणा, नहिं उडत्र ॥ सां० ॥ १७ ॥ अरधुं राज ते आपलं इम, मोबव मांमयो राय रे ॥ सामंत रा य प्रमुख घणां तिहां, उत्साही सदुयाय ॥ सांग ॥१॥ नंदन मदनवेगा तणो ते, श्री वसुदेवनो पूत रे ॥ शौरीपुरथी सांजली ते, आवे धरी आकू त ॥ सां० ॥ २०॥ बलदेवनी पासें रह्या ते, नंद गोठमां रात रे ॥ बाणा लही बलदेवनी ते, कृष्णने लेई जात ॥ सां० ॥ २१॥ रथवरमां ते बेसि ने जाय, मारग चाव्या दोय रे ॥ शाखा वलगी वट तणी कां रथ ते नं चो सोय ॥ सां० ॥ २५ ॥ अनादृष्ट कुंअर तिहां नवि, मुकावी शके तेह रे ॥ कृष्णे वड ते नांजीयो महा, बलीयो धरत सनेह ॥ सां०॥ २३ ॥ दे खी जुजबल तेह, मन, हरख्यो तेह कुमार रे॥ पहोता चापघरे हवे,ति हां देखे चाप ने नार ॥ सां० ॥ २४ ॥ देखत विधाणी घणुं लाग्यां, काम बाण ते नार रे ॥ मांहो मांहे देखतां कांक्ष, उपन्यो हर्ष अपार ॥सां॥२५॥ देव अधिष्ठित चाप ते नवि, लेइ शके अनाधृष्ट रे ॥ लेवा जाये दृष्टिथी प प, पडीयो ते नष्टष्ठ ॥ सांग ॥ २६ ॥ सत्यनामा हंसती तदा, तव कृष्ण खम्युं नवि जाय रे॥लीलायें लेइतेहने,आरोपे चाप ते ताय ॥ सां॥२७॥ बद राजा बलिया मल्या ते, हरख्या देखी तास रे ॥ नारी विशेषे हरखती कांइ, देखी पुण्य विलास ॥सां॥२॥ त्रीजे.खंमें बातमी कही,ढाल प्रथम अधिकार रे ॥ पद्मविजय कहे पुण्यथी कांश, होवे जयजयकार ॥ सां॥३॥ ॥दोहा॥ ॥ अनादृष्ट कुंअर हवे, कृष्ण ले निज जाय ॥ पहोतो तात तणे घरे, Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. ड॥ ६॥ यतः॥ कुलकोडीमान ॥ एगा कोडाकोडी,सत्ताणवयं च सयसह स्साई॥पमासं च सहस्सा, कुलकोडीणं मुणेयवा ॥१॥दोहो॥ उग्रसेन मु ख राजवी,समुविजय नूपाल ॥अष्टादश कुल कोडिगूं,चाव्या पुण्य विशाल॥ ॥ ढाल बारमी॥ ॥ दक्षिण दोहिलो हो राज, दक्षिण दोहिलो हो राज ॥ ए देशी ॥ सोम क दूतें हो राज, वात सुणावी हो राज, जरासंधे पावी रे, कोपें ते अ ति कलकल्या || कालकुमरने हो राज, मोकले राजा हो राज, साथें सा जा रे, पांचशे कुमरने मोकल्या ॥ १ ॥ करत प्रतिझा हो राज, कालकु मार हो राज, लावु हार रे, पेठो जो होय अमिमां ॥ बदु बल साथें हो राज, जातां तेहने हो राज, तेहवे वेदुने रे, अंतर नवि तेहरानमां ॥॥ अरध जरतनी हो राज, देवी जाण्युं हो राज, मनमांयाएयु रे, परवत एक विकुर्वीयो ॥ चंचो पहोलो हो राज, एक दूवारी हो राज, यावी धा रे रे, बदु चय बलती ज्वलतियो ॥ ३ ॥ शिबिर ते देखे हो राज, हस्ति तुरंग हो राज, देखें चंग रे, शूना थांने बांधीया ॥ केशक बलतो हो राज, प्रहरण निरखे हो राज, पावर परखे रे, ठाम ठाम ते सांधिया ॥ ४ ॥ एक चय पासें हो राज, १६ ते नारी हो राज, वरवेश धारी रे, करुण स्वरें रोतीथकी ॥ काल ते पूळे हो राज, रोवे शाने हो राज, तव ते का ने रे, संजलावे इणि परें वकी ॥ ५॥ जरासंध नयथी हो राज, यादव ना ठा हो राज, सांगली घाठा रे, बलथी काल ते यावतो ॥ नाशी न शकी या हो राज, पेठा ए चयमां हो राज, क्यकर घरमां रे, पुत्र कलत्र ज न दाऊतो ॥ ६ ॥ कृल्म ने राम हो राज, जादव बीजा हो राज, अहि मिजा रे, बलीया ए चयमा वली ॥ तिणें दुं रोवु हो राज, ढुं पण मरा हो राज, होम ते करा रे, देह तणो ते कलकली ॥ ७ ॥ इम कही पे ती हो राज, चयमां सहसा हो राज, देखी तहसा रे, कालादिक कुमर हवें ॥ चिंते एम हो राज, में तो पतिज्ञा हो राज, एहवी कन्या रे, लावू जिहां होये सवे ॥७॥ श्म कही पेठगे हो राज, चयमां तेह हो राज, बा ली देह रे, कीधी राख ते तिहां कणे ॥ गइ तिहां राति हो राज, विहाणुं विहायुं हो राज, कांय न पायुं रे, यादव राय प्रमुख जिणें ॥ ए॥ देविविलास हो राज, ते सदु देखी हो राज, तेह नवेखी रे, मनमा इणि Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंमत्रीजो. २४५ परें चिंतवे ॥ देवता पदमां हो राज, एहने झुं कहीयें हो राज, एहथीम रीयें रे, करतां एहणुं कैतवें ॥ १० ॥ पुण्य ते खूटे हो राज, सङ पलटा य हो राज, बुद्धि पण जायें रे, होय प्रतिकूल सदु आपणा ॥ दैव जो थाय हो राज, तेहथी दूरे हो राज, होय अधूरे रे, पुण्ये नवि होय बाप ना ॥ ११॥ राम केशवनो हो राज, अनिनव पुण्यो हो राज, थाय ने शून्यो रे, अम्ह स्वामीनुं संप्रति ॥ माटें करवू हो राज, जुझ ते सायें हो राज, लेवा बाथ रे, अंगार सुगो लपति ॥१२॥ जश्ने 'कहीयें हो रा ज, चिंति वलिया हो राज, ते घणुं बलीया रे, पण गलीया थया सदु तिहां ॥ कही सदु वात हो राज, मगधनो स्वामी हो राज, मस्तक नामी रे, रोवे कहे झुं थयुं इहां ॥ १३ ॥ पडीयो धरणी हो राज, चेतन वली यो हो राज, बहु टलवलीयो रे, परिजन सहित ते सांजली ॥ कंसने काल हो राज, मूया ते साले हो राज, वा जिम हाले रे, इलित वात ते नवि मली ॥ १४ ॥ सुखमां जातां हो राज, वात ते सुणतां हो राज, तेहज लहेता रे, प्रत्यय कोष्ठक निमित्तियो ।। पूजीचाल्यो हो राज,मुनिवर मलीयो हो राज, तेतो बलीयो रे, चारण ते चारित्रीयो ॥१५॥ कहेश्म वाणी हो राज, समुविजयने हो राज, नमिजिनवरने रे, हरिसेन च कीने इणि परें ॥ जिणवर थाशे हो राज, तुमचो पुत्त हो राज,इणिपरें न त रे,नाम अरिनेम तुम्ह घरे ॥१६॥ राम ने कम हो राज, नवमा जागो हो राज, मनमां बाणो रे, बलदेवनें वासुदेव ए ॥ इम सुणी हरख्या हो राज,रैवतपासे हो राज, कीधा उल्लासें रे,सन्निवेश ततखेव ए ॥१७॥ कोडी अढार हो राज,कुल तिहां रहेतां हो राज,श्रेयता सहेतां रे,गुन दिवसें एक दिन हवे ॥ प्रसवे पुत्त हो राज,सत्य ते नामा हो राज,नामरनामा रे,नानु नाम उरनु वे ॥१॥त्रीजे खमें हो राज,प्रथम अधिकारेंहो राज,मनमांधारे रे,बारमी ढाल सोहामणी ॥ गुरु उत्तमनो हो राज, पद्म ते नांखे हो राज, जोए चाखे रे, होंश ते होय तेहने घणी ॥ १५ ॥ सर्वगाथा ॥ ३० ॥ ॥ दोहा॥ ॥ उत्तम दिवस जो करी, नाही हवे गोविंद ॥ करी सायर पूजा वली, अहम करे सुखकंद ॥ १ ॥. लवणाधिप आराधीयो, त्रीजा दिननी रात ॥ आसन कंप्यु देवनु, जाणी कमनी वात ॥ २॥ आवी देव ते थानकें, रतन Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. ढगलो ॥ सु० ॥ १७ ॥ कृष्ण बेठा सदु यादवमांही, सर्वसनामां फुःखीया ॥ सु० ॥ नारद आवी तेहने पूडे, केम तमें कुःखीया न सुखीया ॥ सु० ॥ १७ ॥ कृष्ण कहे रुक्मिणी सुत हरीयो, मुफ करथी करी बलने ॥सु॥ जो शुदि जाणो तो तुमें नांखो, जयें बहु लेइ बलने ॥ सु० ॥ १५ ॥ बो ले नारद सुणो.दामोदर, अयमत्तो महाशान। ॥ सु०॥ तेहतो मोद प धास्या हमणां, चिद् अमृत थया पानी ॥ सु० ॥ २० ॥ पूढे जश् सीमंधर जिनने, विचरे संशय हरता ॥ सु० ॥ नारद प्रनु पासें हवे अाव्या, जिन ने नति ते करता ॥ सु० ॥ २१ ॥ पूडे रुक्मिणीनो सुत किहां, तव प्रनु सघलुं नासे ॥ सु० ॥ नारद पूछे धूमकेतुने, वैर ते शे अन्यासें ॥सु॥२२॥ केवलझानी जिनवर नांखे, पूरवनवनी वातो ॥ सु० ॥ नारद सुणे यहां नविजन सुगजो, नत्तम ए अवदातो ॥ सु० ॥ २३ ॥त्रीजे खमें बीजे अ धिकारें, नांखी ए त्रीजी ढाल ॥ सु० ॥ उत्तम विजयना पद्मविजयने, हो वे मंगलमाल ॥ सु० ॥ २४ ॥ सर्वगाथा ॥ ए३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ जंबुद्धीपना जरतमां, मगध देश शालिग्राम ॥ नपवन अति सोहाम j, असे मनोरम नाम ॥ १ ॥ ते उद्याननो अधिपति, यदसुमन अनि धान ॥ सोमदेव हिजनामथी, वसे ते पुरमां जाण ॥ २ ॥ पुत्र थया दो य तेहने, अग्निनूति वायुनूति ॥ वेद अर्थ पंमित वदु, पाम्या यौवननूति ॥३॥ नंदीवईन नामथी, तेह उद्यान मकार ॥ आचारय पानधारिया, प्रणमे लोक अपार ॥ ४ ॥ हिजसुत बेहु अमरप नया, श्राव्या सूरीश्वर पास ॥ कोलाहल नपदेशमां, करतां देखे तास ॥ ५ ॥ सत्यनाम सूरी त पो, शिष्य ते वोल्यो ताम।नेंसापरें किम था बो, आवो कटुंडं आम॥६॥ ॥ ढाल चोथी॥ • ॥ चंशनन चतुर सुजाण, धातकीवमें रे ॥ ए देशी ॥ किम नेसा नां खी आज, वीया अमने रे ॥ तव सत्य कहे मुनि साच, नांदुं तुमने रे ॥ एक नेंसो वनमा जोर, मदथी मातो रे ॥ एक दिन जल पीवा काज, सरमां जातो रे ॥१॥मांही पेशी महोलू नीर, पीवं दोहिलं रे ॥ बीजा ने तो अंतराय, कर, सोहिनु रे ॥ जो जो तुम्हें पंमित याज, अम्हने जासो रे ॥ श्राव्या तुम्हें किहांथी अत्र, तेह प्रकासो रे ॥ २ ॥जेम हंस Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम त्रीजो. सनामां काक, दीसे तेहवा रे ॥ अज्ञाने यावृत देह, उत्तर देवा रे ॥ मुख नीचं. करी रह्या जाम, मुनिवर बोल्या रे ॥ तुम्हें पूरवनव शीयाल, मांस ना लोल्या रे ॥३॥ एक दिन एक खेतरमांहि, कलबी मूकी रे ॥ रक प्रमुख सविरात, मतिथी चूकी रे ॥ हवे आवी तेह शीयाल, करडी खाधा रे ॥ तिहांथी मरी ब्राह्मण दोय, करता बाधा रे ॥ ४ ॥ हवे हालि क करीने काल, स्नुपासुत जायो रे ॥ जातिसमरण हवे तास, करमें आ यो रे ॥ पुत्रनी वधू माता थाय, ए केम सहीये रे ॥ इम चिंती मूंगो ते ह, दिनथी लहिये रे ॥ ५ ॥ नवि मानो तेडो तास, अमची पासें रे ॥स दु मलीने तेडी तास, लावे रासे रे ॥ कहे मुनिवर सांजल वात, नवमां नमतां रे ॥ सदु मात पिता ने पुत्र, कलत्रपणे रमता रे ॥ ६ ॥ एक एक अनंती वार, नवस्थिति एहवी रे ॥ कम मूकपणुं कयूं आज, सजा केह वी रे ॥ तव प्रणामी मुनिना पाय, नांखे वाणी रे ॥ तुमची कीर्ति जगमां हि, सत्य गवाणी रे ॥ ७ ॥ स्वामी कही साची वात, सघली माह। रे ॥ माहरी मति स्वामी आज, तुम्हें उदारी रे ॥ लीये दीदा सुणी तेह वाणि, बहु जन बूझ्या रे ॥ हालिक बुग्यो हिजदोय,मोहमां मूंज्या रे ॥७॥ हवे हांसी करे सदु लोक, घर लागें पहोता रे ॥ पण वैर जराणुं तेह, मुनिगुं रहेता रे ॥हणवाने आव्या तेह, यामिनीमांहि रे ॥ यदें थंजाव्या तेह, करि उबाहि रे ॥ ए॥ विहाणे सदु देखे लोक, करत निबंबा रे ॥ तस मा त पिता करे पोक, जीवन वंबा रे ॥ तव बोल्यो थप्रत्यद, यद ते वा गी रे ॥ मुनि वध करनारा एह, थंच्या जाणी रे ॥१०॥ जो दीदा ले तो याज, मूकुं एहने रे ॥ तव बोव्या मुक्कर वात, एह सदु केहने रे ॥ अ म श्रावक थाशुं शुरू, इम सुणी मूक्या रे ॥ तस मात पिता हवे जैन, ध मथी चूक्या रे ॥११॥ अमिनूति वायुनूति, काल करीने रे ॥ पट पट्य आ यु सौधर्म, कल्प वरीने रे ॥ गजपुरमा अर्हदास, वणिकनें बेटा रे ॥ पूर्ण नइ मणिन, नाम धर्मे सेटा रे ॥ १२॥ तिहां मुनिवर मलीया सार, म हें नामें रे ॥ तस पूरे मननी वात, संशय नामें रे ॥ शुनी ने ए चंमाल, देखी नेह रे ॥ आवे के कारण काय, नांखो तेह रे ॥ १३ ॥ कहे मुनिवर पूरव नाम, अनि ने वाय रे ॥ सोमदेव तुमारो तात, अनिला माय रे ॥ तुम तात मरी थयो राय, जितशत्रु नाम रे ॥ परदारा रस तास, बहुलो Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. काम रे ॥ १४ ॥ तुज माता मरीने तेह, सोमनूति विप्र रे ॥ तस रुक्मि णी नामें नाम, दुई ते दिन रे ॥ जितशत्रुयें दीठी नार, निजघर लावे रे ॥ मरी त्रण पथ्योपम आय, नारक थावे रे ॥ १५॥ तिहांथी वली दरण थाय, घाय लहीने रे ॥ श्रेष्ठिसुत वली गज थाय, कर्म बहीने रे ॥ जाति समरण वत्ती पामी, तिहाथी चविने रे ॥ वैमानिक सुर त्रण पथ्य, आय मविने रे ॥ १६॥ चवि तिहाथी थयो चंमाल, एह ते दीसे रे ॥ रुक्मि पी नव नमी गुनी एह,देखी हींसे रे ॥ ते तो पूरणन, जाति संजारी रे॥ चंबालगुनी प्रतिबोध, दीये तिवारी रे ॥१७॥ वैराग्य लही चंमाल. अ सण मास रे ॥ पाली नंदीसर हीप, सुर थयो खास रे ॥ हवे गुनी अण सण पाली, शंखपुरीमा रे ॥ सुदर्शना राजनीधूय, रूप धूरीमा रे ॥१॥ मुनि महेंऽ आव्या फेर, पूछे तास रे ॥ पूर्ण न माणिन वात, बोध्या जास ॥ पूर्णन मणिनई तास, वली कस्यो बोध रे ॥ लेइ दीक्षा गइ देवलोक, करती शोध रे ॥ १५ ॥ पूर्णन माणिनए दोय, सोहमदेव रे॥ श्रावकव्रत पूरे नाव, कीधी सेव रे ॥ हथियानर नगरें राय, विष्वक्सेन रे ॥ मधुकैटन नामें दोय, गुनधर्मेण रे ॥ २० ॥ वटपुरमा श्रयो राजा न, कनकप्रन नामें रे ॥ बहुनव नविनंदी देव, पुण्ये जामे रे ॥ बहुलव जमी नारी देव, हवे ते राणी रे ॥थ चंाना इण नाम, जगमां जाणी रे ॥ २१॥ विष्वक्सेन थापे राज्य, मधु निज सुतने रे ॥ कैटन युवराज्ये थापी, था गुणयुतने रे ॥ले दीदा गयो देवलोक, हवे मधुराय रे ॥त्र ए नुवनमा जसने कीर्ति, जास गवाय रे ॥ २२ ॥ एक नीमपनि पति ता स, देशने खूसे रे ॥ मधु चढीयो हणवा तास, बहोले रोपें रे ॥ वटपुरें क नकप्रनराय, मारग मलीयो रे ॥ करी पूजाने सत्कार, हेजें दलीयो रे॥२३॥ त्रीजे खमें ढाल, चोथी नांखी रे ॥ एह बीजे अधिकार, चित्तमां राखी से ॥ गुरु उत्तमविजयनी सेव, मुझने लाधी रे ॥ कहे पद्मविजय नली जात, उद्यम साधी रे ॥२४॥ सर्वगाथा ॥ १२३ ॥ ॥दोहा॥ ॥ जोजन कनकप्रनने घरें,करे ते मधु राजान ॥ चंशना नारी सहित, प्रानृतनुं करे दान ॥ १ ॥ मधुनें प्रणमी नारी ते, गइ अंतेउरमांहि ॥ का मातुर मधु नृप थयो, चाल्यो जीतण त्यांहि ॥ ॥ जीतीने पाबो वव्यो, Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५७ श्रीनेमिनाथनो रास खंमत्रीजो. श्राव्यो वटपुर तेह ॥ मागे चंशना प्रते, पण नवि आपे एह ॥ ३ ॥ जो ब्रह्मांम त्रूटी पडे,नारि दीधी केम जाय ॥ एक दाणी हांसुं वली, सदु जन मांहे थाय ॥ ४ ॥ नवि दीधी ते कारणे, बलथी ते ले जाय ॥ कनकप्रन मूर्बित थयो, श्वासोवास न माय ॥ ५ ॥ चेत लहीने थारडे, करे विला प अनेक ॥ मदमाता घेला परें, थयो कनक अतिरेक ॥ ६ ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ ॥ दीती हो प्रनु, दीठी जगगुरु तुज ॥ ए देशी ॥ राजा हो हवे राजा चं शना पास, जावे हो हवे जावे तव पूजे इस्युं रे॥ आव्या हो हवे अाव्या तुम्हें बहु काल, कारण हो प्रनु कारण नांखो तुम्हें किस्युं रे॥१॥ राजा हो हवे राजा बोले ताम,शिक्षा हो अमें शिक्षा देवाने रह्या रे॥ परस्त्री हो वली परस्त्री वंडे तास, जांखे हो राणीनांखे ते पूज्यज कह्या रे ॥२॥ बोले हो तव बोले मधुनृप एम,नारव्या हो राणीनांख्या 5ष्ट ते ग्रंथमां रे ॥राणी हो तव राणी कहे तुं विचारी, न्याय हो प्रनु न्याय शिरोमणि पंथमां रे॥३॥ सां जली हो राय सांजली लाज्यो तेह, देखे हो तिहां देखे इणि अवसर इस्यो रे॥गातो हो नृप गातो नाचतो राह,स्वामी हो तिहां स्वामी चंझना मति खस्यो रे ॥४॥ मिनें हो तेह मिनें परिवृत दीठ,चिंतवे हो तवचिंतवे चंशना ति हां रे ॥ माहरे हो एह माहरे वियोगें एम, पामे हो जु पामे फुःख धिग मुज इहां रे॥५॥ मधुने हो तिहां मधुने देखावे तास,ते पण हो लह्यो ते पण पश्चा तापने रे ॥धुंधु हो सुत धुंधुने थापी राज, कैटन हो युत कैटन युत व्रत थापिने रे ॥ ६ ॥ विमल हो गुरु विमलवाहननी पास, तप तपी हो बिदु तप तपीछादश अंग नण्यां रे॥ अनशन हो करि अनशन महा शुक्रे था य, देव हो रूडा देव सामानिकपणे मुण्या रे ॥ ७ ॥ कनक हो प्रन कन कप्रन सही उःख, धूम हो केतु धूमकेतु ज्योतिष थयो रे ॥ सांजस्युं हो त स सांना पूरव वैर, गलीयो हो तेह गलीयो दुःख दे नवि जयो रे ॥G ॥ चविने हो तेह चविने तापस थाय, देवता हो वली देवता वैमानिक न लो रे ॥ तिहां पण हो तेह तिहां पण महा शदिवंत, देई हो दुःख देई न वि शक्यो एकलो रे ॥ ५ ॥ चविने हो वली चवीने जम्यो संसार, कम हो थयो कर्मे धूमकेतु वली रे ॥ण समे हो तेह इणसमे मधुनो जीव, शुक्रथी हो हवे शुक्रथी रुक्मिणीकरें वली रे ॥१०॥ पूरव हो तेह पूरव वै Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. २६४ कहे एहवी वात, कनकमाला कहे सांगलो ॥ ५ ॥ नहिं तुं माहरो पूत, ढुं ताहरी माता नहिं | जाए तुं मुऊ याकूत, तव बोजे कुंअर सही ॥ ६ ॥ विद्या यापो मुऊ, कदेशो तिम करशुं पढ़ें ॥ खापुं विद्या तुऊ, तव कुं अर बोले अबे ॥ ७ ॥ ॥ ढाल आठमी ॥ ॥ पारिजातकनुं फूल स्वरगथी | ए देशी ॥ पद्युम्न कहे सुण वात, तुं माहरी ते मुऊने पहेलो पाल्यो । वली प्रज्ञप्ति गौरी विद्या, यापी मुने लाल्यो ॥ १ ॥ ना जो के नहिं जो के, जाणो मन प्राणो ॥ नारे माता नहिं करूं जोग तु सायें रे || नहिं करुं नहिं करूं माहरी माता, हवे गु रुणी मुऊ दुइरे ॥ ए यांकणी ॥ पुर बाहिर गयो कुमर ते जाम, तव ते यंग विदारी । पूबे पति तव जांखे एहवं, तु पुत्रे इम कारी ॥ नाजो० ॥ २ ॥ करे प्रहार प्रद्युम्नने जइने, तव ते साहमो थाय ॥ मरण लह्या बहु पुत्र शं बरना, क्रोधें देह नराय ॥ नाजो० ॥ ३ ॥ शंबरने प्रद्युम्न ते जांखे, कन कमाला ती जेह ॥ वात सुली थिर थइ ति हरखी, बालिंगे तस दे ह ॥ नाजो० ॥ ४ ॥ पश्चत्ताप करे मन बहुलो, नारद ऋषि तव याव्यो ॥ नारदने खावे प्रज्ञप्ति, तव तेहने मन जाव्यो | नाजो० ॥ ५॥ पूजी कहे नारदने वात, कनकमाला तणी जाइ ॥ तव नारद बोजे सुण माहरी, वात ते मनमां लाइ ॥ नाजो० ॥ ६ ॥ सीमंधरजीयें नाख्युं तेह, सघलुं तस सं लावी ॥ कहे ताहरी माताने पण बे, ते सुण वात ते ठावी ॥ नाजो० ॥ ७ ॥ पुत्रविवाहें केश ते आपे, खागल थाये जेहनो ॥ ते नामानो सुत नानु बे, थाये विवाह ते एहनो ॥ नाजो० ॥ ८ ॥ एक तो केशनुं दान ने बीजूं, वियोग पड्यो ताहरो जेह ॥ ते रोगें पीडीत तुज माता, मरणने लहेशे तेह ॥ नाजो || प्रज्ञप्तियें विमान विकूर्ति बेशी हवे ते मांहि ॥ नारदने पद्युम्न दोय चाल्या, द्वारिका जणी उष्ठाही ॥ नाजो० ॥ १ ॥ नारद कहे ए रिका ताहरी, धनदें रतने पूरी ॥ प्रद्युम्न कहे विमानने ठावो, करूं या श्वर्य पूरी ॥ नाजो० ॥ ११ ॥ जोजो के जश्यें कें, वहेला के वारु ॥ के वाल्हा माहरा यावो शुभ दीदारू रे || ए की ॥ नानुनी कन्या उपाडी, मूकी नारद पासें ॥ नारद कहे बाला मत बीजे, नो सुत सुविलासें ॥ जो० ॥ १२ ॥ वानरनुं एक रूप करोने, एक वानर कृष्ण Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. देखीने जश्ने नामाने कहे रे ॥१॥ नामा कहे जितशत्रुने श्म वाणी जो, तुम्ह पुत्री परणावो अम्ह सुतने नली रे ॥ जितशत्रु कहे परणावं दुं ताम जो, हाथ जाली तुम्हें ले जावो अम्हें मोकली रे ।। १३ ।। म सुपीना मा तेडण आवे तास जो, तब तिहां सांब कुमार विचारे एहवं रे ॥ लो क सदु देखो मुफ सांबर्नु रूप जो,नामा देखो रूप ते कन्या जेहबुं रे ॥१॥ हाथ जाली तेडी जाय सांबने नारी जो, नर नारी सदु विस्मय पामे तिणे समे रे ॥ कर जाले बीजी कन्यानो आप जो,आप तणो कर आपे नीरु हा थमें रे ॥ १५ ॥ परणी वासनुवनमां जावे जाम जो, तव नृकुटी करी सांब कहे जा वेगलो रे ॥ ज संनलावे जामाने ते वात जो, ए तो आ व्यो सांब ते मानुं मयगलो रे ॥ १६ ॥ जामा कहे कोणें तेड्यो तुऊने ज जो, तव कहे तुम्हें तेड्यो ने परणाव्यो वली रे ।। सारखी सघला हा रिकावासी लोक जो, लोकें पण तस साख जरी आवी मली रे ॥ १७ ॥ कृमें पण भावीने संघली नार जो, सद् साखें परणावी सांब कुमारने रे ॥ एक दिन श्रीवसुदेवनी पासें तेह जो, आवे रमता रमता नमसाकारने रे॥ १७ ॥ सांब कहे बहु काल नम्या तुम्हें बाहार जो, वदु नारी परण्या तेहमां अचरिज किमु रे ॥ नाम वेठां कन्या शत परण्या स्वामी जो, अंतर जाणो तुम्हने अमविच्चे इस्युं रे ।। १ ए ॥ कहे वसुदेव तुं कूपमंकनी तुल्य जो, काढी मूक्यो ने बलथी तुं आवियो रे ।। देश भ्रमण करतां मुझने ब हमान जो, समुविजय करीने घर तेडी लावीयो रे ॥ १० ॥ पामी ते अपमान ने प्रणमे पाय जो, स्वामी में अझानपणे इम नांखीयुं रे ॥ म हारो ए अपराध ते खमजो स्वामी जो, फरी नहिं नां जेह अम्हें तुम्ह दाखीयुं रे॥१॥त्रीजे खंमें ने त्रीजे अधिकार जो, त्रीजी ढाल ते नां खी एह मनोहरु रे ।। पंमित उत्तम विजयनो शिष्य कहंत जो, पद्मविजय इम नविका सुजो गुणधरु रे ॥ १२ ॥ सर्व गाथा ॥ ७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ यवनहीपथी शण समे, बहु व्यापारी लोक ॥ याव्या करियाणां नरी, दाम करे तस रोक ॥ १ ॥ वेची करियाणां सवे, राजगृहें ते जाय ॥ रत्न कंबलने वेचवा, लान अधिक इबाय ॥२॥ शीत कृष्ण हरता सदा, श्लक्ष्ण रोम होय तास ॥ जीवजसा ते देखीने, मूल्य करे तस पास ॥ ३ ॥ व्या Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंमत्रीजो.. Igu पारी रोवे घj, अमचुं महा अनाग ॥ धारिका मूकी आवीया, बहुला ला नने राग ॥ ४ ॥ जीवजसा पूजे तदा, धारिका नयरी कोण ॥ राजा पण तिहां कोण , तव बोले ते वयण ॥ ५ ॥ देवें कीधी हारिका, तिहां कृष्ण माहाराय ॥ तव रोती नारी कहे, जीवे यसमुदाय ॥ ६ ॥ तेह जरासंधे सुण्यु, काल कंसर्नु वेर ॥ संजारी सेनापति, तेडी कहे इणि पेर ॥ ७॥ ॥ ढाल चोथी॥ ॥लाल पीयारीनो साहिबो रे ॥ ए देशी ॥ मंत्री मोरारे ॥ अर्धनरत ना सदु राजवी रे, तेडो मूकीने दूत राज ॥ जय यादव उपरें रे, हणीयें वसुदेव पूत राज॥ १॥ पुण्य प्रमाणे सद् नीपजे रे ॥ए यांकणी॥मंग॥ बद् मंत्रीश्वर वारता रे, चलितगलित मति तेह राज ॥ दक्षिण जानु उपाड तां रे, बीक करे जे संदेह राज रे॥ पु०॥ ॥मं॥ श्याम बिल्लाडी आ डी फरी रे, चढतां गजवर खंध राज ॥ त्रूटो हार सोहामणो रे, पडियो मु कुट शिरबंध राज॥ पु० ॥३॥ मं०॥ तूरशब्द विरसो दुवे रे, वाजे प्रचं म वाय राज ॥ जेहथी नगि उपजे रे, कांकरी नमे ते गय राज ॥ पु० ॥ ४ ॥ मं०॥ बत्र ध्वजा दंम जांगीयां रे, हय नड रथ ने तुरंग राज ।। बदु सैन्ये तेह परवस्यो रे, रथना होय तिहां नंग राज ॥ पु० ॥ ५ ॥ मं० ॥ मूत्र पुरीप अंतर नहिं रे, रुधिर विरस पडे त्यांहि राज ॥ विरस शिवा तिहां बोलती रे, गर्दन नूंके ते राहि राज ॥ पु० ॥ ६ ॥ मं० ॥ वाम नयन फरक्युं तिसे रे, शकुन निमित्त श्म वारे राज ॥ मति ज्यारें खशी जे हनी रे, अवलुं मनमांहि धारे राज ॥ पु० ॥ ७ मं० ॥ ॥ नारद आवीने कृमने रे, वात सवे संनलावे राज ॥ नेरी सुघोषा घंटापरें रे, कृष्मजी ति हां वजडावे राज ॥ पु० ॥ ॥ मं० ॥ देव परें सदु राजवी रे, नेला या दव थाय राज ।। उग्रसेनादि बलिया घणुं रे, दश दशार्ह वलि राय राज ॥ पु० ॥ ॥ मं०॥ समुविजय तस सुत आविया रे, महानेमि सत्य नेमि राज ॥ दृढनेमि रथनेमिजी रे, अरिहा अरिष्टनेमि राज ॥ पुण्॥१०॥मं॥ जयसेन ने महाजय जला रे, तेजसेन जयमेघराज ॥ चित्रक गौतम जाणी ये रे, श्वफल्क गाजे ज्युं मेघ राज ॥पु॥११॥०॥ अर्थ ने शिवनंदन रूय डा रे, माहारथ विष्णुकसेन राज ॥ अड सुत संयुत आविया रे, अदो न नाम बहुसेन राज ॥ पु० ॥ १२ ॥ मं ॥ पण सुत स्तिमित ते आ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो. विया रे, सागर षट् सुत लेय राज ॥ हिमवान त्रण पुत्रथी रे, अचल ते सग एय राज ॥ पु० ॥ १३ ॥ मं० ॥ पांच पुत्रगुं आवीया रे, धरुणनामें महाराय राज ॥ पूरण चन सुत तेडीने रे, अनिचं पटसुत प्राय राज ॥ पु० ॥ १४ ॥ मं० ॥ श्रीवसुदेवजी आवीया रे, बहु सुतने परिवारें राज ॥ अक्रूर ने क्रूरनामथी रे, ज्वलन अशनिवेग धारे राज ॥पु० ॥१५॥ ॥ वायुवेग अमितगतिजी रे, महेंगति वली नाम राज ॥ सि दारथ दारु रूयडारे, सुदारु वीर्यधाम राज ॥ पुण् ॥ १६ ॥मंग॥ सिंह ने मतंगज सुत जला रे, नारद ने मरुदेव राज ॥ सुमित्र कपिल बलीया घj रे, पद्मकुमुद यादें हेव राज ॥ पु ॥ १७ ॥मं० ॥ अश्वसेन पुंझनामथी रे,रत्नगर्न अनिधान राज ॥ वजबादु बादुनृत वली रे, महाबलीया सदु जान राज ॥ पुण् ॥१७॥ मं० ॥चंकांत शशिप्रन सुणोरे, वेगवान वा युवेग राज ॥ अनाधृष्ट दृढमुष्टिजी रे, हिममुष्टि अति तेग राज ॥ पु० ॥ १ए मं ॥ बंधुषेण सिंहसेन जी रे,युधिष्ठि ए नाम राज ॥ शिलायु ने गंधार वली रे, पिंगल यावे रणकाम राज ॥ पु० ॥ २० ॥ मं० ॥ ज राकुमर बाल्हिक कह्या रे, सुमुख ने फुर्मख जाण राज ॥ राम ते रोहिणी कूखना रे, माहाबलिया गुणखाण राज ॥ पु.॥ २१ ॥ मं० ॥ वजदंष्ट्र अ मितप्रन रे, रामना बदु आवे पूत राज ॥ मुख्यतणां अनिधा सुणो रे, नल्मूक निषध ते उत्त राज ॥ पु० ॥ २२ ॥मं॥ प्रकृत द्युति चारुदत्त ध्रुव रे, शत्रु मदन ने वली पीठ राज ॥श्रीध्वज नंदन चित्ररूयडा रे, श्रीमान दशरथ इस राज ॥ पु० ॥ २३ ॥मं०॥ देवानंद ने नंदजी रे, विष्टथु शांत कुमार राज ॥ पृथु ने शतधनु नामथी रे, नरदेव माहाधनुसार राज॥पु० ॥ २४ ॥ मं० ॥ दृढधनु आदि आवे घणारे, ए बलदेव कुमार राज ॥ कमना सुत हवे सांजलो रे, जानु ने नामर धार राज ॥ पु ॥२५॥मं॥ महानानु अनुनानुजी रे, वृहध्वज सुविदित्त राज ॥ अग्निशिख विष्णु संजयो रे, अकंपित शुनवित्त राज ॥ पु० ॥ २६॥ मं० ॥ महासेन नद धि गौतम वली रे, सुधर्म ने वली धिर राज ॥ प्रसेनजित सूरय चंजी रे,वर्मा ने वली गंजीर राज ॥ पु० ॥२७॥ मं० ॥ चारुक कृमक कृमना रे, सुचारु देवदत्त राज॥नरत ने शंख प्रद्युम्नजी रे, सांब प्रमुखजी आयात राज ॥ पु० ॥ २७ ॥ मं० ॥ विष्णुपुत्र सहसागमे रे, उग्रसेन राजान राज ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. सुणजो हर्ष अपार ॥ १ मूक्या नेमी जिनवरें, कम अरिना राय ॥ जरा संध सुत थापियो, सहदेवने पितु गय ॥२॥ शौर्यपुरे महानेमजी, समुह विजय सुत थाप ॥ हिरण्यनान कोशल नवे, कृष्णाजी हर्षे आप ॥३॥धर नामें मथुरा उवे, उग्रसेन सुत सार ॥ मातली निजथानक गयो, प्रणामी नेम कुमार ॥ ४॥ खेचरी एक आवी कहे, जीत्या श्रीवसुदेव ॥ नारद मु रखथी सांजली, नवमा तुम्हें वासुदेव ॥ ५॥ एम कहे अाव्या तुरत, सां ब प्रद्युम्नने तामं ॥ परणावी बहु कन्यका, कीधां उत्तम काम ॥ ६ ॥ जी वजसा अग्नि नखें, हय गय रह नड कोश ॥ नीत वधे गोविंदने, व धते परम संतोष ॥ ७ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ॥ श्रीधर्मजिणंद दयाल जी, धर्मतणो दाता ॥ ए देशी ॥ श्रीनेमिजि नेश्वर श्रागें जी॥ हर्षथी अति माता ॥ सदु कूदे नाचवा लागे जी॥ पा मी जगत्राता॥सद्ध परमाणंद ते पामे जी॥६॥ प्राणंदपुर वसे तिणे ना में जी॥ पा ॥ १ ॥ जिन नुवनमांही मनोहार जी ॥ ह ॥ तिहां तीर्थ प्रसिद थयुं सार जी॥ पा० ॥ हरि साधवा चाल्या देश जी॥ ह ॥ नर ताईमां आणि निवेश जी ॥पा॥२॥ साथें सोल सहस राजान जी॥ह॥ बद खेचरपतिगुं कान जी ॥पा० ॥ जिहां कोटि शिला सन्निवेश जी॥हा॥ तिहां आवे जरताईश जी ॥ पा० ॥३॥ तेह नंचीने विस्तार जी ॥६॥ योजन परिमाण श्रीकार जी॥पा० ॥ सुरसमूह याश्रिता हाली जी ॥ ह०॥ तस बल परीक्षा करे चाली जी ॥ पा० ॥४॥ तिहां पहेला वासु देव अावी जी॥द० ॥ धरे वामनुजा ठावी जी ॥ पा० ॥बीजा वास देव शिरें लावे जी ॥ ह ॥ त्रीजा कंठ देशे तावे जी ॥ पा० ॥ ५॥ वक स्थलें चोथा जाणो जी ॥ ह ॥ हृदयें पंचम मन आणो जी॥पा० ॥ लावे बहा केडने देशे जी॥ह ॥ सातमा उरु लगें सुविशे जी ॥पा०॥ ॥ ६॥ ढिंचण लगें आवमा सार जी॥हा॥ नवमा चन अंगुल धार जी ॥ पा० ॥ अवसर्पिणीयें बल प्रांहि जी॥ ह० ॥ सद नरनां घटतां यांही जी ॥ पा० ॥ ७ ॥ जय जय तिहां शब्द प्रयुंजे जी ॥ ह ॥ सुर असुर सह हरि प्रजे जी ॥पा०॥ खटमासमांत्रण खम साधी जी ॥६॥ पगडी पुण्य पूरव लाधी जी॥पा॥७॥धारिका नयरीमांधाव्या जी ॥हा॥ बद Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम त्रीजो. न्य मोन्जव कोतुक नाव्या जी॥पा॥ सदु जादव निज निज ठामें जी ॥६॥ थापे हरि माहागुण कामें जी पाए॥ गुन दिवसें गुन मुहूरतें जीह सद आवे निज निज सत्तें जी ॥पा॥ सिंहासने थापी कान जी ॥हा॥ बनी बलदेवने बद्ध मान जी॥पा॥१॥अनिषेक करे मन रंगें जी॥६॥ सुर सान्निधे जादव संगेंजी ॥पा०॥ सोल सहस मलीरानान जी॥६॥ मंगल जय जय तिणे थान जी ॥ पा० ॥ ११ ॥ गंगा मागधनां पाणी जी ॥हा॥ देवता ते थानक आणी जी॥ पा० ॥ मणि कनकना कलश ते नरिया जी ॥ ह ॥ अनिषेक करे परवरिया जी॥ पा० ॥ १२ ॥ सोल स हस ते गोविंद परणे जी॥ह ॥ सहस करे बलि शरणे जी ॥पा०॥ जादवना कुमरने आपे जी॥ह ॥ शेष आठ सहस निन्न थापे जी॥पा० ॥ १३ ॥ करे विवाह मोबव नारे जी ॥ ह० ॥ हवे विसर्जे सदुने त्यारे जी ॥ पा० ॥ दशाह ते दश बलदेव जी॥हा॥ शोल सहस राजान व ली हेव जी॥पा॥१३॥ साडा त्रण कोडी कुमार जी॥हा॥ प्रद्युम्न प्रमु ख वली सार जी ॥ पा० ॥ सांब प्रमुख ते सात हजार जी॥ ह० ॥ उर्दी त महा जोधार जी॥पा० ॥ १५॥ वीरसेन प्रमुख वली जेह जी॥ह॥ एकवीश सहस कह्या तेह जी ॥ पा॥ बीजा पण केरहजार जी॥हा॥ पाले कमनी बाणा सार जी ॥ पा० ॥ १६॥ करे क्रीडा नव नव रंगें जी॥ह ॥ बदु कौतुकें अति नबरंगें जी॥ पा० ॥ कानन आराम नद्या न जी॥हा॥ सरिता सर वावि ने थान जी ॥ पा० ॥ १७ ॥ क्रीडापर वतें विचरंता जी ॥ ह ॥ निजनारी सहित सुखवंता जी॥ पा० ॥ सुरलो कमां सुरपरें जाणो जी ॥हण॥ गयो काल न जाणे तिण गणो जी ॥पा॥ ॥ १७ ॥ हवे समुऽविजय शिवा देवी जी ॥ ४० ॥ सदुनी वात देखी एह वी जी ॥ पा० ॥ कहे नेमि कुंवरने वाणी जी॥हा॥ नारी परणो एक गु । खाणी जी॥ पा० ॥१॥ अम पूरो मनोरथ पूत जी॥ह० ॥ सफलु यौवन नारी जुत्त जी॥ पा० ॥त्रण झानी नव नदवेगी जी॥हा॥ कहे नेमि जिणंद वैरागी जी॥ पा० ॥ २० ॥ कन्या जब योग्य ते लहीयें जी ॥ह ॥ तव पर| एम अमें कहीयें जी ॥ पा० ॥ ए नारी नरगनी बारी जी॥ ह ॥ हफल नववननी क्यारी जी ॥ पा॥१॥ जे मूरख लोकें सेवी जी ॥ ह ॥ सुणो माता तुमें शिवादेवी जी ॥ पा० ॥ बोलवू घटे ए Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श६ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. हगुं नांही जी ॥ ह ॥ कहे बालगोपाल एम बाहिं जी॥ पा० ॥२२॥ यतः।। ईयर महिला न रुचर, सुंदर महिलाण नबि संपत्ति ॥ एमेव विर परिव,झिएहिं दियहा गमिति ॥ १ ॥ म विनयें गंजीर कही वाणी जी, ॥हा॥ नारी प्रतिषेधे मन आणी जी ॥पा॥ जितमार कुमार श्रीनेम जी ॥ ह॥ माय ताय समकावे एम जी ॥पा॥२३॥ त्रीजे खंमें अधिका रें जी॥ह॥ चोथे ढाल प्रथम नदार जी॥पा०॥ गुरु नत्तमविजयने संगें जी॥हण॥ कहे पद्मविजय मन रंगें जी॥पा० ॥ २४ ॥सर्व गाथा॥३१॥ ॥दोहा॥ ॥ अपराजितथी इण समे, चवि जसमतीनो जीव ॥ नग्रसेन घर धा रिणी, कूखें आव्यो खीव ॥ ॥ १ ॥ रूप लक्षण गुणथी नरी, प्रसवे पुत्री जाम ॥ राजिमती थनिधा ठवे, उग्रसेन नृप ताम ॥२॥ पांमव थानक मोकले, कृष्मजी करि बहु मान ॥ इणसमे धारिकामा वसे, धनसेन अनि धान ॥३॥ कमला मेला नामथी, तेहने पुत्री एक ॥ ननसेनने थापे न ली, रूपें रति अतिरेक ॥॥ नारद जमता आविया, ते ननसेनने गेह ॥ ननसेन विवाह व्ययथी, नवि पूज्यो धरि नेह ॥ ५॥ ॥ ढाल बीजी॥ ॥ स्वामी सीमंधर वीनती ॥ए देशी ॥ कलिप्रिय नारद उतपत्या, करवा ने अनब रे ॥ सांब प्रिय मित्र घर आवियो, सागरचं ने जब रे॥ कलिन ॥१॥ थश्य कनोने पूले इस्युं, तुमो जा नामो गम रे ॥ कोक कौतुक पेखियु, कहो अम तुमें स्वाम रे ॥ कलि ॥ २ ॥ कहे रे नारद अमें पेखी युं, अचरिज मनोहार रे॥ कमला मेला धनसेननी, धूया रूपनंमार रे ॥ कलि ॥३॥ सांप्रत दीधी ननसेनने, गया कहीने आकाश रे ॥ साग र कमला मेला तणो, अयो रागी अति खास रे ॥ कलि ॥४॥ नारद कमला मेला घरे, गया तव श्म पूजे रे ॥ आश्चर्य कहो तब ते कहे, दीठा अचरिज दूबे रे ॥ कलि ॥ ५ ॥ रूपमा सागर चंदजी, कुरूपी ननसेन रे ॥ सागर रागी ते पण थर, चढयु मोहनुं धेन रे ॥ कलि ॥ ६ ॥ नार द सागरने कहे, ताहरी रागी तेह रे ॥ सागर विरहसागर पड्यो, दीये विरह दुःख देह रे ॥ कलि ॥ ७ ॥ पीत मदिरा हवे सांब जी, आवे साग र पास रे॥हाथ जाली रे सागर तणो, बहु कुमर सुविलास रे ॥कलि॥॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IuH जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो. ॥ १९ ॥ नारी जेइ निज सायें ए, उद्यानें सहु प्रवे ए, सोहावे ए, नव न व भूषणथकी ए ॥ २० ॥ पण श्रीनेमिजिणंदने, मदन खोनावी नविश के ए, धक्के ए, मारी काट्यो मूलथी ए ॥ २१ ॥ कोकिल तिहां कूजित करे, वनपालक यावी जासे ए, विलासें ए, कृष्णजी वन फल फूलियो ए ॥ २२ ॥ देवरावे तिहां, वनलक्ष्मी जोवा जाय ए, राय ए, सहुजन ऋद्धिगुं श्रावजो ए॥ २३ ॥ ते सुणी सहुजन हलफल्यो, तरुणलोक मन हरखे ए, वरखे ए, मयण' ते बाग सडासडे ए ॥ २४ ॥ चोथे खंमें बीजी ए, ढाल प्र थम अधिकारें ए, प्यारें ए, पद्मविजय नांखी नली ए ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ॥ ७० ॥ ॥ दोहा ॥ मिं # ॥ हय गय रह जड परिवस्यो, अंतेवर सहु साथ || समु विजय मुख राजनी, वली सायें नेम नाथ ॥१॥ सुर अनुत्तरथी अनंत गुण, रूपें नेम कुमार || श्वेत ते थकें, सोहे गुण श्रीकार ॥२॥ धवलतनु ने धव ल ध्वज, धवलत्र शिर जास ॥ धवल जसे बलदेवजी, रथ चाले वाम पास ॥ ३ ॥ उल्मुकनाम सेनापति, नानु नामर अक्रूर ॥ सांब प्रद्युम्न सारण निसढ, पुंरुप्रमुख वली नूर ॥४॥ नट कोटीथी परिवस्यो, हरि बलि नेमी ती न ॥ नगर नागरी देखती, करी कटाक्ष ते पीन ॥ ५॥ नजर तरी जे कपरें, तास प्रशंसे तेह ॥ यावी वाद करे इस्यो, जांखे आप सनेह || ६ || कोइ प्रशं से कान्हने, कोइ प्रशंसे नेम ॥ कोइक श्रीबलदेवने, स्तवती धरती प्रेम ॥ ७ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ ॥ तन मन कीधुं तुनें नेट || महारा वाल्हा ॥ तन० ॥ ए देश । ॥ कानजी जावे उद्यान ॥ ए कली ॥ रमवा चालो जाइएं वन मां, पडथी थाये विन्नाण || मारा वाल्हा ॥ क्रीडावसंतनी करवा चाल्या, बेसी निज निज यान ॥ मा० ॥ का० ॥ १ ॥ तिहां मंदार ने दमलो मरु , कुंद चंदननां थान ॥ मा० ॥ जाइ जूई ने केतकी वेली, वली रुपानां रान ॥ मा० ॥ का० ॥ २ ॥ पारिजातने धातकी सल्लकी, रायण चूत मान ॥ मा० ॥ कोरिंट ने मंदार मनोहर, जोवे नेम बलि कान्ह || मा० ॥ ॥ का० ॥ ३ ॥ रुखनी जाति न जगमां एहवी, न जडे तेह नद्यान ॥ ॥ मा० ॥ सदु जादव तिहां केलि करता, ज्युं नंदन सुर तान ॥ मा० ॥ ॥का ० ॥ ४ ॥ खाद्य खाये हसे खेले रंगें, केइ करे मद्यपान ॥ मा० ॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. हा ॥ कृष्मगुणहेतु इम जाणीयें, वली गुण कहुँ केहा ॥ वा० ॥ २५ ॥श्म सखी वात करतां थकां, कही सातमी ढाल ॥ पद्म कहे सांजलो नविज ना, प्रनु चरित्र रसाल ॥ वा॥ २६ ॥ सर्वगाथा ॥ २२५ ॥ ॥दोहा ॥ ॥ राजिमती इण अवसरें, मूके दीर्घ निसास ॥ तव सहियर पूछे इस्यु, करती कोडि विखास ॥१॥ आग्रह करी जब पूबीयुं, सा कहे तव सवि पाद ॥ दाहिण फुरके लोयणं, अपमंगल अविवाद ॥ २ ॥ हृदयमांहि ले दाय जिम, बुरीयें दे तेम ॥ जगअभुत जगवालहो, देखतां प्रनु नेम ॥३॥ इम सुणीने सहियरो कहे, मत कहे एह वयण ॥ अपमंगल दूरें गयां, सांजल रे अम वयण ॥॥ निरुपम नोग तुमें नोगवो, निरुपम ने मनी संग ॥ विलंब नहिं एहमां हवे,करजो नवनव रंग ॥५॥ मनवनन तुज वालहो, ए आव्यो निरधार ॥ मत कायर था एहमां, एम जंपे सदु नार ।। ६ ॥ण अवसर जगतातजी, आगल चाले जाम ॥ परमेश्वर जिनजी सुणे, करुण दीन स्वर ताम ॥७॥ ॥ढाल आतमी ॥ ॥ नंद सलूणा नंदना रे लो ॥ ए देशी ॥ नेमजी कहे सुण सारथी रेलो, कुण रुवे ने दुःखनारथी रे लो ॥ केवल करुणाहेतु रे लो, तव सारथी श्म कहेत हे रे लो ॥ १ ॥ केम पूडो प्रंनु जाणता रे लो, तुम वि वाहें पशु प्राणता रे लो ।। जादव नोजन कारणे रेलो, एह पशु संहा रणे रेलो ॥२॥ गाम नगरवासी तणा रे लो, गुफा पर्वत निकुंज घणारे लो ॥ जलचर थलचर ननचरा रे लो, जीव घणा नेला कस्या रे लो ॥३॥ आणी बांध्या एहमारे लो, नहीं श्वासोबास जेहमां रे लो॥ निज निज नापायें रडे रे लो, मरणना नयथी तडफडे रे लो ॥ ४ ॥ नेम कहे वैरा गीयो रे लो,रथ फेरो सोनागीयो रे लो॥जोऊ नजरें माहरी रे लो,एहनो नहिं को वाहरी रे लो ॥ ५॥ मृग सूअर घणा रोकडांरे लो, गामर स सला नेंसडा रे लो ॥ राशिब केश पांजरे रे लो, बेडीव विनती करे रे लो ॥ ६ ॥ मोर तित्तर लावां घणां रे लो, पंखी लखो नवि जाये ग एयां रे लो ॥ गोह नकुल बहु रंधिया रे लो, निर्दय पुरुचे वेधिया रे लो ॥७॥ शून्य ने संत्रांत लोयणां रेलो,जीवितनी वांग तणा रे लो ॥प्रच Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. ॥दोहा॥ ॥ लघुनाई जिन नेमनो, रहनेमी जस नाम ॥ राजिमती रागीकरण, जाये नित तस धाम ॥ १ ॥ फल वस्त्रादिक मोकलें, पण ते जाणे एम ॥ नेम स्नेहथी मोकले, देवर ए रहनेम ॥ ३॥ शुरू हृदयथी ते लिये, प ण जाणे रहनेम ॥ फल वस्त्रादिक तो लिये, जो मुफ ऊपर प्रेम ॥३॥ हांसी करतां एकदा, कहे सुंदरी सुण वाण । नारी रतन तुफ परिहरी, मुफ नाता ते अजाण ॥४॥ पण तुज कांहि गयुं नथी, नोगव मुजगुं जोग ॥ फरि फरि यौवन दोहिलुं, दोहीलो ए संयोग ॥५॥ रहनेमी कामी तणो, राजिमती लही नाव ॥ धर्म कुशल धर्म वयणथी, पडिबोहे सदना व ॥ ६ ॥ पण नवि पडिबोही शकी, निजदेवर जिनचात ॥ हवे बीजे दिन झुं करे, ते सुगजो अवदात ॥ ७ ॥ ॥ ढाल चौदमी॥ ॥ दे थाहरी मुफ पांखडी जी ॥ ए देशी ॥ एकदिन राजीमती सती जी, पीवे पय असराल ॥ रहनेमी आव्यो तदा जी, सा जांखे तिण ताल के ॥१॥ देवर माह्या हो राज वारु, मारी वात सुणो सुखकारु ॥ ए अांक णी ॥ कनकथाल लावो तुमें जी, वमन करूं तेह मांही ॥ ते लाव्यो उता वलो जी, धरतो हर्ष उमाहि के ॥ दे० ॥ ५ ॥ तेहमां वमन करी कहे जी, पान करो तुमें एह ॥ ते कहे केम ढुं कूतरो जी, पान करूं नहिं रेह के ॥ दे० ॥३॥ सा कहे जो जागो तुमें जी, तो मन करो विचार ॥ वमन क री मुफ्रने गया जी, जिनवर नेम कुमार के ॥ दे० ॥ ४ ॥ दुःखखाणी जा णी अंगना जी, त्याग करी गया तेह ॥ ते पीवा इबो तुमें जी, मांस रुधिर नरी देह के ॥ दे०॥५॥ तेहथी तुम सुख केम थशे जी, बो प्रचना लघ चात ॥ एह विमासो केम नहिं जी, एहथी नहिं सुख शात के ॥ दे॥६॥ कनककुंमी अशुचिनरी जी, कनकपिधान ते जाण ॥ बाहिर सुंदर देखीयें जी, माने सार अजाण के ॥ दे० ॥ ७ ॥ यतः ॥ सवैयो ॥ देह अचेतन, प्रेतदरी रज, रेत नरी, मल खेतकी क्यारी ॥ व्याधिकी पोट, अराधिकी Jट, उपाधिकी फोट,समाधिसों न्यारी ॥ रे जीन देह, करै सुखहानि, इतौ परि तो तोहिं, लागत प्यारी॥ देह तो तोहि, तजैगी निदान पै, तुहि तजे न क्युं, देहकी यारी ॥ १ ॥ वीजचंचल जेम नेहलो जी, अथवा रंग प Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो. ॥ अथ चतुर्थखंमस्य वितीयोऽधिकारः प्रारज्यते ॥ ॥दोहा॥ ॥ जुगला धरम निवारणो, रुपनदेव नमि पाय ॥ बीजा ए अधिकारमां, मुनिवर गुण कहेंवाय ॥ १॥ इणि अवसर हवे पांमवा, नित शैपदी जे नार ॥ साथें केलि कीडा करे, माने सफल अवतार ॥ २ ॥ण अवसर झेपदी घरे, नारंद थाव्या जाण ॥ मान न देवे झेपदी, रीष चढी तिण वाण ॥३॥ नत्पत्तिया अाकाशमां, धातकी जरतें जाय ॥ नाम अमरकं का नयर, जिहां पद्मोत्तर राय ॥ ४ ॥ ते पण स्त्रीनो लोलुपी, नारदने क हे एम ॥ मुफ अंतेनर सारिखं, कहीं ले के नहिं केम ॥ ५ ॥ ऋषि कहे क पमंक परें, नवि जाणे कांय वात ॥ पांमव घर झेपदी जेसी, त्रिनुवनमा न विरव्यात ॥ ६ ॥ राय मित्र सुर मोकली, तेडावी ते नार ॥ पद्मोत्तर क हे सुंदरी, बीहिक न धरे लगार ॥ ७ ॥ मुजणुं नोगव नोग तुं, शेपदी बोले ताम ॥ मासांतें कहेशो तिको, करशुं तुमचं काम ॥ ७ ॥ ौपदी पण ते महासती,करे तपस्या सार॥हवे परनातें पांमवा,नवि देखे निज नार॥॥ ॥ ढाल पहेली॥. ॥ एकवीशानी देशी ॥ हवे शैपदी रे, खोल करणने नीसया ॥ देश न यरने रे, वनमा जोवा सदु मल्या॥नवि लाधी रे, शुदि कांश शेपदी तणी॥ पांव माता रे, आवी कहे कृमजी नगी॥१॥०॥ कहे कृष्णने झेप दी कोइ, देव दानव हरि गयो ॥ कृष्ण सुगीने थया शोकातुर, कुण नाय वयरी थयो ॥ नारद मुख वली शोध साधी, पांव जेई साथ ए॥ कृष्ण सायर तटी आराधी,मागध तीरथ नाथ ए ॥ २ ॥ढाल॥ तव सुस्थित रे,क हे सुणो नारायण तुमो ॥ झैपदीने रे, लावी आपुं तुमने अमो ॥ पद्मरा जा रे, नयर सहित नाखू सायरें। कहे कृष्णजी रे, एह न कर मायरे ॥३॥०॥ जावू माहरे तिहां तेणे तुमें,मारग आपो तिहां जश् ॥ जीती ते हने आईं वहेलो,ौपदी साथें लश् ॥ब रथ जावे मार्ग ते तो, आप्योतव हरि जाय ए॥ जीते समरे तेह नरपति,ौपदी शरणे बाय ए॥४॥ढाल। मोरारीयें रे, मूक्यो तेहने जीवतो॥ौपदी लेई रे,वलीयो शंख वजावतो॥ मुनि सुव्रत रे, तिहां जिन कपिल नारायणो॥ सुणीयो शंख रे, पूले स्वामी Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम चोथो. एकुण तणो॥॥ कहे प्रनुजी तुम समोवड, जंबूनरत वासुदेव ए॥ इत्यादिक सदु सुणी नम्मह्यो, मिलवाने नरदेव ए.कहे जिनजी चक्री अरिहा, विष्णु पण न मले कदा ॥ श्म सुण्युं पण हर्ष वाह्यो, आव्यो सागर तट तदा ॥६ ॥ ढाल ॥ शंख पूख्यो जी, कृष्णने कहे पाबावलो ॥ शंख पूरीजी, कृष्ण कहे तुमें सांजलो ॥ दूर आव्या जी,एह वात तुमें मत कहो ॥ असें जी,शंख मल्या ते पण लहो ॥ ७ ॥ ॥ लहो अरुं हवे तट जइ, कम पांझवने कहे ॥ तुमें गंगा पार पामो, जिहां तरंग महोटा वहे ॥ सुस्थित सुरने मली हुँ पण, आq j वेगो वही ॥ गंगा पांमव तरी विचारे, कम बल जोश्य सही ॥ ॥ ढाल॥ जोजन बासठ रे, एह तरंग वहे घणा ॥ केम यावशे रे, नारायण नावा विना ॥ एम चिंतवी रे,नावा नवि मूकी तिणे ॥ कंसारीय रे,कार्य करी अाव्या तिहां कणे ॥५॥ ० ॥ तिहां करें प्रावी गंगा तरवा, एक हाथमां रथ धरी॥ गंगामां परवेशीयें, एम विचार कस्यो हरी ॥ कृष्ण थाको चिंतवे अहो, पांमुसुत ब लीया घणा ॥नावा विए जुगंगा तरिया,करे कृम विश्रामणा ॥१०॥ढाल।। नदी तरीने रे, पांमव पासे भावीया ॥ पांमवें पण रे, व्यतिकर सर्व सुणा वीया ॥ सुणी कोप्यो रे,गोविंद गंगा कावें ए॥ रथ नांगे रे,लेश लोहनी ला - ए ॥ ११ ॥ ॥ नांगीरथने कहे इणि परें, हजी बल जोवू अ ॥ अपर कंका जीत कीधी.तेहथी बल कुण पडें ॥ जा उप्टो माहरा मुखथी, एम कही झारिका गया ॥ पांमव पण निज नयर अाव्या,मन सचिंता ना विया ॥ १२ ॥ढाल॥ कहे कुंतिने रे,कुंती पण वासुदेवने ॥ कहे सांजल रे, जरत अरध तुझ सेवने ॥ माहरा सुत रे,कहे तुं किहां जश्ने रहे॥ कहे न रपति रे, तुक सुत दक्षिण दिशि गहे ॥ १३ ॥ ॥ तिहां जश्ने उदधि कांते, नवं नगर निवास ए ॥ पांमु मथुरा नाम थापी, रहो सुख आवास ए॥ कुंती पण जइ पुत्रने कहे, पांमवें तेम कीध ए ॥ बीजे अधिकारें ए पहेली, ढाल पद्म सुसि६ ए ॥ १४ ॥ ॥ सर्व गाथा ॥ २३ ॥ ॥दोहा॥ ॥ एक दिन विचरंता प्रनु, नेमिनाथ नगवान ॥ श्राव्या बहु परिवार थी, नदिलपुर उद्यान ॥ १ ॥ सुलसा नाग पहेलां कह्या, तेहना जे खट पूत ॥ कन्या बत्रिश परणीया, प्रत्येकें बहु वित्त ॥ २ ॥ अनुक्रमें प्रनु दे Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. शना सुणी, चरमशरीरी तेह ॥ व्रत ले पूरव जण्या, द्वादशांग गुणगेह ॥३॥ ते प्रनु सार्ने विचरतां, तप तपता मुनिराय ॥ विहार करंता नेम जी, अनुक्रमें झारिका जाय ॥४॥ समवसस्या सहसावनें, हवे ते खटक पि राय ॥ बहने पारणे पूबीने, दो दो गोचरी जाय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल बीजी॥ ॥ धन दिन वेला धन घडी तेह ॥ ए देशी ॥ वे ये रे मुनिवर गोचरी जाय, द्वारिकामा समिति ते सोधता जी ॥ अनिकजसा ने अनंतसे न दोय,देवकीने घर जाय इंडिय रोधता जी ॥ १ ॥ देखी रे कृम सरीखा ते साध, मोदकसिंह केसरीया रागथी जी ॥ पडिलाने देवकी ते ऋषि रा य,माने रे मुनिवर अाव्या नागथी जी ॥ ॥ ते कपि वहोरी जाये रे ता म, अजितसेन निहतारी आवीया जी ॥ ते पण तेमहीज वोहरी रे जाय, देवजस शत्रसेन पान धारीया जी ॥३॥ देवकी रे संशय पामी ताम, प्रले रे कर जोड। शपिराय जी रे ॥ स्वामी रे गुं तुम दिशि मोह थाय, अथ वा रे मुफ मति मोह ते थाय जी रे ॥ ४ ॥ अथवा रे द्वारिकामां अन्न पान,दुःकर ले केम मुफने ते कहो जी ॥ मुनि तव बोले नहिं कोई वात, अमे रे सहोदर खट सरिखा लहो जी॥५॥दीदा रेलीधी प्रनुजीनी पास, फीरता रे गोचरीआव्या तुम घरे जी ॥ चिंते सा तिलसम तिल पण नांहि, केमरे ए देवू नारायण परें जी ॥ ६ ॥ पूर्वे रे अयमत्ते रीखि राय, नांच्या रे अड सुत मुझने जीवता जी ॥ जश्ने रे पूजे नेम जिणंद,नेमजी कहे सांनलियें तुज सुता जी ॥ ७ ॥ संशय नारव्यो सघलो रे तास, कर तीरे खेद देवकीने प्रनु कहे जी ॥ म करो रे खेद कस्यां कर्म जेह, पामे रे दुःख ते कर्मनदय जहे जी ॥ ॥ पूर्व नवें तुमें शोक्यनां रत्न,लीधां ने दीधुं एक तो रोवतां जी ॥ सांजली निंदे मुरित ते आप,पहोता रे घर हवे पुत्रने वांडतां जी ॥ ॥ ॥ नारायण पूढे श्यो तुम शोक, सा कहे पुत्र न पाल्यो निज करें जी॥ कहे रे कंसारि म करो खेद, पुत्र होशे तुम कर ग्रं तेणी परें जी ॥ १० ॥ देव आराध्यो आव्यो ते देव, सुर कहे कारण कहो तव हरि कहे जी ॥ वां रे लघुनाता तव देव, बोले रे होने पण दीदा लहे जी ॥११॥ अनुक्रमें प्रसव्यो पुत्र पवित्र, गजसु कमाल ते नामें वालहो जी ॥ बदु नृप कन्या परण्यो तेह, नवना Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. ग्यो ते महानाग ॥ जन्मारगे जातो तेम वाल्यो, जेम अंकुशे नाग ॥ ॥ १० ॥ जोग तणीला बांझीने, प्रनुजी पास बालोवे ॥ पश्चात्ताप क रंतो मुनिवर, कर्म कलंकने धोवे ॥ अ० ॥ ११ ॥ एक वरस बद्मस्थ र हीने, मुनिवर गुन परिणामें ॥ घाती करमनो घात करीने, केवलज्ञान ते पामे ॥ अ॥ १२ ॥ धन्य राजीमती धन्य ए रिखजी, जिणे सास्यां नि जकाज ॥ विहार करे प्रनु अन्यदेशे वली, जव्यकमल दिनराज ॥ अ० ॥१३॥ प्रनुजी पानधास्या फरी रैवत, पीतांबरें सुणी वात ॥ निजसुतने हरि इणि परें नांखे, प्रनु रैवत्त आयात ॥०॥ १५ ॥ जे प्रनुजीने पहे ला वांदे, तेहने अश्व हुँ आपुं॥ तेहने मानी धन धन नां, हृदयमांही पण थापुं ॥०॥ १५॥ पालकनाम अजव्य ते कठी, रातने पाबले या म॥प्रन वांदीने इणि परें नांखे, थाजो सारखी नाम ॥ अ०॥ १६॥ दूर थकी एम कहीने बलीयो, हवे जे सांब कुमार ॥ घरमां ती नावथी वां दे, आदर नक्ति अपार ॥ अ० ॥ १७ ॥ हरि हवे परमेश्वरने पूजे, पहेला वांद्या केहणे ॥ जिम निर्णय करी अश्व अनोपम, आपुं हरखें तेहने ॥ ॥ १७ ॥प्रनु कहे इव्यथी पालकें वाद्या, नावथी सांब कुमार ॥ जेह अ जव्य प्राणी होय तेहने, आवे न नाव किवारें अ० ॥१५॥ पालक काढी मूक्यो घरथी, सांबने अश्व ते आप्यो । सांब नपर नारायणने ब दु, हृदय प्रमोद ते व्याप्यो ॥ अ० ॥ २० ॥ चौथे खमें बीजे अधिकारें, नांखी बही ढाल ॥ ए अधिकार संपूरण हू, हून हर्ष विशाल ॥ अ० ॥१॥दमाविजय जिननक्ति अनोपम, उत्तम नविक रसाल ॥ पद्मवि जय कहे बहुविध करता, पामे मंगलमाल ॥ अ॥२२॥ सर्वगाथा१६५॥ इतिश्री शैपदीप्रत्याहरपागजसुकमालढंढणऋषिप्रमुखचरित्रवर्णनोनामा च तुर्थखमे दितीयोधिकारः संपूर्णः ॥ २ ॥ ॥ अथ तृतीयाधिकार प्रारंनः॥ ॥ शारदगुरु जिनवर नमी, हवे त्रीजो अधिकार ॥ चोथा खंझ तणो कहूं, सुणतां जयजयकार ॥१॥ एक दिन नेम समोसया, करतानविन पगार ॥ हरि सामग्री मोटिकी, वंदन करे तैयार ॥ ॥ तिण अवसर घारापुरी, दीती घणुं नक्किठ॥ यादव पण सुखीया घj, निजनयणे करी Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. वृंद रे, धन्य नांखे म गोविंद रे ॥ क ॥२०॥ राजीमती रुक्मिणी मुहा रे, धन्य जादवनी नार ॥ गृहवास बमीने जिणे, लीधो वर संजम नार रे, इम नावना जावे उदार रे, पण वेदननो नहिं पार रे, थयो वात प्र कोप प्रचार रे ॥ क० ॥ २१ ॥ ते पुःखमा वली सोनरी रे, धारिका नय रीनी शदि॥ सहस वरस मुफने थयां, पण एम मुफ किणही न कीध रे, जेम दैपायनें फुःख दीध रे, हुँ एकलमल परसिद रे, पण ए सुःख देवा गि रे॥ क० ॥॥ जो दे हवे तेहने रे, तो क्ष्य थाj तास ॥ तास उदरथी कुल सवे, काटुं पुर क्षि विलास रे, इम रौइध्यान अन्या स रे, बूटो तिहां आयुपास रे, मरी पोहता नरकावास रे ॥ क० ॥ २३ ॥सोल वरस कुमरपणे रे, बपन वरस मंमलीक ॥ नवशे याविश जा पियें, वासुदेवपणे तह कीक रे, जिहां कर्म कस्यां तिहां तीक रे, त्रीजी नरक दुःख बीहिक रे, पहोता तेहमां न अलीक रे॥क०॥ २४ ॥ चोथे खंमें पूरण थई रे, प्रगट ए पांचमी ढाल ॥ पांच ढालें पूरो थयो, त्रीजो अधिकार रसाल रे, गुरु उत्तमविजय कृपाल रे, तस शिष्य पद्म कहे बाल रे, सुणतां होय मंगलमाल रे ॥क० ॥२५॥ सर्वगाथा ॥१५२॥ इतिश्रीम तमो॥धारिकादाह कृष्णावसानकीर्तन नामा चतुर्थखमे तृतियोऽधिकारः॥ ॥अथ चतुर्थखंमस्य चतुर्थाधिकार प्रारंनः॥ ॥दोहा॥ ॥ श्री अरिहंत उपगारीया, तिमसिज जगवान ॥ सूरि वाचक मुनि वर नमुं, हैडे पाणी ध्यान ॥१॥ पद्मपत्र पुटमां नरी, जल लेाव्या राम ॥ अपशकुनें करी वारिया,स्खलना लेहता ताम ॥२॥ आव्या कृष्ण पोढ्या जिहां, कंध्यां दीसे एह ॥ एम चिंती ऊना रहे, एक क्षण श्रीबल ते ह ॥३॥ मुख ऊपर बहु मदिका, देखीने बलदेव ॥ वस्त्र दूर करिने जुवे, मृत जाण्या ततखेव ॥४॥ नेह घणा नाइकपर, दुया जेम वजघात ॥ मा आवीने तिहां, कीधो पृथ्वीपात ॥ ५ ॥ शीतल वातादिकथकी, चे तन पाम्या जाम ॥ सिंहनाद मूके तिहां, माहानीम तव राम ॥६॥ श्वाप द सदु कंप्या तिहां, पडे ते पर्वतशृंग ॥ राम कहे मुफ भ्रातनो, किण क यो गातर जंग ॥ ७ ॥ प्रगट था ते पापीयो, जो दोय मुजट सतेज ॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम चोथो. ३४५ सुप्त प्रमत्त बालक ऋषि,स्त्री कुण हणे गतहेज ॥७॥ एम महोटे शब्दें करी, रोता नमे वनमांहि ॥ नवि दीठो हणनारने, पाबा आव्या त्यांहिए॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ॥श्या माटे साहेब सामुं न जून ॥ ए देशी ॥ श्या माटें बंधव मुखथीन बोलो, आलिंगन करीनासे॥मोरारी रे॥गुनह विना मोविंदजी इणि परें, नवि बोलो श्ये याशें॥कंसारी रे ॥१॥ श्या०॥ अच्युत ए फुःख में न ख माये, या वनमां वनमाली॥ मो० ॥ कृष्णविना जे कण एक जाये, वा त वरस सो वाली ॥ कं० ॥ २ ॥ श्या० ॥ साल्यो पाल्यो विष्णु उस्यो, हाथे हरि दुलराव्यो ॥ मो० ॥ नाइलघु पण गुण बदु जेहमां, किणे वि योग कराव्यो ॥ कं० ॥३॥ श्या० ॥ आगलथी बोलता इंशनुज, आज बोलाव्या न बोलो ॥ मो० ॥ दाधा ऊपर खूण न दीजें, वयण नारायण बोलो ॥ कं० ॥ ॥ श्या० ॥ शारंगधर अम्ह सार करो ने,पुरुषोत्तम कहे वा ॥ मो० ॥ दामोदर तुमें मारी वेला, केम जनार्दन था॥ क० ॥ ॥ ५ ॥ श्या० ॥ पूरव प्रीति पीतांबर किहां गई, विल वाणी प्रकासो॥ ॥ मो० ॥ में अपराध न केशव कीधो, श्ये रूठा ते विमासो ॥ कं० ॥ ॥ ६ ॥ श्या० ॥ चतुर चतुर्नज एम न कीजें, रुषां रामनी साथें ॥ ॥ मो० ॥ सोमसिंधु सोमदृष्टि जूठ, उठो तुमें यनाथ ॥ दैत्यारी रे ॥७॥ ॥ श्या० ॥ वार घणी मुऊने जे लागी, तिणे न बोलो जगनाथ ॥ बाणारी रे॥ अज अपराध ते सघलो खमीयें,नही करूं फरि गोपीनाथ॥ नरकारी रे ॥॥श्या०॥ श्रीधर सूवानी नहिं वेला,सविता शोरी जाय ॥मो॥ विश्व रूपी तुमें देवकीसूनु, केती अरज कराय ॥ कं० ॥ ए ॥ श्या० ॥ माधव मनमां आणी कठो, वासुदेव वैकुंठ ॥ मो० ॥ पोशय पद्मनान विश्वनर, मन नवि कीजें 5 ॥ कं० ॥१०॥ श्या० ॥ श्रीवशवत्शधर एम रोतां, रात गइ उग्यो दिन्न ॥ मो० ॥ कहे रे वली मुकुंद सनातन, कठो मधुसूद न ॥ कं० ॥ ११ ॥ श्या० ॥ नवि कठे ज़्यारे शशिबिछ, तव पांमवायन मोही॥मो० ॥ वृषाकपि लीधा खंधोले, बलन बलिया तोही ॥०॥१२॥ ॥ श्या० ॥ वेधसकहेतां वन वन जमता, वहेता धरणीधर काय ॥ मो० ॥ पुष्प प्रमुख लावी विधुने अरचे, सुवर्ण बिंड नाय ॥ क० ॥१३॥ श्या०॥ न महिना लगें एम नित अरचे, ऋषीकेश केरे रागें ॥ मो० ॥ एम न Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. मतां वर्षाऋतुसमयें, सिहारथ सुर जागे ॥ क० ॥ १४ ॥ श्या० ॥ बलदे वनो रथकार जे हुतो, तिणे जाएयु हिनाणें ॥ मो० ॥ तेह चिंते त्रिवि कमरागें, एम करे एह अन्नाणे ॥ क० ॥ १५ ॥ श्या० ॥ श्रीपतिमृतक वहे ए हलधर, माहारे प्रतिज्ञा एह ॥ मो॥ श्रापदमा प्रतिबोध ते देवो, एम चिंतवि थावे तेह ॥ क० ॥ १६ ॥ श्या० ॥ एक पाषाण शकट विकू र्वी, पर्वतथी उतरंतो ॥ मो० ॥ कणबीनू रूप करी तिहां बेतो, ते मुशली निरखंतो ॥ क० ॥ १७ ॥ श्या०॥ समनूमि का शकट ते नांग्युं, सांधवा बेगे तेह ॥ मो० ॥ बल बोले रे करे गुं मूरख, केम संधाये एह ॥ कल ॥ १७ ॥ श्या० ॥ तव ते बोल्यो सुणियें गदाग्रज, जुझ सहसें न हणीयो॥ मो० ॥ ते विषु जुझ मुवो मुफ केशी, ते तें मन नवि गणीयो॥ हलधा री रे ॥ १॥ श्या० ॥ जीवशे जो शशिबिंऊ ताहरो, तो ए शकट संधाशे ॥ ६०॥ तव रूशी बलन ते चाल्या, नवि मरें जिन एम नासे ॥६॥२०॥ श्या० ॥ पनर उपर पद्मिनी वावे, तव देवने बल बोले ॥ ह ॥ पर क पर कज केम कगे, मूरख नहिं तुज तोले ॥हा॥१॥श्या० ॥ देवक हे तुफ अनुज जो जीवे, तो ए कमल ते जगे॥ ह० ॥ एम को रूठा ते हलधरजी, वली आगल जइ पूगे ॥ ह० ॥ २२ ॥ श्या० ॥ दाधो वृद ते जलथी सींचे, बल देखी कहे तेहने ॥ ह ॥ बलीया वृद कहो किम कगे, तहारो श्राशय मुक कहेने ॥हा॥ २३ ॥ श्या॥ते कहे विष्वक्सेन जो जीवे, तो ए वृद्ध ते फलशे ॥हा॥ आगल जश्वली देव देखाडे, ते देखीबल वलशे॥हा॥श्ाश्या०॥ गोपी रूप करीले दूर्वा,गोशब वदने देवे॥हा॥ बल कहे केम मुदा चरशे, तव ते देव ते कहेवे ॥३०॥२५॥श्या०॥ जो ए पूर्णपुरुष तुफ बांधव, जीवशे तो ए खाशे ॥ ह ॥ ते सुणी श्री बलन विचारे, गुंए वात खरी थाशे ॥ ह ॥ २६ ॥ श्या० ॥ चोथे खं में ने अधिकारें, बलन प्रतिबोध लहेशे ॥ ह ॥ पहेली ढाल पद्मविजयें कही, मंगलिक वात सुर कहेशेः॥ ह ॥ २७ ॥ श्या० ॥ सर्व गाथा ॥३६॥ ॥दोहा॥ ॥ इत्यादिक दृष्टांतथी, चिंतवे श्री बलन ॥ केम सहुँ ए नांखे इस्यु, मरण लह्या उपें॥ १ ॥ण अटवीमां को नहिं, दीसे मागस रूप ॥ एह पुरुष केम एकलो, कहेतो जिष्णु स्वरूप ॥ २ ॥ कोइक कारण देखी Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथनो रास खंम चोयो. ३४७ ये, एम चिंते हलधार ॥ सुरवर ते परगट थइ, बोले वाणि तिवार ॥३॥ सिदारथ सारयि तj, रूप करी कहे एम ॥ तुम वंचनें दुं धावियो, प्र तिबोधनने प्रेम ॥ ४ ॥ जराकुमर बाणें करी, जलशय पाम्या काल ॥जे प्रनु नेमे नांवीयुं,ते तुं वचन संजाल ॥ ५ ॥ इत्यादिक सवि सांजली, प्र तिज्या बलदेव ॥ ते सुरने कहे गुं करूं, गयो बन्न पुरख देव ॥ ६ ॥ सुर कहे व्रत ले घटे, तुमें जिन नेमना नाय ॥ सुणि एम सुर बल दाह दे, च क्रपाणिनी काय ॥ ७॥ विद्याधर मुनि नेमजी, मोकले जागी नाव ॥ ब ल पण संजम आदरे, जे नवसायर नाव ॥ ७ ॥ ॥ढाल बीजी॥ ॥ लावो लावोने राज, मोघां मूलां मोती ॥ए देशी ॥ वंदो वंदो रे था ज, एहवा मुनिवर वंदो॥मागी तुंगी पर्वत ऊपर,जश्ने पाप निकंदो ॥वं० ॥१॥ तेह गिरी ऊपर तप करतां,सिमारथ रहे पासें ॥ एक दिन मासख मणने पारण, जाये गोचरी प्रासें ॥ वं० ॥ २ ॥ एक नारें दीठा ते मुनिव र, कामदेवने रूप ॥ कूवा कांठे ऊजी मोही, निरखे करि करि चूंप ॥ वं० ॥३॥ घटसाटें निजपुत्रने फांस्यो, मुनिवर पण ते देखी ॥ नारीने कहि बलन वन चाव्या, गोचरी पण कवेखी॥०॥४॥ धिग मुफ रूपयन थर्नु कारण, नवि आई पुरमाही ॥ काष्ठहारादिक पासें लेलं, निदा रहि ने त्यांही॥०॥५॥तिहां जकुकर तप बद करता, काष्ठहारादिक पासें ॥ निदा लश्ने पारणुं करता, एक कर्म दयनी धाशें ॥ वं ॥ ६ ॥ काष्ठाहारादिक जर ते पुरमां, राजाने कहे वात ॥ एक पुरुष बलवंत तप स्वी, ए गिरि ऊपर ख्यात ॥ वं० ॥ ७ ॥ राजा चिंते शंका पाम्यो, राज्य वा थकी मोहोशे ॥ ए तपy फल जाणुं निश्चे, राज्य लखमी मुफ जोशे ॥ वं० ॥ ॥ मारुं बागलथी एम चिंती, सेना ले चतुरंग ॥ बल विंट्या तव सिमारथ सुर, सान्निधि करे उबरंग ॥ ॥॥ सिंहरूप तिहां महान यकारी, ते पण देखे अनेक ॥ देखी चमक्यो राजा प्रणम्यो, मुनिने धरिय विवेक ॥ ५० ॥ १०॥ राजा निजस्थानक ते पहोतो, हवे बलने उपदेशे॥ वाघ प्रमुख तिहां शांत थईने, मुनि पासें उपवेशे ॥ ॥ ११ ॥ केशक श्रा वक केश्क नश्क, केश करे कानस्सग्ग ॥ केशक अगसण के तपस्या, क रता पशुना वग्ग ॥ ५० ॥१२॥ मांस थाहार त्याग करे केई, केश रहे नि Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. त पासें ॥ तिर्यंचरूपें शिष्य तणी परें, दीसे गुन अन्यासें ॥ ॥ १३ ॥ एक मृगलो जाति समरणथी, मुनि पूरव नवने हें ॥ मुनिवर साथे जाय ने आवे, सेवा करे निज देहें ॥ वं०॥ १४॥ काष्ठहार मुख खोले वनमां, ते हरणो मुनि माटें ॥ गुड़ बाहारादिक देखी नासे, मुनि चालो ए वाटें ॥ वं० ॥ १५ ॥ मुनि पण तस आग्रहथी जाये, पारणे लेवा आहार ॥ एम दिन दिन करतां एक दिन मृगें, दीठा तिहां रथकार ॥ वं० ॥१६॥ आहार देखि सुजतो ते मृगलो, शानायें मुनिने नांखे ॥ एम कही मुनि वर बागल चाले, मृगलो मारग दाखे ॥ ॥ १७ ॥ रथकारें दीठा मुनि वरने, मासखमण तपकारी ॥ण अटवीमां कल्पतरुपरें, मुनिवर ए नि रधारी ॥ वं० ॥ १७॥ मुफ लगें किहांथी एह तपस्वी, माहारूपश्वी शां त ॥ महातेजस्वी माहागुणवंता. दीसे एह महांत ॥ वं० ॥१५॥ चोथे खंमें ने अधिकारें, बीजी ढाल रसाल ॥ पद्मविजय कहे रथकारकनां, जा ग्यां जाग्य विशाल॥०॥२०॥ सर्व गाथा ॥ ६ ॥ ॥दोहा॥ ॥ अहो नाग्य आज माहरु, थाव्या श्रीज्ञषिराय ॥ पदकज प्रणमे साधना, आणंद अंग न माय ॥ १ ॥ स्वामी मुफ पावन करो, ब्यो ए गुरू आहार ॥ मुनि पण योग्य जाणी हवे, चिंते श्म निर्धार ॥२॥ शुद्ध पात्र को पेखीयें, जो नवि लावु याहार ॥ तो पुण्यमां अंतरायनो, कारण था निरधार ॥३॥ करुणानिधि एम चिंतवी, निरपेदी निजदेह ॥ मृगलो मन हरखे घj, आहार लिये मुनि तेह ॥ ४ ॥ मुनि रथकारक देखीने, मृगलो चिंते एम ॥ धन्य ए रथकारक जिवं, मुनि पडिलान्या के म ॥ ५ ॥ धन्य एह गुरु निःस्टही, तारण तरण जहाज ॥ ढुं नवि काहि करी शकुं, धिक जमवारो आज ॥ ६ ॥ धर्म ध्यान ततपर निहुँ, कना डे एम जाम ॥ यदी तरुमाल तिहां, त्रूटी वायरे ताम ॥७॥ चंपायात्र एये जणा, काल करी ततखेव ॥ पद्मोत्तर वैमानमां, ब्रह्मलोकें सहु देव ॥७॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ माली केरा बागमां ॥ मन जमरा रे ॥ ए देशी ॥ सो वरस ब्रत पा लीयुं मुनिराजे रे, दे उपयोग ते राम ॥ देव विराजे रे ॥ मार्ज देखे त्रीजी नरकमां दु:ख लेहता रे, वैक्रियशरीर करे ताम॥ सुख बद वहेता रे ॥१॥