________________
Ամ
जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो.'
देखी, कां जुए मनहुं चाली हो ॥ ८ ॥ दोहा ॥ सरोवर जल तंबोल मणि, वृक्ष निशा ने नार ॥ नोजन मेघ वाहन प्रमुख, ए सवि वन न सार ॥ ३ ॥ स्त्री तो पाकी बोरडी, होंश सहूनें थाय ॥ सहुने लागे वहा, मूल्य विना वीकाय ॥ ४ ॥ सुरिकंत हवे हरिगयो तेहने, खाणी इहीज गणे हो ॥ प्र०॥ एहनी प्रतिज्ञा पूरण करवा, अग्निरची ए टा ऐ हो ॥ प्र० ॥ ए ॥ हुं सुरकंत ते जाणो कुंअरजी, कांइ नाम ग्रहण न वि योग्य हो ॥० ॥ रत्नमाला ए नारी जालो, कांइ नवि खावी मुऊ नोग हो ॥ प्र० ॥ १० ॥ उत्तम पुरुषने योग्य न सुबुं, कां नांख्युं में तुम्ह या हो ॥ प्र० ॥ माहरु पाप गयुं सवि विजयें, कां तुम्ह दरिसाने रा में हो ॥ प्र० ॥ ११ ॥ विद्याधर कहे चरित्र कहो तुम्ह, कांई मंत्रिसुत स विनांखे हो ॥ प्र० ॥ ते सवि वात रत्नमाला तिहां, सांजली चित्तमां रा खें हो ॥ प्र० ॥ १२ ॥ मन चिंते वरशे के नांही, कां गुणवंतो उपगारी हो ॥ प्र० ॥ केम याव्यो ए एणे थानक, चिंतवे एम विचारी हो ॥ प्र० ॥ १३ ॥ कामदृष्टि थ३ एहनी उपर, कांई ए जरतार ते माहरो हो ॥ प्र० ॥ मानुं मूकावणना मिषथी, कां श्राव्यो परणवा त्यारो हो ॥ प्र० ॥ १४ ॥ नारीनां मात पिता त्यां याव्यां, कांइ बात कही सवि तेहने हो ॥ प्र० ॥ पूर्वे पण नूपतियें दीठो, कांइ खावी प्रतीत सदु केहने हो ॥ प्र० ॥ १५ ॥ रत्नमाला परगावी तेहने, कांइ अपराजित तिलवारें हो ॥ प्र ॥ सूरकंतने मूकाव्यो तिहां, कांइ रायने नांखे तेवारें हो ॥ प्र० ॥ १६ ॥ तुझ पुत्री पहचावज्यो त्यारें, कां म्हे घेर जइयें ज्यारें हो ॥ प्र० ॥ ए मकही सहु निज थानकें पहोतां, कां सूरिकंत हवे पारे हो ॥ प्र० ॥ ॥ १७ ॥ मूलिका मणि या मंत्री सुतने, कां वेश फेरववानी गोली हो ॥ प्र० ॥ नवि वंबे पण या पराणे, कांइ घर जाये बहु गुण बोली हो ॥ प्र० ॥ १८ ॥ कुंवर पण खागल हवें विचरया, कांइ त्रीजे ए व्यधिकारें दो ॥ प्र० ॥ पद्मविजय कहे चोथी ढालें, कांइ पुण्यें कष्ट विदारे हो ॥ प्र०॥१९॥ा ॥ दोहा ॥
॥ तिरषा लागी वाटमां, बेठा अंबनी बांय ॥ उदक गवेषणने गयो, मंत्रीसुत ति वा ॥ १ ॥ जल लेने खावीयो, तिपहिज थानक तेह || नवि देखे ते कुमरने, ए आश्चर्य बेह ॥ २ ॥