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जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो.
॥ १९ ॥ नारी जेइ निज सायें ए, उद्यानें सहु प्रवे ए, सोहावे ए, नव न व भूषणथकी ए ॥ २० ॥ पण श्रीनेमिजिणंदने, मदन खोनावी नविश के ए, धक्के ए, मारी काट्यो मूलथी ए ॥ २१ ॥ कोकिल तिहां कूजित करे, वनपालक यावी जासे ए, विलासें ए, कृष्णजी वन फल फूलियो ए ॥ २२ ॥ देवरावे तिहां, वनलक्ष्मी जोवा जाय ए, राय ए, सहुजन ऋद्धिगुं श्रावजो ए॥ २३ ॥ ते सुणी सहुजन हलफल्यो, तरुणलोक मन हरखे ए, वरखे ए, मयण' ते बाग सडासडे ए ॥ २४ ॥ चोथे खंमें बीजी ए, ढाल प्र थम अधिकारें ए, प्यारें ए, पद्मविजय नांखी नली ए ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ॥ ७० ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ हय गय रह जड परिवस्यो, अंतेवर सहु साथ || समु विजय मुख राजनी, वली सायें नेम नाथ ॥१॥ सुर अनुत्तरथी अनंत गुण, रूपें नेम कुमार || श्वेत ते थकें, सोहे गुण श्रीकार ॥२॥ धवलतनु ने धव ल ध्वज, धवलत्र शिर जास ॥ धवल जसे बलदेवजी, रथ चाले वाम पास ॥ ३ ॥ उल्मुकनाम सेनापति, नानु नामर अक्रूर ॥ सांब प्रद्युम्न सारण निसढ, पुंरुप्रमुख वली नूर ॥४॥ नट कोटीथी परिवस्यो, हरि बलि नेमी ती न ॥ नगर नागरी देखती, करी कटाक्ष ते पीन ॥ ५॥ नजर तरी जे कपरें, तास प्रशंसे तेह ॥ यावी वाद करे इस्यो, जांखे आप सनेह || ६ || कोइ प्रशं से कान्हने, कोइ प्रशंसे नेम ॥ कोइक श्रीबलदेवने, स्तवती धरती प्रेम ॥ ७ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥
॥ तन मन कीधुं तुनें नेट || महारा वाल्हा ॥ तन० ॥ ए देश । ॥ कानजी जावे उद्यान ॥ ए कली ॥ रमवा चालो जाइएं वन मां, पडथी थाये विन्नाण || मारा वाल्हा ॥ क्रीडावसंतनी करवा चाल्या, बेसी निज निज यान ॥ मा० ॥ का० ॥ १ ॥ तिहां मंदार ने दमलो मरु , कुंद चंदननां थान ॥ मा० ॥ जाइ जूई ने केतकी वेली, वली रुपानां रान ॥ मा० ॥ का० ॥ २ ॥ पारिजातने धातकी सल्लकी, रायण चूत मान ॥ मा० ॥ कोरिंट ने मंदार मनोहर, जोवे नेम बलि कान्ह || मा० ॥ ॥ का० ॥ ३ ॥ रुखनी जाति न जगमां एहवी, न जडे तेह नद्यान ॥ ॥ मा० ॥ सदु जादव तिहां केलि करता, ज्युं नंदन सुर तान ॥ मा० ॥ ॥का ० ॥ ४ ॥ खाद्य खाये हसे खेले रंगें, केइ करे मद्यपान ॥ मा० ॥