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जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. हां०॥ राजा पूजे रण शुं ने तुम स्वामी जो,अम सरिखाने युद्ध होये किम ताहरे रे लो ॥ ६ ॥ हां० ॥ मुनि कहे जिम ताहरे तिम माहरे यु६ जो, रात दिवस नवि फीटे नित्य करवो पडे रे लो ॥ हां ॥ कुतूहल राय बदुल धरि मनमां हर्ष जो, कहे किम यु६ करीजें जिम वयरी रडे रे लो ॥॥ हां ।। करि प्रसादने यो आस्वाद मुज नाथ जो, कहे मुनिवर सुण नरवर मोह ले नूपति रे लो ।। हां० ॥ सवि प्राणीने जाणीने दिये फुःख जो, कोहलोहमय जोह परिवत नरपति रे लो॥ ॥ हां॥ जग जीतीने करिय विदीती वात जो, तिणे अवसर चारित्रनृप शरणें गयो रे लो ॥हां। जिनशासननो नासन वप्र आधार जो, सेनापति सदागम माहारे थिर थयो रे लो॥ ए॥ हां ॥ शम दम संयम सम्यग ने संतोष जो, कोडि गमें सुनटें करि ढुं पण परिवस्यो रे लो॥हां ॥ अमरपथी करूं तेह सरिस हवे युद्ध जो, महारा रे ए शिष्यथकी पण थरहस्यो रे लो ॥१॥हा॥ काढी तप करवाल कराल ले हाथ जो, खंतिफलक विवेककवच अंगें धरे रे लो ॥ हां ॥ जे संतोषनो पोष ते तुरगारूढ जो, झानादिक त्रिक तीखां शस्त्र धरे करें रे लो॥११॥हां ॥ मर्दव महोटो नहिं बोटो गजराज जो, अऊव कुंता नेदे रिपुवर्गने रे लो॥ अध्यवसाय गुन थाय ते रथवर जाणी जो, जावधनु यष्टि ग्रहि हणता गर्गने रे लो ॥१॥हा॥बाण ते जाणीसुदेशना रूपमहंत जो,शुनसाधनना योग सुनट समवायगुं रे लो॥हा॥ ढंढेरो सद्धा गमनो तिहां वाय जो, बंदीपोसथकी होय तोस सफायगुं रे लो ॥१३॥हा॥ शत्रु हणिया नवि गणिया को रीत जो, बीजा पण बहु शत्रुथी मूका विया रे लो॥ हां ॥ ए मुनिवर ढुं सूरीश्वर मध्य ठाय जो, विचरंतो यहां तुफ मूकाववा यावीयो रे लो॥११॥ हां० ॥ कहे राजा महाराजा रण गुन तुज जो, करि नपगारने स्वामी नलें पानधारिया रे लो ॥ हां ॥ घर पुर देश तथा वली परिजन सहीत जो, पीडा रे पामंता अमने तारिया रे लो॥ १५ ॥ हां ॥ ए वयरीथी नयरीलोक अशेष जो, पीड्यो ते मूका वी बीजो नवि शके रे लो ॥ हां ॥ हे मुनिनाह अथाह करुणनंमार जो, मूकावो ए वयरी जिम मुफ नवि टके रे लो ॥ १६ ॥ हां ॥ तेइ दीक्षा ने ग्रहि शिदा तुम्हें राय जो, न करो ए प्रतिबंध तथा वयरी ग्रहो रे लो ॥ हां० ॥ धनवती पूत जयंत ठवे निज गण जो, धन धनवती के मंत्री