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जैनकया रत्नकोष नाग बीजो. कोमल माखण रूडी रे ॥ मा० ॥ ११ ॥ सूती शय्या रातें रे ॥ मा० ॥ शिवादेवी सुखशातें रे ॥ मा० ॥ पाली रातें देखे रे ॥ मा० ॥ चौद सुपन मन हरखे रे ॥मा० ॥१२॥ चौदं तो गजराज रे ॥ मा० ॥बी जे वृषन समाज रे ॥माना सिंह लांगुल नहालतो रे ॥ मा० ॥ त्रीजे सु पन सोहावतो, रे ॥ मा० ॥ १३ ॥ लखमी फूलमाला नली रे ॥ मा० ॥ चंकला अति निर्मली रे ॥ मा० ॥ दिनकर ध्वज ते सोहतो रे ॥मा॥ कनककलश मन मोहतो रे ॥ मा० ॥ १४ ॥ पद्मसरोवर जाणीये रे ॥ ॥ मा० ॥ सागर मनमा आणीय रे ॥ मा० ॥ वली विमान ते बारमे रे ॥मा०॥ रत्नराशि कही तेरमे रे ॥ मा०॥ १५॥ धूमरहित अग्नि कही रे ॥ मा० ॥ चौदमे सुपनें राणी लही रे ॥ मा० ॥ जागी पीयु पा में जा रे ॥ मा० ॥ नांखे सुपनां ते सइ रे ॥ मा० ॥१६॥ चोथीत्रीजा खंमनी रे ॥ मा०॥ ढाल ते रंग अखंमनी रे ॥ मा० ॥ पहेले अधिकारें कही रे ॥ मा० ॥ पद्मविजय नवि सर्दही रे ॥मा०॥१७॥ सर्वगाथा१२०॥
॥दोहा॥ ॥ समुविजय राजा कहे, सुपन तणुं फल रोक ॥ सुत होशे शुजल क्षणो, कुलदीपक गतशोक ॥ १ ॥ तेह सुणी हर्षित थर, तेह शिवादेवि नार ॥ राजा पण प्रमुदित थया, समुविजय तिण वार ॥ ५॥ मंत्रिसा मंतें परवस्यो, बेगे सना मकार ॥ पूढे कौष्टुक निमित्तीयो, जाव कहे श्म सार ॥ ३ ॥ इण अवसर चारण मुनि, शमतावंत महंत ॥ तपतापित ज स देहडी, आव्या ते गुणवंत ॥ ४ ॥ तव राजा ऊनो थइ, आपे आसन तास ॥ प्रणमी परिगल नावगुं, बेग मुनिनी पास ॥५॥राय निमित्तियो बिद्ध जणां, करकज जोडी जाम॥पू सुपन विचार ते, मुनिवर नांखे ताम॥६॥
. ॥ ढाल पांचमी ॥ ॥ नारी ते पीयुजीने विनवे हो राज ॥ ए देशी ॥ मुनिवर नांखे इणि परें हो राज, आठ प्रकारे निमित्त ॥ वारि मोरा साहिबा ॥ अंग सुपन स्व र जाणीयें दो राज, उत्पाद चोथु चित्त ॥ वा ॥ १ ॥ अंतरिक्ष नौम ने वली हो राज, व्यंजन लक्षण एह ॥ वा० ॥ तेहमां सुपन निमित्त कह्यु हो राज, सुख दुःख आपे देह ॥ वा० ॥ २ ॥ बहोतेर सुपनां नांखीयां हो राज, हीणां तेहमां त्रीश ॥ वा॥ बहेंतालीश उत्तम कह्यां हो राज, तेह