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श्रीनेमिनाथनो रास खंमत्रीजो. २३५ घु ॥ जि ॥ सुर नर सेवित तेह, उपगारें विग्रह धयुं ॥ १६॥ जि. ॥ जिम गिरिमा तरु बोड, बीजनो चंद वधे यथा ॥ जि०॥ रमता नेमि जि पंद, तेह मुणिंद वधे तथा ॥ १७ ॥ जि ॥ समुविजय घर एम, जन म सुणे वसुदेवजी ॥ जि० ॥ मोबव मथुरामांहि, करता ते ततखेव जी ॥ १७ ॥ जि० ॥ नरपति एक दिन कंस ते उष्ट, पहोतो वसुदेवने घरे ॥ न॥कन्या देखी ने ते जिन्न, मनमां चिंते इणिपरें ॥१५॥ न०॥ करतो अतिहि विकल्प, देह प्रकंप थयो तिहां ॥ न ॥पले घर म मित्त, वात कहे मुझने इहां ॥ २० ॥ न० ॥ देवकी सातमो गर्न, मुनियें वध नणी मुफ कह्यो ॥ न ॥ मुनि वच थयुं अलीक, के बलथी ए रिपु लह्यो ।
१ ॥ न० ॥ अथवा थयो फेरफार,तव नैमित्तियो वोलियो ॥न०॥ अली क न होय वचन्न, मुनि वच किणहीन रोलीयो ॥ २२॥ न ॥ तुक रिपु जीवतो आज, पण तुफ खबर न किहां अ॥न०॥ एक नपाय सुग तुऊ, वली बीजो नांखिश प॥ २३॥ न०॥ अरिष्ट वृषन तुम उष्ट, मा हाबल दर्प घणो धरे ॥ न० ॥ तीखा जेहनां शृंग, जीव घणानो वध करे ॥ २४ ॥ न ॥ घोटक केशी नाम, बलीयो तुम घर बांधीयो ॥ न० ॥ ग ईन पुष्ट शरीर, मेघ दारुण.पण सांधियो ॥ २५॥ न० ॥ वृंदारक वनमा हि, लूटा मूको एहने ॥ न ॥ वध करशे जे आवि, जाणजे वयरी तेहने ॥ ५६ ॥ न ॥ सुण हवे बीजो नपाय, सारंग धनुष ताहरे घरे ॥ न० ॥ पूजाये नित जेह, थारोपण जे तस करे ॥ २७ ॥ न० ॥झानीयें कह्यु ए म, कोइ न आरोपी शके ॥ न० ॥ नरत अरधनो स्वामि, ते एहनी आग लटके ॥ २७ ॥ न०॥ कालीय दमे नागीण, चारगर मननो वधकरु ॥ न॥ पद्मोत्तर ने चंपक, हगाशे हाथी नरवरु ॥णा न०॥ विसर्जे रे नि मित्त, ते सांजली चित्त खलजल्यो ॥ न०॥ निश्चय करवा तेह, कंस चिंते अहो किम बल्यो ॥३०॥न०॥ न लहे हवे रति क्याहि, निश पण सुखें न वि करे ॥ न० ॥ सुख नवि वेदे तेह, कारण विनु कोपज धरे ॥३१॥न०॥ सातमी त्रीजे खम, ढाल ते नांखी मनोहरु ॥नम् ॥ उत्तम विजयनो शिष्य, पद्मविजय कहे सुखकरु ॥ ३२ ॥ सर्व गाथा ।। २३४ ॥
॥दोहा॥ ॥ सुखमां नित नवि करे, करे ते कोप अपार ॥अपमाने मंत्रि प्रमुख,