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जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. सुणजो हर्ष अपार ॥ १ मूक्या नेमी जिनवरें, कम अरिना राय ॥ जरा संध सुत थापियो, सहदेवने पितु गय ॥२॥ शौर्यपुरे महानेमजी, समुह विजय सुत थाप ॥ हिरण्यनान कोशल नवे, कृष्णाजी हर्षे आप ॥३॥धर नामें मथुरा उवे, उग्रसेन सुत सार ॥ मातली निजथानक गयो, प्रणामी नेम कुमार ॥ ४॥ खेचरी एक आवी कहे, जीत्या श्रीवसुदेव ॥ नारद मु रखथी सांजली, नवमा तुम्हें वासुदेव ॥ ५॥ एम कहे अाव्या तुरत, सां ब प्रद्युम्नने तामं ॥ परणावी बहु कन्यका, कीधां उत्तम काम ॥ ६ ॥ जी वजसा अग्नि नखें, हय गय रह नड कोश ॥ नीत वधे गोविंदने, व धते परम संतोष ॥ ७ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ ॥ श्रीधर्मजिणंद दयाल जी, धर्मतणो दाता ॥ ए देशी ॥ श्रीनेमिजि नेश्वर श्रागें जी॥ हर्षथी अति माता ॥ सदु कूदे नाचवा लागे जी॥ पा मी जगत्राता॥सद्ध परमाणंद ते पामे जी॥६॥ प्राणंदपुर वसे तिणे ना में जी॥ पा ॥ १ ॥ जिन नुवनमांही मनोहार जी ॥ ह ॥ तिहां तीर्थ प्रसिद थयुं सार जी॥ पा० ॥ हरि साधवा चाल्या देश जी॥ ह ॥ नर ताईमां आणि निवेश जी ॥पा॥२॥ साथें सोल सहस राजान जी॥ह॥ बद खेचरपतिगुं कान जी ॥पा० ॥ जिहां कोटि शिला सन्निवेश जी॥हा॥ तिहां आवे जरताईश जी ॥ पा० ॥३॥ तेह नंचीने विस्तार जी ॥६॥ योजन परिमाण श्रीकार जी॥पा० ॥ सुरसमूह याश्रिता हाली जी ॥ ह०॥ तस बल परीक्षा करे चाली जी ॥ पा० ॥४॥ तिहां पहेला वासु देव अावी जी॥द० ॥ धरे वामनुजा ठावी जी ॥ पा० ॥बीजा वास देव शिरें लावे जी ॥ ह ॥ त्रीजा कंठ देशे तावे जी ॥ पा० ॥ ५॥ वक स्थलें चोथा जाणो जी ॥ ह ॥ हृदयें पंचम मन आणो जी॥पा० ॥ लावे बहा केडने देशे जी॥ह ॥ सातमा उरु लगें सुविशे जी ॥पा०॥ ॥ ६॥ ढिंचण लगें आवमा सार जी॥हा॥ नवमा चन अंगुल धार जी ॥ पा० ॥ अवसर्पिणीयें बल प्रांहि जी॥ ह० ॥ सद नरनां घटतां यांही जी ॥ पा० ॥ ७ ॥ जय जय तिहां शब्द प्रयुंजे जी ॥ ह ॥ सुर असुर सह हरि प्रजे जी ॥पा०॥ खटमासमांत्रण खम साधी जी ॥६॥ पगडी पुण्य पूरव लाधी जी॥पा॥७॥धारिका नयरीमांधाव्या जी ॥हा॥ बद