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जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो.
वातो सुणजो, नमिवंशें थयो राजा ॥ नामे पुलस्तनो मेघनाद सुत, जस पख बिदुबे साजा ॥ २५ ॥ म्हें० ॥ सुनूम चक्री तास जमाई, दिव्य शस्त्र दियां तेनें ॥ तेह शस्त्रनां नाम सुणो तुम्हें, नामें अर्थ के जेहने ॥ २६ ॥ ||म्हें ॥ १ बंसीर २ यायेय बे बीजुं, ३ दारुण ४ माहिंद जाणो ॥ ५ ज मदंम ६ ईशान वायव नामें, प्यंनोमोह मन प्राणो ॥ २७ ॥ म्हें ० ॥ शल्यु - ६रण ने १० व्रणरोहण वली, ११ नसंयण जस नाम ॥ १२ लोक हरण वली १३ बेदन जीना, १४ सर्वबेंद १५ गुणकाम ॥ २८ ॥ म्हें० ॥ बीजां पण बहु शस्त्र ते पे, श्वगुरनो तेह जमाइ ॥ दोय श्रेणिनी लखमी ग्रा पी, पूरवपुण्य कमाई ॥ २५ ॥म्हें० ॥ तेहने वंशें रावण राजा, वली बि जीप सारो | तेह विजीशणवंशे उपनो, विद्युद्वेग पियु महारो ॥ ३० ॥ म्हे० ॥ कुलकमागत श्राव्यां एह ते, तुमने सफलां थाशे ॥ जाग्य रहित म्हने सवि विफलां, बे म्ह घरमां वासे ॥ ३१ ॥ म्हें० ॥ नाग्य होये तो सफल याये, नहिं तो आपने मारे । जुन प्रतिवासुदेवने मारे, जे पो तें चक्रने धारे ॥ ३२ ॥ म्हें० ॥ एम कहीने शस्त्र ग्रहीने, विधिपूर्वक ते साधे ॥ पुष्यें सिद्धि याये सहु जगमां, देव परें याराधे ॥ ३३ ॥ हें० ॥ पुण्यथ की श्रीशांति जिदें, एक नवपद दोय पाम्यां ॥ तेम कुंथु र नाथने जाणो, पुण्यप्रकर्ष ए जाम्या ॥ ३४ ॥ म्हें० ॥ जुई मरीचि श्रीरूपननो पोत्रो, बा प ते चकी जास ॥ वासुदेव चक्री जिनवरपद, ए सवि पुण्यप्रकाश ॥ ३५॥ म्हें० ॥ वासुदेवनी पदवी नांही, पण वासुदेव सरीखो ॥ त्रण खंमनो जे यो जोक्ता, कोलिक नृप तुम्हें परखो || ३६ || म्हें० ॥ वली कुमारपाल संप्रति राजा, पुण्य अतुल जेणें कीधां ॥ चक्री वासुदेवने बल देवा, एययकी सहु सीधा ॥ ३७ ॥ म्हें० ॥ पुण्य होय तो सघनुं सीके, नहिं तो लढुं खीजे ॥ गांगो तेली पुण्यप्रजावें, राजसना जय लीजें ॥ ३८ ॥ न्हें० ॥ बीजे में बीजे अधिकारें, पांचमी ढाल गएणीजें ॥ पद्मविजय कहे श्रोताने घर, मंगल चार जणीजें ॥ ३५ ॥ हें० ॥ सर्वगाथा ॥ २०६ ॥ ॥ दोहा ॥
पु
॥ चार मंगल घर घर दुवे, पुण्य होय जो श्राप || नहिं तो फुलमाला तो, करमां प्रगटे साप ॥ १ ॥ ऊंधुं ते सवनुं दुवे, पुष्य तो परिमा ए । गांगो तेली पुण्यथी, पाम्यो जयत निशान ॥ २ ॥