________________
श्री नेमिनाथनो रास खंग बीजो.
१८७
रा० ॥ वा ॥ २३ ॥ बेइ खाणा माय तायनी, रथमां वेसे तेह ॥ रा०॥ कोशला सन्मुख चालीयो, मनमां धरि निजगेह ॥ रा० ॥ वा० ॥ २४ ॥ जलाशय यावे जिहां, कईम शेष रहंत ॥ रा० ॥ धूलें गगन ते बाइ युं, बीजी धरा मानुं हुंत ॥ रा० ॥ वा० ॥ २५ ॥ बीजे खंमें यति नली, कही त्री अधिकार || रा० ॥ ढाल अग्यारमी सांजलो, पद्म कहे सुख कार रा० ॥ वा० ॥ २६ ॥ सर्वगाथा ॥ ३२९ ॥
॥ दोहा ॥
॥ मारग हवे इण वसरें, अर्क अस्तंगत थाय ॥ तम व्याप्यं सहु लोकमां, तिहां नवि कांइ देखाय ॥ १ ॥ पण निजपुर जावा तली, शबा अधिकी राय ॥ पण यालोक विना थया, परवश सघला जाय ॥ २ ॥ न विस्थलनी मालिम पडे, जल पण नवि देखाय ॥ गर्त्तावृद अल सहु, मानुं चौरिंडिय थाय ॥ ३ ॥ नल दवदंतीने कहे, नालतिलकथी खाज ॥ सहुने जुवानुं करो, ए महोटुं अम काज ॥ ५ ॥
॥ ढाल बारमी ॥
|| देशी रसीयानी ॥ दवदंती निजनाल प्रमार्जती, दूर थयो अंधकार ॥ राजेसर || जालतिलक यादीत्य परें तपे, दु प्रकाश तिवार ॥ रा जेसर ॥ १ ॥ पुष्यतणां फल देखो इणि परें । ए यांकणी ॥ सदु सुखमां हवेागल चालीया, तव मुनिवर तिहां दीव ॥ रा० ॥ मेरु परें काउस्सग्ग मांहे रह्या, सहि उपसर्ग उक्कि || रा० ॥ पु० ॥ २ ॥ तव नल कु मर कहे निज तातने, करो दर्शन ऋषिराज ॥रा० ॥ वाटमांही प्रसंगें फल थयुं, सारो धातमकाज ॥ रा० ॥ पु० ॥ ३ ॥ मदमातो करिवर निज गातनें, खणतो वृहनी जांत ॥रा० ॥ तस मदगंधथी चमर ते याविया, पण मुनिवर अति शांत ॥ रा० ॥ पु० ॥ ४ ॥ पूरव पुण्यथी ए मुनि पामिया, तव ते निषिध राजान ॥ रा० ॥ पुत्र परिवद सहित सेवा करे, जंगम तीरथ मान ॥ रा० ॥ पु० ॥ ५ ॥ नल कुबेर बेहु चा नमी तिहां, करि ऊपसर्ग ते दूर ॥ रा० ॥ करे प्रशंसा हर्ष घरी घणो, जाग्या पुण्यपमूर ॥ रा० ॥ ० ॥ ६ ॥ अनुक्रमें कौशला नयरीने दूक डा, पहोता नल कहे ताम ॥ रा० ॥ दवदंती सुणी कोशला शोनती, जिनवर चैत्य उद्दाम ॥ रा० ॥ पु० ॥ ७ ॥ दवदंती चिंते धन्य हुं य, न