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श्रीनेमिनाथनो रास खंग पहेलो.
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क जायशे, वपशे नवले गए । इम नव चार ववायशे, फल अधिकेरुं जाए || ३ || इणि परें स्वप्न सोहामणं, तहि जागी परजात ॥ यावी कहे जरतारने, स्वप्ननी सघली वात ॥ ४ ॥ स्वामी याज में स्वप्न में, दीवो चूत उदार ॥ फल नांखो मुऊ तेहनुं, गुं होशे जयकार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥
कपूर होये प्रति कजलो रे || ए देशी || राजा निमित्तधर पूजीने रे, खेतेने एम ॥ सुत होशे गुनलक्षणो रे, वलि होशे सुख खेम रे || राणी सुसुपनानी वात, एहथी बेहशो अधिक सुखशात रे ॥०॥१ ॥ ए की ॥ म्रनुं फल एलिपरें कयुं रे, पण न लहुं वलि एह ॥ नव नव था
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वाय रे, जाणे केवली तेहरे ॥ रा० ॥ २॥ वचन सुणी एम नूपनां रे, राणी हरखित होइ ॥ गर्न धरें सा कामिनी रे, जिम नू निधि घरे जोय रे रा०॥ ३ ॥ उपनो पुत्र जे दिवसथी रे, ते दिनथी होय वृद्धि ॥ चार प्रकार ग मादिका रे, पुत्र पुष्य इविधरे ॥ ० ॥ ४ ॥ अनुक्रमें प्रसव्यो पुत्रने रे, धा रणी राणीयें चंग ॥ जगतने हर्षकारी घणुं रे, संपूरण सवि अंग रे ॥ रा० ॥ ५ ॥ लक्षण लक्षित देहडी रे, जस खाकार पवित्र ॥ पूरव दिशि जिम अर्कने रे, प्रसवे तिम ए पुत्र रे || रा० ॥ ६ ॥ जन्मोत्सव करे पुत्रनो रे, राज प्रतिहि उदार ॥ दानादिक खापे घणां रे, यावे वधामणी सार रे ॥ रा० ॥ ७ ॥ रायघरे धन बहु वधे रे, तिम वली हर्ष वर्धत ॥ स्वजन कुटुंब मी सवेरे, हर्षे नाम धरंत रे ॥ रा० ॥ ॥ शुभदिवसें गुन लग्न मां रे, धन कुमर प्रति चंग ॥ रायने कुमर देखी वधे रे, दिनदिन प्रति नवरंग रे ॥ रा० ॥ ए ॥ अनुक्रमें यौवन यावियो रे, सकलकला लहि ते ॥ श्वर्य उपजे विबुधने रे, थोडा दिनथी जेल रे ॥ रा० ॥ १० ॥ तनुनय करि जीतिया रें, कनक कमल कुश केश ॥ मानुं तेणें कारण कस्यो रे, जल जलें परवेश रे ॥ रा० ॥ ११ ॥ पंच धावें माता पिता रे, एक अंकथी लहे एक || स्नेहने धन साथें वधे रे, जिम विद्या ने वि वेरे ॥ ० ॥ १२ ॥ बीजनो चंद वधे यथा रे, गिरिमां चंपक बो ड ॥ नागरवेली तरुमधें रे, तिम वधे पुत्र न खोड रे ॥ रा० ॥ १३ ॥ रूपें अनंगने कींपतो रे, अन्यस्यो शास्त्र अशेष ॥ सकल करना शीखी ति ऐसें रे, कोइ नहीं तस शेष रे ॥ रा० ॥ १४ ॥ कलहंसें राजहंसलो रे,