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७४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. रक शोधन नृप करे, करे अमारीना घोष रे ॥ दश दिन सघला देशमा, क रता बदु जन पोष रे ॥ १५ ॥सां०॥ सघले जिनने देहरे, पूजा विरचे जिन रायो रे ॥ दंम निवारे नूपति, दश दिन नवि कर थायो रे ॥ १६ ॥ सां ॥ कुंधर तणे पुण्य करी, मणि कनक ने निधानो रे ॥सुर यावी तस घर न रे, प्रगट पुण्य अमानो रे ॥ १७ ॥ सां० ॥ उंछुहि वाजे आकाशमां, नाचे रमणीयो झारो रे ॥ पहेरे नूषण अति अनिनवां,बदु मूलां बदु नास्यो रे ॥ ॥ १७ ॥ सां० ॥ पुप्फ तंबोल प्रमुख घणां,आपे ने वली लेय रे ॥ भोजन पान करे सुखें, प्रमुदित नगरनां लोय रे ॥१५॥ सांग ॥ एम दश दिन सुविनूतिथी, हर्षित राय करंत रे ॥ वारमे दिन अनिधा नर्बु, शंखकुमार तवंत रे ॥ २० ॥ सांग ॥ स्नान मऊन मंझन वली,क्रीडा ने वली अंक रे॥ पंच धाव्ये पालीजतो, वधतो कुंअर निःशंक रे ॥ २१ ॥ सांग ॥ वयरी मित्र घरे नित वधे, नपघात ने वली मोद रे ॥ नृप घर कुंधर वधे घj, न पजे सदुने विनोद रे ॥ २२ ॥ सांग ॥ लेखाचारजनी कने, मूके नगवाने राय रे ॥ बुध पण कुंधर देखीने, मनमां हर्षित थाय रे ॥ २३ ॥ सां० ॥ व्याकरण निमित्त गणित नण्यो, आगम मंत्र ने तंत्र रे ॥ विद्या वैदक शा स्त्रने, अलंकार बंद यंत्र रे ॥ २४ ॥ सांग ॥ ज्योतिष गारुड काव्यने, नाटि क मदननां शास्त्र रे॥ महा नारत धनुषकला, हस्ती शीदा वली वस्त्र रे॥ ॥२५॥सां॥ धातुर्वाद ने द्यूतनी, लदाण पुरुष ने नार रे॥ कागरुतादिक शकुनना, अंग विद्या मन धार रे ॥ २६ ॥ सां० ॥ नाटक गीतादिक कला, पुरुषनी कला बहोंतेर रे ॥ दिन थोडामां शीखियो, थयो वृहस्पति पेर रे ॥ ॥ २७ ॥ सां० ॥ ए चोथा अधिकारनी, पहेली ढाल रसाल रे ॥ पद्मविज य कहे पुण्यथी, होवे मंगलमाल रे ॥२७॥ सां० ॥ सर्वगाथा ॥ ३३ ॥
॥ दोहा॥ ॥ यौवन प्रारंन्यो हवे, पसरतो कंदर्प ॥ तरुणी हृदय तपावतो, श्वा ज्वाल प्रसर्प ॥ १ ॥ विमलबोध पण कपनो, गुणनिधि मंत्री पूत ॥ मति प्रन नाम ले जेहन, जे राखे घरसूत्र ॥॥ पांशुक्रीडा साथै नण्या, यौवन पाम्या साथ ॥ बीजा पण राजपुत्रगुं, रमतो हाथो हाथ ॥३॥ पुर उद्याने जायतां, नास्यो बोले एम ॥ हर्ष धरी उत्साहरां, दाखे बहुविध प्रेम ॥४॥