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श्रीनेमिनाथनो रास खंम चोथो.
३४५ सुप्त प्रमत्त बालक ऋषि,स्त्री कुण हणे गतहेज ॥७॥ एम महोटे शब्दें करी, रोता नमे वनमांहि ॥ नवि दीठो हणनारने, पाबा आव्या त्यांहिए॥
॥ ढाल पहेली ॥ ॥श्या माटे साहेब सामुं न जून ॥ ए देशी ॥ श्या माटें बंधव मुखथीन बोलो, आलिंगन करीनासे॥मोरारी रे॥गुनह विना मोविंदजी इणि परें, नवि बोलो श्ये याशें॥कंसारी रे ॥१॥ श्या०॥ अच्युत ए फुःख में न ख माये, या वनमां वनमाली॥ मो० ॥ कृष्णविना जे कण एक जाये, वा त वरस सो वाली ॥ कं० ॥ २ ॥ श्या० ॥ साल्यो पाल्यो विष्णु उस्यो, हाथे हरि दुलराव्यो ॥ मो० ॥ नाइलघु पण गुण बदु जेहमां, किणे वि योग कराव्यो ॥ कं० ॥३॥ श्या० ॥ आगलथी बोलता इंशनुज, आज बोलाव्या न बोलो ॥ मो० ॥ दाधा ऊपर खूण न दीजें, वयण नारायण बोलो ॥ कं० ॥ ॥ श्या० ॥ शारंगधर अम्ह सार करो ने,पुरुषोत्तम कहे वा ॥ मो० ॥ दामोदर तुमें मारी वेला, केम जनार्दन था॥ क० ॥ ॥ ५ ॥ श्या० ॥ पूरव प्रीति पीतांबर किहां गई, विल वाणी प्रकासो॥ ॥ मो० ॥ में अपराध न केशव कीधो, श्ये रूठा ते विमासो ॥ कं० ॥ ॥ ६ ॥ श्या० ॥ चतुर चतुर्नज एम न कीजें, रुषां रामनी साथें ॥ ॥ मो० ॥ सोमसिंधु सोमदृष्टि जूठ, उठो तुमें यनाथ ॥ दैत्यारी रे ॥७॥ ॥ श्या० ॥ वार घणी मुऊने जे लागी, तिणे न बोलो जगनाथ ॥ बाणारी रे॥ अज अपराध ते सघलो खमीयें,नही करूं फरि गोपीनाथ॥ नरकारी रे ॥॥श्या०॥ श्रीधर सूवानी नहिं वेला,सविता शोरी जाय ॥मो॥ विश्व रूपी तुमें देवकीसूनु, केती अरज कराय ॥ कं० ॥ ए ॥ श्या० ॥ माधव मनमां आणी कठो, वासुदेव वैकुंठ ॥ मो० ॥ पोशय पद्मनान विश्वनर, मन नवि कीजें 5 ॥ कं० ॥१०॥ श्या० ॥ श्रीवशवत्शधर एम रोतां, रात गइ उग्यो दिन्न ॥ मो० ॥ कहे रे वली मुकुंद सनातन, कठो मधुसूद न ॥ कं० ॥ ११ ॥ श्या० ॥ नवि कठे ज़्यारे शशिबिछ, तव पांमवायन मोही॥मो० ॥ वृषाकपि लीधा खंधोले, बलन बलिया तोही ॥०॥१२॥ ॥ श्या० ॥ वेधसकहेतां वन वन जमता, वहेता धरणीधर काय ॥ मो० ॥ पुष्प प्रमुख लावी विधुने अरचे, सुवर्ण बिंड नाय ॥ क० ॥१३॥ श्या०॥ न महिना लगें एम नित अरचे, ऋषीकेश केरे रागें ॥ मो० ॥ एम न