________________
जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो.
चरिज एक ते कपन्युं, ते सुणजो उल्लास ॥ ६ ॥ ॥ ढाल दशमी ॥
0
|| महाविदेह क्षेत्र सोहामणुं ॥ ए देशी ॥ इषि अवसर एकहाथीयो, उज्ज्वलवर्ण शरीर लाल रे ।। खावी राय राणी प्रतें, खंधे धरे शौमीर ला ल रे ॥ १ ॥ दान तणां फल देखजो ॥ ए यांकणी ॥ चोक फेर ते फेरवे, हे चरिज सवि लोक लाल रे ॥ पुष्पप्रमुखें पूजा करे, लोक तथा यो के थोक लाल रे ॥ दा० ॥ २ ॥ राज द्वारें यावी करी, उतारे ते दोय लाल रे ॥ जालान मूजें रह्यो, वृष्टि कुसुमरत्न होय लाल रे ॥ दा० ॥ ३ ॥ रा य उतारे आरती, करी पूजा सत्कार लाल रे ॥ चंदन प्रमुख विजेपियां, ग जमुख यागल सार लाल रे || दा० ॥ ४ ॥ मास पूरण थइ अन्यदा, गुनजोग नेवार लाल रे ॥ मेघघटा विद्युत परें, प्रसवे पुत्री नदार लाल रे॥दा ॥५॥ श्रीवच्च ज्युं वदस्यलें, माहापुरुषने होय लाल रे ॥ तेम नाले शोने घ गुं, सहेजे तिलक ते जोय लाल रे || दा० ॥ ६ ॥ तास जनम प्रभावथी, सदु राजा शिरदार लाल रे ॥ जीमनिसीम ते विक्रमें, तेज प्रताप जंमार ला लरे ॥ दा० ॥ ७ ॥ स्वप्न संचारी राय ते, दवथी दंती यायात लाल रे ॥ दवदंती निधावे, कुंमिन नूपति तास लाल रे ॥ दा० ॥ ८ ॥ कन कनी मुडिका ऊपरें, रत्न जडित जेम होय लाल रे ॥ तेम द्युति शोने ए हनी, करे प्रशंस सहु कोय लाल रे || दा० ॥ ए ॥ दिन दिन वधती ते हवे, स्वास सुगंधित तास लाल रे ॥ मात शोक्य पण वाहली, पुण्य प्रबल ने जास लाल रे || दा० ॥ १० ॥ पाय नेनर रणऊण करे, पद चंक्रमणें तेह - जाल रे ॥ लखमी परें क्रीडा करें, तिरों दीपावे गेहं लाल रे ॥ दा० ॥ ११ ॥ आठ वरसनी सा था, जावा मूके तास खाल रे ॥ साक्षी मात्र गुरुने करारी, करती कला अन्यास लाल रे || दा० ॥ १२ ॥ जेम आदर्शमां संक्रमे, प्रतिबिंब परें थाय लाल रे ॥ कर्म पयडी मुख शास्त्रनी, पारंगामी कदेवाय लाल रे ॥ दा० ॥ १३ ॥ स्याद्वाद शै ली नली, जिनधर्मे मति होय लाल रे | पंमित तेहवो जग नहिं, यावी जिंते कोय लाल रे ॥ दा० ॥ १ ॥ कलासायर ते कुंवरी, वाघेश्वरी परें जेह लाल रे ॥ तात पासें आवे हवे, कलाचारय सह तेह लाल रे ॥ दा० ॥ १५ ॥ निजकला कौशल पणुं, देखावे तेह तात लाल रे ॥ तात
१८४ वचन विलास ॥