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२७६ जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो. विया रे, सागर षट् सुत लेय राज ॥ हिमवान त्रण पुत्रथी रे, अचल ते सग एय राज ॥ पु० ॥ १३ ॥ मं० ॥ पांच पुत्रगुं आवीया रे, धरुणनामें महाराय राज ॥ पूरण चन सुत तेडीने रे, अनिचं पटसुत प्राय राज ॥ पु० ॥ १४ ॥ मं० ॥ श्रीवसुदेवजी आवीया रे, बहु सुतने परिवारें राज ॥ अक्रूर ने क्रूरनामथी रे, ज्वलन अशनिवेग धारे राज ॥पु० ॥१५॥ ॥ वायुवेग अमितगतिजी रे, महेंगति वली नाम राज ॥ सि दारथ दारु रूयडारे, सुदारु वीर्यधाम राज ॥ पुण् ॥ १६ ॥मंग॥ सिंह ने मतंगज सुत जला रे, नारद ने मरुदेव राज ॥ सुमित्र कपिल बलीया घj रे, पद्मकुमुद यादें हेव राज ॥ पु ॥ १७ ॥मं० ॥ अश्वसेन पुंझनामथी रे,रत्नगर्न अनिधान राज ॥ वजबादु बादुनृत वली रे, महाबलीया सदु जान राज ॥ पुण् ॥१७॥ मं० ॥चंकांत शशिप्रन सुणोरे, वेगवान वा युवेग राज ॥ अनाधृष्ट दृढमुष्टिजी रे, हिममुष्टि अति तेग राज ॥ पु० ॥ १ए मं ॥ बंधुषेण सिंहसेन जी रे,युधिष्ठि ए नाम राज ॥ शिलायु ने गंधार वली रे, पिंगल यावे रणकाम राज ॥ पु० ॥ २० ॥ मं० ॥ ज राकुमर बाल्हिक कह्या रे, सुमुख ने फुर्मख जाण राज ॥ राम ते रोहिणी कूखना रे, माहाबलिया गुणखाण राज ॥ पु.॥ २१ ॥ मं० ॥ वजदंष्ट्र अ मितप्रन रे, रामना बदु आवे पूत राज ॥ मुख्यतणां अनिधा सुणो रे, नल्मूक निषध ते उत्त राज ॥ पु० ॥ २२ ॥मं॥ प्रकृत द्युति चारुदत्त ध्रुव रे, शत्रु मदन ने वली पीठ राज ॥श्रीध्वज नंदन चित्ररूयडा रे, श्रीमान दशरथ इस राज ॥ पु० ॥ २३ ॥मं०॥ देवानंद ने नंदजी रे, विष्टथु शांत कुमार राज ॥ पृथु ने शतधनु नामथी रे, नरदेव माहाधनुसार राज॥पु० ॥ २४ ॥ मं० ॥ दृढधनु आदि आवे घणारे, ए बलदेव कुमार राज ॥ कमना सुत हवे सांजलो रे, जानु ने नामर धार राज ॥ पु ॥२५॥मं॥ महानानु अनुनानुजी रे, वृहध्वज सुविदित्त राज ॥ अग्निशिख विष्णु संजयो रे, अकंपित शुनवित्त राज ॥ पु० ॥ २६॥ मं० ॥ महासेन नद धि गौतम वली रे, सुधर्म ने वली धिर राज ॥ प्रसेनजित सूरय चंजी रे,वर्मा ने वली गंजीर राज ॥ पु० ॥२७॥ मं० ॥ चारुक कृमक कृमना रे, सुचारु देवदत्त राज॥नरत ने शंख प्रद्युम्नजी रे, सांब प्रमुखजी आयात राज ॥ पु० ॥ २७ ॥ मं० ॥ विष्णुपुत्र सहसागमे रे, उग्रसेन राजान राज ॥