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जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. क्यांही ॥ मन ॥ आलिंगे ते पुत्रने, मनमां धरी उहाही ॥ मन ॥ ॥ ए॥ पण चपलाइ अतिघणी, बल करी नाशी जाय ॥ मन ॥ उदर दामें करी बांधती, उखला साथे माय ॥ मन ॥ दामोदर नामज थयु, ते दिनथी परसि ॥ मन० ॥ शूर्पकसुत तिहां आवियो, जस बहु विद्या सिम ॥ मन ॥११॥ अर्जुन तृद विकुवीने, जमल परस्पर थाप ॥ ॥ मन ॥ खलथी तिहां लावियो, हावा मां बाप ॥ मन ॥१॥ तिणे समे थावी देवता, नांज्यो अर्जुन रुख ॥ मन ॥जमलार्जुन उन्मू लिया, दूर कयुं ते उःख ॥ मन ॥ १३ ॥ आवे तिहां गोपांगना, तर अंके शिर धारी ॥ मन ॥ रात दिवस नवि वेगली, रहे ते गोपनी नारी ॥ मन ॥ १४ ॥ दूध दहीं लूंटी लीये, कृष्ण ते चपल अपार ॥मन०॥ महियारी पासेंथकी, घृत ले जाय किंवार ॥ मन० ॥ १५ ॥ पण स्नेहें वारे नहीं,कौतुकथी ते नार ॥ मन ॥ करे प्रहार ढोली दीये. तेह दधि दधिसार ॥ मन ॥ १६ ॥ उलंनो दीये नंदने, यावी गोपनी नार ॥ ॥ मन ॥ पण घरे राखी नवि शके, देखी सुत गुणधार ॥मन० ॥१७॥ दिन दिन बलथी वाधतो, वात सुणे वसुदेव ॥मन०॥ विद्याधरी खेचर तणी, तेह मुवां ततखेवामन॥१॥मन चिंते वसुदेवजी,गोप्योपणन गोपाय॥म बल देखे जो एहनु, कंस ते करशे अपाय ॥ मन ॥ १५ ॥ तेडावी बल देवने, शीखामण देश तास ॥ मन ॥ कृष्णरदाने कारणे, मूके तेहनी पास ॥ मन ॥ २० ॥ दश धनु उंचा ते बिद्ध, सुंदर जस आकार ॥म॥ काम मूकी घरनां सङ, जुवे अनिमेष विकार ॥ मन ॥ २१ ॥ बलदेवनी पासेंजणे, कृष्ण कला नंमार ॥ मन ॥ कला बहोत्तर पारंगमी, कम ते पुण्य अपार ॥ मन ॥ २२॥ कोई का. मित्रज होये, याचारय कोका ल ॥ मन०॥ न खमे ते एक एकनो, विरह ते ण संजाल ॥म॥२३॥ पुब ग्रहे पनज तणु, बलवंतो माहावीर ॥म॥ देखी तस बलरामजी, या ये उदासीन धीर ॥ मन०॥ २४ ॥त्रीजीत्रीजा खमनी, ढाल प्रथम अ धिकार ॥ मन ॥ गुरु उत्तम किरपाथकी, पद्मने जयजयकार ॥म॥२५॥
॥दोहा॥ ॥ के. बहु गोपांगना, मन्मथ प्रेरी जाय ॥ ज्युं नमरी कज ऊपरें, चो क फेर लपटाय ॥ १ ॥ गाय उहे गोपांगना, मन श्रीकृमनी पास ॥ ना