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श्रीनेमिनाथनो रास खंम बीजो. वायुनी परें, अप्रतिहत गति जास ॥ अंजनसिह योगी परें, आव्यो अंत यावास ॥ ३ ॥
॥ढाल पांचमी॥ ॥ फूंबरखडं फूंबी रघु, फूंब ते माजिम राती ॥ संयमराय खूबखडं ॥ ए देशी ॥ पहेला घरमां देखतो, बदु परिकरें करि रु६ ॥ वसुदेव चमकतो ॥ चित्रामण जस हाथमां, इंश्नील तल ब६ ॥१॥व०॥ कांति मनोहर जे हनी, निर्मल जल जिहां वाव ॥ वसु० ॥ चम मनमां आवे घणो, देखी मनने नाव ॥व० ॥ २ ॥ दिव्यानरण धरि करी, रंजानो ज्युं द्वंद ॥व०॥ रूपवती सरिखी वयें, देखे मुख ज्युं चंद ॥ व० ॥३॥ आगल चाल्यो अनु कमें, वीजा घरमां जाम ॥ व ॥ मणिमय थंने सोहती, पांचाली जुवे ता म ॥व० ॥ ॥ त्रार्जु घर जब देखीयुं, त्रिनुवनमां अद्भुत ॥ व० ॥ ज्ज्वल गोदीर सारि, देखे धनदनो दूत ॥व०॥५॥ पेसे ऐरावत जिस्यो, दीरसमुश्मां सार ॥ व ॥ देखे तिहां नारी घणी, दिव्य आनरणनी धार ॥व०॥ ६॥ माये नहिं देवलोकमां, तिण आवी मानुं बांही ॥व०॥ चिंते मनमा ए किस्यं, इंजाल के नांही॥व०॥॥चोथे कदांतरेंगयो, जलकुहिम तिहां जोय ॥व॥ वदुलतरंग जिहां अडे, चक्रवाक युग होय ॥व०॥॥ हंस प्रमुख क्रीडा करे, वदन जुवे बदु नार॥व०॥ दर्पण, कारज नहिं, निर्मल ए हवू वार ॥ व ॥णा सारिका शुक मंगल कहे, बदुदासी जन जब ॥व०॥गी त नाटक होय अति घणां, देखे वसुदेव तब ॥वण॥१०॥ पांचमा घरमां हे गयो, मरकत कुट्टिम खास ॥ व० ॥ देवलोकनुं विमान ज्यं, शोने अ ति सुविलास ॥ व ॥ ११ ॥ मोतीनी माला घणी, वली विद्यमनी मा ल ॥ व ॥ चामर ढलके चिढुं दिशे, ते पण अतिहि विशाल ॥ १२ ॥ व० ॥ मानु मायायें कस्यो, ए सवि वात बनाव ॥ व ॥ वेश अलंकत थइ घणु, दासी ते पुतली दाव ॥ व ॥ १३ ॥ हवे बहा घरमां गयो, पद्म कुट्टिम तिहाँ होय ॥व०॥ पद्म सरोवरनी परें, पद्मसमूह सह जो य ॥ व ॥ १४ ॥ मणिनां पात्र देखे तिहां, देव संबंधी तेह ॥ देव संबधी वस्त्रने, देखे तिहां धरि नेह ॥व०॥ १५ ॥ करमजी राग अंशक जलां, पहेयां ले तिहां नार ॥ व ॥ संध्यामूर्ति धररी करी, मार्नु आवी शण गर ॥ व०॥ १६ ॥ चमकी चतुर ते चालीयो, सातमा घरमांहे मोद