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श्रीनेमिनाथनो रास खंम बीजो. . ०५ दंती रोवे घj, सखि करे विलाप ते नूर ॥ एह ॥ ३ ॥ हरि मित्र रायें मोकल्यो, सखि ते खोलणने काज ॥ एक बटुक घणु रूयडो, सखि अच लपुरें आव्यो साज ॥ एह ॥ ४॥ पूजे चंजशा हवे, सखि देम कुशल नी वात ॥ ते कहे कुशल ते सदु अजे, सखि पण एक सुणो अवदात ॥ एह ॥ ५ ॥ नल नैमीनी चिंता घणी, सखि द्यूत प्रमुख, कही वात ॥ श्रवणें सांजली नवि शके, सखि कुःख धरे बदु गात ॥ एहए ॥६॥ करे वि लाप ते अति घणा, सखि नूरव्यो बडु तेह ॥ आरतियां सदु देखीने, स खि मागे न नोजन जेह ॥ एह०॥७॥ नख अति जन पुःख दीये.सखि नूख न राखे लाज ॥ नूरखथकी सूजे नहिं, सखि घरमां पण कांहि काज ॥ एह ॥ ७ ॥ नाचे कूदे अन्नथकी, सखि अन्न विना सवि दीन ॥ अन्न विना ए देहडी, सखि पण नवि थाये पीन ॥ एह ॥ ए ॥ शब्द शास्त्र जगतां थकां, सखि काव्यमांहे मन जाय ॥ काव्य पठंतां गीतनी, सखि होंश घणी मन थाय ॥ एह ॥ १० ॥ गीत सुगतां जीवने, सखि ना रीमांही मन जाय ॥ नारी विलास नागे वली, सखि लागे नख जे नाय ॥ एह ॥ ११॥ यतः॥ पेट कपटकी कोट करावही, पेट प्रसाद मही सब गाही ॥ पेट घरोघर टूक मगावहीं,पेट प्रसाद जार गहा ॥पेट सटें नट शीश कटावहीं,पेट प्रसादें लहे दुःख नाइ॥ र देव तजो नर पेट नजो,पेट समो परमेसर नांही ॥१॥ मूकी ते स्थानक हवे, सखि बडु चाल्यो जाय ॥ पहोतो दानशाला हवे, सखि नोज्य चिंतामन थाय ॥ एह ॥ १२॥ जोजन अर्थे उपविशे, सखि दवदंती तव देख ॥ उलखी जीमसुता खरी,सखि मानु चंनी लेख ॥ वात ते अति सुखनी थ॥ए आंकणी॥१३॥ पाय पडे हर्पित थइ, सखि बटु नांखे एम ॥ नूरख तो सदु वीसरी, गइ, सखि तुऊ अवस्था ए केम ॥ एह० ॥१३॥ दीठी जीवती तुऊ प्रतें, सखि सघलु थयुं कव्याण ॥चंजसाने जइ कह्यु, सखी तुफ घर सवि मंमाण ॥ एह॥१५॥चंयशा यावी करी,सखि आलिंगन करे तास ॥ धिक पडो यहां मुझने, सखि नहिं उपयोग ए जास ॥ एह ॥ १६ ॥ तें किम मूक्यो नल प्रति,सखि किम मूकी तुज एह॥गे सूर्य पश्चिमें,सखि पण शीलवंम न देह ॥ एह ॥ १७ ॥ ताहरे नाल तिलक हतुं, सखि तेह गयुं किहां तुऊ ॥ तव परमार्जे नालने, सखि अजुधालु थयुं सुफ ॥ एह ॥ १७ ॥