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श६ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. हगुं नांही जी ॥ ह ॥ कहे बालगोपाल एम बाहिं जी॥ पा० ॥२२॥ यतः।। ईयर महिला न रुचर, सुंदर महिलाण नबि संपत्ति ॥ एमेव विर परिव,झिएहिं दियहा गमिति ॥ १ ॥ म विनयें गंजीर कही वाणी जी, ॥हा॥ नारी प्रतिषेधे मन आणी जी ॥पा॥ जितमार कुमार श्रीनेम जी ॥ ह॥ माय ताय समकावे एम जी ॥पा॥२३॥ त्रीजे खंमें अधिका रें जी॥ह॥ चोथे ढाल प्रथम नदार जी॥पा०॥ गुरु नत्तमविजयने संगें जी॥हण॥ कहे पद्मविजय मन रंगें जी॥पा० ॥ २४ ॥सर्व गाथा॥३१॥
॥दोहा॥ ॥ अपराजितथी इण समे, चवि जसमतीनो जीव ॥ नग्रसेन घर धा रिणी, कूखें आव्यो खीव ॥ ॥ १ ॥ रूप लक्षण गुणथी नरी, प्रसवे पुत्री जाम ॥ राजिमती थनिधा ठवे, उग्रसेन नृप ताम ॥२॥ पांमव थानक मोकले, कृष्मजी करि बहु मान ॥ इणसमे धारिकामा वसे, धनसेन अनि धान ॥३॥ कमला मेला नामथी, तेहने पुत्री एक ॥ ननसेनने थापे न ली, रूपें रति अतिरेक ॥॥ नारद जमता आविया, ते ननसेनने गेह ॥ ननसेन विवाह व्ययथी, नवि पूज्यो धरि नेह ॥ ५॥
॥ ढाल बीजी॥ ॥ स्वामी सीमंधर वीनती ॥ए देशी ॥ कलिप्रिय नारद उतपत्या, करवा ने अनब रे ॥ सांब प्रिय मित्र घर आवियो, सागरचं ने जब रे॥ कलिन ॥१॥ थश्य कनोने पूले इस्युं, तुमो जा नामो गम रे ॥ कोक कौतुक पेखियु, कहो अम तुमें स्वाम रे ॥ कलि ॥ २ ॥ कहे रे नारद अमें पेखी युं, अचरिज मनोहार रे॥ कमला मेला धनसेननी, धूया रूपनंमार रे ॥ कलि ॥३॥ सांप्रत दीधी ननसेनने, गया कहीने आकाश रे ॥ साग र कमला मेला तणो, अयो रागी अति खास रे ॥ कलि ॥४॥ नारद कमला मेला घरे, गया तव श्म पूजे रे ॥ आश्चर्य कहो तब ते कहे, दीठा अचरिज दूबे रे ॥ कलि ॥ ५ ॥ रूपमा सागर चंदजी, कुरूपी ननसेन रे ॥ सागर रागी ते पण थर, चढयु मोहनुं धेन रे ॥ कलि ॥ ६ ॥ नार द सागरने कहे, ताहरी रागी तेह रे ॥ सागर विरहसागर पड्यो, दीये विरह दुःख देह रे ॥ कलि ॥ ७ ॥ पीत मदिरा हवे सांब जी, आवे साग र पास रे॥हाथ जाली रे सागर तणो, बहु कुमर सुविलास रे ॥कलि॥॥