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जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. २३॥ या नवमांहे थाशे सिझ, एतो जगमां ने परसि ॥ मो० ॥ तीर्थ कर महाविदेहमांही, विमलनामें विचरंता त्यांही ॥ मो० ॥ २४॥ इंघ सहित वंदनने काज, पहोता अमें सांजल महाराज ॥ मो० ॥ लोकालोक प्रकाशक तेह, केवलझान दर्शनधर जेह ॥ मो० ॥ २५॥ घातीकर्म ग यां क्य जास, लोगवे आतम कति विलास ॥ मो० ॥ जगत जीवने करे उपगार, देशना वरसे अमृत धार ॥ मो० ॥ २६ ॥ दायिक नावें प्रगटीक ६, आयुदये लेहशे जे सिह ॥ मो० ॥ तेहना मुखथी सांजली वात, नां खुं तुऊने ए अवदात ॥ मो० ॥ २७ ॥ कुबेर अदृश्य एम कही थाय, नो गनोगवे ससरा घर गाय ॥ मो० ॥बीजे खंमें त्रीजो अधिकार, प्ररण हा थयो जयजयकार ॥ मो० ॥ २७ ॥ पणवीश ढाल कही एह मांही, दमा विजय जिनसान्निधि आंही ॥ मो० ॥ श्रीगुरु नत्तम विजयनो बाल, पद्मवि जय कहे रंगरसाल ॥ मो० ॥२॥ सर्व गाथा ॥ ७७१ ॥ इति श्रीमन्महा नाष्यादिप्रकरणोक्तन्यायवेत्तारः । वाङ्मयोपनिपातारः उत्तम विजयास्तेषां चरणकजनूंगतुल्येन पद्मविजयेन विरचितेप्रारूतप्रबंधेसुरासुरवंदिते नेमिनेमि चरित्रे कनकवतीपरिणयनतत्पूर्वनववर्णननामक हितीयखंमस्य तृतीयोऽधि कारःसमाप्तः॥प्रथमाधिकारे गाथा ॥४॥हितीयाधिकारे गाथा ॥१०॥ तृतीयाधिकारे गाथा ॥ ७७१ ॥ सर्व गाथा॥ १६६ए ॥ सर्व ढाल ॥४॥
॥अथ वितीय खंमस्य चतुर्थाधिकारः प्रारज्यते ॥
॥ दोहा ॥ ॥ शांतिनाथ समरूं सदा, संनव सुख दातार ॥ बीजा खम तणो क ढुं, हवे चोथो अधिकार ॥ १ ॥ थोडो पण रूडो घणुं, सुणतां आनंद थाय ॥ अमृतना एक लवथकी, ज्वर षट मासनो जाय ॥२॥ गजथी पंचानन लघु, पण नेदे गजवग्ग ॥ अष्टापदसिंहथी लघु, पण देवरावे म ग्ग ॥ ३ ॥ दीवो पण अति नानडो, टालें बहु अंधकार ॥ वजलघुनेदें गिरि, उपध रोग विकार ॥ ४ ॥ लहुडो पण दोहडो कहे, लोक नखाणो न्याय ॥ म्हारे पण आवी मल्यो, ए करवाणो आय ॥ ५ ॥ ते माटे स ज थइ सुणो, ए अधिकार उन्नाही ॥ श्रोता सुणतां देखीने, वक्ता रीके