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२४४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. ड॥ ६॥ यतः॥ कुलकोडीमान ॥ एगा कोडाकोडी,सत्ताणवयं च सयसह स्साई॥पमासं च सहस्सा, कुलकोडीणं मुणेयवा ॥१॥दोहो॥ उग्रसेन मु ख राजवी,समुविजय नूपाल ॥अष्टादश कुल कोडिगूं,चाव्या पुण्य विशाल॥
॥ ढाल बारमी॥ ॥ दक्षिण दोहिलो हो राज, दक्षिण दोहिलो हो राज ॥ ए देशी ॥ सोम क दूतें हो राज, वात सुणावी हो राज, जरासंधे पावी रे, कोपें ते अ ति कलकल्या || कालकुमरने हो राज, मोकले राजा हो राज, साथें सा जा रे, पांचशे कुमरने मोकल्या ॥ १ ॥ करत प्रतिझा हो राज, कालकु मार हो राज, लावु हार रे, पेठो जो होय अमिमां ॥ बदु बल साथें हो राज, जातां तेहने हो राज, तेहवे वेदुने रे, अंतर नवि तेहरानमां ॥॥ अरध जरतनी हो राज, देवी जाण्युं हो राज, मनमांयाएयु रे, परवत एक विकुर्वीयो ॥ चंचो पहोलो हो राज, एक दूवारी हो राज, यावी धा रे रे, बदु चय बलती ज्वलतियो ॥ ३ ॥ शिबिर ते देखे हो राज, हस्ति तुरंग हो राज, देखें चंग रे, शूना थांने बांधीया ॥ केशक बलतो हो राज, प्रहरण निरखे हो राज, पावर परखे रे, ठाम ठाम ते सांधिया ॥ ४ ॥ एक चय पासें हो राज, १६ ते नारी हो राज, वरवेश धारी रे, करुण स्वरें रोतीथकी ॥ काल ते पूळे हो राज, रोवे शाने हो राज, तव ते का ने रे, संजलावे इणि परें वकी ॥ ५॥ जरासंध नयथी हो राज, यादव ना ठा हो राज, सांगली घाठा रे, बलथी काल ते यावतो ॥ नाशी न शकी या हो राज, पेठा ए चयमां हो राज, क्यकर घरमां रे, पुत्र कलत्र ज न दाऊतो ॥ ६ ॥ कृल्म ने राम हो राज, जादव बीजा हो राज, अहि मिजा रे, बलीया ए चयमा वली ॥ तिणें दुं रोवु हो राज, ढुं पण मरा हो राज, होम ते करा रे, देह तणो ते कलकली ॥ ७ ॥ इम कही पे ती हो राज, चयमां सहसा हो राज, देखी तहसा रे, कालादिक कुमर हवें ॥ चिंते एम हो राज, में तो पतिज्ञा हो राज, एहवी कन्या रे, लावू जिहां होये सवे ॥७॥ श्म कही पेठगे हो राज, चयमां तेह हो राज, बा
ली देह रे, कीधी राख ते तिहां कणे ॥ गइ तिहां राति हो राज, विहाणुं विहायुं हो राज, कांय न पायुं रे, यादव राय प्रमुख जिणें ॥ ए॥ देविविलास हो राज, ते सदु देखी हो राज, तेह नवेखी रे, मनमा इणि