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जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. ता प्रतें । ला० ॥ ला० ॥ ब्राह्मण थाको एह ॥ ७ ॥ कुं० ॥ बेसारो रथ ऊपरें ॥ला० ॥ला ॥ सुगी बेसारे नार ॥ कुं० ॥ अनुक्रमें पहोता ते गाममां ॥ ला० ॥ ला० ॥ स्नान करे वली आहार ॥ ए ॥ कुं० ॥ य व तणे देउल जइ ॥ ला॥ ला ॥ सूतो संध्याकाल ॥ कुं ॥ पांडव पु में आवीया ॥ लाला० ॥ जाएयो वसुदेव काल ॥ १० ॥ कुं० ॥ खेद लहे सदु यादवा ॥ ला ॥ ला ॥ करे आकंद पोकार ॥ कुं० ॥ हा वसु देव तुं किहां गयो ॥ला० ॥ला०॥ तुं अमचो आधार ॥ ११॥ कुं० ॥ समुविजय बहु विलपता ॥ला ॥ ला ॥ किहां मुफ लागुं पाप ॥कुं॥ लोक वचनथी राखीयो ॥ ला० ॥ ला ॥ घरमां कहीने आप ॥ १२॥कुं॥ तुम मुख क्यारें देखयुं ॥ला ॥.ला० ॥ करे मृत्युनां काम ॥ कुं० ॥ वात सुणी वसुदेवजी ॥ला ॥सा०॥ थिर मन थाये ताम॥१३॥ कुं० ॥ वि जय खेटकपुरें बावियो । ला॥ला०॥ तिहां सुग्रीव ले राय ॥ कुं० ॥ श्यामा विजयसेना धुवा ॥ला ॥लाणा रूप कलानो गाय ॥१॥०॥ तेह कलाथी जिंतीयो ॥ला ॥ला०॥ परणे तिहां दोय नार ॥ कुं०॥ सुख जोगवतां तेहगुं ॥ ला० ॥ ला ॥ देवपरें अति सार ॥ १५ ॥ कुं॥ नामें अक्रूर नंदन थयो ॥सा ॥ला०॥ विजयसेनाने तेह ॥ कुं०॥ते प ए वसुदेव सारिखो ॥ ला॥ ला ॥ मूके प्रबन्न गेह ॥ १६ ॥ कुं० ॥ घो र अटवीमाही गयो ॥सा ॥ला० ॥ तरपा लागी तास ॥ कुं०॥ पोहतो सरतीरें जिसे ॥ला ॥ला ॥ याव्यो गज तस पास ॥ १७ ॥ कुं० ॥ विंध्याचल पर्वत समो॥ ला ॥ ला॥ चढीयो तस शिर तेह ॥ कुं०॥खे द पमाडी गजप्रतें ॥सा ॥ला ॥ बेठो शिर करी देह ॥ १७ ॥ कुं०॥ अचिमाली पवनंजयो.ला०॥ला ॥ विद्याधर ए दोय ॥कुं०॥ देखी वसु देव कोडतो ॥ ला० ॥ ला ॥ तेह हरी गया सोय ॥ १५ ॥ कुं० ॥ कुंजरा वर्त उद्यानमां ॥ला॥ला ॥ मूक्यो आणी त्यांही ॥ कुं० ॥ विद्याधर नरपति जलो.॥ला० ॥ला ॥ अशनिवेग वसे ज्यांही ॥२०॥ कुं० ॥श्या मा नामें कन्या नली ॥ ला॥ ला० ॥ परणावे तेह राय ॥ कुं० ॥ सुख जोगवे संसारनां ॥ला० ॥ला ॥ दंपती काल गमाय ॥ १कुं० ॥ एकदि न वीण वजावतां ॥ ला०॥ ला० ॥ तूतो वसुदेव तास ॥ कुं० ॥ माग तुं वर मुफ पासथी ॥ ला० ॥ ला० ॥ तव कहे ते सुविलास ॥ २२ ॥ कुं० ॥