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श्रीनेमिनाथनो रास खंम बीजो. घणुं हर्षित थयो, देखी एहवी वात लाल रे ॥ दा० ॥ १६ ॥ एक लख एक सहस्र दिये, पाठकने दीनार लाल रे ॥ शासनदेवता नारीने, जिन प्रतिमा दिये सार लाल रे ॥ दा० ॥ १७ ॥ कहे दवदंतीने एहवं, शोलमा श्रीजिन शांति लाल रे॥ नावी जिन प्रतिमा अडे,पूजो धरी मनखांत लाल रे ॥दा॥१॥ इम कही अदृश्य ते थइ,प्रतिमा लेई तेह लाल रे ॥ हर्षि त वदने ते नमी, तुरत आवे निजगेह लाल रे ॥दा० ॥ १॥ सखीयोमां रमतीयकी, यौवन पावन पामि लाल रे ॥ पर्वते लावण्यजल तणी, मद न खेलणनुं गम लाल रे ॥दा॥२०॥त्रीजे अधिकारें कहे, बीजे खमें ढाल लाल रे ॥ दशमी उत्तम विजयनो, पद्मविजय सुविशाल लाल रे ॥दा॥२१॥
॥दोहा॥ ॥ एकदिन दवदंती पिता, देखी यौवन बाल ॥ तस विवाहने कारणें, करे ते सघने जाल ॥ १ ॥ पण तस सरिखो नवि जड्यो, चिंतातुर ते रा य ॥ वरस अढारनी सा थई, पण तस वर नवि पाय ॥ २ ॥ कन्या म होटी घर थई, तस स्वयंवर ते युत्त ॥ को पुरुष एम सनिली, आवी राय ने उत्त ॥ ३॥ स्वयंवर मंझप मांमियो, बहु राजा आवंत ॥ तरुणवयी ब दुराज सुत, ऋद्धिवंत गुणवंत ॥ ४ ॥ निषधराय पण आवियो, कौशलदेश अधीप ॥ नल कुबेर सुत साथ लही, हर्ष लही अति विप्प ॥ ५॥
॥ ढाल अग्यारमी ॥ ॥ देशी माखीना गीतनी ॥ जे जे आव्या राजवी, दीये सदुने सत्का र ॥राजन जी ॥ पालकनाम विमान ज्यु,मंझप कीध नदार ॥ राजन जी ॥ वात सुणो विवाहनी, वात कहां बां, हर्ष धरां बां, जाणो पुण्यनो खेल ॥राजन जी ॥ वात०॥ १ ॥ए आंकगी॥.मांचा ममिया अति नला, मानुं देव विमान ॥ राजन जी ॥ शक सामानिकनी परें, दीपे तेह राजा न ॥रा ॥ वा ॥२॥ केश्क कमलक्रीडा करे, कुसुमकंक केई सार ॥ ॥रा॥काम समान स्वरूपथी, दीपे. तास देदार ॥ रा० ॥ वा० ॥ ३ ॥ दवदंती यावी तिहां, वर वरवाने हेत ॥ रा० ॥ प्रतिहारी बदु दाखवे, रा य तणा संकेत ॥ रा ॥ वा० ॥ ४॥ पण मनमां कोई नवि रुग्यो, अ नुक्रमें स्तवतां तास ॥रा ॥ कोशलदेशनो नूपति, नामें निषध ते खास ॥रा ॥ वा० ॥ ॥ एहनो सुत नल नामथी, माहाबलवंतो जेह ॥रा॥
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