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जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. काम रे ॥ १४ ॥ तुज माता मरीने तेह, सोमनूति विप्र रे ॥ तस रुक्मि णी नामें नाम, दुई ते दिन रे ॥ जितशत्रुयें दीठी नार, निजघर लावे रे ॥ मरी त्रण पथ्योपम आय, नारक थावे रे ॥ १५॥ तिहांथी वली दरण थाय, घाय लहीने रे ॥ श्रेष्ठिसुत वली गज थाय, कर्म बहीने रे ॥ जाति समरण वत्ती पामी, तिहाथी चविने रे ॥ वैमानिक सुर त्रण पथ्य, आय मविने रे ॥ १६॥ चवि तिहाथी थयो चंमाल, एह ते दीसे रे ॥ रुक्मि पी नव नमी गुनी एह,देखी हींसे रे ॥ ते तो पूरणन, जाति संजारी रे॥ चंबालगुनी प्रतिबोध, दीये तिवारी रे ॥१७॥ वैराग्य लही चंमाल. अ
सण मास रे ॥ पाली नंदीसर हीप, सुर थयो खास रे ॥ हवे गुनी अण सण पाली, शंखपुरीमा रे ॥ सुदर्शना राजनीधूय, रूप धूरीमा रे ॥१॥ मुनि महेंऽ आव्या फेर, पूछे तास रे ॥ पूर्ण न माणिन वात, बोध्या जास ॥ पूर्णन मणिनई तास, वली कस्यो बोध रे ॥ लेइ दीक्षा गइ देवलोक, करती शोध रे ॥ १५ ॥ पूर्णन माणिनए दोय, सोहमदेव रे॥ श्रावकव्रत पूरे नाव, कीधी सेव रे ॥ हथियानर नगरें राय, विष्वक्सेन रे ॥ मधुकैटन नामें दोय, गुनधर्मेण रे ॥ २० ॥ वटपुरमा श्रयो राजा न, कनकप्रन नामें रे ॥ बहुनव नविनंदी देव, पुण्ये जामे रे ॥ बहुलव जमी नारी देव, हवे ते राणी रे ॥थ चंाना इण नाम, जगमां जाणी रे ॥ २१॥ विष्वक्सेन थापे राज्य, मधु निज सुतने रे ॥ कैटन युवराज्ये थापी, था गुणयुतने रे ॥ले दीदा गयो देवलोक, हवे मधुराय रे ॥त्र ए नुवनमा जसने कीर्ति, जास गवाय रे ॥ २२ ॥ एक नीमपनि पति ता स, देशने खूसे रे ॥ मधु चढीयो हणवा तास, बहोले रोपें रे ॥ वटपुरें क नकप्रनराय, मारग मलीयो रे ॥ करी पूजाने सत्कार, हेजें दलीयो रे॥२३॥ त्रीजे खमें ढाल, चोथी नांखी रे ॥ एह बीजे अधिकार, चित्तमां राखी से ॥ गुरु उत्तमविजयनी सेव, मुझने लाधी रे ॥ कहे पद्मविजय नली जात, उद्यम साधी रे ॥२४॥ सर्वगाथा ॥ १२३ ॥
॥दोहा॥ ॥ जोजन कनकप्रनने घरें,करे ते मधु राजान ॥ चंशना नारी सहित, प्रानृतनुं करे दान ॥ १ ॥ मधुनें प्रणमी नारी ते, गइ अंतेउरमांहि ॥ का मातुर मधु नृप थयो, चाल्यो जीतण त्यांहि ॥ ॥ जीतीने पाबो वव्यो,