________________
श्रीनेमिनाथनो रास खंम पहेलो. १५ ॥१॥ एम करतां एकदिन हवे, नारीनो प्रेयो तेह ॥ नाइ नोजाइ कपरें, पाम्यो क्षेष अलेह ॥ २ ॥ हीणां वचन घणां लवे, नाणे काही लाज ॥ १६ बात समझावीने, कहे तें झुं कस्यो आज ॥ ३ ॥ तो पण नवि मा ने वचन, चिंते बांधव जेठ ॥ जगमां सदु दीतुं अडे, पण नारीथी हेह ॥४॥ नारी कपटनी कोथली, नारी नरकनुं क्षार ॥ नारीपाशे जे प ज्या, ते न तस्या संसार ॥ ५॥ नारीथी मुन मुंजडो, रावण गयां दश शीश ॥ रामजी वनवासें वस्या, नहिं कहि नारि जगीश ॥ ६ ॥
॥ढाल आहमी ॥ ॥ मोरा साहिबा हों श्री शीतलनाथ के,अरज सुणो एक मोरडी ॥ ए देशी ॥ तिहां लगे रहे हो पुण्यवंत विवेक के, नारी लोचन जब नवि प ड्यां ॥ सन्मार्गे हो इंघिय रहे ताव के, नारी नयण जब नाथज्यां ॥१॥ लजाविनय ते हो तिहां लगे रहे सर्व के, नारीलोचन जब नावीयां॥ चा हो आकर्षीने जाम के, मूके शर तब सवि गयां ॥२॥ यतः ॥ ताव देव कतिनामपि स्फुर, त्येपनिर्मलविवेकदीपकः ॥ यावदेव न कुरंगचक्षुषा, ताज्यते चटुललोचनांचलैः ॥ २ ॥ सन्मार्गे तावदास्ते प्रनवति पुरुषस्ता वदेवेंशियाणां, लज़ा तावधित्ते विनयमपि समालंबते तावदेव ॥ चापा कृष्टमुक्ताश्रवणपथजुषो नीलपक्ष्माण एते, यावन्नीलावतीनां न हृदि धृति मुषो दृष्टिबाणाः पतंति ॥ ३ ॥ घनश्रेणी हो कत वन एह के, शोक कासार पाली कही ॥ मराली हो नवकमलने नाम के,पाप तोयनीकज सही ॥३॥ पेटी कपटनी हो चेटी मोहराय के, विषविषय सापण कही। दुःखदायक हो कही एहवी नारि के, पापिणी कामिनी तनुदही ॥ ४ ॥ यतः ॥ उरितवनघनाली शोककासारपाली, नवकमलमराली पाप तोयप्र गाली ॥ विकट कपटपेटी मोहनुपालचेटी, विषय विषजुजंगी सुखसारा कृशांगी ॥५॥ जूतुं बोले हो साहस यति धैर्य के, माया मूर्खपणुं घj॥ अतिलोनता हो अशुचि दयाहीन के, सहजयी दोष स्त्रीना नणुं ॥ ५ ॥ यतः ॥ अनृतं साहसं माया, मूर्खत्वमतिलोनता ॥ अशौचं निर्दयत्वं च, स्त्रीणां दोषाः स्वजावजाः ॥ ५ ॥ रवि ग्रह ने हो तारा ने राह के, जाणे चार ते पंमिता ॥ नवि जाणे हो महिलानो चार के, तेहमां बुद्धि होय खंमिता ॥ ६ ॥ यतः ॥ रविचरियं गहचरियं, तारा चरियं च रादुच