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श्री नेमिनाथनो रास खंम त्रीजो.
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जन नुिं हेतुं हे, खबर ते न पडे तास ॥ २ ॥ दधि मयतां करे वात डी, घृत तपावतां तास ॥ जमतां वेगं ऊठतां, कृष्ण तो मन पास ॥ ३ ॥ गीत गायनाटक करे, सिंडवारादिक दाम ॥ गुंथी स्वयंवरनी परें, यापे कंठ उद्दाम ॥ ४ ॥ जेंह तेह प्रकारथी, ध्यावे कृष्ण मनमांहि ॥ दूध दहिं घृत लूटतो, तिहां पण कृष्ण उन्बाहि ॥ ५ ॥ गोपी उलंनो दिये, देखी ए हवी वात ॥ तुं तो व्यो किहांथकी, जिसे अम लूंटी जात ॥ ६ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥
॥ तुंतो किहांनो रसीयो रे ॥ मारा नंदना वाला ॥ मारग यावी वसीयो रें ॥ मारा नंदन वाला ॥ ए देशी ॥ गोपी कहे इम वातो रे ॥ महारा नंदना वाल्हा ॥ श्रमने लूंटी जातो रे ॥ मा० ॥ मानुं ते किहांनो दाली रे | मा० ॥ दहिंनी दोषी ताली ॥ मा० ॥ १ ॥ तुं ते किहांनो ठाकर रे ॥ मा० ॥ बांधे मशुं वाकर रे ॥ मा० ॥ तुं ते किहांनो शेठो रे ॥ मा० ॥ श्रम दुःख देवा बेठो रे ॥ मा० ॥ २ ॥ तुने केले मान्यो रे ॥ मा० ॥ श्रम दधि लूंटवा आयो रे || मा० ॥ तुं ते किहांनो स्वामी रे ॥मा० ॥ श्रमची दोषी नामी रे ॥ मा॥३॥ जो तुम कंस ते जाणे रे ॥ मा० ॥ तो तुक शिक्षा दाणे रे || मा० ॥ मने मत तुमें ब्रेडोरे ॥ मा० ॥ केम पकडो म केडो रे ॥ मा० ॥ ४ ॥ नं द ज जब कहे रे || मा० ॥ नंद ते तबको देशे रे ॥ मा० ॥ गोपी इणि परें. नासे रे ॥ मा० ॥ मनने गमे ते यासे रे ॥ मा० ॥ ५ ॥ ग्रावी रामने नांखें रे ॥ मा० ॥ में कहुं तुमची साखें रे || मा० ॥ दीगं हरतो चित्तडुं रे ॥ मा० ॥ हमने हितडुं रे ॥ मा० ॥ ६ ॥ श्रदीगं जाय प्राण रे ॥ मा० ॥ कृष्ण ते कानें वाल रे ॥ मा॥ मोरली वजावे कान्ह जी रे ॥ मा० ॥ मची हरतो शान जी रे ॥ मा० ॥ ७ ॥ इम लिंनो रामने रे मा० ॥ फोडे यमचा गमने रें ॥ मा० ॥ इम क्रीड़ा करतां गयां रे ॥ मा० ॥ बहु दिन खाणे सदु मया रे ॥ मा० ॥ ८ ॥ शौरीपुर हवे जागो रे ॥ मा० ॥ समु विजय तस राणो रे ॥ मा० ॥ घरमा सुख जोगवतां रे ॥ मा० ॥ मणिदीवा फलफलता रे ॥ मा० ॥ ए ॥ रूडी मोतीमाला रे ॥ मा० ॥ लटके चोक विशाला रे ॥ मा० ॥ कृष्णागरु जिहां दाऊ रे || मा० ॥ गंध ते वे जाऊ रे || मा० ॥ १० ॥ कुसुम तथा तिहां ढगला रे ॥ मा०॥ रमणिक आनक सघां रे ॥ मा० ॥ महोटी शय्या कडी रे ॥ मा० ॥