Book Title: Akbar ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Maharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ।। ।। अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।। ।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। ।। योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। । चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। आचार्य श्री कैलाससागरसूरिज्ञानमंदिर पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प ग्रंथांक :१ जैन आराधन श्री महावी केन्द्र को कोबा. ॥ अमतं तु विद्या श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स : 23276249 Websiet : www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079)26582355 - - - For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir alon For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर, एम. ए. (इतिहास) सन् १९७७ ई० परीक्षार्थी लघु-प्रबन्ध प्रस्तोत्रीकु० नीना जैन निर्देशकप्रो० आर. एन. तिगनाथ प्राध्यापक एवं अध्यक्ष इतिहास विभाग महारानी लक्ष्मीबाई कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, ग्वालियर महारानी लक्ष्मीबाईकला एवं वाणिज्य महाविद्यालय ग्वालियर (मध्य प्रदेश) For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति प्रो० वार. स. तिमनाथ, प्राध्यापक एवम् बध्यत इतिहास विभाग, महारानी लक्ष्मी बाई का स्वं वाणिज्य महाविद्यालय, ग्वालियर (मध्य प्रदेश ) ww -0 www.kobatirth.org .. दिनांक..... मार्च १६७७ : प्रमाण जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर की एस. ए. इतिहास की परीक्षा के अष्टम प्रश्न पत्र के स्थान पर प्रबन्ध प्रस्तुत करने की सुविधा का उल्लेखनीय उपयोग कुमारी नीना जैन ने किया है । लघु प्रबन्ध का विषय है अकबर की धार्मिक नीति - मैं प्रमाणित करता हूं कि मेरे निर्देशन में कुछ नीना जैन ने यह प्रबन्ध लिखा है और यह मौलिक, सुचिन्तत और उच्च कृति है । - पत्र 131 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( बार. एन. तिगनाथ ) For Private And Personal Use Only -01 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra की धार्मिक नीति अकबर www.kobatirth.org प्रस्तावना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में अपना शीर्ण स्थान रखता है । मध्यकाल में मुसलिम तलवारों की युति के मध्य सहयोग और सहानुभूति की काल लिये हुए यह सम्राट अपना वव्दितीय स्थान रखता है । मुसलिम विजेताओं की देशीय राजावी बोरे प्रजा के प्रति तीव्र क्रूरता वीर हिंसा की नीति के वीच अकबर अपनी सांसदयता के लिये प्रसिद्ध है । उसकी यह सोहार्दयता मूल रूप से धार्मिक नीति में प्रस्फुटित हुई है, जिससे वह महानता के उच्चासन पर बासीन हो सका उसक बान्तरित जिज्ञासा और वास लालसा धार्मिक सहिष्णुता स्व नवीनता का रूप लेकर मध्य युग के वशांति पूर्ण वातावरण में शांति का सन्देशा लेकर हमारे पक गई। इस वशांति पूर्ण बौर बसहिष्णुता के बीच अकबर की धार्मिक सहिष्णुता अपना निराला स्थान रखती है । इसी निरालेपन ने सहज ही मेरे जिज्ञासु मन को अपनी और आकृति किया । फलतः यह लघु प्रबन्ध आपके समदा है । यपि अकबरकी धार्मिक नीति यह विशेष्य अपने बाप में उपाि हेतु विशद अध्ययन की रेखाओं से परिपूरित है फिर भी लघु प्रबन्ध की परिसीमा को ध्यान में रखते हुए इसे मैंने संक्षिप्त रूप ही प्रदान - किया है । प्राय: मध्यकाल के अग्रगण्य इतिहासकार व विद्यार्थी सभी के समा अकबर की धार्मिक नीति अपना विशिष्ट स्थान लिये हुए दिलाई देती है और मध्यकालीन धार्मिक नीति का अध्ययन करने पर अकबर की धार्मिक नीति ही विशाल एवम् नवीन रूप लिये हुए दिखाई देती है । इस क्षेत्र में अत्याधिक विश्व रूप में कार्य हो चुका है जिसने अकबर की धार्मिक नीति में निखार ला दिया है । मेरा यह लघु प्रबन्ध भी इस For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਝਦ ਛੀ ਗਲ ਸੰਗ पिशा में छोटा सा बालकीय प्रयास है । जिसमें बाबर की वार्षिक नीति का विश्लेषणात्मक वर्णन किया गया है । वस्तु इस दुःसाध्य से लगने वाले कार्य को सरल बनाने में गुरुवा प्रो. बार० एल० तिगनाथ (बध्या इतिहास विभाग ) ने मुफे बनेकाश : मार से अमूल्य सहयोग दिया । इस समस्त कार्य की पूर्ति का श्रेय उन्हीं को है जिन्होंने न केवल मुके सहायता ही दी बपितु समय समय पर नेराश्या से परिपूर्ण हृदय को नवीन पाशा की किरणों से परिपूरित कर कि हासिक जात में भटकती हुई को नवीन मार्ग प्रदान किया । साथ ही कार्य: करने की नवीन विधियों से मुझे बवगत करा कर सदैव उत्प्रेरित च्यिा स! सब को व्यक्त करने की न मुफ में सामथर्य है और मेरे शबों में। बापका बार्शीवाद मेरे प्रत्येक शुम कला की सफलता के लिये प्रेरणा स्त्रोत बन गया । शासकीय महाविधालय, शिवपुरी के इतिहास विभाग के प्रोफेसर: ० वी० बछाना के प्रति पी अपनी कृतज्ञता प्रकट करने में 4 पुरुष का अनुभव कर रही हूं जिन्होने स्व अकिंचिन को सहायता देने में कमी मी मुख नही मोड़ा। प्राथमिक विद्यालय राजपुरा, पुरानी शिवपुरी के योग्य अध्यापार श्री अवणलाल वर्मा, व्ही. टी० पी० उच्चतर माध्यमिक विपालयडा. जी. डी. चतुर्वेदी त्या व्याख्याता बी एस० स० शमा के प्रति मी 4 अत्यन्त कृतज्ञ हूं जिन्होंने समय समय पर अपना अमूल्य समय देकर मुझे हार्दिक सल्योग दिया । सके साथ ही प्रस्तुत प्रबन्ध में विभिन्न विद्वानों और हतिहासकारों के हिन्दी तथा बंग्रेजी के यों से भी मुफे असीम सहायता - प्राप्त हुई है। बतउन विद्वानों व इतिहास कारों की मी में वामारी For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की शामक नीति हूं और श्री ३० के० सलूजा, मारत टायपिंग सूट तथा श्री कृष्णा प्रिटिंग प्रेस शिवपुरी को भी धन्यवाद देती हूं जिन्होंने वतीवक सावि व मा के साथ कार्य सम्पादित किया । इन्ही शब्दों के साथ ही में यह लघु प्रबन्ध प्रस्तुत कर रही (मारी नीना ) For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति क्षमांक. अध्याय प्रथम अध्याय -- - खण्ड - व खण्ड ब व्दितीय अध्याय तृतीय अध्याय चतुर्थ अध्याय do अनुक्रमणिका - - - अकबर का व्यक्तित्व : वेशभूषा, भोजन, साक्षरता स्वभाव, धार्मिक उदारता, चारित्रिक दुईता है, ईश्वरीय निष्ठा । - - an - www.kobatirth.org अकबर के पूर्व सुल्तानों की धार्मिक नीति । धार्मिक नीति को प्रभावित करने वाले तत्व तत्कालीन परिस्थितियां व अन्य तत्व । महमूद गनजवी व मुहम्मद गौरी, दास वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश कोधी वंश | अकबर के पूर्वजों की धार्मिक नीति बाबर, हुमायूं । पृष्ठ क्रमांक For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - धार्मिक नीति का विकास ( सुतबा पढने से पूर्व १५७६ तक ) : प्रारंभिक धार्मिक - विचार, धार्मिक नीति का क्रमिक विकास, इस्लाम के प्रति दृष्टि कोण । ++++++.... Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकार की धार्मिक नीति माक अध्याय एउमाक पंचम अध्याय : विभिन्न घमाचार्यों से सम्पर्क, सुतबा व महजर: हिन्दू, पारसी, जन, ईसाई, इतबा, महजर । गष्टम अध्याय : वकबर और दीन - ए - लाही दीनालाही का अभ्युदय, स्वरूप, प्रारम्भ, विधि - विधान, सिद्धान्त, नियम, वर्गीकरण व सदस्य संख्या, असफलता, दीन-ए-इलाही के वारे में विभिन्न मत, बालोचना एवम् समीक्षा। सप्तम अध्याय : - - - - - - - - धार्मिक नीति के परिणाम । For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खण्ड - 'अ' अकबर से पूर्व सुल्तानों की धार्मिक नीति For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org अकबर के पूर्व सुल्तानों की धार्मिक नीति : (लण्ड ब ) इस्लाम व भारत में इसका प्रवेश : மன Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस्लाम का उत्कर्ण व प्रसार विश्व इतिहास में युगान्तर घटना है । पैगम्बर मोहम्मद के पूर्व वरब मूर्ति पूजकों का देश था किन्तु ५७० मैं मोहम्मद के जन्म व उनके ज्ञान प्राप्त करने के बाद इस्लाम बरब वासियों के समय में रंगमंचीय नाटक की भांति यकायक उपस्थित हुवा और शीघ्र ही बड़ी तेजी के साथ विकास कर गया । जब मोहम्मद साहब ने ६३० ई०. मैं कुरैश की शक्ति नष्ट करके मक्का को विजित कर लिया तब लोग इस्लाम के काफी संख्या में अनुयाई हो गये और इस्लाम ने वृहत रुप धारण कर लिया । भारत में इस्लाम का आगमन बड़ी तीव्रता के साथ हुवा | लोगों की धारणा है कि भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार विजेताबों की शक्ति तथा अत्याचार के कारण हुआ । किन्तु डा० ताराचन्द्र ने अपनी पुस्तक इन्फल्स ऑफ इस्लाम जोन इंडियन कल्चर में यह बताया है कि इस्लाम का प्रचार शांति पूर्ण ढंग से दक्षिण की ओर से हुआ । यही नहीं टामस बनार्ड का भी यही कहना है कि इस्लाम का धर्म प्रचार न तो बत्याचारी के निर्दय कृत्यों का परिणाम है और न मुसलिम यौथा के उस काल्पनिक रूप के कारण हुआ है जिसमें वह एक हाथ में तरबार और दूसरे में कुरान लिये चित्रित किया गया है। उनके धर्म प्रचार का मुख्य कारण उनके उपदेशकों का अथक परिश्रम तथा उनके व्यापारियाँ की कार्य दक्षमता है जिन्होंने इस मण्डल के कौने कौने मैं अपने धर्म की वाणी सुनाई, डा० ईश्वरी प्रसाद ने भी इसी मत का समर्थन किया है। १ वास्तव मैं दक्षिण भारत मैं मालावार आदि तटों पर शांति पूर्ण ढंग १ - डा० ईश्वरी प्रसाद मेडीवल इन्डिया पृष्ठ १२, १६६ For Private And Personal Use Only - Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org से और उत्तर भारत में शक्ति और ववैरता के व्दारा इस्लाम का प्रसार हुआ । सिन्ध पर बरवो की विजय ने इस्लाम के प्रसार का रास्ता खोल दिया क्योंकि जिन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया उन्हें जजिया से मुक्त कर दिया और जिन्होंने नहीं स्वीकारा वे जजिया कर के वोक से दवा दिये गये । अन्ततोगत्वा सुवक्त गीन एंव महमूद गजनवी के आक्रमणों व मुहम्मद गौरी की विजय ने भारत में इस्लाम का राज्य स्थापित कर दिया । इस प्रकार इस्लाम का प्रारम्भ धार्मिक रूप में हुआ परन्तु परिस्थितियों ने उसे राजनैतिक रूप दे दिया । (२) महमूद गजनवी और मुहम्मद गौरी की धार्मिक नीति : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir था महमूद गजनवी भारत मैं धार्मिक उद्देश्यों से पूर्ण हृदय लेकर आया इस्लाम ने उसकी असीम महत्वाकांक्षाओं को धार्मिकता का जामा पहना दिया था । कहा जाता है कि क्लीफा के मान्यता पत्र के बदले मैं उसने प्रतिज्ञा की थी कि वह प्रति वर्ष भारत वर्ष के काफिरों पर आक्रमण करेगा । उसका दरबारी इतिहासकार उसवी बताता है कि उसके आक्रमणों का उद्देश्य जिहाद था । जिसका मूल उद्देश्य इस्लाम का प्रसार और कुफ्र का मूलोच्छदन करना था । वह लिखता है कि - सुल्तान महमूद ने पहले सिजिस्तान पर आक्रमण करने का संकल्प किया परन्तु वाद मैं उसने हिन्द के विरुद्ध जेहाद करना ही अधिक अच्छा समझा (तारीख- ए- यमीनी ) ईश्वरी प्रसाद एवम् ए० एल० श्रीवास्तव बादि हविहाकार भी यही बताते है कि धार्मिकता ही महमूद के आक्रमणों का मूल कारण थी । किन्तु प्रो० हवीव बताते है कि महमूद धर्मान्य न था भारत पर आक्रमण उसने धार्मिक उदेश्यों को लेकर नहीं वरन लूट के लालच से किये (३) (२) दिनकर - संस्कृति के चार अध्याय । (३) प्रो० हवीव - महमूद आफ गजना पृष्ठ ५३ For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति यहां तक कि सोमनाथ के मंदिर के बारे में उन्होंने लिखा है कि - ब्राह्मणों का धन देने का वचन और महमूद की वस्वीकृति की कहानी वाद! मैं गढी गई है किन्तु अन्य मुसलमान विद्वान इसका समर्थन नहीं - करते है। वास्तविकता यह है कि महमूद इस्लाम की धार्मिक भावनाओं से ओत प्रोत था जिससे उत्साहित होकर उसने बामण किये । वाद में बामां में प्राप्त सम्पत्ति में उसे और पी वियों के सम्बन्ध में उत्युक बना दिया । . पार्मिक दौत्र में मुहम्मद गौरी का उद्देश्य गांण था उसका प्रमुख ध्येय भारत में अपनी राजनैतिक सत्ता की स्थापना करता था । यपि । समकालीन इतिहासकार हसन निजामी की ताजुल मवासिर तथा मिनहाज की तवकाते नसिरी से यह पता चलता है कि कन्नौज में गोरी ने अत्याथिक नरहत्या की और बनारस में अनेक मंदिरों का विध्वंस कराया । किन्तु अन्य धार्मिक अत्याचारीयों की मांति उसने कलात की परिवर्तन तथा धर्म के नाम पर कठोर अत्याचार नहीं किये । ४ - श्री नाजिम नै सुल्तान महमूद नाम की पुस्तक में पृष्ठ ११८ पर लिखा! है कि जब महमूद ने मूर्ति देखी तो बाशा दी कि इसका ऊपरी भाग गदा से तोड दो फिर चारो जोर बाग लगा दी जाय, फरिश्ता का क्थन । है कि मूर्ति बोखली थी । सत्य प्रतीत नही होता । अलवरूनी ने लिखा है कि लिंग ठोस होने का पता था । ५ - मोहम्मद हवीव - महमूद गांफ गजना - पृष्ठ ५३. For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर ७ की धार्मिक नीति " धार्मिक सहिष्णु था । दास वंश के सुल्तानों की धार्मिक नीति : www.kobatirth.org वस्तुत: यह कह सकते है कि वह महमूद गजनी की अपेक्षा अधिक दास वंग के सुल्तान ही दिल्ली सल्तनत के प्रारम्भिक सुल्तान थे जिन्होंने निष्ठा पूर्वक सल्तनत की जणे मजबूत करने में योगदान दिया हन सुल्तानों में एवक अल्तमश बार बलबत ही प्रमुख थे । इनका शासन पूर्णतः इस्लामी नियमों पर ही आधारित था । दिल्ली सल्तनत के प्रथम शासक एवक की इस्लाम में अत्याधिक निष्ठा थी । यहां तक कि उसने अनेक हिन्दू मंदिरों को तोड़ा और मस्जिदों का निर्माण कराया । उसमें धार्मिक सहिष्णुता का अभाव था इस्लाम मैं उसका पूरा विश्वास था । अल्तमश का जहां तक प्रश्न है वह एवक से भी धार्मिक कटटरवा मैं आगे था । हसन निजामी बताता है कि जालोर में पहुचने पर मंदिरों का जो कि सिर उठाये थे नाम भी न रहा और कुफ्र के अन्धेरे से इस्लाम का प्रकाश चमक उठा । ६ मिनहाज भी लिखता है कि मालवा पर चढाई की ओर पेलसा के किले पर अधिकार कर लिया वहां एक मंदिर जो तीन सो वर्णों में तैयार हुआ था जो १०३ गज ऊंचा था विध्वंस कर दिया गया । ७ इस प्रकार धार्मिक दृष्टि से उत्तुतमिश इस्लाम का कटटर बनुयायी या यपि आधुनिक मुसलिम इतिहासकारो ने उसकी उदारता की प्रशंसा की है । परन्तु धार्मिक उदारता काकही विवरण नहीं दिया । वास्तविकता भी यही है कि उसने धार्मिक उद्दारता की नीति का अनुसरण नहीं किया । उसने सदेव उल्मा वर्ग का समर्थन किया जो कि सुन्नी धर्म का अनुयायी था । वह कट्टर धार्मिक मुसलमान था जो प्रतिदिन नियम पूर्वक पांच वार नमाज पढता एवम् अन्य धार्मिक कृत्य किया करता था । रिजवी - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदि तुर्क कालीन भारत पृ० २७५ For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मळमर की धार्मिक नीति मिनहाज लिखता है कि इस प्रकार का कनिष्ठ वीर साधु फकीरी ईश्वर भक्तों तथा धर्म गुरुओं और मागायों के प्रति इतना पयाल क्या! अदालू राजा इस पृष्टि में कमी उत्पन्न नहीं हुवा । " १२२८ में बवासी खलीफा से प्रमाण पत्र लेकर उसने एक नवीन वध्याय जोड़ा वीर पुरी । सल्तनत को धार्मिक मान्यता पी प्राप्त कर दी। कवन की धार्मिकता उसके धार्मिक स्वरुप की उत्कृष्टता को प्रकट करती है । एक और जहां वह उलेमा वर्ग पर कठोर नियंत्रण रखता था वही पर साधु, फकीर एंव वालिमा के प्रति वह अत्याधिक उदार था । मिनहाज तो उसकी उदारता को उच्चतम विन्दु तक पहुंचा देता है वह लिखता है कि यदि नगर में कोई शेख सैयद सन्त क्यवा बालिम का ! स्वर्गवास हो जाता तो सुल्तान उसके जनाजे के साथ उपस्थित रहता ।" इस प्रकार इस्लाम में उसकी अटूट वास्था थी किन्तु हिन्दुओं से वह घृणा करता था । वह कहा करता था कि ब्राह्मण जो कि कुफ्र के माम है, को देखते ही नष्ट कर देना चाहिए । क्लवन थन्धि था वॉर अपनी वसुसंस्था माता के साथ उसका व्यवहार सहिष्णुता पूर्ण रहा । तुर्की । की श्रेष्ठता में उसका विश्वास था । वस्तुत: पार्मिक वसहिष्णुता के पात्र में वह अपने पर्ववर्ती शासकों से भी बाग था। खिलजी वंश के सुल्तानों की पार्मिक नीति : लिजी वंश के सुल्तानो की धार्मिक नीति भी बमाणिक हत्याएँ व नृशसंता से परिपूर्ण पी । खिलजीयों में वासवंश की कटटर इस्लामिक धार्मिकता उभर कर सामने वा गई है । इस वंश के शासकों ने मुख्य रूप से कालुदीन फीरोश खिलजी एवम अलाउदीन प्रमुख है। सुल्तान कारुदीन खिलजी इस्लाम का परम भक्त था यह कहा - करता था"मैं अपनी नीति के विगय में केवल उन लोगों का ही बनुकरण करता हूं जो पैगम्वरों की बाजाओं का पालन करना अपना परम For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मकबर की धार्मिक नीति कर्तव्य समझते है ।" "में प्रतिदिन एक छिपारा कुरान पढता हूं। पांना समय की नमाज पढ़ता।" उसके सम्पूर्ण जीवन में पार्मिक अनुरक्ति स्पर प्रतिक्षित होती है वह मुसलिम प्रजा को बत्यावधिक प्रेम करता था । क्योकि रण थार विज्य के सम्बन्ध में वह कहता है कि इस प्रकार के दस किलों को मुसलमानों के सवाल को हानि पहुंचा कर बैन के पदा में नहीं । " किन्तु सीदी माला की हत्या से उसकी पुरता प्रदर्शित होती है । मुछ मुसलिम इतिहास कार परनी, हसामी बादि इस कृत्य के लिये सूल्तान की बालोचना करते है परन्तु वास्तव में उसका दस्ड जपराय के योग्य था क्योकि वत्ती स्वयम् खिता है कि" विरंजतन कोतवाल और हधिया पायक रात रात पर सीपी के पास बैठ कर षडयंत्र रचा करते थे । १० इससे स्पष्ट है कि कालीन उसके दण्ड के लिये दोषी नही माना जा सकता है। बत: काधीन की धार्मिकता में कोई जांच नहीं पाती है। वास्तव में तो इस्लाम में उसकी अगाढ़ बारथा थी। हिन्दुओं के प्रति व्यवहार में कालदीन की नीति भी बने पूर्व । शासको की अपवाद सिद्ध नहीं हुई । यपि सुल्तान सहदय एंव दयाल था किन्तु हिन्दुओं की मूर्ति पूजा बादि का तो वह कटटर विरोषी पा । बरनी लिखता है कि अकाली राज्यकार में बधामयाँ वमजावा। हिन्दुओं तथा नास्तिकों को किसी स्थान में प्रवेश करने की बाशा नहीं भी । ११ लालुद्दीन को पर वात वा का दुख: था कि वह हिन्दुओं ८. रिजवी खिनी कालीन भारत पृष्ठ १२ ११ • " " " + + + + + + + + For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अळकर की धार्मिक नीति की मूर्ति पूजा का अन्त न कर सका तथा उन्हें दाने दाने को मोहताज नहीं कर सका। काउद्दीन खिलजी कम के क्षेत्र में अपने पूर्व पालिक सुल्तानों की पंक्ति में नवीन स्थान ग्रहण करता है । यह तो स्पष्ट है कि वह इस्लाम का भक्त था किन्तु उलेमावाँ बादि के हस्तातोप को वह राजनीति में सहन नहीं कर सकता था। यही नहीं राजनैतिक कार्यों के बागे पार्मिक पा को प्राथमिकता भी वह नहीं देता था। जैसा कि बरनी बताता ! " मैं नहीं समझता कि यह बाजार शरा के अनुसार है या शरा के विहद है । मैं जो कुछ राज्य के लिये उचित समझता हूं उनही की वाज्ञा देता हूं । १२ इसी तरह अनेक स्थानों पर वह राजनैतिक कार्यों को प्राथमिकता देता है यही कारण है कि तत्कालीन कटटर लेता बरती ने सुल्तान को अंशत: की विहीन मी प्रदर्शित करने का प्रयास किया है। जैसे ना लिखता है"शराओं की बाशा पालन करने पर वह कोई ध्यान नही देता था । नमाज रोजे का न तो उसे ज्ञान ही था और न जानकारी ही। १३ साथ ही वह यह भी बताता है कि अलाउदीन सा नवीन धर्म की स्थापना करना चाहता था । परन्तु निजामी सका ता संगत खण्डन करते है तथा अपने पा की परिपुष्टि के लिये अनेक मत देते है । १४ अन्तता: यही कहा जा सकता है कि काउदीन में इस्लाम के प्रति निष्ठा तो थी भिन्तु वह राजनीति कार्यों में उसे वापक नहीं होने देना चाहता था। १२ - बरनी - तारीख • २ • फीरोज शाही इष्ठ २९६ १३ - रिजवी • खिलजी कालीन भारत पृष्ठ ६३ १४ - निजामी - दीपोपीसिव हिस्ट्री मांफ इन्डिया - दी देहली सल्तनत - भाग ५ पृष्ठ ३३६ For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति हिन्दुओं को अलाउद्दीन फूटी आंखों भी समृद्ध नहीं देखना चाहता था । उसने अपने शासन में हिन्दुओं को अत्याधिक पीन हीन बना दिया था । काजी मुगीस व्वारा दिये गये उत्तर को बरनी ने लिखा है कि" हिन्दु मुस्तफा के दुश्मनों में सब से बड़े दुश्मन है मुस्तफा बल्ले िहस्सलाम ने हिन्दुओं के विषय में यह बाशा दी है कि उनकी हत्या। कर दी जाय उनकी धन सम्पत्ति लूट ली जाय या उन बन्दी बना ख्यिा ! जाय या तो उनसे इस्लाम स्वीकार करा लिया जाय बन्यथा हत्या करपी! जाय । १५ इस समकालीन इतिहासकार के वर्णन से हिन्दुओं की दीन । स्थिति का स्पष्ट चित्र समपा बा जाता है किन्तु निजामी इसकी बाली-1 चना करते हुए बताते है कि पैगम्बर ने कभी हिन्दू को नहीं देखा । और न ही वाद के छ: पुन्नी शास्त्रों में इसका वर्णन है।"१६ कुछ भी हो यह तो निश्चित है कि बलाउद्दीन हिन्दुओं को निम्नतम स्थिति तक ले पाना चाहता था फरत: हिन्दुओं को जीवन यापन अत्यधिक कठिन हो गया । इस लिये बरनी लिखता है कि "Teन्दुओं को लज्जित पतित और दरिद्र बना दिया है । मैंने सुना है कि हिन्दुओं की स्त्रियां तथा वालक मुसलमानों के व्दार पर भीख मांगा करती है । १७ इस प्रकार अलाउदीन कटटर मान्य सिद्ध हुबा जिसने इस्लाम की रक्षा के लिये काफिरी का सफाया कर दिया । तुगलक वंश के मुल्तानों की पार्मिक नीति : - - - -- - - - तुगलक शासकों में बार्मिक नीति के विभिन्न पल हम देखने की मिलते है । जहां एक और प्रारम्भिक काल में मोहम्मद धर्म को कोई प्रापनिकता नहीं वही फीरोज प्रारम्भ से ही कटटर सन्धि पा । स प्रार १५ - रिजवी - खिलजी कालीन भारत - पृष्ठ ७० १६ • निजामी - दी कोम्पीसिव हिस्ट्री जांफ इन्डिया - दी येल्ली १७ • रिजवी खिलजी कालीन भारत ०७१, सल्तनत भाग ५ पृ० ३१७ For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra की धार्मिक नीति अकबर www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुगलक काल में धार्मिक नीति के नवीन पदा मी हमारे समक्ष जाते हैं । डुगलक वंश का प्रथम शासक गयासुदीन तुगलक अपने निजी जीवन मैं कटटर सुन्नी मुसलमान था । खुसरो की हत्या करने के बाद वह एक श्रेष्ठ इस्लामी शासक के रूप में पदासीन हुवा | अतः उसको धर्मान्य होना स्वभाविक सा ही था । यही कारण है कि इस्लामी नियमों के विरूद्ध व्यवहार करने पर वह शेख निजामुद्दीन बोलिया से भी अत्यन्त नाराज था । - .. हिन्दुओं के प्रति गयासुदीन का व्यवहार प्रशंसनीय नहीं था । अलाउद्दीन के अनेक नियमों को उसने जारी रखा और हिन्दु को सम्पि एकत्रित करने की अशा नहीं दी गयी । जहां तक अधिक कर न लगाने का प्रश्न है इसके सम्बन्ध में बरनी स्पष्ट लिखता है कि सुल्तान नै हिन्दुओं पर अधिक कर इस लिये नहीं लगाया कि वह निराश होकर अपनी भूमि तथा व्यवसाय छोड़कर भागने पर वाध्य नहीं करना चाहता था । इस प्रकार ग्यासुदीन का भी हिन्दुओं के प्रति व्यवहार उचित नहीं था । For Private And Personal Use Only मोहम्मद तुगलक के जाते ही धार्मिक क्षेत्र में हम नवीन मोड देखते है । अपने प्रारम्भिक काल में उसने वर्म निरपेक्षता का परिचय दिया, और प्रशासन आदि में उलैमा पर नियंत्रण रखा । अशरफ तो यहां तक लिखते है कि भारतीय मुसलमानों की योजनावद्ध रूप से मनाही कर दी गई थी और सुल्तान विदेशी लोगों पर विश्वास करने लगा । यही नहीं वरनी को इस वात का बड़ा दुख था कि सुल्तान उलेमा आदि की हत्या करने में किसी प्रकार की हिचकिचाहट, प्रदर्शित नहीं करता था । यही कारण है कि उसने मौहम्मद तुगलक व को एक विचित्र शासक के रूप मैं प्रदर्शित किया है । उसने हिन्दुओं को भी उच्च पद देना प्रारम्भ कर दिया था । डा० मेहदी हुसैन ने अपनी पुस्तक राज एन्ड फल बफ दी मुहम्मद बिन तुगलक में रतन नामक हिन्दू का विवरण दिया है जो Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर १८ की धार्मिक नीति - सिन्थ का सुवेदार था किन्तु ईश्वरी प्रसाद यह बताते है कि वह सुवेदार न होकर राजस्व अधिकारी था । इससे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि उसका अपनी वहुसंख्यक प्रजा से धर्म के कारण असहिष्णुता पूर्ण व्यवहार नहीं था । १६ - .. इस्लाम के प्रति मोहम्मद की पूर्ण निष्ठा थी हव्नवत्ता उसकी नमाज की दिल खोल कर प्रशंसा करता है। वरनी ने भी उसकी दानशीलता तथा नमाज के प्रति रूचि का स्पष्ट विवरण दिया है किन्तु मुसलिम को कटु दण्ड के समय वह आक्रोशित हो जाता है और सुल्तान की बुराई करने मैं किसी प्रकार पीछे नहीं हटता । वह बड़े सुन्दर शब्दों में लिखता है - कि एक और मैं उसकी धर्मं निष्ठता और नम्रता अपनी आंखों से देखता था तो दूसरी ओर कोई दिन ऐसा व्यतीत नहीं होता था जव कि सुन्नी मुसलमानों के शीबा खीरे ककड़ी की भांति न काट डाले जाते हो । ऐसा कोई सप्ताह व्यतीत नहीं होता था जब कि अनेक मुसलमानों की हत्या न कराई जाती हो । वीर उसके महल के व्दार के बागे रक्त की नदी न वहती हो । १८ इस प्रकार उसने मुसलिम जनता को भी कठोर दण्ड दिये किन्तु इन दण्डों के फल स्वरूप मुसलिम प्रजा उससे नाराज हो गयी और विद्रोह करने लगी । जिससे प्रभावित होकर उसने क्टीफा से आज्ञा पत्र प्राप्त करने के लिये वही सेवा की । वरनी लिखता है कि देहली मैं कुब्वै सजाये गये सुल्तान अमीरुल मोमिनीन की लिवा तथा मनशूर अपने सिर पर रख कर शहर के व्दार से महल के व्दार के भीतर तक गया और अत्याधिक आदर सम्मान किया । .. www.kobatirth.org रिजवी - तुगलक कालीन भारत " 19 "" १६ भाग १ पृष्ठ ३६ 19 For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पृष्ठ ६० 10 - Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मकर की धार्मिक नीति इस तरह हम देखते हैं कि सुल्तान मोहम्मद हमें धर्म क्षेत्र में विभिन्न रूपो को प्रर्दशित करता है । वास्तव में वह दिल्ली सुल्तानों की पक्ति में स्क नवीन रुप का अवलोकन करता है। फीरोज तुगलक थामिक दृष्टि से स्क श्रेष्ठ मुसलमान के रूप में हमारे समा जाता है । इस्लाम के प्रचार और प्रसार को वह अपना धार्मिक कर्तव्य समकता था । वह अपने ग्रन्थ फतहाते फीरोजशाही में लिखता है कि मैंने अपनी काफिर प्रजा को पाबर का धर्म अंगीकार करने! के लिये प्रोत्साहित किया और घोषणा की कि प्रत्येक व्यक्ति को जो । अपना धर्म छोड़कर मुसलमान हो जाएगा, जजिया से मुक्त हो जाएगा। उसे इस वात का बड़ा खेद था कि वालण जो कि के माम है - जजिया से वंचित है फलत: उसने ब्राह्मणों पर भी जजिया लगा दिया । उमा के प्रति भी वह अपनी पूर्ण श्रद्धा त्या भक्ति रखता था वह जानता था कि मोहम्मद की मृत्यु के बाद उन्ही ने उसे शासक नियुक्त किया था त्या सुल्तान मोहम्मद की बसफलता का कारण मी उठेमा से संघर्ग था । इन सव कारों से फीरोज अत्याधिक सजग था साथ ही उसकी आत्म प्रवृति भी धार्मिकता की और अधिक फकी हुई थी । इस लिये उसकी इस्लाम में पूर्ण निष्ठा थी। हिन्दुओं के प्रति फीरोज की नीति कटटर मान्ध मुसलमान की थी वह हिन्दुओं के पार्मिक रीति रिवाजों को पूर्णत: नष्ट कर देने के पदा में था। उसने नगर कोट, बागर पर बामण के समय वहां के प्रसिद्ध मंदिर को भूमि सात कर दिया । अनेको मूर्तियों को तुडवा कर फिकवा दिया । बफीफ की तारीख और फीरोज की वात्म क्या हिन्दुओं पर किये गये अत्याचारों का स्पष्टांकन करती है । अपनी पुस्तक फलात में फीरोज लिखता है कि मुझे यह सूचना मिली कि कुछ हिन्दुओं ने सालिहपुर गांव में एक नया मंदिर बनवा ख्यिा और मूर्ति For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org पूजा किया करते हैं तो मैंने कुछ व्यक्तियों को मंदिर के विनाश के लिये भेज दिया । २० इस प्रकार के अनेक उदाहरण उसकी नृसंसता का परिचय देते है । वस्तुत: अन्तत: यही कहा जा सकता है कि फीरोज इस्लाम के अतिरिक्त किसी भी धर्म को जागृत अवस्था में नही देखना चाहता था यही कारण है कि इस्लामी निष्ठा के लिये हिन्दुर्बी पर अनेक अत्याचा किये । लोधी सुल्तानों की धार्मिक नीति : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोधी शासकों ने मी धार्मिक क्षेत्र में अपने पूर्व शासकों का अनुकरण किया उन्होंने उलेमाओं को पूर्ववत उच्च पदों पर ही प्रतिष्ठित किया । लेकिन उन्होंने फीरोज तुगलक बादि की तरह उलेमाओं को ही राज्य का महत्व पूर्ण वर्ग नही माना अपितु वह उलेमाओं पर मी नियंत्रण रखते थे । २० २१ - डोर्न रिजवी - तुगलक कालीन भारत 12 बहलोल लोची अवश्य बफगान बनीरों के साथ ही उलेमाओं को भी अत्यअधिक महत्व देता था । किन्तु सिकन्दर ने इस महत्व को कम कर दिया और यही स्थिति इब्राहीम के समय भी रही। कुछ लोगों का कहना है कि वहलोल ने सद वाईन नामक सन्त की सेवा की थी बोर उसे अमीष्ट घन ( २००० रुपये ) दिया था जिसके वदले में सन्त ने प्रसन्न होकर ये शब्द कहे - ईश्वर करे दिल्ली साम्राज्य की राजगादी को वाप सुशोभित करें । २१ कुछ भी हो यह तो निश्चित है कि वल्लोल दरवेश सन्त एंव उलेमाओं का अत्याधिक वादर करता था लेकिन सिकन्दर के आते ही उठेमा की इस स्थिति पर नियंत्रण लग गया । यमपि यह निश्चित है कि सिकन्दर बड़ा धार्मिक व्यक्ति था वीर राज्य प्रबन्ध में For Private And Personal Use Only भाग २ पृष्ठ ३३३ मखजन अफगानी पृष्ठ ४३ तारीखे दाऊदी में २००० टंक के स्थान पर १३०० टंक लिखे है । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिळ नीति उलेमा के परामर्शको भी वह मानता था । किन्तु राज्य पर उलेमा के प्रभाव को वह स्वीकार नहीं करता था। फीरोज की मांति मुस्लिम विथवावां की छड़कियों की शादी के लिये वह दहेज का प्रवन्ध किया करता था । अपने की के लिये उसमें इतना उत्साह था कि मथुरा के मंदिर तुङवाने और उनके स्थान पर सराय तथा मस्जिद बनवाने की उसने बाशा दे दी थी । हिन्दुओं को यमुना के पार्टी पर सान करने की बाशा नहीं. थी । वास्तव में इसने हिन्दू की को कुच्छन बार स्लाम का उत्थान करने के लिये हर संभव प्रयत्न क्यिा उसकी बाधीनता में दिल्ली सल्तनत इस्लाम के प्रचार का उतना ही सक्रिय साथन वन गई जितना कि फीरोज तुगलक के समय में थी । स लिये हम कह सकते है कि उसकी धार्मिक नीति कटटर इस्लामी थी । ड्राहीम की मी इस्लाम में पूर्ण निष्ठा थी। किन्तु उसने सिकन्दर की पाति हिन्दुओं के प्रति घृणात्मक व्यवहार नहीं किया । वास्तविकता तो यह पी किवान्तरिक विद्रोह बार वाल आमाँ के कारण वह इस बार अपना ध्यान ही नहीं दे सका । इस प्रकार हम कह सकते है कि अकबर के पूर्व दिल्ली सुल्तानों की धार्मिक नीति स्लाम धर्म प्रधान थी । प्राय: प्रत्येक सुल्तान ने इस्लाम के संवर्धन वोर विकास के हर सम्भव प्रयास किये वीर हिन्दुओं पर कनेक प्रकार के अत्याचार किये । इस काल में शासन में उलेमा वर्ग बड़ा ही प्रभाव शाली था । कुछ शासकों के समय तो उलेमा ही राज्य के प्रधान बन गये जिन्होने सम्पूर्ण राज्य पर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया । अधिकांशत: प्रत्येक शासक की नीति इस्लाम को ध्यान में रख कर ही निर्धारित होती थी और इस ख्येि यदि इस काल को की राज्य कहा जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं । -0 - - For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org खण्ड - 'ब' अकबर के पूर्वजों की धार्मिक नीति For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਲਡ੨ ੴ ਸੰਸ਼ ਰਿ अकबर के पूर्वजों की धार्मिक नीति (खण्ड) अकबर का जन्म मध्य एशिया के जर्ज बादशाह अमीर तरलंग की सातवीं पीढ़ी में हुवा था । पितृ पा में वह तैमूर से सम्बन्धित था। उसके पितामह बाबर की माता तेरहवी सदी के प्रसिद्ध मध्य एशिया के बांतक वादी मंगोल चंगेज खां के वितीय पुत्र चगताई से उत्पन्न मंगोल के खान यूनुस खां की पुत्री थी । अकबर के पिता हुमायू ने रान के निवासी अली अकबर जामी की पुत्री हमीदा वानू से विवाह किया था और इसी ! हमीदा बानू बेगम से अकबर का जन्म हुवा था । इस तरह अकबर के पूर्वज मध्य एशिया व ईरान ने सम्बन्धित थे । यपपि चंगेज खां व तैमूर लंग में धार्मिक कटटरता का अभाव था । वे समयानुकूल धार्मिक कृत्य करते थे, लेकिन यहां हम उनकी धार्मिक नीति का विवेचन न कर के अकबर के पितामह बाबर और पिता हुमांयू की धार्मिक नीति का ही वर्णन करेगे बाबर की पार्मिक नीति : ययपि बाबर एक कटटर सुन्नी मुसलमान था लेकिन इसका यह तात्पर्य नही कि उसमें धार्मिक कटटरता थी । सुन्नी मत के प्रति उसकी वा बौर विश्वास ने उसे दूसरे मतपय के लोर्गा से मित्रता करने से नहीं रोका । वह नियम पूर्वक रोजे रखता था, नमाज पढ़ता था तथा वन्य धार्मिक रीति रिवाजों का पालन करता था । वह शराब का शौकीन अवश्य था लेकिन अपने बेटे हुमांय की तरह वह नशे का गुलाम नहीं था। ईश्वर के प्रति उसका इतना बटूट विश्वास था कि उसे ईश्वर पुत्र" ठीक ही कहा गया है । वह कहा करता था"श्वर की इच्छा के बिना कुछ पी नही हो सकता, उसकी शरण में रह कर हम वागे बढ़ना चाहिये। १. ए. ल. श्रीवास्तव - मुगल कालीन भारत पृष्ठ ४३ For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिळ नीति जब जब उसे विजय श्री प्राप्त होती थी वह भगवान को अनेकानेक धन्यवाद देता था और मानता था कि यह उसकी अनुकम्पा का परिणाम है। पानीपत के युद्ध के बाद भी उसने इसी प्रकार के विकार व्यक्त किये थे । " एक माले की लम्बाई के बराबर जब सूर्य ऊंचा बा गया तो युद्ध शुरु हुना और दोपहर तक चलता रहा । तब शत्रु किकुल हार गया और भगदड़ मच गई । मेरे लोग विजयी हुए और उल्लास से मर गये । भगवान की पया बार कृपा से यह कठिन कार्य मेरे लिये बासान हो गया और वह शक्ति शाली सेना बाथै दिन के पीतर मिटटी में मिल गयी ।"२ सुन्नी मत का अनुयायी होते हुए मी बाबर ने समरकन्द में शियामत को प्रोत्साहन दिया था। जहां तक बाबर का हिन्दु वर्ग के प्रति व्यवहार का सम्बन्ध है वह अपने युग की परिस्थितियों से ऊपर न उठ सका । राणा सांगा 1 के विरुद्ध उसने जिहाद आरम्म किया था और अपने बादमियों को यह कह । कर उसके विरुद्ध लडने के लिये मडकाया कि वह काफिर है और उसके . विरुद्ध युद्ध करना उनका धार्मिक कर्तव्य है । बस सब से बच्श यही है कि अपने लिये ये दो वाते ठीक कर लेनी चाहिये कि यदि शत्रु को परास्त । किया तो गाजी ३ हुए बोर मारे गये तो शहीद ४ हुए । दोनों प्रकार से अपनी मुक्ति है बार पदवी बड़ी और बढ़ कर है। विजय प्राप्ति के वाद बाबर ने गाजी का खिताब ५ प्राप्त किया था । चन्देरी के मेदिनीराय . . . . . . . . . . . . . . . ---------- २ - एस० नार० शा - अनुवादक मथुरालाल शर्मा भारत में मुगल साम्राज्य पृ. २३ • गाजी उन्नै कहते है जो दूसरे मतवालों को मारते है। ४ - शहीद वह है जो धर्म के लिये मारे जाते है। ५ - इस विज्य पर बाबर ने पल्ले परुळ यह पदवी धारण की क्योकि इस बार शच मुसलमान नहीं थे। For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर ६ - की धार्मिक नीति 19 - के विरूद्ध भी उसने ऐसा ही धर्मं युद्ध लड़ा था और चन्देरी से उत्तर पश्चिम की बोर एक पहाड़ी सिरे पर काफिरों के सिरों का मीनारा बनवाया । बाबर किस निर्दयता के साथ लुटेरों का दमन किया करता था इसका अहमद यादगार ने वर्णन किया है । जब वह सरहिन्द पहुंचा तो माना के काजियों में से एक ने यह शिकायत की कि मोहन सुन्दाहर ने उसकी सम्पत्ति पर आक्रमण किया है, उसको जला दिया है और उसके लड़के को मार डाला है। इस पर विश्व विजेता बादशाह ने अली कुली हमदानी को तीन हजार घुड़ सवारों के साथ बदला लेने के लिये नियुक्त किया और आदेश दिया कि मुन्दाहिर ने प्रार्थी के साथ जो दुर्व्यवहार किया है और उसको जो हानि पहुंचाई है उसका पूरा पूरा बदला लिया जाय । मुन्दाहिर के लगभग एक हजार आदमी मारे गये और एक हजार आदमी औरते और बच्चे बंदी बना लिये गये । बहुत हत्याएं की गई । कटे हुऐ सिरों का ढेर लग गया बोर मोहन मुन्दाहिर को जीता पकड़ लिया गया । ६ चाहे बाबर में अनेक गुप्ण थे लेकिन था तो वह एक मुसलमान बादशाह । यही कारण है कि बन्देरी में राजपूतों के आत्म बलिदान के विषय में उसने कहा था कि वे सब नर्क में पहुंच गये पश्चाताप करने के बाद जब उसने तमगा नामक कर उठाया तो उससे केवल मुसलमान ही मुक्त किये गये थे हिन्दू नहीं । वयोध्या मैं उसने अपनी मस्जिद ऐसे स्थान पर निर्माण करायी थी जिसे श्री राम चन्द्र जी का जन्म स्थान मान, लाख हिन्दू पूजते थे । ७ बाबर की इस नीति के कारण भोपाल के हस्तलिखित www.kobatirth.org ए.. श्रीवास्तव एस. बार शर्मा - हिन्दी अनुवादक - मथुरालाल शर्मा भारत में मुगल साम्राज्य पृष्ठ ४२-४३ मुगल कालीन भारत पृष्ठ ४४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - For Private And Personal Use Only 16 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति पत्र ८ की जो बाबर का माना जाता है और जिस मैं सदोषत: उसकी उदार नीति का उल्लेख है, स्वीकार करना कठिन है। लेकिन इसका यह अर्थ नही है कि बाबर की उदारता के विषय में जो उल्लेख मिलता है उसका यहां विरोध किया जा रहा है । फरिश्ता ने लिखता है कि बाबर की उपस्थिति से ही दौलत खां के कुटुम्व की हज्जत वची थी । ६ 17 - ८ इस पत्र में लिखा है कि है मेरे पुत्र । भारत वर्ष में विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते है । भगवान को धन्यवाद दो कि शहशांह ने इस देश का शासन तुम्हारे सुपुर्द किया है । इस लिये तुम्हारा कर्तव्य है कि १ - धार्मिक पदापात का तुम्हारे ऊपर कोई प्रभाव नही होना चाहिये और निष्पक्ष होकर तुमको न्याय करना चाहिये । जनता के विभिन्न व की धार्मिक भावनाओं का ध्यान रखना चाहिये । २ विशेष कर तुमको गो-वथ से दूर रहना चाहिये । ऐसा करोगे तो लोगों के दिलों मैं तुम्हें जगह मिलेगी । हस देश के लोग तुम्हारे कृतज्ञ होगे और तुम्हारे साथ उनका कृतज्ञता का दृढ बन्धन हो जायेगा । ३ तुम किसी जाति के प्रार्थना भवन को मत गिराना और सदैव न्याय प्रिय रहना, जिससे बादशाह और प्रजा का परस्पर सम्वन्ध अच्छा बना रहे और जिससे देश में शांति वीर सन्तोष रहे । ४- इस्लाम का प्रचार दमन शास्त्र की अपेक्षा स्नेह शास्त्र से और एहसान से अधिक होगा । For Private And Personal Use Only ५ शिया और सुन्नी के पारस्परिक झगड़ों की ओर ध्यान मत देना, अन्यथा इससे इस्लाम निर्बल होगा । ६ अपनी प्रजा की विशेषताओं को ऐसा मानना जैसे वर्णं की विभिन्न ऋतुओं को ऐसा करने से शासन को कोई रोग नहीं लगेगा । € एस. आर. शर्मा हिन्दी अनुवादक मथुरा लाल शर्मा भारत मैं मुगल साम्राज्य पृष्ठ ४१ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति ------ १० www.kobatirth.org इसी तरह एकिन ने बाबर की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि " बाबर के मैं सब प्रशंसनीय बात यह है कि उसके व्यवहार में हमेशा कृपालुता, और मानवता बनी रहती थी यदि उसकी जीवनी में कहीं निर्दय हत्याब का वर्णन आता है तो वह उस युग की विशेषता है, उसके स्वभाव की नही १० अन्य कटटर पंथी सुनी मतावियों की तरह उसने इस्लाम धर्म के काफिरों को सताने का अपना कर्तव्य नहीं बना लिया था । हिन्दू वर्ग के प्रति बाबर का व्यवहार सल्तनत- युग के अन्य शासकों के व्यवहार की भांति बुरा नहीं था । हुमायूं की धार्मिक नीति : - बाबर की तरह हुमायूं भी निष्ठावान मुसलमान था। पांचों वक्त की नमाज वह नियमित रूप से बढ़ता था । और इसके साथ साथ अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों का भी पालन करता था अपने पिता की पांति वह मी साम्प्रदायिक कटटरता से दूर था । सुन्नी होते हुए मी शिया मतावलम्बियों के प्रति उसके हृदय में द्वेष भाव नहीं था । इसका एक कारण तो यह हो सकता है कि बाबर से विरासत में मिली हुई उदार भावना वीर दूसरा उसकी पटरानी हमीदा बानू बेगम शिया थी और विश्वास पात्र सेवक बेराम खां मी शिया ही था । जब वह फारस में था तो राजनैतिक लाभ के लिये शियामत के रीति रिवाजों को भी मानता रहा । यपि उसने परिस्थितिवश ही शियामत ग्रहण किया था क्योंकि फारस का कटटर शियामतावलम्बी शाहतहमस्प हुमायूं को शियामत में दीक्षित करने के लिये उत्सुक था और यदि हुमायूं इसके लिये तैयार नहीं होता तो उसे वह प्रयोग व्दारा ऐसा करने के लिये बाध्य किये जाने की छिपी हुई धमकी दी गई थी । एस. आर. शर्मा - हिन्दी अनुवादक मैं भारत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मथुरालाल शर्मा मुगल साम्राज्य पृष्ठ ३६ 13 For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की थामक नीति __वह नमाज वीर वज़ यथा समय करता था और वजू करने से पहले कभी भी खुदा का नाम अपने मुंह से उच्चारण नहीं करता था ।११ एक बार उसने अपने प्रधान न्यायाधीश या सदर मीर अल हय को कर बब्बुल के नाम से पुकारा । परन्तु जब उसने वजु कर ली तो उससे रामा चाही और कहा कि उसके नाम में हय शब्द जुदा का पोता है । इस लिये वह वन करने से पहले इस शब्द का उच्चारण नही कर सकता था । जहां तक हिन्दुओं के साथ हुमायूं के व्यवहार की बात है। उसका अपने युग की परिस्थितियों के ऊपर उठना कठिन था यपपि उन दिनों की प्रचलित रीति नीति के विरुद्ध उसने इस्लाम के काफिरों पर बर याचार करने से इन्कार कर दिया फिर भी वह इसी नीति का पूरी तरह से पालन न कर सका । कतिपत मोपाल पत्र ( जिसका वर्णन । पिल पूष्ठों में किया गया है ) में वर्णित हिन्दुओं को धार्मिक स्वतंत्रता देने तथा गोहत्या पर रोक लगाने की त्या कथित वाशाबों के होते हुए मी हुमायूं ने अपनी बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा के की - कर्म में उसी तरह के छाड़ की जिस तरह मुगलों के पहले मुसलमान सुस्तान करते थे । कालिंजर में उसने हिन्दुओं के मंपिर तोड़े । उनके पार्मिक विवार विश्वास पर चोट पहुंचाने से भी वह नहीं चुका । १२ वह अपने मास्वियों का बहुत ही पापात करता था ययपि उसकी यह नीति सदैव हानिकर सिद्ध हुई फिर भी यदि विपती हिन्दुओं से युद्ध करते समय उनकी और के किसी मुसलमान सैनिक से उसका सामना हो जाता था तो वह उस पर वार नही करता था। इस बात का प्रमाण हमें उस समय मिलता है जिस समय बहादुर शाह ( गुजरात के शासक ) ने चित्तौड़ पर वामण ११. फारिश्ता - ब्रिग्ज - भाग २ पृष्ठ १७८ १२ - र.रू. श्रीवास्तव - मुगल कालीन भारत पृष्ठ ८२. For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਝਦ ਛੀ ਗਲ ਕੀਓ करना उचित नहीं समझा क्योकि ऐसा करके वह अपयश लेना नहीं चाहता था । जब कि उसका स्कमाई धर्म युद्ध करके काफिरों को हरा रहा था। फिर भी वह कोई निर्गम प्रताड़क नही था और न हिन्दू की को नर करने की कोई सुनिश्चित नीति ही उसने अपनाई । एल्फिंस्टन ने कहा है। " स्वभाव से न वह चालाक था, न निर्दयी । यदि वह यूरोप में स संतुलित सम्राट होता तो सम्भवत: वह चार्ल्स व्दितीय से पापा पूर या रक्त पिपासु नहीं होता ।" इस तरह हम देखते है कि बाबर व हुमायू की धार्मिक नीवि दिली सल्तनत के सुल्तानों की अपेक्षा उदार थी । For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर www.kobatirth.org का व्यक्तित्व For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति बकबर का व्यक्तित्व बमीर मुर ने भारत वर्ग को तलवार के और से जीता था। पर या एक बाल था कि वाया, गरजा, परसा बोर देखते देखते गया । बाबर उसके पड़पोने का पोता था जो उसके सवा सौ वर्ष बाद । दुवा था । उसने साधाग्य की स्थापना बारम्भ की थी, पर इसी प्रयत्न में उमा देहान्त हो गया । उसके पुत्रहमाय ने साम्राज्य प्रसाद की नींव डाही बार मी रखी, पर शेरशाह के प्रताप ने उसे मन में किया। वन्तिम अवस्था में जब फिर उसकी बोर प्रताप रूपी वायु का फोका बाया, तब बायु ने उसका साथ दिया । बन्त मन१५५६ प्रताप शाठी अकबर ने राज्यारोहण क्यिा । तेरह परब के छहक की क्या बिसात, पर ईश्वर की महिमा देतो कि उसने साम्राज्य प्रसाद को इतनी ऊंचाई तक पहुंचाया और नींव को ऐसा किया कि पीलियो ता वहन लिी । वह खिना पड़ना नही जानता था, पर फिर भी अपनी पति केस स्सी कम से किस गया कि का उम्मै पिस पिस कर मिटावा , पर वे जितना घिसते है उना ही चमकते जाते है । उसकी गणना विश्व के शक्तिशाली बमातम शासका। में की जाती है। उसके व्यक्तित्व के विषय में उस मकालीन इतिहास कारी ने प्रकाश डाला । पुर्तगाली मा शिर मण्डल के पापरी मांगरेट और बाबा के पुत्र जहांगीर ने बाबर के व्यक्तित्व का विस्तृत वर्णन किया है। According to father Monserrate : He was in face and statwo fit for the deity of king, so that any body, even at the first dance, would any recom15 For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir zonana na mia him as the king, H1. moulders were broad, and his legs lightly bandy, and adapted to Mding. His Complexion was fair, but sightly rurfused with a darker tint. He carried his head 111ghtly inclimed to ano side, towards the right shoulders, his frow was broad and open, and his eyes sparkl ed as does the sea when 11ated by the Sun. His eyelids were heavy as are those of the Sarmatiions, the chinese, the N1 phonians and nearly all asiatics of the northern regions, 815 eyeba row wore narrow, and his non was middle #1x and droppins, but had a night bridge. His nostrials were exc perded as though he were enraged, and an the left one he had a wat, which met the upper lip. He shared his beard, but not his moustache, following the custom of young Turks before they assume the rul catumo of manhood, who, after they have taken the ville toga, chenion and arrange ther beards, Unlike his foregathers he did not share his head, nor did he wear a cap, but bound hio hair with a turban, which, they may he did in imitation of the Indian ouston, in order to conciliate the, He dragged his left leg e11ghtly, as through he were lamo in it, though he had not be an in jured in the foot. He has in his body, which 18 very well made, and neither thin and moagre nor fat and grosi muon courage and strength. When he laughs be 18 distorted, but when he 13 tranquil and serane ho has For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir a noble mien and great dignity. In his wrath he is y .. majestic. १ 23 जहांगीर ने लिखा है कि उसका शरीराकार मध्यम था परन्तु कुछ लम्बा प्रतीत होता था । उसका गेहुंगा रंग था, उसकी बांखे व माहे काली थीं और उसका रंग रूप साफ होने की अपेक्षा कुछ सांवला था, उसका शरीर सिंह के समान था, छाती चौड़ी थी, उसके हाथ तथा मुजार लम्बी थीं । उसके नाक की बाई और एक मसा था, जो देखने मैं बड़ा बच्छा मालूम होता था तथा इसका बाकार बाथै मटर के बराबर था, कुछ व्यक्ति जो मुख लक्षण विद्या के ज्ञाता थे, इस मसे को समद्धता तथा भाग्यशाली होने का प्रतीक बताते थे । उसकी तेजस्वी आवाज बहुत ही प्रभाव शाली थी । बोलने तथा व्याख्यान करने मैं वह बहुत ही प्रवीण था । अपने कार्यों तथा स्वभाव में संसारी जीव नहीं था, वरन उसमें ईश्वरीय प्रकाश विधमान था २ उपरोक्त तक के आधार पर हम कह सकते हैं कि अकबर का व्यक्तित्व जानकर्णक था । वह घुटनों तक नीचा रेशमी अंगरखा पहनता था । जो कि स्वर्ण सूत्रों की बुनाई तथा फूल पत्तियों के आकर्षक कशीद से सुशोभित रहता था बोर एक बड़े फीते व्दारा वह उसे बांधता था । उसका पायजामा स्ट्टी तक पहुंचता था और उसमें मोती लगे रहते थे । मोती के गुच्छे से वह पायजामें को बांधता था । उसके जूते भी बनूठे बोर अपने ही ढंग के होते थे । वह आकर्षक पगड़ी बांधता था । उसकी पगड़ी बहुमूल्य मोतियाँ और रत्नों से सुशोभित रहती थी । पगड़ी बांधने के ढंग में हिन्दू और मुसलमान दोनों प्रणाली का सम्मिश्रण रहता था । वह पारसियों जैसी वेशभूणा मी पहनता था । For Private And Personal Use Only 1- 81r Wolsehey Haig: The Cambridge History of India Vol. IV P. 155 2. Tuzuk-1-Jahangiri- Vol. I P. 34 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3ਝਦ ਬਾਲ ਸੰਬ + + + + According to V. A. Smith : He is said to have worn the sacred shirt and girdle which every Parsee must wear under his clothes." 3 अकबर स्वल्पाहारी था और सामान्यत: एक ही बार भरपेट भोजन करता था, वह मी प्राय : मध्यान्ह मैं । प्रीतिभोजी या दावों को शेडकर अकबर प्राय : अकेले में ही भोजन करता था । वाल्याकाल में ही उसै आमिण भोजन में ही अमित चि नहीं थी । ज्याँ • ज्या उसकी बायु बढ़ती गई वत्त आमिण भोजन के प्रति उदासीन होता गया ।जीवन! के उत्तर काल में तो वह पूर्णत: निरामिण हो गया था । वह कहता था कि -" यर उचित नहीं कि एक आदमी अपने पेट को पशुओं की का बनाये ।" " हो सकता है कि यह हिन्दुओं और जैनियों के प्रभाव से । हुआ हो लेकिन उसे बामिण पोजन के प्रति शुरू से ही रूचि न थी । उसने स्वयं कहा कि मुझे अपनी छोटी उम्र से ही मांसाहार नीरस लगता है । जब कमी में बाशा देकर मांस बनवाता था तब भी उसको खाने की बहुत ही कम परवाह करता था । इसी स्वभाव से मेरी दृष्टि पशु रसा की बोर गई और मैने पीछे से मांसाहार का सर्वथा त्याग कर दिया । "५ अकबर के इन विचारों से पता कता है कि उसे बामिण मोमा से घोर पृणा थी । ऐसा माना जाता है कि अकबर ने अपनी हिन्दू रानियों के प्रभाव से मोम में मांस, लहसुन व प्याज मी त्याग दिया था । अपनी तरुणावस्था में वह मथपान करता था । १५८० में ताड़ी + 3- Smith ! Akbar the great Megul P. 163. 2-in-1-Akbari Vol. III Translated in to Enath by H.S.Jarrett P. 443. + + + + + + + + + Ain-i-Akbari Vol. III Translated in to English by H.8.Jarrett P.446. + 4 For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org 25 के प्रति रूचि उत्पन्न हुई और वह ताड़ी पीने लगा पर प्रौढावस्था में ताड़ी पीना छोड़ दिया । अयबर अफीम के निद्राकारी नियोजन को व पसंद करता था, अफीम की बनी हुई कई बीजे खाता था परन्तु प्रौढावस्था में उसने मपान त्याग दिया । यवपि अकबर के समय मैं तम्बाकू और हुक्के का प्रचार व्यापक रूप से हो गया था पर वह स्वयं तम्बाकू नहीं पीता था । अकबरफलों का शौकीन था | Jahangir says: Akbar had a great liking for fruit, especially grapes, melons and pomegranates, and was in the habit of eating! it whenever he indulged in either vine or opium. "6 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर विनोदी स्वभाव का प्रसन्नचित्त वाला व्यक्तिा था । मधुरवचन बोलना उसका स्वभाव था । अहंकार तथा दृष्य से उसे घृणा थी । वह एक मिलन सार नरेश था और छोड़े बड़े सभी व्यक्तियों से मिलता था । वह अपने सद्व्यवहार और मधुर स्वभाव के कारण अपने बमीरी, सामन्ती, दरबारियोतथा प्रजाजनों में अत्यन्त लोकप्रिय था । इस विशेषता के कारण सभी उसके प्रति श्रद्धा रखते थे । उसके व्यक्त्वि एक खास गुण यह था कि वह अपना काम मीठा बन कर निकालने का ही प्रयत्न करता था । वह मानता था कि कार मीठी दवा से रोग मिटवा हो तो कड़वी दवा का उपयोग नहीं करना चाहिये । इसी नीति के व्याश उसने अनेक राज्यों वीर वीरों को अपने अधीन कर लिया था । उसका व्यवहार उच्च कोटि का था और वह सदा न्याय का पदा ग्रहण करता था । 6 Turuk-1-Jahangir Translated by Rogers and Beveridge Vol. I P. 270- 350. For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नति He said, If I were guilty of an in just act; I would ri se in Judgement against my solr." 7. यपि अकबर की कोषाग्नि शीघ्र ही शान्त हो जाती थी, लेकिन उसका कोष होता बहुत भयंकर था और कोषावेश में वह मयंकर दण्ड ३ बैठता था । कोथा वेश में उसने अपने थायमाई बाधम खां को किले की - दीवार से गिरवा कर मरवा दिया था, मामा मुखमम को कठोर दण्ड दिया था तथा राजाल के एक मशाल बी को, जो सो गया था, दुर्ग की दीवार से फिक्या कर वय करवा दिया था । परन्तु अकबर का स्साशेष बल्पकाठीक ही होता था । सामान्यत: वह पर्ण बात्म नियंत्रण बरतता। था । पराजित शत्रु के प्रति वह मानवोचित उदार व्यवहार करता था - परन्तु विरोधियों के प्रति उतना ही कठोर हो जाया करता था । विदेशी राजकुमारों, विदेशियों, विदेशी से उसके संरक्षण में आये राजकुमारों के प्रति वा अधिक शिष्टता, नम्रता और उदारता का व्यवहार करता था। _खकबर को विभिन्न प्रकार के आमोद - प्रमोद और बासेट में सचि थी । वह जंगल में भयंकर से भयंकर शेरों, चीती तथा हाधियों का! शिकार करता था । वह स्वय वक निशाने बाज, बहमुत लक्ष्य मेदी बार चतुर शिकारी था । कर प्रवीण अस्वारोही था और घर से र हाथियों को वश में कर लेने की उसमें अपूर्व सामता थी। घुड़सवारी में उसकी रुचि थी तथा घोड़े की पीठ पर बैठ कर वह प्राय : दिन में पचास - साठ किला मीटर इर की यात्रा कर देता था। उसे धूसैबाजी, भल्लयुद्ध तथा पहलवान की कुश्तियां देखने की मी रूचि थी । कभी कभी वह वर्ग • संघर्ण में मी! रूचि लेता था । हो सकता है कि इस प्रकार के संघर्ग देखने की उसमें । तुर्की और मंगोल परम्परा रही हो । चौगान खेलने, संगीत सुनने, पोलो खेल देखने, विदुणों के काम तथा बाजीगरों के करतब व मदारियों के 7 - An-i-Akbart Vol. III Trans, by 1.5.Jarrett P.434 For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਝਦ ਸੰਲ ਜੀ 27 तमाशे देखने का भी उसे शॉक था । नगाड़ा बजाने में वह दसा था । खेलो! में उसे इतनी अधिक साचि थी कि कभी- कमी तो वह रात्रि में प्रकाश करवा कर खेल करवाता था। उसने अपने बस्तबल में कई सहस्त्र ऊंटों - पोहों और हाथियों को पाल रखा था । इन विभिन्न प्रकार के वामोद • प्रमोद, बासेट, खेल - तमाशे तथा पशु पालन में सचि रखने पर मी । अकबर इनमें इता लिप्त नहीं रहता था कि वह बपो प्रशासन वीर राम काज को मूल ही जाये । इन प्रदर्शनी, पशु - युओं, खेल - तमाशी बादि। के बीच मी अकबर वपनी समस्याओं पर मनन वार चिन्तन करता रहता था। अकबर का दैनिक जीवन बड़ा ही संयमित था । उसकी जादते सी थी - साथी, संयमित बोर गौरव शाली तथा गम्भीर थी । वह बहुत कम सोता था । जहांगीर ने लिखा " वे रात भर जगा करते थे, दिन ! में कम सोते थे । दिन और रात में मिला कर डेढ़ पहर से अधिक नहीं सोया करते थे । वे रात्रि जागरग को अपनी बायु की वृद्धि के समान मानते थे ।" इसी प्रकार स्मिथ ने भी लिखा है कि - Ho aopt little and 11 statuzy, sel dom more than three hours in the night time, the hours which he kept must have been dreadfully trying to the Courto * 9 समय का सदुपयोग बह बड़ी सावधानी से करता था और दिन में राजकार्य और राजसमा में व्यस्त रहता था । वह अपना समय दार्शनिकों, विद्वानों और थांबायाँ के सत्संग में व्यतीत करता था । अनेक बार वह एकान्त में बैठकर बाध्यात्मिक समस्याओं पर चिन्तन और मनन भी किया करता 6- एस.वार. शर्मा हिन्दी अनुवादक मथुरालाल शर्मा - मारत में मुगल साम्राज्य - पृष्ठ - ३. 9- Smith ! Akbar the great Mosal. P. 340. For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति था । अबुलफजा लिखना है कि सम्राट में हतनी वच्छी बात है कि मैं उनका पूर्ण रूप से वर्णन नहीं कर सकता । यदि में इस विषय पर • कोर्णा की मी रचना कप्तं तो भी वह सम्पूर्ण नहीं होगा ।"१० ____ अकबर की साक्षरता के विषय में विद्वानों में मतभेद है । यपपि वह अपने पिता हुमायूं और पितामह बाबर की तुलना में सुशिक्षित और विद्वान तो नही था किन्तु पूर्णतया निरंकुश भी नही था । उसके पिता हुमायं का! अधिकांश समय अपने माझ्या के विरुद्ध सैनिक अभियानों वीर युद्धों में तथा निवासन के संकों में व्यतीत एबा था । इस लिये वह अकबर की शिक्षा की समुचित व्यवस्था न कर सका । फिर भी कार पर बाधिपत्य स्थापित करने के बाद उसने अकबर की शिक्षा के लिये विदान मालवी नियुक्त किये । परन्तु अकबर का मन पढ़ने - लिखने में नही लगता था । उसने अपना बाल्याकाल खेलों, शिकार और घुड़दौड़ में व्यतीत कर दिया । बतएव वह ! पूर्ण रूपेण सापार एवं विद्वान न बन सका । श्री एन.ल. लॉ- लिखते! है कि • अकबर पूर्ण रुपैन तिरपार नहीं था । यदि वह लिख नहीं सकता। था तो कम से कम पढ़ तो अवश्य ही लेता था । • ११ इसके विपरीत कुछ विद्वानों का मत है कि अकबर निरपार था वे उसकी सादारता में संदेह करते है जैसा कि बकु फजल ने लिखा है - उसके पवित्र हृदय एंव पुण्यात्मा की अमिरु चि कमी भी बाहरी पढ़ने लिखने की और नहीं की । साक्षा-1 रता के प्रति उदासीन रहने पर भी उसका उत्कृष्ट ज्ञान माना समस्त मान-1 वता के लिये इस बात का योतक था कि समाट को ज्ञान कोण धीर समस्त +-+ +- + + + + 10-An1-1-Akbart- Vol. I Trans. by H.mochnann, Second edition P. 165. 111 - N.L. Law : Promotion of 1eaming in India during Mohommedan Aule P.P.139-43. + + + + + + + For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਫੜ ਲੀ ਰਨ ਜੀਓ विषयों की अनुपम सूफ पड़ने से नहीं प्राप्त हुई बल्कि यह सब उसके । लिये ईश्वरदत्त वरदान था जिसके विकास में मानवीय श्रम का कोई स्थान नहीं था । " १२ इसी प्रकार जहांगीर लिखता है कि यपि उसका पिता निरपार था तथापि उसे ज्ञान पोत्र विभिन्न स्थल से इतना गृह परिचय प्राप्त था तथा किसी विषय की विवेचना करने में वह इतना प्रवीण था कि किसी भी मनुष्य के लिये उसका निरसार वामास होना सा लप-1 नातीत बात थी । इन साक्षात असुविधाओं के होते हुए भी वह अज्ञानी । 7 T 1 According to 81r Wolseley Haig : In spite of his 1111teracy he was far from being ul oa med nor was his intellect wcultivated, for « he delighted in 11stening to the reading of works on history, thoslog Philosophy and other subjects and of discussing afterwords what had been road and his memory was such that he ao quired through the ear a stock of leaming as great as that which most of his associates could acquirt through the eye." 13. उत : हम अकबर को अशिपिात कह सकते है लेकिन अज्ञानी नहीं यहां यह विशेष उल्टेखनीय है कि अशिक्षित होने पर भी अकबर में ही. नता की भावना नहीं थी । वह कहा करता था कि -"सभी पैगम्बर ! अशिक्षित व्यक्ति थे । इस लिये मुसलमानों को अपने पुत्रों में से एक को इस दशा में रखना ही चाहिये । “ १४ दैनिक व्यवहार में वह शितित: 13- The Cambridge History of India Vol. IV P. 154. 12 - Ain-1-Akbari Trans, by H.8. Jarrett Vol.III P.4321 For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org 15- Snd th: Akbar the great Mogul P. 338. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतीतनहीं होता था । यपि अकबर न तो पूर्ण रूप से खादार था और न विद्वान ही, परन्तु उसमै जीवन का व्यावहारिक ज्ञान अत्यधिक था । औपचारिक निरक्षरता से उसे जरा भी कठिनाई न हुई । वह कुशाग्र बुद्धि वाला सम्राट था । उसकी स्मरण शक्ति इतनी विलक्षण व अलौकिक थी, जिससे उसे पढ़ कर सुनायी गयी पुस्तकों की वर्तवस्तु, विभागीय मामलों के विवरण यहां तक कि सैकड़ों व्यक्तियों, चिड़ियाँ, घोड़ों व हाथियों के नाम स्मरण रहते थे । वह जो कुछ सुनता था या जो कुछ उसे विभिन्न ग्रन्थों से पढ़ कर सुनाया जाता था सभी उसे याद हो जाता था । Smith says, Akbar was intimately acquainted with the works of many Muhammadan historians and theologians, as well as with a considerable amount of general Asiatic literature, especially the writings of Sufi or mystic pos -ts. अत: अकबर दर्शन शास्त्र, धर्मशास्त्र वीर अध्यात्मवाद के विभिन्न गूढ़ - रहस्यों पर अच्छी तरह वार्तालाप बर वाद विवाद कर सकता था । तर्क करने में वह बड़े विद्वानों को भी परास्त कर देता था । विज्ञ समीतियों में वह जिस वाकू पटता का परिचय देता था उसे सुन कर कोई यह अनुमान मी न लगा सकता था कि वह व्यक्ति निरदार होगा । किसी भी विषय पर वह अपना मत कुशलता, स्पष्टता और सरलता से व्यक्त करता था । ज्ञान, प्रतिमा और मानसिक शक्तियों में वह श्रेष्ठ था तथा उसमें उच्च कोटि की प्रयोगात्मक वृद्धि थी । अपने उच्च आदर्शों को वह कार्य रूप में परिणत करता था और अपने आदर्शों की उपयोगिता का परिचय देता था । For Private And Personal Use Only 30 - Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति ___अकबर गुणग्राही सम्राट था । वह विधानुरागी और साहित्य प्रेमी बावशार था । पुस्तकों के प्रति उसे असीम प्रेम था । उसने सविशाल ! सुसज्जित पुस्तकालय सवाया जिसम विदाना व्दारा लिखे गये चौबीस हजार स्तलिखित ग्रन्थ संग्रहित किये । विद्वान लोग इस पुस्तकालय की श्रेष्ठ पुस्तकों को पढ़ कर अकबर को सुनाते थे । इससे अकबर ने अपनी ती! स्मरण शक्ति के कारण साहित्य, दर्शन, राजनीति, इतिहास, धर्मशास्त्री आदि का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था । चित्रकला मैं तो उसे तरुणा वस्था से ही रुचि थी। चित्रकला विभाग का वह स्वयं निरीक्षण करता था । साक्षर न होने पर भी उसे सुलेखन कला में रूचि थी । बाल्या. वस्था से ही उसे संगीत से प्रेम था। जबल फक के अनुसार" वह संगीत की और बहुत ध्यान देता था तथा जो व्यक्ति इस सुन्दर कला को - सीखता था बधवा जानता था अकबर उन सब को सहायता प्रदान करता था ।"१६ अकबर एक नाज्ञाकारी पुक, नुग्रह शील भाई एंव पिता तथा अनुरागशील पति था । सपने परिवार के सदस्यों और सम्वन्थियों के प्रति वह अत्यन्त उबार, दयालु, तथा स्नेह पूर्ण व्यवहार करता था । वह बहुधा इस बात पर शोक प्रकट करता था कि उपने पिता का इतनी शीघ्र स्वर्गवास हो गया कि वह उनकी कोई सेवा न कर सका । अपने उदार, सरल और स्नेही स्वभाव के कारण वह अपने परिवार वालों का बड़ा लाइला था । अपनी माता का वह शान शौकत से स्वागत करता था और ! सम्मान के लिये राजमहल से कई किलो मीटर आगे बढ़कर मैट और स्वागत ! करता था । पर अपनी माता, राजमहल की अन्य बेगर्मा व गुलबदन के । प्रति विशेष प्रेम होने पर भी वह उन्न प्रशासन और राजनीति में हस्तदीप नहीं करने देता या । अकबर ने उपती थामाताओं व धाय माझ्या के 16- Ain-1-Akbart. Val. I. P. 115. For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अळबर की धार्मिक नीति . . . . . . + + के प्रति सव सम्मान रखा । माम अनगा के जनाजे के साथ वह घर तक का और जीजी बनगा के जनाजे को कन्या भी दिया । थाय बन्धु जीबी कोका के प्रति उदारता प्राट की तो सौतेले भाई मिर्जा हाकिम के विद्रोह करने पर भी उसे परास्त कर पामा कर दिया । उसका कहना था कि हामि उसके पिता की स्मृति है । अपने पुत्र - पुत्रियों के प्रति भी अकबर । बहुत अधिक सेह रखता था । सहीम का अनुचित व्यवहार भी अकबर के पित स्नेह और कृपा को थम न कर सका । अनेक बार विद्रोह करने पर पी अन्त में उसने सलीम को सामा ही कर दिया । संदीप में हम कह सकते है कि अपने परिवार के सभी सदस्यों के प्रति उसका बड़ा स्नेह और सहव्यवहार था | बच्चों को तो वह बहुत ही प्यार करता था | "Akbar said, children are the young sal pings in the garden of 116e. To love thon 18 to tum our minds to the Bointiful creator " 17. अकबर अपने पारिवारिक सदस्यों के अलावा अपने मित्रों साथियों ! और सहयोगियों के प्रति भी अत्यन्त मैत्री स्व स्नेह पूर्ण सम्बन्ध रखता था। वीरकल, टोडरमल, फैली और अबुल फजल के साथ जो उसका व्यवहार अत्यन्त मैत्री पूर्ण और सहृदयता का था । बीरबल की मृत्यु पर तो उने । दोको दिन और दो रातो तक मुछ भी खाया - पिया नहीं । उसे इस बात का अत्यन्त दुख था कि युद्ध के बाद भी उसे बीरबल का शव न प्राप्त हो सका । और हिन्दू परम्पराओं के अनुसार वह उसकी दाह किया न कर। सका । इसी प्रकार अपने अन्नन्य मित्र बबूल, फजल के देहावसान की शोक केला में वह फूट फूट कर रोया, उसे इतनी अधिक मार्मिक वेना हुई कि ! 17 - Ain-1-Akbari Vol. III Trans. by H.S.Jarrett P-431.1 For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति उसने तीन दिन तक कुछ मी न खाया पीया । अपने राजपूत सम्बन्धिय, सहयोगियों और मित्रों के प्रति भी अकबर उदार और स्नेही था । अकबर तर्क और विवेक में विश्वास करता था । वह वुद्धिहीन, नकल या अनुकरण को बुरा मानता था । He said If imitation were commendable the prophets would have followed their predecessors."18 वह बुद्धि और विवेक में अधिक आस्था रखता था और चाहता था कि लोग बुद्धि, विवेक गोरे तर्क के अनुसार ही कार्य करें । वह धार्मिक और लौकिक बातों को अपनी बुद्धि व विवेक के अनुसार उनके गुणों के आधार पर ही अंगीकार करता था । परन्तु अकबर की इस बुद्धिवादिता के साथ उसका अन्ध विश्वास भी जुड़ा हुआ था । अनेक बार वह बन्ध विश्वासी हो जाता था। शुभ और अशुभ दिनों और शकुनों में, ज्योतिण और भविष्य वाणीयों में, सत्कार और फूका फांकी में वह विश्वास करता था अनेक युवतियां अपने शिशुओं को निरोग करने के लिये या बच्चा होने के रिये उसकी मनौती मानती थी । और यदि ऐसा हो जाता था तो वह उसके लिये चढावे लाती थी । अबुल फजल लिखता है कि शाश्वत सुख, प्रामाणिक हृदय, अच्छे आचरण की सलाह, शारीरिक बल सुसंस्कार पुत्र प्राप्ति, मित्रों का पुनः समागम, दीर्घायु, धन सम्पत्ति और उच्च पदवी आदि अन्यान्य अनेक मुरादे लेकर कुन्ड के झुन्ड मनुष्य सम्राट अकबर के पास जाते थे । सम्राट श्रेय का जानने वाला था, इस लिये वह हर एक को सन्तोषप्रद उत्तर देता था । और उनकी धार्मिक समस्याओं को हल करने की योजनाएँ गढ़ता था । ऐसा एक भी दिन नहीं बीतता था जिस दिन लोग अकबर के पास से मंत्रोच्चारण व्यारा पानी के कटोरे पवित्र करवाने के लिये न जाते हो । १६ इस प्रकार अकबर में बुद्धिवादित .. 18 - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only - ** Ain-1-Akbari Vol. III Trans, by H.8. Jarrett P,427 19 - Ain-1-Akbari Val. I Trans, by H. Blochmanm P.164. 33 - Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नति और अन्य विश्वास का अनूठा सम्मिश्रण था । अकबर अपने युग का अत्यन्त महत्वाकांक्षी सम्राट था । Acc-! ording to Smith · The ruling passion of Akbar was ambie tion. His Wol. rein was dedicated to conquest, *20 वह कहा करता था कि प्रत्येक सम्राट को युद्ध के लिये तैयार रहना चाहिये। और सेना को निरन्तर युद्ध कला का प्रशिक्षण देना चाहिये । युग की परम्पराओं के अनुरूप वह निरकुंश व स्वेच्छाचारी समाट था लेकिन फिर मी वह प्रजावत्सल सम्राट था । वह रात दिन प्रजा - हित के कार्यों में व्यस्त रहता था । यथापि वह मुसलमान कुल में जन्मा था तथापि उसके हृदय में दया के माव अधिक थे । प्रजा के प्रति राजा के क्या कर्तव्य है यह वह पली प्रकार जानता था । पानी की तगी के कारण फतेहपुर सीकरी में बंधाया हुवा तालाब जिसके चिन्त अब मी मौजूद है उसकी क्या लुता की साती दे रहे है । उसने हिन्दू, मुसलमान, जाति और सम्प्रदाय के भेद भाव को मिटा कर सब को समान समफा । यही कारण था कि ! उसने पृणित तीर्थ यात्रा कर व जजिया कर हटा दिये । उसने प्रजावत्सल सम्राट को रुप में तात्कालीक परिस्थितियों के प्रतिकूल तथा समाज के लिये! घातक सिद्धान्ता व रीति-रिवार्जा को चाहे वे धर्मानुमोदित ही. क्यों न हो, टा दिया । वह साधारण प्रजानों के साथ सहानुभूति रखता था तथा उनकी प्रार्थनाओं एंव शिक्याता को अनुग्रह पूर्वक सुनता था । यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वह प्राय:प्रति दिन एक स्सा अक्सर देता था जब प्रजाजन, अमीर या सामान्त उससे पेट और बातचीत कर सके । उसका कहना था कि - यह मेरा कर्तव्य है कि सब व्यक्तियों के प्रति अच्छा व्यवहार किया जावे -"२१ इन्ही वार्ता से वह अपनी प्रजा में अधिक लोक प्रिय हो गया था । लेकिन कानून, शान्ति और प्रशासकीय 20- Buth - Akbar the great Yesul. P. 346. 21 - Ain-1-Akbart Trans, by 1.5. Jarrett Vol. III P.430 For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਮਰਦ ਛੀ ਚ ਜੀਓ व्यवस्था के लिये अपराधी को दण्ड देना बावश्यक समझता था और बिना किसी भेद भाव के वरड देता था । सप्ताह में दो दिन वह राज्य के सर्वोच्च न्यायाधीश के रूप में दरबार में बैठकर अपने सामने प्रस्तुत होने वाले या नीचे के न्यायालयों से अपील के लिये जाने वाले मुकदमों को सुनतां था । अकबर की बुद्धि इतनी तीक्ष्ण थी और मानव प्रकृति का उसे इतना अधिक ज्ञान था कि जब वह स्वयं न्याय करता था तो सपिाप्त प्रणाली अपनाता था। उसकी निष्पदा न्याय प्रियता के बारे में अबुल फजल - लिखता है ." सम्राट अपने न्यायालय में सम्वन्धी और अपरिचित में, अमीरों के प्रमुख बार मिसारी में कोई मैद - माव नहीं रखता है ।" २२ जिस समय अकबर का राज्यामिक दुवा धा उस समय वह नाम: मात्र का बादशाह था उसके पास कोई स्थायी राज्य नहीं था । दिल्ली और आगरा उसके अधिकार से निकल चुके थे और उन पर हेमू का आधिपत्थ था | राज्यारोहण के समय पर पंजाब के कुछ मार्गा का ही बादशाह था और वहां भी उसका प्रतिददी और दिल्ली के सिंहासन का दावेदार सिकन्दर शाह सर उसके वंश और राज्य को समर नष्ट करने को तत्पर था । परन्तु अपनी निरन्तर विजयों से अत पर ने एक शक्तिशाली विशाल और दृढ राज्य स्थापित कर लिया था उसको मृत्यु से पूर्व इस सामाज्य में उत्तर में काश्मीर से लेकर दक्षिण भारत में खानदेश और अलमदनगर के प्रदेश और पूर्व में वंगला से लेकर पश्चिम में गुजरात तक के प्रान्त सम्मिलित थे । उसका कथन था कि" साम्राट को विजय के लिये सदैव तत्पर रहना चाहिये, अन्यथा उसके पड़ोसी उसके विरुद्ध शस्त्र उठा: देगे । सेना को रण शिक्षा मिलती ही रहनी चाध्येि, ताकि प्रशिक्षार्गा के अभाव में वह किसी न हो जाये । " 22-Akbamama : Trans. by II.Beveridge Vol.III P. 387 23 - Ain-1-Akbari Vol. III Trans. by H.S.Jarrett.P.451. For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 36 उसके व्यक्तित्व का एक महत्व पूर्ण अंग उसकी धार्मिक उदारता थी । मध्य युग की धमन्धिता, संकीर्णता, कटटरता, दुराग्रही अनिष्ट कारी रूढियों और राष्ट्र विरोधी परम्पराओं से वह ऊपर उठ गया था। उसने अपने शासन काल के प्रारम्भ में ही यह अनुभव कर लिया था कि उसके स्थायी और दृढ शासन के लिये भारत के सभी सम्प्रदाय, जातियाँ और an का तथा मुसलमानों और गैर मुसलमानों का सहयोग, सद्भावना, समर्थन और राज भक्ति प्राप्त करना आवश्यक है । इसी लिये उसने सभी धर्मों, सम्प्रदायों और वर्गों के प्रति उदारता, दया और सहानुभूति व समानता की नीति बरती । उसने गैर मुसलमानों पर होने वाले शासकीय अत्याचारो और घातक नीति के विरुद्ध कदम उठाये तथा शासन व राज्य व्दारा इस्लाम का प्रचार बन्द करवा दिया तथा हिन्दुओं पर लगे धार्मिक नियंत्रण तोड़ दिये । युद्ध वन्दियों को मुसलमान बनाना निषिद्ध कर दिया । उसने सब धर्मो के प्रति सुलह ए कुल अथवा सहन शीलता की नीति अपनाई । सत्य तो यह है कि अकबर के धार्मिक विचार अत्यधिक व्यापक थे और उसका धार्मिक दृष्टि कोण बहुत ही विशाल था । वह सभी कवियों के प्रति इतना अधिक सहिष्णु, कृपालु, विनय शील, उदार निष्पदा बार मैत्री पूर्ण था कि प्रत्येक मता कम्वी उसे अपने ही मत का अनुयायी समझता था । दीन दुखियों की सेवा करना और उनके दुखों को दूर करने का प्रयत्न करना वह अपना कर्तव्य समता था । अपनी पूजा को चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान सताना पाप समझता था । उपरोक्त गुणों के होते हुए भी अकबर का व्यक्तित्व दोनों से मुक्त न था । अन्य मध्य कालीन सम्राटों के समान ही वह भोग विलासी था । उसने मुसलिम शासको की पुत्रियों और राजपूत कन्यायाओं से विवाह किये थे । वह स्वयम् वहु पत्नित्व में विश्वास करता था । ययपि सम्राट मनसा अथवा कर्मणा निपट व्यभिचारी, व्यसनी बौर मोगासक्त भी नहीं कहा For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नति ............ जा सकता फिर भी अपने जीवन के पूर्व में स्त्रियों के विषय में उसने अवश्य कुछ स्वतंत्रता से काम लिया और उसके अन्त: पुर में स्त्रियों की संख्या पांच हजार थी । स्त्रि सम्वन्धित और सेविकाओं की संस्था इसमें : से घटा देने पर भी उसकी बेगमो की संख्या कुछ कम न रही होगी। मि०६० वी० हैवेल का कथन है कि उसके बहुत सी स्त्रियां थीं । वह तो! यहां तक लिखता है कि मुगलों की दन्तकथाओं के अनुसार बापशाह यदि किसी भी विवाहित स्त्रि पर मुग्ध हो जाता था तो उसके पति को मजबरन तलाक देकर अपनी स्त्रि बाळाश के लिये छोड़ देनी पड़ती थी २४ कहा जाता है कि वह सुन्दर लावण्यमयी ललना की प्राप्ति के लिये। रामल में प्रति सप्ताह मीना बाजार का वायोजन करता था, जिसमें ! केवल महिलाएं ही भाग ले सकती थीं । बीकानेर में पृथ्वीराज राठौर की पत्नि से सम्बन्धित किंवदंतियां पी है, जिसमें उसने अपने सतीत्व बार मान रसा के लिये कटार निकाली थीं। परन्तु अभी तक ऐसे कोई . लिखित प्रमाण उपलव्य नहीं हुए हैं जिसे स्त्रियों के प्रति अकबर के दृष्टि कोण और विचारों पर प्रकाश पड़े । अकबर के तीन और कटु बालीका बदायूंनी नै या जैसकट पादरियों ने अकबर के यौन जीवन या स्त्रिी - विषयक दुर्बलता का कोई विवरण नहीं दिया है । ऐसा माना जाता है कि मध्य युग में रानियाँ वीर तुकों में प्रचलित वप्राकृतिक मैथुन के दुगुण से अकबर फेवर मुक्त ही नही पा अपितु जो लोग इसमै लि होते थे उनसे ! वह पृणा करता था । वह क कपट का भी व्यवहार करता था । कमी कमी उसके मोसंयम का बांध टूट जाता था तथा कोष के पुस्साह वावेश २४ - ॐ बी० लेवेल के अनुसार • मुनिराज विषाविजयजी व्दारा उदयत हिन्दी अनुवादक कृष्ण लाल वर्मा - सुरीश्वर और सम्राट अकबर - पृ० ३३८. For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकब्र की धार्मिक नीति में वाकर वह अनुचित रुप से दण्ड बादि भी दे दिया करता था । परन्तु : इस प्रकार की संयम पीगता यदा कदा बोर साणिक ही होती थी। सत्य तो यह है कि अकबर एक मनुष्य था और उसमें अनेक दुर्गुण भी थे, तथापि उसके कई असाधारण गुर्गा ने उसके दुर्गुणों को ढक दिया था । अन्त में हम अकबर के व्यक्तित्व के उस महत्व पूर्ण बंश पर बाते है जो कि उसके जीवन में महत्व पूर्ण स्थान रखता है और वह है स्वर के प्रति बगाथ ऋदा । मानव और ब्रम्ह के मध्य के आध्यात्मिक तत्व । सम्वन्थि गवेषणा का विक्ष्य उसे बड़ा मोहक लगता था । वह ईश्वर में पर निष्ठा, बास्था और विश्वास रखने वाला व्यक्ति था । अबुल फजल! लिखता है कि अकबर परे जीवन भर सत्य की खोज में लगा रहा और अपने ! कर्तव्य पालन को श्वरीय उपासना का एक बंग मानता रहा । अकबर के । पुत्र जहांगीर ने अपनी बात्म कथा में लिखा है कि ." अपने साम्राज्य राज कोण, अपार गदै हुए धन, पुरानी अगणित राशि, असंस्था लड़ाकू हाथी बोर बरबी घोड़े आदि होते हुए भी वे भगवान के सामने बाल बराबर पी उपहास की का नहीं करते थे और उसको कमी नहीं भुलाते थे। वे प्रत्येक सम्प्रदाय, धर्म और जाति के सत्पुस माँ की संगति में रहा . करते थे । और उनकी बुद्धि और स्थिति के अनुसार उनका वापर करते थे । "२५ अकबर की कुछ अपोलिखित सूक्तियों से स्पष्ट हो जाता है कि सर्व शक्ति मान परमेश्वर के प्रति उसकी बगाध श्रद्धा थी । * There exists a bond between the creator and the Creature which 18 not expressible in language." २५ - जहांगीर के अनुसार • एस.वार. शर्मा व्दारा उधत - हिन्दी अनुवादक मथुरालाल शमां • भारत में मुगल साम्राज्य - पृष्ठ - २८३. For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਝਦ ਲੀ ਗੰਢ ਜੀਓ "That which 18 without form can not be sea whether in sleeping or waking, but it 19 apprehensible by force of inagination. To behold God in vision is In fact, to be understood in this sense." " Kach person according to his condition dvos the supreno being a name, but in reality to name the unknovah.18 vain." # There is no need to discuss to point that a vacuum in nature 1s impossible, God 18 omi prosent." "The legnd of Satan 18 an old world notia, who has the power to oppose the will of God." 26. ऐसी ही अनेक उक्तियां बार मी प्रस्तुत की जा सकती है, किन्तु उपर्युक्त उक्तियां ही काफी है क्योंकि इनसे ही हम सहज ही अनुमान लगा सकते है कि अकबर के हृदय में ईश्वर के प्रति अमिट अदा थी । वह अपने जीवन का प्रत्येक पाग आत्म निरीपाण और ईश्वर की खोज में व्यतीत करता था । वह प्राय: प्रश्न किया करता था कि क्या धार्मिक और सांसारिक प्रवृत्तियों में समावेश नही हो सकता "२७ उसका कहना था कि सांसारिक कार्यों में सलंग्न रहते हुए भी बादमी को भगवान का निरन्तर ध्यान रखना वाप्तिये । सदा सत्य की खोज में लगे रहने पर भी वह प्राचीन हिन्दू राजा जनक की भांति ही ( जिन्हें राजनि की - उपाधि प्राप्त थी ) इसी सिद्धान्त पर पता था कि एक सच्चा धार्मिक पोने के साथ ही कोई व्यक्ति सांसारिक तवयों को सफलता पूर्वक o 26- Ain-1-Akbari Teans. by H.s.sarrett vol.III P.424-251 27 - Ain-1-Akbari Val.. I. P. 162. 26.. For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नति सम्पन्न करता रह सकता है । मन की यह दशा केवर पांलीय ही नहीं। वरन व्यावहारिक मी है। उसका कहना था कि -" जिस प्रकार हिन्द स्त्रियां शेटे शेटे कुओं से पानी लेने जाती है और सिर पर दो दौ, । तीन तीन गगरी रखे हंसी करती हुई की जाती है किन्तु पानी की एक वद भी छलकने नहीं देती, सी प्रकार सब कार्य करते हुए मनुष्य यदि चाई तो अपने मन से ईश्वर के विचार को एक पाण के लिये भी पृथक नहीं। कर सकता ।"२८ ___ अकबर के इन विचारों से पता कता है कि वह एक विशुद्ध - 1 धार्मिक व्यक्ति था लेकिन साई पारी बारतोली का कहना है कि उसके विचार जानने का किसी में सामर्थ ही नही था वह दिखता है कि . ! " अकबर अपने आंतरिक विचारों को जानने का या वह किस धर्म या कि मत के अनुसार वर्ताव करता है सो समझने का कभी किसी को भी मौका नही देता था । उसके हरेक काम में यह सूबी थी कि वह बारी भेद और प्रपंच से दूर रहता था, और जितमी कल्पना की जा सकती है उतना - प्रामाणिक बार बेलार रहता था, मगर वास्तव में था वह बड़ा ही गहरा और स्वतंत्र । उसके बचन इस प्रकार के शब्दों में निकले थे कि, जिसके दो अर्थ हो जाते थे, कई बार तो उसके कार्य वचर्ना से इतने विरुद्ध होते थे कि बहुत खोज करने पर भी उसके गांतरिक मान जानने की कुंजी । नहीं मिलती थी ।" इससे मालूम होता है कि अकबर की स्थिति धार्मिक विषय में या तो अधिकचरी थी अव्यवस्थित थी या उसे कोई जान ही नहीं सफा था लेकिन हतमा अवश्य है कि उसके हृदय में कुछ का संस्कार की मात्रा 28 - Ain-1-Akbari- Vol. III Trans. by H.S.Jarrett.P.424 25. 29. According to Bartoli quoted from Smith & Akbar the great Mogul, P. 73. For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਤਨਦ ਲੀ ਸੰਨ ਜੀਓ जहर थी । उसके हदय में बार बार यह सवाल उठा करता था कि जिसो लिये लोगों में इतना आन्दोलन होता है वह धर्म चीज क्या है ? बार उसका वास्तविक तत्व क्या है ? उसके हदय में यह सवाल ठा, उसके पहले ही, इसरे शब्दों में कहें तो उसके हृदय में वास्तविक धर्म को तलाश करने की इच्छा पैदा हुई, उसके पहले ही उसके मन में मुसलमानी पर अमचि हो गई थी । इसके साथ ही उसके हृदय में हिन्दू - मुसलमानों को एक करने की भावना भी उत्पन्न हुई थी । उस इच्छा को पूर्ण करने के लिये ही उसने दीन इलाही नामक एक नये धर्म की स्थापना की पी पीर इस नवीन में हिन्दु - मुसलमानों को सम्मिलित करने का प्रयत्म किया। था । इस प्रयत्म मैं उसको बहुत कुछ सफलता भी मिली थी। .. . +++++++++++++ For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org धर्मिक नीति को प्रभावित करने वाले For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्व Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org धार्मिक नीति को प्रभावित करने वाले तत्व MAN CARE - en aan de die N QUE CE QU - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ए - चौदहवी और पन्द्रहवीं शताब्दी में धर्म के नाम पर अनेक अमानुि अत्याचार हुए । पर अकबर ने पूर्ववर्ती सुल्तानों की संकीर्ण कट्टर धार्मिक नीति का परित्याग करके सुलह कुल की नीति अपनाई, अपूर्व धार्मिक सहिष्णुता स्थापित की । सभी धर्माविम्वियों को समान माना तथा उनके साथ निष्पदा व्यवहार किया । उसने एक संकीर्ण, साम्प्रदायिक, राजसत्ता की विचार धारा को परिष्कृत और परिवर्तित कर दिया । अकबर की धारणा थी कि इस्लाम के सिद्धान्त संकीर्ण, एकांगी और पाषाण के समान निर्जीव नहीं, अपितु व्यापक, गतीशील तथा जाग्रत संस्था के रूप में है, जो देश, काल और परिस्थितियों के अनुकूल संशोधित, परिवर्तित वोर परिष्कृत किये जा सकते हैं । अकबर के इन व्यापक दृष्टि कोण से मुगल राजसत्ता का स्वरूप एकदम परिष्कृत हो गया । उसने धर्म, सम्प्रदाय, नस्ट या अन्य किसी आधार पर मनुयों में मेद माव करना मानवता और नैसर्गिक सत्य धर्म के विरुद्ध समा उसने इस्लामी विधी विधानों को जो या तो साम्प्रदायिक तथा अन्य असहिष्णुता पूर्ण भेद भाव के बाधार थे अथवा हिन्दू मुसलिम मतमेद को समर्थन देते थे, स्थगित कर दिया और हिन्दुर्वा को भी शासन के उच्च पद पर नियुक्त किया । जब टोडरमल की पदोन्नति हुई तब मुसलमान अमीरों और पदाधिकारियों ने ईर्ष्या और द्वेष से इस निर्णय का विशेष किया और अकबर से प्रार्थना की कि टोडर मल को उसके पद से पृथक कर दिया जाये । इस पर अकबर ने रुष्ट होकर कहा कि तुम से प्रत्येक ने अपने निवास गृह में हिन्दुओं को नियुक्त कर रखा मैं है, तो फिर मैंने एक हिन्दू को रखने में क्या गलती की है ।" १ 1- Al-Badaoni. Vol. II Trans, by W.H. Lowe - P. 65. 42 0 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति यपि क प्रारम्भ में इतना उदार बौर सहिष्णु नहीं था, प्रारम्भ में तो उसे इस्लाम में अत्यधिक बास्था थी और वह इस्लाम का सच्चा अनुयायी था किन्तु विभिन्न परिस्थितियों से और घटनाओं से उसकी • पार्मिक नीति विचार और दृरि कोण में परिवर्तन हुआ । अब हम उन परिस्थितियों का वर्णन करेंगे जिन्होने अकबर की धार्मिक नीति को प्रभावित किया । १. तत्कालीन अशांति के निवारण के लिये हिन्दुओं के सहयोग की बाव श्यकता - जब अकबर का राज्यारोहण या उस समय सारा देश विभिन्न स्मतंत्र राज्यों में विभक्त था । काकु का पोत्र उसके सौतेले भाई मिर्जा हवीस के नेतृत्व में लगभग स्वतंत्र हो चुका था । बदरका में अकबर का चचेरा माई सुलेमान मिार्जा स्वतंत्र शासक था उम्र में बड़ा होने के कारण वह अपने आपको पूरी राज्य का दावेदार समझता था । कन्धार सामरिक दृष्टि से महत्व का होने से फारस के राजा की दृष्टि उस पर लगी हुई थी। सुलेमान मिर्जा ने काकु आकर एकीम मिर्जी से मिल कर उकबर के विरुद्ध षडयंत्र क्यिा । हकीम मिर्जा का जो संरखाक था मुनीम : सां, वह अकबर के संरक्षक और प्रधान मंत्रि बैराम खां से कैमनस्य रखता था । अकबर का एक प्रमुख सरदार शाह वल माली गुल्लम दुला उसका विरोध कर रहा था । अकबर का प्रसिद्ध अमीर और उच्च पदाधिकारी तारदीबैग भी अकबर के संरताक बराम खां से शत्रुता रखता था । इसप्रकार! सभी प्रमुख अमीर और स्वयम् अकबर के सम्वन्धि ही उससे विश्वास पात कर रहे थे। जिस समय अम्बर गददी पर बैठा उस समय उसकी आयु केवल तेरह वर्ण की थी । इतनी छोटी अवस्था में उसके लिये सम्पूर्ण शासन पार सम्भाल सकना असम्भव था । इस लिये उसे स्वामिभक्त संरक की बत्या. धिक आवश्यकता थी । सपाक पद के लिये चार दावेदार थे - मुनीम सां: For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति शाह बकुल माली, बैराम सां, और तारवी वैग । इन चारों में से जब बैराम खां को अकबर का संरपाक नियुक्त कर दिया तो अन्य तीनों बराम खां से कटुता और वैमनस्य रस लगे । ___ अकबर के तीन अफगान प्रतिबन्दी थे- सिकन्दर सर, मुहम्मद - आदिल शाह और इब्राहीम सूर । ये दिल्ली सिंहासन के बाकांडणी थे। एक बात और भी थी कि भारत में अभी तक मुगलों को विदेशी समझ कर हीनता तथा घृणा से देखा जाता था । अकबर के पूर्वज तैमर की लूट मार, विध्वंसकारी कार्य और नृशंस हत्याओं के कारण भारतीयों के दिलों में मुगलों के प्रति स्वाभाविक घृणा पैदा हो गई थी। बाबर जोर हुमाय ने भी कोई लोकोपयोगी कार्य नहीं किये जिससे जनता का सौनाई उन्कै मिलता । गोडवाना स्वतंत्र राज्य था । गुजरात में मुसलमान सुलतान मुजफफर शाह राज्य कर रहा था और मालवा में शुजात लां का उत्तराधिकारी बाज बहादुर स्वतंत्र शासक था । इस प्रकार सारा देश स्वतंत्र राज्यों में विभाजित था । स्मिथ कहता है" जब अकबर कलानोर में तख्त पर का तो यह नहीं कहा जा सकता था कि उसके पास कोई राज्य था । बरराम खां के नेतृत्व में जो छोटी सी सेना थी, उसका कुछ डगमगाता हुआ सा अधिकार पंजाब के कुछ जिलों पर था और वह सेना भी ऐसी नहीं थी जिस पर पूरा विश्वास किया जा सके । अकबर को वास्तव में सम्राट बनने के लिये यह सिद्ध करना। था कि वह इसरे उम्मीदवारों की अपेक्षा अधिक योग्य है और कम से कम ! उसको अपने पिता का खोया हुवा राज्य तो पुन: प्राप्त करना ही था इस समय भारत की वार्षिक स्थिति तो राजनैतिक स्थिति से मी, अधिक खराव थी । अवर फक लिखता है कि अकाल की भयंकरता के २ - एस. बार, शमा हिन्दी अनुवादक मथुरालाल मा - भारत में मुगल साम्राज्य - पृष्ठ १५५ For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਝਦ ੴ ਸੰਲ ਜੀ के कारण मनुष्य - मनुष्य का मांस खाने के लिये विवश हो गया था और एकाकी यात्रियों को पकड़ कर खा जाने के लिये लोगों के दल बन गये - चतुर्दिक खतरों से घिरा हुवा यह चित्र-ण था अकबर के राज्यारोहण के समय का । ऐसे समय में अकबर का भारत में टिक सकना कठिन प्रतीत होता था । अत : ऐसी परिस्थितियों में यह बावश्यक था कि वह जिन्दुओं को अपने पपा मैं करने के लिये उनके प्रति समान व्यवहार, सहिजणुता व उदारता की धार्मिक नीति अपनाये । २. साम्राज्य को सुदृढ बनाने के लिये हिन्दुओं का सहयोग बावश्यक • अकबर इस बारीकी को अच्छी तरह समझ गया था कि भारत - हिन्दुओं का घर है । क्योंकि इतिहास ने यह तथय प्रमाणित कर दिया था कि सुलतानों में वे ही लोग अधिक सफल हुर जिन्होंने हिन्दुओं का सम्योग, समर्थन और सहायता प्राप्त करने का प्रयास किया । इसके अलावा अकबर का स्वयम् का विचार था कि मुझे इस देश में ईश्वर ने बादशाह ! बना कर भेजा है । यदि केवल विजय प्राप्त करना हो, तब तो यह होगा। कि देश को तलवार के जोर से अपने अधीन कर लिया और देश वासियों को दवा कर उजाड़ डाला, परन्तु जब मैं हसी घर में रहने गं, तब यह सम्भव : नही है कि सारे लाम और सुख तो मैं और मेरे अमीर मोगे और इस देश के निवासी दुर्दशा सहैं, और फिर भी मैं बाराम से रह सकू । देशवासियों को बिलकुल नष्ट और नाम शेण कर देना और भी अधिक कठिन है।" अपने विचारों से अकबर इस निष्कर्ग पहुंचा कि इस्लाम देश का राष्ट्रीय धर्म होने के अनुपयुक्त है, क्योंकि मुसलिम राज्य की बहुसंख्यक जनता • ३ - Akba.renama Vol. II P. 57. ४ अकबरी दरबार - हिन्दी - अनुवाद • रामचन्द्र वर्मा पहला भाग पृ० ११६ For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30ਯਦ ਜੀ ਸੰਲ ਜੀਓ हिन्दू थी । उनका पसं उत्कृष्ट था बत : उसका विनाश नहीं किया जा सकता था। इस प्रकार हिन्दुओं को शव बनाकर न तो उनको नष्ट किया जा सकता था और न ही सुबह साम्राज्य का निर्माण सम्भव था । वह स्सा साम्राज्य स्थापित करना चाहता था जो यह संख्यक हिन्दुओं और मुसरमानों के सहयोग तथा सहायता पर, शासिता की शुभेच्छा व सदभावना पर आश्रित हो, जिसमें किसी जाति, धर्म व रंग का भेद - भाब न हो, जिसमें हिन्दुओं और मुसलमानों को समान रूप से अधिकार प्राप्त हो, तथा दोनों को ही समान सुरपा, न्याय वौर स्वतंत्रता प्राप्त हो, यही कारण था कि जब उसने देश का शासन वने हाथ में लिया, तब ऐसा रंग निकाला जिससे साधारण मारतवासी यह न समझे कि विजातीय तुर्क और विधर्मी मुसलमान कहीं से बाकर हमारा शासक बन गया है । स लिये देश के लाभ बार हित पर उसने किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं . गाया । हिन्दुओं के सहयोग से उसका साम्राज्य एक ऐसी नदी बन गया जिसका किनारा हर जगह से घाट था । इस प्रकार राजनैतिक कारणों से प्रेरित होकर अकबर नै तलवार की नोक पर राज्य स्थापित करने और उसे चलाने तथा इस्लाम को राज्य धर्म बनाने की भावना त्याग दी बार हिन्दुओं के प्रति समान व्यवहार तथा धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई। ३. अकबर के पूर्वजों के उदार थामिक विचार - यपि अकबर भारत में विदेशी था । जैसा कि सिथ ने मी रिसा Akbar was a foreicer in India, ile had not a drop ci Indian blood in his veins, * 5 5. Smith : Akbar the great Mosul. P. 9. + + + + For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मकबर की धार्मिक नीति किन्तु फिर भी वह धार्मिक मामलों में उदार था, इसका बहुत कुछ श्रेय उसके पूर्वजों की उदार धार्मिक विचार धारा को दिया जा सकता है । उसके शरीर में तु, मंगोल और रानी रक्त था । मातृ पक्ष की वोर से अकबर चंगेज खां के वंश से सम्बन्धित था । यपि चंगेज खां बौद्ध धर्म को मानता था, परन्तु उसे अपनी प्रजा के विभिन्न धार्मिक कृत्यों में - सम्मिलित होने में कोई संकोच नहीं होता था। चंगेज बार उसके पूर्वज परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको बदल लेते थे। पितृ पदा की और से अकबर मूर के वंश से सम्बन्धित था और तमूर कोज खां का भी सम्पत्रिी था । तैमूर मी कमी सुन्नी बार कभी शिया हो जाता था । अकबर का! पिता मह बावर स्वयं तैमूर वंश का था । बाबर की माता चंगेज वंश के मंगोल शासक युनस की पुत्री थी । बाबर धर्मनिष्ठ वार ईश्वर में इड आस्था, रखने वाला व्यक्ति था, ययपि वह सुन्नी था लेकिन वह स्वतंत्र विचारों का पोषक था । बाबर का पुत्र और अकबर का पिता हुमायू भीसी कट्टर साथ नहीं था । उसने परिस्थिति वश फारस में शिया धर्म ग्रहण कर लिया था | मायं की पलि हमीदा बान् बेगम जो कि फारम के शिया शेख अली अकबर जामी की पुत्री थी, हुमायं के समान वह भी संकीर्ण विचारों वाली नहीं थी । इस तरह अकबर के पूर्वज राजनैतिक बावश्यक्ताओं के कारण वीर अपनी महत्वाकांपाओं की पूर्ति के लिये धार्मिक मामलों में उदार हो जाते थे । बत: वंश परम्परा से बकबर में पार्मिक कटटरता बाने के लिये कोई स्थान नहीं रह गया था । ४. अकबर के संरपाक तथा शिक्षाको का उदार दृष्टि कोण - ___ अकबर का संरपाक और प्रधान परामर्श दाता राम खां विदता • और काव्य के गुणों से विभूषित था । लेसको व विद्वानों का वह वाय दाता था । वह शियामत को मानने वाला था । बदामी लिखता है १ कि-" बुद्धिमत्ता, उदारता, निकपटता, स्वभाव की बच्छाई, For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति 43 .. अधीनता और नम्रता में वह सब से आगे था । वह दरवेशों का मित्र था, और स्वयम् बहुत धार्मिक और नेक इरादों का मनुष्य था । 4 वूल्जले हेग का भी कहना है कि बुद्धिमत्ता, उदारता, निष्कपटता, सद प्रवृत्ति, आज्ञाकारिता एवं विनम्रता में वह सर्वोपरि था । बकबर पर अपने संरक के उदार विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा । बेराम लां ने ही अकबर की शिक्षा के लिये सुयोग्य, उदार विचार वाले व सुसंस्कृत विद्वान अब्दुष्ट - लतीफ को नियुक्त किया । अब्दुल लतीफ अपने धार्मिक माछ में इतना उदार था कि अपनी जन्म भूमि फारस में लोग उसे सुन्नी कहते थे और उत्तरी भारत में यहां अधिक सुन्नी उसे शिया समझते थे। इतना महान होते हुए भी यद्यपि वह अकबर को पढ़ाने में असमर्थ रहा किन्तु उसने अकबर की जो सुह र कुल का पाठ पढ़ाया उसे अकबर आजीवन नहीं मूला । सुट ह ए कुल अर्थात सर्वजनित शान्ति के पाठ से अकबर ने समझ लिया 0 था कि यदि साम्राज्य में शान्ति बनाये रखनी है तो धार्मिक विचारों को उदार बनाना होगा, धार्मिक मैद भावों को मिटाना होगा बर हिन्दुओं को भी मुसलमानों के समान साम्राज्य के उच्च पद पर नियुक्त करना होगा । ५. राजपूत कन्याओं से विवाह और अकबर पर उनका प्रभाव id NO e-ce que cut राजपूतों के प्रति अकबर का व्यवहार किसी अविचारशील भावना का परिणाम नहीं था और न ही राजपूतों की धीरता, वीरता, स्वदेश भक्ति और उदारता के प्रति सम्मान का ही परिणाम था । उसका तो यह व्यवहार एक सुनिर्धारित नीति का परिणाम था और यह नीति स्वलाम, योग्यता की स्वीकृति तथा न्याय नीति के सिद्धान्तों पर आधारित थी । बारम्भ में ही अकबर ने यह अनुभव कर लिया था कि उसके 6- Al-Badaoni- Vol. III P. 190. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir • (265) For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति मुसलमान अनुयायी तथा कर्मचारी जो विदेशी माड़े के टट्टू होने के कारण अपनी स्वार्थ सिद्धी से ही मुख्यत : प्रेरित होते थे, उन पर पूरी तरह - मरोसा नहीं किया जा सकता था। उसे यह बात स्पष्ट हो गयी थी कि यदि उसे भारत वर्ष में अपने राज्याधिकार को सुरक्षित रखना है तो उसे । यहीं के प्रमुख - प्रमुख राजनैतिक तत्वों का सहयोग व समर्थन प्राप्त करता है बावश्यक है । इस तरह अपनी पर्शिता से कबर ने उस तथय को हत्याम कर लिया जिसे समझने में उसके पिता और पिता मह ने की थी। इसी नीति का अनुसरण करते हुए उसने राजपूत राजकन्याओं से विवाह किये । जनवरी १५६२ में अकबर फतेहपुर सीकरी से अजमेर के खाजा मुख्नुदीन चिश्ती की मजार की यात्रा के लिये गया । यात्रा के बाद बब वह लोटा तो सांभर में सका बार यहां ६ फरवरी १५६२ को पार की राजकन्या हरकू बाई का विवाह अकबर से कर दिया गया ।" बामेर के राजा की देखा • देखी बीकानेर, जैसलमेर, पारवाड़, तथा डूंगर-1 पुर के राज पत राज्यों ने भी अकबर से विवाह सम्बन्ध करके अपनी • अपनी राजकन्याओं की डोख्यिां मुगल रतवास में मेषी । अकबर ने अपनी म राजपत रानियों को हिन्दु म त्याग कर - इस्लाम ग्रहण करने के लिये बाध्य नहीं किया । उसने राजमहल में हिन्दू रानियाँ और उनकी सहचरियों को उनके हिन्दू धर्म के अनुसार पूजा - पाठ करने, मनन चिन्तन करने और धार्मिक संस्कारों को मानने की पूरी स्वतंत्रता दे रखी थी । अकबर की प्रमुख हिन्दू रानी, बामेर के मारमल की पुत्री हर बाई के लिये मुगल रम में तुलसी का पौधा लगाया गया था । न रानियों के प्रभाव से बकबर सूर्य की उपासना करता था और कमी-कमी तिला मी लगाता था । इस प्रकार राजपत कन्याओं से विवाह करने से एक बार तो अकबर को साम्राज्य में हिन्दुओं का सहयोग मिला तथा दूसरी 7- Akbamama Voi. II P. P. 154-58. For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति 50 बौर इन राजकन्याओं ने अकबर के धार्मिक विचारों को प्रभावित किया । ६. अकबर का स्वयम् का उदार दृष्टिकोण तथा आध्यात्मिक अनुभव www.kobatirth.org त्मिक अनुभव हुवा | *A अकबर को अपने पूर्वजों तथा शिक्षकों से तो उदार विचार मिले ही .. उसके थे । इसके अलावा उसका स्वयन का दृष्टिकोण मी उदार था । हृदय 我 यह भाव अंकुरित हो गया था कि सभी वर्गों के धर्मो के लोगों की निःस्वार्थ सेवा से बढ़ कर ईश्वर को प्रसन्न करने का कोई अन्य मार्ग नहीं है । ८ उसकी दृढ पारणा थी कि सच्चा धर्मं वही है जिसमें वर्ग, जाति, सम्प्रदाय वीर रंग रूप का मैद भाव नहीं हो उसका विश्वास था कि ईमानदारी और सच्चाई से अपने धर्म के सिद्धान्तों पर चलने वाला व्यक्ति किसी भी धर्म का मानने वाला क्यों न हो, मुक्ति प्राप्त करता है । अकबर ने अपने सैनिक अभियानों और युद्धों के दौरान भी अन्य मुसफोड़ा लिम आक्रमणकारियों के समान मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ा नहीं । परास्त नरेशों के साथ मी अभूतपूर्व उदारता का व्यवहार किया इसी बीच अकबर को दो तीन माध्यात्मिक अनुभव भी हुए जिन्होंने उसे और भी अधिक उदार बना दिया । मार्च १५७८ मै एक रात्रि को लाहौर के पास आखेट यात्रा से ध्यान मग्न अवस्था में अपने पड़ाव की और भूमि पर गिर पड़ा । ईश्वर संदेश ^^ मानकर वह स्वयम् -- .. इसको 6. । ६ इस महत्वपूर्ण आध्यात्मिक जागृति भक्ति में साष्टांग पड़ गया से अकबर धर्म में सहिष्णु और जसाम्प्रदायिक हो गया । एक अन्य स्थान पर नकुल फजल लिखता है कि एक देवी मानंद अकबर के शरीर में व्याप्त हो गया और परमात्मा के साक्षात्कार की अनुभूति से किरण फुटी । अकबर का ईश्वर से प्रत्यक्ष सम्पर्क हो गया और उसे एक नवीन वाघ्या१० जहां यह घटना घटी थी, वहां पर अकबर - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 8- A1n-1-Akbari Vol. III P. P. 449-50. 9- Akba rama Vol. In P. 234-35,37. 10 Akbarnama Yol. III, P. 241-45. For Private And Personal Use Only · Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति ने एक विशाल बीर विस्तृत उद्यान निर्मित करवाया और फतेहपुर सीकरी मैं गरीबों और फकीरों को एक करोड़ रुपये का सोना, चांदी, व सिक्के दान में वितरित किये गये । ११ AA o co-de इस प्रकार इन आध्यात्मिक अनुभव ने अकबर को बोर मी अधिक दान शील, धार्मिक व उदार बना दिया । ७. भक्ति आन्दोलन और सूफी विचार धारावों का अकबर पर प्रभाव cv com sede de de de quite a ale ap Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 - Muntkhabut - Tamarikh. P. 265. अकबर विचारों और प पर तत्कालीन भक्ति आन्दोलन, विभिन्न सन्तों, बापुर्वी, फकीरों और सूफियों की विचार बाराब का प्रभाव पड़ा । हिन्दू सन्तों, भक्ताँ, साधुबों और सूफी फकीरों तथा रेखा ने धर्म के बाहरी आडम्बर की व्यर्थ बतलाया । उन्होने धार्मिक प्रथाओं बोर कर्म कान्ड का खन्डन किया । जीवन और बरित्र की पवित्रता ! तथा एक ईश्वर की सत्ता पर बल दिया। अकबर की राजसभा में भी सूफी विद्वान थे जब अकबर सूफी शेख मुबारक वीर उसके दो प्रतिभाशाली पुत्र फंजी और अबुल फजल के सम्पर्क में आया तब कटटरता बारे कान्यिता से मुक्त संसार उसके सामने आया । वह अपने धार्मिक विचारों में ती अत्यन्त उदार था ही, साथ ही साथ अन्य धर्मों के धार्मिक विचारों, विश्वासों और रीति रिवाजों के प्रति भी सहानुभूति रखता था । फैजी स्वतंत्र विचारों वाला प्रतिभाशाली विद्वान था । इस लिये मुगल दरबार में वह धर्माधि कटटर मुल्लाबों का विरोधी था । बकुल फजल मी मध्य युग की धर्षिता, संकीर्णता और साम्प्रदायिकता से ऊंचा उठा हुबा था । जब अकबर की उपस्थिति में इबादत खाने में भिन्न भिन्न धर्मों की गोष्ठियां और वाद विवाद होते थे तो अबुल फजल इनमें सक्रिय भाग लेवा था। फैजी और कुल फजल इस्लामी शास्त्रों के अपने गहन ज्ञान का लाभ उठा कर धार्मिक शास्त्रों के अपने उद्धरण और तर्कों से धान्य - For Private And Personal Use Only - 61 · Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति मुल्लाओं के तथयों और कथनों को काट देते थे और बादशाह को पृथवी पर सुदा का नायब बता कर मुल्लाओं के हथियारों को कुंठित कर देते थे। बबुल फज ने अपनी बाठोमा, तर्क और बोजस्वी भागों से अनुदार साम्प्रदायिक तत्वों का विरोध किया। इससे रुढिवादी सुन्नी नेता शाही का उत्साह भंग हो गया । सूफी सिद्धान्तों ने अकबर के मस्तिक को उदार विचारों से मर दिया, वे अकबर को इस्लाम धर्म की संकीर्णता से घर ले गये और उसको विवश कर दिया कि वह पवित्र वास्तविकता की। लोज करें। ८. अकबर की सत्यान्वेषण की प्रवृत्ति - अकबर धर्मनिष्ठ और चिन्तन शील व्यक्ति था । वह सत्य को - खोजने और पाने का इच्छा था | Eadaoni says ! From a reane of thankfulness for his past successes, he would sit many a moming alone in prayer and meditation, on a large flat stone of an 011 building which lay near the place in a lonely spot, with his head bent over his chest and gathering the bliss of early hours of daw.12 उसने धी के पौत्र में बहुरुपता का अनुभव किया वार विभिन्न सों में सत्य को पहचानने का प्रयत्न किया । जब कमी वह समय पाता वेश बदल कर माग जाता बोर यौगिर्यो, सन्तों व सन्यासियों के पास छा रहता तथा सभी माँ के सयों को जानने का प्रयास करता, उसके हृदय में बार बार यह सवाल उठा करता था कि जिसके लिये लोगों में इतना बान्दोलन हो रहा है वह धर्म क्या चीज है ? और उसका वास्तविक तत्व क्या है। 12 - A1- badaoni Trans. by .. Love Vol. IT !. 203, Agn-1-Akbari Vol. I Trans, by 11.Blochmam second edition P. 179. For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति वात जीवन वीर मृत्यु के गढ़ रहस्यों को भी जानने का प्रयास करता था। यौवन के बारम्प से ही अकबर जानना चाहता था कि ईश्वर और मनुष्य का क्या सम्बन्ध है ? बार इस विषय के समस्त प्रश्न क्या क्या है ? वह कहता था" दर्शन शास्त्री का मुक पर जाका सा असर होता है कि बन्य सब बातों को छोड़ कर में इस विचार की बोर फक जाता चार मुफे बावश्यक कामाँ की अपेक्षा करनी पड़े ।"१ अकबर का - विचार शील मन कमी पी यह स्वीकार करने को तैयार नही था कि.. केवर इस्लाम धर्म ही सच्चा की है। उसकी इस जिज्ञासु बार सत्यान्वेगण की वृत्ति, उसके गहन वाध्यात्मिक चिन्तन और मनन तथा उसकी ! नवीन विधार पारावों ने उसे इस निष्कर्ग पर ला दियाकि प्रेम, उदारता क्या व सहिष्णुता के सिद्धान्त ही सत्य के तत्व है, अबुल फळ लिखता कि जीवन भर उसकी खोज बीन का यह परिगाम ना कि अकबर विश्वास करने लगा था कि सभी माँ मैं समझ पार लोग होते है और वे स्वतंत्र विचारक मी होते है ------ सत्य सभी पा में है वो यह समझना मुल कि सच्चाई सिर्फ इस्लाम थीं तक है जब कि इलाम धर्म अपेक्षा वृत नवीन जिसकी आयु केवल हजार वर्ण की ही होगी १४॥ अकबर को विश्वास हो गया था कि विविथ था तथा सम्प्रदायों से परे: हुए उसके विशाल सामाज्य में प्रेम, उदारता, व सहिष्णुता के सिद्धान्त ही शान्ति ला सकते है। ६. अकबर का हिन्दु अधिकारियों से सम्पर्क बार उनका प्रभाव - - - - - - - अकबर की राजसभा और प्रशासन में व सैना में अनेक हिन्दू विकारी और सेनानायक थे । राजपूतो का तो यह समझो कि उसके साम्राज्य के 13. Ain-1-Akbari Vol. III Trans, by 8.5. Jarrett,P.433 1+ Ain-1-Akbarn Vol. I P. 179. For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अक्र की धार्मिक नीति स्तम्म थे । भगवन्त दास, मानसिंह, टोडरमल, बीरबल, जान्नाथ कावाह, पार्धासिह बादि इनमें प्रमुख थे । मानसिंह अकबर के सेनापतियों में प्रमुख था तथा अकबर के दरबार के नवरा में से एक । वृन्दावन में उसने को गोविन्द देव का मंदिर बनवाया वह उसकी धनिष्ठा का ज्वलन्त उदाहरण है। प्रशासन में उसने अकबर को उदार नीति अपनाने का परामर्श दिया । ऐसा माना जाता है कि बज्यिा तथा वन्य अवांशीय करों की समाप्ति करवाने में मानसिंह का हाथ था । इसी तरह टोडरमल मी बड़ा ही प्रतिभावान और धर्मनिष्ठ व्यक्ति था । वह हिन्दू धर्म का कटटरी अनुयायी था । मध्य युग के मुसलिम शासन में ऊंचे पद पर रहते हुए वार दरबार में महत्व शाली कार्य करते हुए पी टोडर मरु नै अपने हिन्दू धर्म को अपनाये रखा, अपने पूजा - पाठ, मान चिन्तन, धार्मिक माचार - विचार आदि को बनाये रखा । बीरक अकबर का अनन्य मित्र, अत्यधिक कृपापात्र, परामर्श दाता चौर साथी था । बदायूंनी व मौलाना मुहम्मद हुसैन बादि इतिहास कार मानते है कि अकबर बीरकल के प्रभाव से ही सूर्य । के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने लगा था । इसी प्रकार जगन्नाथ - कछवाहा तथा भगवन्त दास आदि हिन्दुओं ने भी अकबर के विचारों को प्रभावित किया । इ-न हिन्दुओं ने न तो अपना धर्म शेड़ा और न ही रीति - रिवाज, बल्कि अकबर को अपने में से प्रभावित किया । अकबर पर तो हिन्दुओं के धार्मिक विचारों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही था.! क्योंकि हिन्दु तो उसके चारों और इस प्रकार थे जैसे कि श्वास • वायु ।। १० अकबर की राजनैतिक महत्वाकांक्षार - जिस समय अकबर गददी पर बैठा उस समय सारा राज्य असंगठित व अव्यवस्थित था । उसके पास कोई स्थाई सेना भी नहीं थी। अकबर की महत्वाकांता क सुसंगठित, सुव्यवस्थित व स्थाई राज्य स्थापित करने की थी । बाल फजल के अनुसार अकबर की विजय नीति का उहङ्य स्थानीय : For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਕਦ ੴ ਸੰਨ ਜੀ शासकों के निरंकुश शासन से पीड़ित प्रजा को सुख, शान्ति बार सुरक्षा प्रदान करता था । प्राचीन हिन्दू आदर्शों से प्रेरित होकर अकबर भी • सम्पूर्ण देश को राजनैतिक दृष्टि से स्क सूत्र में बांधने और प्रजाजन को मुख • शांतिताथा सुरक्षा प्रदान करने की बोर प्रयत्न शील हुवा । इसके लिये उसने अनुभव कर लिया था कि जब तक विभिन्न मां, सम्प्रदायों और वगााँ के लोगों को स्क सूत्र में नहीं बांधा जायेगा, तब तक उसका राज्य इढ़ और स्थायी नही हो सकेगा । उसे राजपूतों व अन्य हिन्दुओं के सहयोग की आवश्यकता थी । इस लिये उसने राजपा से वाहिक सम्बन्ध स्थापित किये । “ सेना और शासन विभाग के बड़े बड़े पद तुकों के समान ही • हिन्दुओं को भी मिलने लगे । दरबार में हिन्दू • मुसलमान सब बराबर - बराबर दिखाई देने लगे ।" १५ अतएव अकबर को राजनैतिक महत्वाकांसााओं की पूर्ति के लिये ऐसी उदारता पूर्ण, गुण ग्राहक सहिष्णुनी वि अपनाने के लिये बाध्य होना पड़ा जिससे किसी धर्म या सम्प्रदाय को पेट न पहुंचे। ११. इबादत खाने में इस्लाम धर्म केकट्टर नेताओं और उल्माओं के पतित चरित्र का नग्न प्रदर्शन बार अकबर पर उनका प्रभाव - Rav५ में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में स्क बहुत बढ़ियां मारत बनवाई और उसका नाम इबादत खाना अथवा पूजा पर रखा गया । मोहम्मद सैन लिखते है कि यह वास्तव में वही कोरी थी, जिसमें शेख सलीम - चिश्ती के पुराने शिष्य वीर सक्त शैख अब्दुला नियाजी सरहिन्दी क्सिी समय स्वान्तवास किया करते थे । उसके वारी और बड़ी - बड़ी इमारते बनाकर उसे बढ़ाया ।" १६ प्रत्येक जुमा शुक्रवार की नमाज के उपरान्त शेख सलीम चिश्ती की सानकाह से बाकार इसी नई सानकात में दरबार सास होता था । बदानी लिखता है कि -" उसने ।( बकवर ) सन् १५७५ ६० में फतेहपुर सीकरी में निर्मित इबादत खाने में इस्लाम के प्रसिद्ध विद्वानों, १५. बरी दरबार हिन्दी अनुवादक : रामचन्द्र वा पल्ला भाग १०१२०॥ " अकबरी दरबार हिन्दी अनुवादक, रामचन्द्र वर्मा पहला माग पृ० ७. For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मकबर की धार्मिक नीति शेखो, मौरवियों, मुफ्तियाँ वादि को थामिक विचार विमर्श बोर वाद विवाद के लिये आमंत्रित किया, जिससे वह इलाम धर्म का अधिक ठीक ज्ञात प्राप्त कर सकें । " १७ बहुत बड़े बड़े विद्वान मौलवी वादि तथा कुछ थोड़े से उनै हुए मुसाहव वहां रहते थे । इनमें मखदूम - उल - मुल, बब्दुन्नबी, काजी याकूब, मुल्ला, बदायूंनी बाजी इब्राहीम, शेख मुबारक, बकुछ फका काजी लालुद्दीन वादि प्रमुख थे । इस इबादत खाने में ईश्वर और धर्म - सस्वन्धी बाते होती थी । परन्तु विद्वानों की मण्डली भी कुछ लिसण! हुआ करती है । वहां धार्मिक वाद विवाद तो पीहे होगे, पाछे छन । के सम्बन्ध में ही कगड़े होने लगे कि अमुक मुझ से ऊपर क्यों ठा है और में उससे नीचे क्याँ काया गया ? इस लिये इस सम्बन्ध में यह नियम ना! की अमीर लोग पूर्व की ओर, सैयद लोग पश्चिम की बोर, विदान बादि। दपिाग की वीर तथा त्यागी त फकीर जादि उत्तर की और बैठे 118 प्रत्येक शुक्रवार की रात को बादशाह इस सभा में स्वयम् जाता था । वह वहां के सभा सदा से वातालाप करता था और नई - कई बातों से अपना ज्ञान भण्डार बढ़ाता था । पर बड़े दुख की बात है कि जब मसजिदों के मूर्खा को बढ़िया बढिया पोजन मिलने लगे और उनके हौसले बढ़कर उनकी हज्जत होने लगी तब उनकी बातों पर चर्वी श गई । सब वापस में झगड़ने लगे । पहले तो केवल कोलाहल होता था, फिर उपद्रव भी होने लगे। अकबर के दरबार में रहने वाला कटटर मुसलमान बदानी यसै सभा में बैठने वाले मौलवियों में जो फगड़ा होता था उसके लिये लिखता है कि -" बादशाह अपना बहुत ज्यादा वक्त बावत खाने में शखो बार विद्वानों की संगति में रह कर गुजारता था । खास तौर पर शुक्रवार की रात में - जिसमें वह रात भर जागता रहता था • किसी मुख्य तत्व की या किसी अनान्तर विण की चर्चा करने में निमग्न रहता था । उस समय विद्वान 1 और शेज, पारस्परिक विरुदौक्ति और मुकाबिला करने की रण • भूमि 178A-Badao 1 Trans. by healtore.vod.In...20arriom For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति मैं अपनी बीम रूपी तलवार का उपयोग करते थे । पा समर्थन कारों में इतना वितंडावाद खड़ा हो जाता था कि, स्क पदा वाला इसरे पता वाले को बेवकूफ और ढोगी बताने लग जाता था । "१८ इन वाद - विवाद और धार्मिक चर्चावों के दौरान इन विद्वानों की संकीर्णता, अभद्रता तथा वकार का नग्न नृत्य प्रारम्भ हवा । स विद्वान किसी बात को हलाल कहता था तो इसरा उसी को हराम प्रमाणित कर देता! था । वे स्वयम् अकबर की उपस्थिति में ही बापे से बाहर हो जाते थे। और परस्पर एक दूसरे को काफिर बतलाते थे । अबुल - फक और फैजी मी आ गये थे । तथा दरबार में उनके पदापाती पी उत्पन्न हो गये थे । ये लोग स्क दूसरे के कामों की पोल खोलते थे, बेईमानियों के बनेक किस्से सुनाते थे, जैसे पीन - इजियों बार विद्वानों को दान में दी गयी रकम के विषय में मखदूम • उल - मुल्क की मानी, बदुन्नबी पर हत्या करने का आरोप बादि । प्रत्येक विद्वान की यही इच्छा थी कि जो कुछ में कह उसी को सब ब्रस वाश्य माने । जो जरा भी ची चपढ़ करता था उसके लिये काफिर होने का फतवा रखा हुआ था । कुरान की वायते और कहावले सब के तर्क का आधार थीं । पुराने विद्वानों के दिये हुए जो फतवे अपने मतलब के होते थे, उन्हें भी वे कुरान कीवायतों के समान ही प्रमाणिक बतलाते थे । “विद्वानों की यह दशा थी कि बातों की तलवारे लीन कर पिल पड़ते थे, क्ट मरते थे और वापस में तर्क वितर्क तथा वाद - विवाद करके एक दूसरे को पूरी तरह से दबाने का ही प्रयत्न करते थे । शैल सदर बोर मखदूम - उल - मुल्क की तो यह दशा थी कि वापस में गुत्थम गुत्था तक कर बैठते थे । " १६. बदायूनी १८ • AL-bndaoni Trans. by ki.Love Vol. II P. 262. १६ अकबरी दरबार हिन्दी अनुवाद रामचन्द्र वर्मा पहला भाग पृ०७५-७६ . ..+ + + + + + + + + For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति पी लिखता है कि वाद विवाद के समय" एक रात उस समय उल्माओं की। गर्दनों की नसे फूल गयों और स्क भयानक शोर गुरु और कोलाहल मच गया सम्राट अक्बर इनके अशिष्ट व्यवहार पर बड़ा ही कोधित हुा ।“२० । इन नेताओं के ऐसे संकी गं, कटटर पन, स्वार्थ और पतित चरित्र से अकबर को अत्यधिक दाम हुवा उसने समझ लिया कि सत्य की खोज उनके क्स की बात नहीं । क की ही नींव खोदने वाले ऐसे मुल्लाओं से उसे स्वभावत: हि होने लगी और वह शिया - सुन्नी, हनफी - शफी के फगड़ों से मुक्त धर्म को स्थापित करने को वातुर हो उठा । १२ विभिन्न काचार्यों से अकबर का सम्पर्क और उनका प्रभाव - इबादत खाने में इस्लाम धर्म के कटटर नैताओं और उल्लाओं के पतित चरित्र से कटटर हस्लाम में अकबर का विश्वास हिल गया था । कयामत के इस्लामी सिद्धान्तों को उसने मानने से इन्कार कर दिया और इस्लाम की बात तो उसने एक ओर ही रख दी । उसे यह विश्वास ही नहीं होता था कि कोई स्वर्ग केले जाता है ? यहां से लम्बी बातचीत करके इतनी जल्दी । वापिस वा जावे कि उसका विस्तर गरम का गरम मिले । अब उसने इबादत-: खाने के व्दार दूसरे धर्म - सम्प्रदायों से हिन्दू, जैन, पारसी, हंसाई, के लिये भी खोल दिये । यपि हमादत खाने में धार्मिक विचार - विमर्श होते ही रहे किन्तु अकबर ने अन्य मर्ती बोर सम्प्रदायों के विद्वानों को बुला कर नीजि बैठक आयोजित करनी बारम्भ कर दी। इससे विद्वान लोग बड़ी ही: गम्भीरता और शान्ति से धर्म चर्चा करते थे । उससे अकबर को बहुत आनन्द ! ftat att l Abil razal Says :" The Shaban shah's Court became the home of Inquirers of the seven claims, and the 20 - AL-Badaon1 "rens. by N.H. Love Val. II P. 205. For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति assemblage of the wise of every religion and sect."21. हिन्दू, जैन, ईसाई, सिख आदि धर्माचायों औरतों ने अकबर के सामने अपने अपने धर्म के श्रेष्ठ सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया । हिन्दू धर्मने अकबर को अत्यधिक प्रभावीत किया । हिन्दू विद्वानों में पुरुषो और देवी प्रमुख थे । रात्रि के समय ये लोग बादशाह शयन कक्ष के करोखों के समीप उपस्थित होते थे और यहां हिन्दू धर्मं सिद्धान्तों की विशद व्याख्या करते थे। देवी ने कर्म तथा पुर्नजन्म का रहस्य बताया । इनके प्रभाव से अकबर आत्मा के आवागमन में विश्वास रखने लगा था । हिन्दुओं के देवी देवताओं और अवतारों के प्रति वह विश्वास करने लगा था । बदायूंनी लिहता है कि " सात नक्षत्र सप्ताह के प्रत्येक चिन से सम्बन्धित होते है । इनमें से प्रत्येक के रंग के अनुसार अकबर ने उस दिन के पहनने के लिये अपनी वेश जैनाचार्य सीरविजय सूरि, विजय सेन सूरि तथा जिन चन्द्रसूरि ने अकबर को जैन धर्म के सिद्धान्तों की ओर आकर्षित किया । इनके प्रभाव से अकबर ने पिंजड़े मैं बन्ध पक्षियों को मुक्त कर दिया । कुछ समय के लिये पशुओं का वध और आखेट बन्द कर दिया तथा मांस खाना भी त्याग दिया । Smith says: He cared little - भूषा बनवाई थी २२ मानुचन्द्र उपाध्याय for flesh food, and gave up the use of it almost entir ely in the later years of his life, when he came under Jain influence."23 अकबर '' 'जब अपने बर्ताव में इतना परिवर्तन कर दिया था तब इससे यह परिणाम निकालना क्या बुरा है कि उसके दया सम्वन्धि विचार बहुत ही उच्च कोटि पर पहुंच गये थे । अकबर का कहना था कि 21 Akbarnama Trans, by H.Beveridge Vol. III P. 366. 22- AL-Badaoni Trans, by W.H.Lowe Vol. II P. 268. 23 Smith Akbar the great Mosul Po 335 For Private And Personal Use Only 59 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org The world of existence is amenable only to kindness. No living creature deserves rejection." 25. -Q पारसी धर्माचार्य मैहरजीराणा ने सूर्य वीर वग्नि की उपासना की श्रेष्ठ बतलाया । इससे प्रभावित होकर अकबर ने सूर्य व अग्नि की पूजा प्रारम्भ कर दी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसाइयों के प्रभात से अकबर ईसाई गिरजाघर में जाकर घुटने टेक कर व हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता था । पादरियों द्वारा सम्पादित ईसाई धार्मिक विधियों और समारोहों में सम्मिलित होता था । ईसाई पादरियों के प्रति वह इतना अधिक उदार हो गया था कि वह उन्हें आर्थिक सहायता भी देता था । सिक्ख गुरुओं के प्रभाव से अकबर ने सिखों के आदि ग्रन्थ की बहुत प्रशंसा की और पंजाब में वृषकों का लगान माफ कर दिया । इस प्रकार इन विभिन्न धर्माचार्यों ने अकबर के धार्मिक विचारों को उदार बनाने में सहयोग दिया । विभिन्न पाँच का अकबर पर जो प्रभाव पड़ा उसका विस्तृत वर्णन आगे के लिये छोड़कर यहां उपरोक्त वर्णन है बाधार पर इतना ही कि इन विभिन्न धर्मों के आचार्यों और विज्ञानों के व्दारा अकबर इस निष्कर्णं पर पहुंचा कि सभी धर्मों मैं अच्छी और सत्य काते है | इससे अकबर की धार्मिक नीति में एक नवीन बध्याय प्रारम्भ हुआ । उसने उत्कालीन धर्मो के दोषों को दूर कर एक व्यापक समन्वयवादी धर्म स्थापित करने का निश्चय किया I । -) 60 -3 For Private And Personal Use Only 24- Ain-1-Akbari Trans. by .S.Jarrett. Vol. III. P. 429. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org धर्मिक नीति का Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विकास ( खुतबा पढ़ने से पूर्व सन् १५७६ तक ) For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर .. की धार्मिक नीति -- अकबर के प्रारम्भिक धार्मिक विचार - வன ஷ ----- १ धार्मिक नीति का विकास ( खुतबा पढ़ने से पूर्व सन् १५७६ तक ) v de vie nodo अबकर १५५६ में सिंहासन पर बैठा । १५५६ से १५६२ तक वह सच्चे मुसलमान शासक के समान था । मौलाना मुहम्मद हुसैन लिखते है कि ठार बीस बरस तक को उसकी यह दशा थी कि वह मुसलमानी धर्मं की आज्ञाओं को उसी प्रकार श्रद्धा पूर्वक सुनता था जिस प्रकार कोई सोध साधा धर्मनिष्ठ मुसलमान सुना करता है और उन सब धार्मिक बाज्ञाओं का वह सच्चे दिल से पालन करता था । १ सिंहासनारोहण के प्रारंभिक काल में तो सब के साथ मिल कर नमाज पढ़ता या स्वयम् अजान देता मसजिद मैं अपने हाथ से फाड़ू लगाता था, बड़े मौलवियों का बहुत आदर करता था, उनके घर जाता उनमें से कुछ के सामने कमी कमी उनकी जूतियां तक सीधी करके रख देता था। वह - साम्राज्य के मुकदमों का निर्णय शरब और मुल्लाओं के फतवे के अनुसार किया करता था, फकीरों और शेखों के साथ बहुत ही निष्ठा पूर्वक - व्यवहार किया करता था और उनकी कृपा तथा आर्शीवाद से ठाम उठाया करता था । बड़े कुल्लाओं और 21T, था, - www.kobatirth.org - अकवरी मुहम्मद हुसैन लिखते है कि अजमेर में, जहां स्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, बकबर प्रति वर्णं जाया करता था । यदि कोई युद्ध अथवा और कोई आकांक्षा होती या संयोग वश उस मार्ग से जाना होता, तो वर्ष के बीच मैं भी वहां जाता था । एक पड़ाव पहले से ही पैदल बरने लगता था । कुछ मन्नतें ऐसी भी हुई जिनमें फतहपुर या आगरे - - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir · For Private And Personal Use Only दरबार हिन्दी अनुवादक रामचन्द्र जम पहला माग पृष्ठ ६७. 61 - Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति 68 से ही अऔर तक पैदल गया । वहां जाकर दरगाह में परिक्रमा करता था और हजारों लाखों रुपयों के दावे और मेटे चढ़ाता था । पहरी सच्चे । दिल से ध्यान क्यिा करता था और दिल की मुराई मांगता था । - फकीरी वादि के पास ता था, निष्ठा पूर्वक उनके उपदेश सुनवा था । ईश्वर के मजन और चर्चा में समय बिताता था । धर्म संम्वन्धि बात सुनता था और धार्मिक विणर्या की शनबीन करता था । विद्वानों, गरीबों फकीरी बादि को धन - सामग्री और जागीर बादि दिया करता था। जिस समय कव्वाल लोग धार्मिक गजळे गाते थे, उस समय वहां रुपों और बशफिर्या आदि की वां होती थी ।" या हादी "या मुईन" का पाठ दही से सीखा था । पर म हसका जप क्यिा करता था और सब को बाशा थी कि इसी का जप करते रहे ।"२ तत्कालीन इतिहास ! लेखक बदामी के अनुसार पी हमें पता चलता है कि अबर दिन में न केवल पांच बार नमाज ही पढ़ता था बल्कि वह राज्य, धन - दौलत और मान • प्रतिष्ठा प्रदान करने की भगवान की अपार अनुकम्पा के प्रति - कृतज्ञता प्रकट करने के निमित्त प्रतिदिन प्रात: काल ईश्वर का चिन्तन - करता था और" या - ( या - हादी" का ठीक मुसलमानी ढंग से उच्चारण करता था । " ३ वह मुसलमान धार्मिक पुरुओं का सत्संग लाम करता था और प्रत्येक वर्ष अजमेर में स्वाजा मुइनहीन पिश्ती की दरगवाह की पक्ति - माव से यात्रा करता था । वह इस्लाम का पक्का अनुयायी था और इस्लाम की बुराई या निन्दा करने वालों को कठोर दण्ड भी देता था । मक्का मदीना की तीर्थ यात्रा में विश्वास करता था: और अपने परिवार के सदा तथा सम्बन्धिों को राजकीय व्यय से हज के लिये भेजता था। २ अम्बरी-दरबार हिन्दी अनुवादक -रामचन्द्र वर्मा पल्ला भाग पृ०६८ 3 - Al-Badacn1 Trans, by K.H. Lowe Vol. II P. 203. 6 + For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति + + + + + + + + + + + + + + अकबर ने मसजिदों का निर्माण करवाया और हिन्दुओं से जजिया तथा यात्रा कर भी वसूल किये । यद्यपि इस अवधि में अकबर मध्य युग के सच्चे मुसलमान सम्राट का प्रतिसप था, किन्तु वह कटटर और मान्य नहीं वा और न ही उसने हिन्दुओं पर धार्मिक अत्याचार किये क्योकि पाकि कटटरता के लिये तो वह स्वभावत: प्रतिलाल था । १५५१ तक उसे कोई धार्मिक सुधार नहीं किये क्योकि शासन प्रबन्ध पूर्ण रूप से बराम खां अधीन था । इस लिये वह धार्मिक कार्य करने और नीति अपनाने के लिये स्वतंत्र नहीं था । जैसे जैसे उसके साम्राज्य का विस्तार होता गया उसका धार्मिक विश्वास मी दिन पर दिन बढ़ता गया । शेख सलीम चिश्ती के कारण वह प्राय: फतहपुर में रहता था । मी से अलग पास ही एक पुरानी सी कोठरी थी उसके पास पत्थर की कसिल पड़ी थी, वहां तारों की शंव में अकेला जाता था । प्रमात का समय ईश्वरारापन में लगाता था, वहुत ही नभृता और दीनता से जप करता था तथा ईश्वर से इवार मागता था । लोगों के साथ भी प्राय: पार्मिकता और बास्ति -कता की ही बात करता था । यहीं से उसकी धार्मिक नीति का विकास ! प्रारम्भ होता है। धार्मिक नीति के विकास का क्रमिक वर्णन - Don - - - -- अकबर सत्य धर्म को जानने का हक था और हिन्दू - मुसलिम पेद - माव मिटाना चाहता था इसके लिये उसने जो उदार धार्मिक नीति अपनाई उसका कमिक विकास इस प्रकार से है - राजपूत राजकन्याओं से विवाह : सन् १५३२ ईस्वी के जनवरी महिने ६ अकबर ख्वाजा मुइनुदीन - चिश्ती की यात्रा के लिये बगर गया। रास्ते में पौसा गांव में वर्ष ( जयपुर की पुरानी राजधानी ) के राजा विहारीमल ने अपनी बड़ी रुड़की हरफू बाई को अकबर के साथ व्याह देना स्वीकार कर लिया। For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति बकबर और से सीथा वागरा गया और यहां से वापिस वाकर सांभर में उसने ६ फरवरी १५६२ को हरकू बाई से विवाह कर लिया । हिन्दू - लड़की के साथ यह उसका पतिला ही व्याह हुवा था । इसके बाद अन्य राजपूत राजकन्याओं से भी उसके विवाह हुर । इन विवाह से मकबर के शासन और धार्मिक नीति में परिवर्तन हुवा । M - जाति और वंश के मेव - पाव को मिटा कर हिन्दू - मुसलिम कटता को पूरा करने की नीति यहीं से प्रारम्भ होती है । राजपा और मुगलों के पारस्परिक संघर्ष का तो अन्त होने ही लगा था पर अकबर भी हिन्दू रानियों के प्रभाव से हिन्दू पी की बोर नाकृष्ट हुवा । उसने अपनी रानियों को वार्मिक संसारी, विधियों पर पूजा पाठ करने की स्वतंत्रता दे दी। २ - बाध्यात्मिक चेतना का उपय - सन १५६२ - में ही यानि जब अकबर बीस वर्ष का हुवा तब प्रजा की असी हालत जानने के लिये उसने फकीरा बोर साधु - सन्ता का सहवास करता शुरु किया । यह ठीक भी है कि निष्पा, त्यागी फकीरों वीर साधुओं के जरिये प्रजा की उसकी हालत बच्छी तरह से पालुम हो सकती है। साधुओं से मिल कर जैसे वह प्रजा की वसली हालत जानने की कोशिश करता था वैसे ही वह आत्मा की उन्नति के - सानों का मी अन्वेषण करता था । अकबर ने कहा है कि -" on the Completion of my trentieth year, I experienced and inte ernal bitterness & from the lack of spiritual provisiem for my last joumøy, my soul mi seiged with exceeding sorrow इस तरह बीस वर्ष की आयु पूरी करने पर, यह सोच कर कि परलोक यात्रा के लिये धार्मिक जीवन नहीं बिताया उसे अत्यधिक दु:ख त्वा । इसी समय उसे एक बार आध्यात्मिक अनुभव हुवा । वह कहता है कि • +Ain-1-Akbari Prans. byi.s. Jarrett Vol. III P. 4333 For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति One night my heart was weary of the burden of 1110, when suddenly between sleeping and waking a strange vision appeared to me, & my spirit was some what comforted."5 इन विचारों से उसके हदय में यह माव कुरित हो गया कि जाति धर्म रहन - सहन के भेद - भाव का विचार किये बिना सभी वग के लोगों की नि:स्वार्थ सेवा से बढ़कर ईश्वर को प्रसन्न करने का अन्य कोई मार्ग नहीं है। ३ - युद्ध बन्दियों को मुसलमान बनाने का निर्णध : अकबर की इस नवीन नावना का प्रथम ठोस परिणाम यह हुवा : है कि उसने अपने बीसवे जन्म दिन ( १० अप्रैल १६६२६० ) को स्कनवीन आशा प्रसारित की, जिसके अनुसार युद्ध वन्धियों को गुलाम बनाने । तथा उन्हें बल पूर्वक इस्लाम स्वीकार कराने की मनाही कर दी गयी । इससे परे विजीत सेनार लोगों के स्त्री - बच्चों को दास बना लिया • करती थी । बन्दी हिन्दू सैनिकों की पत्तियां, बच्चों और सम्भवन्थियों का उपयोग करने के लिये इन्हें मुसलिम अधिकारियों को सौंप दिया जाता था । यह प्रथा इसलाम धमांनुमोदित मानी जाती थी । बादशाह नै । ईश्वर - भक्ति से और दूरदर्शिता तथा सासद विचार से प्रेरित होकर नादेश दिया कि उसके साम्राज्य से विजयी सेना का कोई सनिक ऐसा काम नही करेगा । सैनिक नाई शेटा हो या बड़ा उसको किसी को कमी दास बनाने का अधिकार नहीं था । अबुल फजल लिखता है कि बादशाह ने समझा कि स्त्रियों और निरपराथ बच्चों को दण्ड देना अन्याय है । यदि पुरुष पृष्टता का मार्ग ग्रहण करते है तो इसमें उनकी पत्नियों का क्या दोण है। यदि पिता बादशाह का विरोध करते है तो उनके बच्चों 5- A1n-1-Akbari Trans. by H.s. varrstt. Vol. II P.435 6- Akbamana Vol. II. P.P. 159-60. For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकार की धार्मिक नति + + नै क्या अपराथ किया है । इसके अतिरिक्त सैनिक लोग सोम वश गांवों को आमण करके लूट लिया करते थे । जब इस विषय में आदेश दिया गया तो यह प्रथा बन्द हुई । ७ इस प्रकार युद्ध वन्दियों को स्वतंत्रता पूर्वक अपने घर और परिवार वालों के पास जाने की अनुमति दे दी गयी ४ तीर्थ - यात्रा कर का निषेध - भारत वर्ष में शासक लोग उन हिन्दुओं से कर लिया करते थे, जो । पवित्र स्थानों की यात्रा करने के लिये जाते थे । यह कर यात्रियों के धन और पद के अनुसार लिया जाता था और कर्मी कलाता था । अनुल फजा के अनुसार इससे करोड़ों रुपयों की बामदनी होती थी । सन् १५६३ में अकबर चीता के शिकार के लिये मथुरा गया । जब वह अपने कैम्प में था तो उसे बताया गया कि जो हिन्दू यात्री यहां जाते हैं उनसे यात्रा कर लिया जाता है और यह तीर्थ यात्रा कर अथवा की हिन्दुओं के सभी पवित्र स्थानों पर तीर्थ यात्रियों से लिया जाता है । यह अनुक्ति और बन्याय युक्त था । अकबर ने अनुभव किया कि हिन्दुओं की बाराथना - करने के ढंग पर उनमै घन मांगना या उनकी वाराथना में रूकावट डालना अनुचित है । बादशाह ने अपनी बुद्धिमत्ता और उदारता से प्रेरित होकर यल कर बन्द कर दिया । उसने समझा कि इस प्रकार का संग्रह करता - पाप है । अकलर ने कहा" जो लोग अपने सृजनकर्ता ईश्वर की पूजा के लिये तीर्थ स्थानों पर एकत्रित होते हैं, उनसे कर वसूल करना ईश्वर की इच्छा के सर्वथा विरुद्ध है, चाहे उनकी पूजा की विधी पृथक ही क्यों न हो । फल स्वरूप अकबर ने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य में तीर्थ - यात्रा कर वसूर न करने के आदेश प्रसारित कर पिये।"८ पिछले समय में लोम या • - - - - - - - • • • • - - - - - - - - - - - - - - - - ७ अकबर नामा - हिन्दी अनुवादक - मथुरालाल शर्मा पृष्ठ २२१ ८ . Akhamama. Vol. II. 190. For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति या कटटरता के कारण शासक लोग ईश्वर के भक्तों से स्सा कर लेते थे । बल फजल लिखता है कि"बादशाह प्राय : कहा करता था कि चाहे कोई गलत धर्म के मार्ग पर चलता हो परन्तु यह कौन जानता है कि - उसका मार्ग गलत ही है । ऐसे व्यक्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करना उचित नहीं है।" तीर्थ - यात्रा कर की समाप्ति अकबर की धार्मिक उदारता वीर सहिष्णुता का ज्वलन्त उदाहरण है । करोड़ों रुपयों की बाय होने पर भी उसने केवल अपनी धार्मिक सहिष्णुता के कारण इसे समाप्त कर दिया । ५ जजिया कर का उन्मूलन • जजिया की उत्पत्ति भारत में लब से हुई ? इसका यथपि निश्चि समय निर्धारित नहीं किया जा सकता है तथापि कुछ विद्वानों का कहना है कि आठवीं शताब्दी में मुसलमान बादशाह कासिम ने भारतीय प्रया पर यह कर लगाया था । पति तो उसने आय प्रजा को सलाम ग्रहण करने के लिये विवश किया । आर्य प्रजा ने अट धन - दौलत देकर • अपने वार्य धर्म की रक्षा की । फिर हर साल . ही वह प्रजा से रुपया वसूल करने लगा, प्रति वर्ण जो दृव्य कम किया जाता था, उसका नाम: जजिया था । कुछ काल पश्चात् यहां तक हुक्म जारी हो गये थे कि वार्य प्रजा के पास खाने पीने के बाद जो शेण धन माल बचे वह सभी जजिया के सप से खजाने में दाखिल करवा दिया जाये । फरिश्ता के शब्दों मैं कहें तो" मृत्यु तुल्य दण्ड देना ही जिया का उदेश्य था । स्सा दण्ड देकर पी आर्य व प्रजा ने अपने धर्म की रक्षा की थी । स्मिथ ने इस कर के बारे में लिखा है कि - "The Tex nad been originausi ६ बकरबरनामा - हिन्दी अनुवादक मथुरालाल शमां पृष्ठ २४२ For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अक्सर की धार्मिक नीति 6 institutiod by the Khalif Omar. who fixed it in three gradee of 48, 24 and 12 dirhams respectively." 10 इसवी सन की चौदहवी और पन्द्रहवी शताब्दी में मी फिरोज शाह - तुगलक ने कानून बनाया था कि गृहस्थों के घरों में जितने बालिंग मनुष्य हो उनसे प्रति व्यक्ति धनियाँ से ४० सामान्य स्थिति वाली से २० और गरीबी से १० टांक जजिया प्रति वर्ष लिया जाय । बागे पी यानि जिस सोलम्वी शताब्दी की हम बात कहना चाहते है उसमें भी यह जज्यिा - मोजुद था । यह कर हिन्दू धर्म पर इस्लाम की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करता। था जो हिन्दुओं के लिये लज्जा जनक था । सिंहासन पर बैठते ही पहले वर्ण अकबर के मन में जजिया माफ कर देने का विवार उठा था । पर उस समय उसकी युवावस्था थी । कुछ जो लापरवाही और कुछ अधिकार के अभाव के के कारण उस समय कर समाप्त न हो सका। १५६२ में अकबर के हाथ में सर्व सत्ता आ गयी थी । अत: अकबर ने सर्वस्वीकृत इस्लामी रिवार्षा की उपेक्षा करके मुसलमान मंत्रियों और पदाधिकारियों तथा कटटर मुसलिम नेताओं व उन्माओं के कड़े विरोध के ! बावजूद १५ मार्च १५६४ को जजिया कर की समाप्ति के आदेश प्रसारित कार दिये और सम्पूर्ण साम्राज्य में जजिया कर बन्द कर दिया गया । ११ बड़े बड़े मुल्लाओं और मौलवियों को इससे बड़ी लापत्ति हुई लेकिन अकबर ने कहा कि "प्राचीन काल में इस सम्बन्ध में जो निश्चय हुवा था, उसका कारण यह था कि उन लोगों ने अपने विरोधियों की हत्या करना और उन्हें लूटना ही अधिक उपयुक्त समझा था । ---- इसी लिये उन्होने की कर बांध दिया और उसका नाम जजिया रख दिया । अब हमारे प्रजा - पालक और उदारता आदि के कारण दूसरे माँ के अनुयायी भी हमारे 10 - Smith ! Akbar the great Mogul. F. 66. 11- Akbarmama, Vol. II P.P. 203-4. For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਕੁਛਦ ਛੀ ਸੰਝ ਜੀਰ 60 सरु थामियों की ही भांति हमारे साथ मिल कर हमारे लिये जान देते हैं, वे सब प्रकार से हमारा पला चाहते हैं और सदा हमारे लिये जान देने की तैयार रहते है । ऐसी दशा में यह को हो सकता है कि हम उन्हें अपना -: विरोधी समझ कर प्रतिष्ठित करें और उनका नाश करें। -- जजिया ने का प्रमुख कारण था कि पल्ले के साम्राज्यों का प्रबन्ध करने वालों के पास थन बार सांसारिक पदार्थों की कमी रहती थी और वे ऐसे उपार्या से अपनी आय की वृद्धि करते थे । अब राजकोण में हजारों लाखों रुपये पड़े है, पल्कि साज्य का स्क - एक सेवक वार्षिक दृष्टि से वावश्यकता से अधिक सुखी है। फिर विचार शील वीर न्यायी मनुष्य कोड़ी कोड़ी चुनने के लिये वपती निया क्या बिगाड़े । एक कल्पित लाभ के लिये प्रत्थता हानि करना ठीक नहीं बादि - सादि बाते कह कर जजिया रोका - गया ।" १२ इसकी समाप्ति का समाचार जब घर घर पहुचां तो सब लोग अकबर को धन्यवाद देने लगे । जरा सी बात ने लोगों के कि वीर नानी को पौल ले लिया । यदि हजारों बादमियों का रक्त बहाया गाता और - लाखो वामियों को गुलाम बनाया जाता तो भी यह बात नही हो सकती थी । उ फल मिलता है कि" जजिया बंदरगाह का महसूल, यात्री कर बनेक प्रकार के व्यवसायों पर कर, दरोगा की फीस, तहसीलदार की । फीस, बाजार का महसूल, विदेश - यात्रा कर, मकान के क्रय विक्रय का। कर, शोरा पर कर ~. सारांश यह है कि ऐसे तमाम कर जिनको हिन्दुम्तानी लोग सर जिात करते हैं, बन्द कर दिये गये । " १३ १२ - अकबरी परवार हिन्दी अनुवादक- रामचन्द्र वर्मा पहला भाग पृष्ठ १४४-४५ १३ - Ain-1-Akbari Vol. II. P. 62. For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति & - www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गैर मुसलमानों को धार्मिक स्थान निर्मित करवाने की स्वतंत्रता a area verod For Private And Personal Use Only 89 विभिन्न अनुचित करो की समाप्ति के पश्चात उसने पवित्र धार्मिक स्थानों पर लगे सब प्रतिबन्धों को निरस्त कर दिया । फलत: हिन्दू सामान्तौ वीर राजपूत सरदारों ने अपने मंदिर, देवालय तथा ईश्वर के विभिन्न अवतारों के पवित्र देव स्थान बनबाने प्रारम्भ कर दिये । राजा मानसिह ने अत्यन्त सुन्दर बीर भव्य भवन निर्मित करवाये एक तो वृन्दा - वन में गोविन्द दास का लाल पत्थर का विशाल पांच मंजिला मंदिर और दूसरा वाराणसी में । उसने सिक्कों के गुरू रामदास को एक भूमि खण्ड जीवन निर्वाह के लिये दिया । इसी भूमि खण्ड में गुरु रामदास नै जल का छोटा तालाब खुदवाया और तब से यह स्थान अमृतसर ( अमृत का तालाब ) कहां जाता है। अमृतसर में सिक्खों ने एक गुरुब्बारा मी वन वाया | मुनि हीरविजय के प्रभाव और मुनि मानुचन्द्र के प्रयत्नों से अकबर हीरविजय के नाम दो फरमान प्रथम १६ नवम्बर १५६० को और दूसरा १५६२ में प्रसारित किये । इनके द्वारा जैन समाज को शासन की ओर से कुछ विशेष सुविधाएँ दी गयी । सन् १५६० के फरमान मैं गुजरात के सुवेदार को यह आदेश दिया गया कि उस राज्य में किसी को भी जैन मंदिरों मैं हस्तक्षेप न करने दिया जाय, उनके जीर्णोद्वार में कोई बाबा न डाले तथा अजैन उनमें निवास नहीं करे । सन् १५६२ के फरमान के अनुसार मालवा गुजरात, लाहौर, सुलतान, बंगाल तथा कुछ अन्य प्रान्तों के - सूबेदारों को यह आदेश दिया गया कि सिद्धाचल, गिरनार, तारंगा, केशरियानाथ, बाबू, गिरनार और राजगिरी के जैन तीर्थ स्थानों और मंदिरों की पहाड़ियों को तथा बिहार और बंगाल में जैनियों के तीर्थं स्थानों व इन पहाड़ियों की तलहटी के सभी निवास स्थानों को जैनियों को सौप दिया जाय । १४, जैनियों ने उज्जैन में एक जैन मंदिर निर्मित .. १४ कभिसारियट : हिस्ट्री वांफ गुजरात खण्ड २ पू० २३३,३५ - 8 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org कब्र की धार्मिक नीति किया । अकबर ने ईसाइयों को खम्भात, लाहौर, हुगली और बागरा में! गिरजाघर निर्मित करने की अनुमति दे दी । इन स्थानों पर धीरे धीरे । राजकीय व्यय से गिरणा पर बनवाये गये । सन १LE मैं अकबर की तुमति से वागरा में गिरजा पर बनवाया गया । ७ - गैर मुसलमानों की साम्राज्य के उच्च पर्दा पर नियुक्ति • - - - - - - - - - - - - - - - - - अकबर ने इस वाधार भूत सिद्धान्त को समझ लिया था कि सभी मा वीर धर्मा का जनक ईश्वर है और इस लिये सारा मानव समाज ईश्वर के पुत्र के समान होने से जन्म से ही मनुष्य समान अधिकार रखते है हन विचारों के कारण अकबर का शासन और राजत्व का सिद्धान्त - अत्यन्त उदार, सहिष्णु और व्यापक क गया । शासन सत्ता अपने साथ में लेते ही अर्थात १५६२ के प्रारम्भिा - महीनों में ही टोडरमल, मानसिंह, गवन्त दास, बेनीचन्द्र, बीरबल जयार. कवाहा आदि को अकबर ने अपने राज्य की सेवा में उच्च पर्दा पर नियुक्त कर लिया था । राजस्व विभाग में उसने बोर्ड के टोडरक के अतिरिक्त अनेक हिन्दू कर्मचारी और अधिकारी नियुक्ति किये । इससे दोनों के मैद - माव की खाई पटने लगी । अकबर की यह नीति बहुत कुछ। बबुर पज के विचारों से भी प्रभावित हुई । उस फज लिखता है कि"राजपद ईश्वर का एक उपहार है, और यह तब तक प्रवान नहीं किया जा सकता जब तक कि एक व्यवित में हजारों महान गुणा और विशेषताओं का समन्वय न हो जाये । इस महान पद के लिये जाति, धन • सम्पत्ति तथा लोगों की भीड़ भाड़ ही काफी नहीं है। वह इस महान पद के लिये तब तक योग्य नहीं है, जब कि वह सर्वजनिक शांति और • सहिष्णुता पैदा न करें । यदि वह मानवता की सभी जातियाँ बौर की सम्प्रदायों को एक आंख से नहीं देखना, और कुछ लोगों के साथ माता का सा और कुछ के साथ विमाता का सा व्यवहार करता है, तो वह हले For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org 71 .. महान पद के लिये योग्य नहीं हो सकता । १५ उसका स्वयम् का भी विश्वास था कि राजा को प्रत्येक धर्म और जाति के प्रति पूर्ण सहिष्णु होना चाहिये । इन्ही विचारों से प्रेरित होकर उसने शासन में उच्च पद पर नियुक्ति करने में हिन्दू मुसलमानों के विमेद को समाप्त कर दिया यहां तक कि मनसबदारों में मी हिन्दू नियुक्त किये गये । एक सहस्त्र सैनिकों के १३७ मनसबदारों ने १४ मनसबदार हिन्दू थे, २०० अश्वारोहियों के ४१५ मनसबदारों में ५१ मनसबदार हिन्दू थे । साम्राज्य के विभिन्न प्रदेशों के १२ दीवानों में ८ दीवान हिन्दू थे । राजा मानसिह स्वयम् सात हजार सैनिकों का मनसबदार था । बदायूंनी खिलता है कि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दुओं के मुकदमे फैसले करने के लिये उसने ( अकबर ने ) हिन्दू न्याय -बीश की नियुक्ति की ।" १६, उसका विचार था कि राजा को न्याय प्रिय और निष्पक्ष होना चाहिये । इस लिये इसने बिना किसी पेद भाव के सभी का और सम्प्रदाय के व्यक्तियों के साथ समान न्याय और निष्पक्ष व्यवहार के सिद्धान्त को अपना लिया । हिन्दुओं पर कुरान के नियम और इस्लाम के कानूनों के अनुसार शासन करने की नीति त्याग दी गयी । k - हिन्दू मुसलमानों की संस्कृति व कला के आदान प्रदान के प्रयास --------------- • 15- Akbe. mama Vol. IT. P. 421 16 Al-Badaoni Vol. II P. 376 · अकबर ने मिले जुले विद्यालय और उच्च शिक्षा की ऐसी संस्थाब को प्रोत्साहित किया जहां हिन्दू और मुसलिम दोनों वगा के विभार्थी शिक्षा पा सकते थे। उसने बालकों की शिक्षा के लिये मसजिदों के साथ मकतबों को ( प्राथमिक शालारें ) स्थापित किया । मकतबों के साथ - साथ हिन्दू पाठशालाओं और संस्कृत के विद्यालयों का निर्माण करवाया हसी समय से हिन्दू फारसी का विशेष अध्ययन करने लगे । हिन्दुबौ For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति के धार्मिक ग्रों बार प्रथम श्रेणी के संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद करने के लिये अनुवाद विभाग खोला गया । विधा विज्यजी लिखते है - " अकबर साहित्य का पूरा शौकीन था । साहित्य में धर्मशास्त्रों और ज्योतिण, वैयक वादि समस्त वियाओं का समावेश हो जाता है । अकबर सब में रुचि रखता था, इसी लिये अथर्ववेदक, महाभारत, रामायण, हरिवंश पुराण तथा मास्कराचार्य की लीलावती और इसी तरह के इसरे : खगोल तथा गणित विधा के ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद करवाया था संगीत विया के सुनिपुण विद्वानों का भी उसने अपने दरबार में अच्छा । सत्कार क्यिा था । --- उसके दरबार में ५E कवि थे। जी उन सब में! श्रेष्ठ समझा जाता था । १५२ पंडित और चिकित्सक थे । उनमें ३५ हिन्ई थे । संगीत विशारद सुप्रसिद्ध गायक तानसेन और बाबा रामदास मी . वकबर की ही सभा के चमकते हुए हीरे थे । " १७ उसके समय में मुसलमान कवियों ने हिन्दी साहित्य में कविताएँ की। कुछ मुसलमानी कवियों ने तो हिन्दू संस्कृति का ऐसा सफल वर्णन क्यिा है कि अगर उनके नाम उनके ग्रां से हटा लिये जाये तथा उन गों को बन्य हिन्दू लेखकों की कृतियों में मिला दिया जाये तो पहचानना सम्भव हो जायेगा । इस क्षेत्र में अब्दुल रहीम खान लाना तया रसखान का नाम सर्वोच्च है। अकबर ने स्थापत्य कला के पोत्र में हिन्दू और मुसलमान दोनों कला - शैलियों का सुन्दर समन्वय किया । स्थापत्य कला में अकबर की यह नीति उसके बारा निर्मित फतहपुर सीकरी के मां दीवान - ए - खास, मरियम का महल, तुर्की सुलतान का महल, जोधा बाई का महल, पंच महल, वागरे के क्लेि में जहांगीरी महल, लाहौर और इलाहावाद के किले वादि भवनों में अभिव्यक्त हुई है। चित्रकला तथा संगीत कला के पोत्र मैं मी अकबर ने हिन्दू मुसलिम समन्वय करवाया । उसके दरबार में हिन्दू मुसलिम दोनो ही संगीतज्ञ थे। १७ - सूरीश्वर और समाट अकबर हिन्दी अनुवाद कृष्णलाल वर्मा पू० २४३-४४ For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर की धार्मिक नीति इस तरह अकबर ने शासन के प्रत्येक पोत्र में हिन्दू मुसलिम सामन्यस्य स्थापित करने का प्रयास किया । ६. इस्लाम के सिद्धान्तों का प्रमाणिक ज्ञान प्राप्त करने के प्रयास - एक और तो उकबर ने हिन्दुओं पर लो नेक भूचित प्रतिवन्ध - हटाये बोर हिन्दू मुसलिम एकता स्थापित करने का यथा शक्ति प्रयास • किया किन्तु साथ ही साथ दूसरी बोर वह सत्य धर्म की खोज में गा ही। रहा । वह इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों का प्रमाणिक ज्ञान प्राप्त करना। चाहता था । इसके लिये उसने शेख बन्न बी और मखदूम - उल • मूल्य । बडला सुलतानपुरी से विद्वान मुल्लाओं की शर्गिी की । स्व १५७४ तक वह इनके भाव में रहा । इस वर्ण तक वह इस्लाम के नियमों का पालन दृढ़ता से करता रहा । बदायूंनी का भी मत है कि सन १५७५ तक सम्राट अकबर नियमित रूप से नमाज पढ़ता रहा और सलीम चिश्ती से प्रसिद्ध मुसलिम पीरीके मकबरी के दर्शन करने भी कई बार गया । वह अपने युग के प्रसिद्ध मारुविर्या का भी उचित सम्मान करता रहा । अकबर ने शेत बहमद के पुत्र शेख बदुन्नबी को मुख्य पद ( व दान मंत्रि) नियुक्त किया और वह सब १५७८ तक इसी पद पर रहा । सत्र को धाचार दान तथा न्याय विभार्गा का अध्यपा रखा गया । अकवर वधुतन्वी के घर - हदीस ( मुहम्फ साहव के कथन ) पर वातो सुनने जाया करता था । कई बार तो सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने के उद्देश्य से अकबर ! ने वनवी के जूते मी स्वयम उठा कर उसके सामने रखे थे । " १८ - पर साडिवावी सुन्नी धर्म उसे पूर्ण सन्तोष नहीं सका था अत: वह शिया की बोर उन्मुख हुवा । उसने शिया र्म के प्रमुख मुल्ला याककी को अपना मित्र बनाया । याजी ने उसे शिया धर्म के सिद्धान्त समकाये (8P) AL-Badaoni - Vol. II Trans, by W.H.Lowe P. 207. For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org बौर उसे शिया बनाने का भरसक प्रयत्न किया, पर वह भी उसके उदार हृदय को आवर्णित नहीं कर सका । इसके बाद वह सूफी मत की ओर कुका । लूफी विद्वान शेख मुबारक तथा उनके दोनों पुत्र फैजी व अबुल फजल तथा अन्य सूफी विद्वान मिर्जी सुलैमान ने उसे सूफी मत से अवगत करा कर सूफी सम्प्रदाय की ओर वाकर्णित किया । १०. इबादत खाने की स्थापना और इस्लाम धर्म पर वाद विवाद da me ata qe e १६ Akba mama - - http Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उन समस्त सम्प्रदाय का गहन ज्ञान प्राप्त करने के लिये अकबर ने फरवरी मार्च १५७५ मै फतेहपुर सीकरी में इबादत खाना अथवा प्रार्थना गृह बनवाया । अकबर अपने मुसलमान दरबारियों तथा उल्माओं के साथ यहां आकर सभा करता था । इस प्रकार सत्य का विकास होने लगा । धार्मिक समारै रात रात भर और कमी कभी दूसरे दिन प्रात: काल और दोपहर तक चलती थी जिससे पता चलता था कि किसमें तर्क है ? कल्पना है ? और बुद्धि है ? इन समाज में दर्शन, धर्म, कानून और सांसा - रिक सभी प्रकार के विषयों और समस्यावों पर चर्चाएं होती थी । मखदूम उल मुल्क की उपाधि से विभूषित शेख अब्दुल्ला सुलतानपुरी, काजी याकूब, मुल्ला बदायूंनी, हाजी इब्राहीम, शेख मुबारक बल फजल आदि प्रमुख विद्वान इनमें भाग लेते थे । इन विचार गोष्ठियों में विशेष गुण, बुद्धि व प्रतिमा प्रदर्शित करने वालों को अकबर सोने चांदी के सिक्के देकर पुरस्कृत करता था । . १६ किन्तु धीरे धीरे इन धार्मिक और दार्शनिक चर्चायों के समय, शेख, सैयद और उल्माबी की असहनशीलता, अनुशासनहीनता, सामान्य वृद्धि का अभाव उकार, साम्प्रदायिकता, धमन्यिता, अभद्रता, तथा अहंकार का खुला प्रदर्शन होने लगा । इस्लाम के नियमों के तर्क सम्मत और वास्तविक अर्थ दे सकने का उनमें जो अभाव था, वह प्रदर्शित हो गया । मलदूम उठ मुल्क बौर Vol. III. P, P. 112-13. 7' - For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकार की धार्मिक नीति अब्दुन्नबी इस्लामी में शास्त्र सम्वन्धित सैद्धान्तिक प्री पर परस्पर लड़ छ । मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी नै वे सब पुस्तक पढ़ी थी जिन्हें पढकर लोग विदान हो जाते है । जो कुछ गुरुओं ने बतला दिया था, वह सब उन बारश : याद था पर फिर भी धार्मिक आचार्य होना बोर बात है । वाचार्य का काम यह है कि जहां कोई वायत या मंत्र न हो, या कहीं किसी प्रकार का संदेह हो या किसी अर्थ के सम्बन्ध में मतभेद हो वहां वह बुद्धि से काम लेकर निर्णय कर हैकिन मुल्ला बदायूनी में ये सब बाते नहीं थी । इसी तरह शेख अबुल फज की कोली में तों की क्या कमी थी । बीर उनकी ईश्वर दत्त प्रतिमा के सामने किसी की क्या सामयं । जिस तर्क को चाहा जुटकी में उड़ा दिया । विद्वानों में विरोधी का मार्ग तो बुल ही गया था । थोड़े ही दिनों में यह नौबत हो गई । कि थार्मिक सिद्धान्त तो दूर रहें जिन सिद्धान्तों का सम्वन्ध केवल विश्वास से था, उन पर भी बातोप होने लगे और हर बात में तुरा यह है कि - 1 साथ में कोई तर्क और प्रमाण भी हो । यदि तुम सुक बात को मानते हो तो इसका कारण क्या है ? इस तरह अविश्वास बढ़ते बढते बादत लाने में तीन विरोधी दल हो गये । एक मजबूम उल - मुल्क की उपाधि से विभूषित शेख बब्दुल्ला सुलतानपुरी के निर्देशन में और दूसरा अदुन्नवी के नेतृत्व में । ये कटटर सुन्नी मुसलमानों के दल थे उल्माओं के ये दोनों नेता आपस में एक दूसरे को बुरा मला कह कर झगड़ते थे । मखदूम - उठ मुल्क नै बब्बुन्नवी पर खिन ला सरवानी और मीर हश को उनके थार्मिक विश्वास के लिये अन्याय से मरवा डालने का आरोप लगाया। तीसरा वल ब्राहीम शेख मुबारक बऔर उसने पुत्र फैजी व अकुल फल तथा नवीन लोगों का था । ये तीनों भी परस्पर कुफ और बेहज्जती की बात करते थे । मान्ध सुन्नियों ने शंख मुबारक पर धर्म भृष्ट होने और नवीन - पार्मिक पद्धति चलाने का दोषारोपण कर उसै मुत्यु दण्ड दे दिया पर For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति वह बच कर भाग गया। इस पर बबुल फजल ने इन सुन्नियों के गुट की प्रांतिया, उनकी कथन - करनी में भेद वादि को उदाहरणां से स्पष्ट किया और अब्दुन्नवी की पोल खोलना शुरू किया । उसने बताया कि बन्नवी ने हाजियों को दिया जाने वाला धन स्वयम ले लिया और यह फतवा दिया कि हज करने से पुण्य के स्थान पर पाप होगा कि मक्का जाने के दोनों मार्ग संक्ट ग्रस्त है । इन सभाओं में एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिये किक्षाण प्रश्न किये जाते थे । मौलाना मुहम्मद हुसैन लिखते है कि हाजी लाहीम सरहिन्दी बड़े गडालू और चक्मा ! देने वाले व्यक्ति थे उन्कोने एक दिन सभा में मिरजा मुफिलिस से पूछा कि मुसा शब्द सीगा २० ( क्रिया का वन, पुरु ण वादि ) क्या है और उसकी व्युत्पत्ति क्या है ? मिरजा ययपि विथा और बुद्धि की सम्पत्ति से बहुत संम्पन्न थे, पर इस प्रश्न के उत्तर में मुफलिस ही निकले बस फिर क्या था । सारे शहर में घूम मच गई कि हाजी ने मिरवा से ऐसा प्रश्न किया जिसका वै कोई उत्तर ही न दे सके और हाजी ही - बहुत बड़े विधान है । उसी अवसर पर एक दिन अकबर ने काजी जादा लश्कर से कहा कि तुम रात को सभा में नही जाते । उसने निवेदन किया कि हुज़र जाऊं तो सही पर यदि वहां हाजी जी मुझ से पूछ के कि. • ईसा का सीगा क्या है तो मैं क्या जबाब दूंगा ? यह दिल्लगी बापशाह को बहुत पसन्द बाई थी । २१ तात्पर्य यह है कि इस प्रकार के विरोध फगड़े और वात्माभिमान आदि की कृपा से बहुत से सारी देखने में आये । इसी प्रकार की एक अन्य घटना बदायूंनी लिखता है कि - • • • - - - - - ...................-1 (२०) इसमें वसम्बद्धता यह है कि सीगा केवल प्रिया में होता है संज्ञा में नहीं होता, और मूसा संज्ञा है। (२१) अकबरी - दरबार - हिन्दी अनुवादक रामचन्द्र वर्मा पहला भाग पृष्ठ ० ७२-७३ For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मकबर की धार्मिक नति " यह सुनने पर कि हाजी ब्राहीम ने पीली और लाल रंग की पोशाके पहनने को न्याय संगत घोणित करते हुए फतवा दिया है, मीर आपिल: सैयद मुहम्मद की उपस्थिति में उसे चूत और मक्कार कहा बार उसे मारने के लिये अपना डन्डामी उठा लिया । २२ इस प्रकार के कगड़ासे कटटर इस्लाम में अकबर का विश्वास हिल गया । इस्लाम धर्म के प्रति अकरबर का दृष्टिकोण • इनाइतबाने में इस्लामी व सूफी विद्वानों के इस प्रकार के उत्तर दायित्व शून्य व्यवहार, इस्लाम की तात्विक दृष्टि से विवेचना करने की असमर्थता तथा इन लोगों के व्यक्तिगत स्वार्थों को देख कर अकबर बीफ उठा । उसने मुल्ला बदायुनी को गाली देने वाले या हाथापाई करने वाले व्यक्तियों की रिपोर्ट करने का मार दिया और घोषणा: की कि भविष्य में जिन लोगों में ऐसे दोण होगे और जो उदण्डता - करेंगे, उनको हबादत खाने से निकाल दिया जायेगा । बातदाने में ऐसे अशिष्ट, संकीण, मान्ध, उदण्ड बार उत्तर दायित्वहीन व्यवहार तथा अनवरत कगड़ी से अकबर बहुत ही खिन्न हो गया था । १५७८-७९ के बाद अलवर के मन में इन विदान व उल्माण के चरित्र और धर्म के । प्रति किंनित भी श्रद्धा नहीं रही थी। उसने अनुभव कर लिया था कि इन उल्माणों में जिन पर कि बुद्धि का सिर्फ कलेवरा ही है, सत्य को खोजने और जानने की पिपासा नहीं है । उसने हसास के विदानों में ही मेद माव, संकीर्णता और कटुता पाई । अत : धीरे - धीरे इस्लाम पर से उसका विश्वास उठने लगा। विषा विजयबी लिखते है कि .... जब मुसलमानी र्म पर से उसकी श्रधा हट गई और जब उस पर वह नाराज हुआ था तब साफ • साफ लफर्जी में वह कहने लगा था कि -" जिस मुहम्मद ने दस बरस की छोकरी बायशा के साथ व्याह किया था 22 - AL-Badaoni. Trans, by W. H. Lowe Vol. II P, 214. For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir asਦ ਲੀ ਸਿੰਕ ਵੀ बार जिसने खास अपने दत्ता पुत्र की स्त्री जाब के साथ - जिसको उसके पति ने तलाक दे दी थी - व्याह कर लिया था। वही - स्सा वनाचार: करने वाला मुहम्मद कैसे पाचर - परमेश्वर का दूत हो सकता है । २२ अब अकबर की धार्मिक नीति के विकास का नया दौर प्रारम हुवा । अभी तक तो इबाखत खाना केवल मुसल्मान विद्वानों और उल्माओं। के लिये ही सुला हुवा था । वे ही वहां वाद विवाद करते थे किन्तु इबादत खाने में हुए इस वाद विवाद का परिणाम यह निकला कि जब : उल्मा, शैख, सैयद वार अन्य विद्वान इस्लाम के सिद्धान्तों को स्पष्ट करने में असमर्थ रहे तब अकबर नै १५७८ से इबादतखाने में हिन्दुओं, पारस्यिो , . बनियाँ, ईसाक्ष्यों के धार्मिक वाचायाँ बार विधानों को धार्मिक गोष्ठियाँ, वाद विवाद और विचार विमर्श के लिये वामंत्रित करने का संकल्प किया। -0 (२३) सूरीश्वर और सम्राट अदादर - हिन्दी अनुवादक कृष्ण लार वर्मा - पृष्ठ - ७७ For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विभिन्न धर्माचार्यो सम्पर्क, खुतबा व महजर For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति अकबर का विभिन्न धर्माचार्यों से सम्पर्क, खतबा व महजर - www.kobatirth.org - शिया और सुन्नियों के पारस्परिक गरमागरम वाद विवाद, हीन आरोप प्रत्यारोप तथा देण पूर्ण संघर्ष के कारण मुसलमानी धर्म पर से अकबर की रुचि हट गई । पर फिर भी वह यही चाहता था कि किसी प्रकार उसे धार्मिक तत्व की बाते मालूम हो । फलत: उसने ३ अक्टूबर १४७८ को हिन्दू, जैन, ईसाई, यही, सूफी, पारसी विद्वानों एंव सन्तों के लिये इबादतखाने का द्वार बोल दिया । इस समय धार्मिक वाद विवाद व गोष्ठियों में भाग लेने वाले विद्वानों में अबुल फजल के अनुसार सूफी दार्शनिक कता, विधि ज्ञाता, सुन्नी, शिया, ब्राह्मण, जति, विडा, चारवार, ईसाई, यहूदी, सानी ( ईसाईयों का एक सम्प्रदाय ) पारसी और अन्य लोग सम्मिलित हुए । (१) जब हम यह देखेंगे कि अकबर की वार्मिक नीति के विकास में इन विभिन्न धर्मो ने क्या सहयोग दिया : (१) अकबर नामा अकबर और हिन्दू धर्मं --- Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ww For Private And Personal Use Only · अकबर की प्रकृति हिन्दुओं के उदार आदर्श वाद से बच नहीं सकती थी । राजपूतों के प्रति जो हिन्दुओं का एक लड़ाकू वर्ग था, उसकी नीति के विषय में इससे पूर्व ही लिखा जा चुका है । हिन्दी के प्रसिद्ध कृष्ण भक्त और सन्त सुरदास से अकबर ने बहुत लम्बे समय तक धार्मिक, चर्चाएँ की और उनके संगीत से प्रभावित हुआ । अकबर को सब बातें जानने का शौक था । इस लिये उसने इनकी ओर प्रवृत्त होने का और अधिक प्रयास किया । मोहम्मद हुसैन लिखते है कि सत्य का अन्वेगक हिन्दी अनुवादक मथुराCTC शर्मा पृष्ठ ४७२. 79 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति बादशाह गौतम नामक एक ब्राह्मण पंडित को, जिससे बारम्भ में सिंहासन बत्तीसी का अनुवाद कराया गया था, प्राय: जुलवा कर बहुत सी बाते पूछा और जाना करता था । महल के ऊपरी भाग में एक कमरा था, जो ख्वाबगाह ( शयनागार ) कहलाता था । अकबर उसकी खिड़की में बैठता था और स्वान्त के समय देवी नामक ब्राह्मण को जो महाभारत का अनुवाद कराया करता था, एक चारपाई पर बैठा कर रस्सियों से ऊपर सिंचवा लिया करता था । इस प्रकार वह ब्रासण अधर में लटकता रहता! था, न जमीन पर रहता था । और न बासमान पर । अकबर उससे अग्नि सूर्य, गृह, प्रत्येक देवी और देवता, ब्रह्मा, विष्णु, महेश और कृष्ण व राम नादि की पूजावों के प्रकार और मंत्र आदि सीसा करता था और हिन्दुओं की धार्मिक सिद्धान्त तथा पौराणिक कथाएँ वादि बहुत ती - ध्यान और शोक से सुना करता था और पाहता था कि हिन्दुओं के सभी पार्मिक ग्रन्थों के अनुवाद हो जाये । “२ बीरबल ने अकबर को सूर्य वौर नपात्रों की पूजा करने का परामर्श पिया बौर कहा कि मनुष्य के काम में आने वाले फल - मूर, घास पात आदि सब पदार्थ सूर्य ही के प्रताप से उत्पन्न होते है । अंधकार को दूर कर जगत में प्रकाश फैलाने वाला मी सूर्य ही है । अत: सूर्य की उपासना करनी चाहिए । उसे यह परामर्श दिया गया कि वह अपने सिंहासनारोहण का दिवस इसी नौरोज के दिन मनाये । १५७७ में वह वृन्दावन में विट्सले श्वर से भेंट करने गया । वहां पर उनकी पवित्रता, अलौकिक - व्यक्तिव, अनुपम भक्ति और ज्ञान से अत्याधिक प्रभावित हुआ । हिन्दू धर्माचायाँ का अकबर पर प्रभाव : हिन्दु धर्माचार्यों के प्रवचनों से उकबर को हिन्दुओं के देवी देवताओं और अवतारों के प्रति श्रद्धा हो गयी थी और हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारी २ अकवरी दरवार - पहला माग हिन्दी ब्लुवादक रामचन्द्र वा पृ०१३४-१५ For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , रक्षाबन्धन दशहरा, दीवाली व बसन्त आदि को वह बड़े उत्साह से मनाने लगा था । कभी कभी वह बापने मस्तक पर हिन्दुओं की भांति तिलक भी लगाया करता था | हिन्दू राजावों के विधान के अनुसार उसने मी प्रतिदिन प्रातः काल अपनी प्रजा को करोड़ों द्वारा दर्शन देना आरम्भ कर दिया था । अपनी माता हमीदा बानू बेगम की मृत्यु पर हिन्दुओं की भांति ही सिर मुडवा कर शोक मनाया । बदायूंनी लिखता है कि अकबर ने अपने पुत्र सलीम का विवाह हिन्दू प्रथा के अनुसार ही किया । विवाह के अवसर पर वह स्वयम् दूल्हे सलीम की बारात लेकर, जिसमें अनीर व दरबारी शामिल थे, दुल्हन पिता राजा भगवन्त दास के निवास स्थान पर गया । वहां सभी अमीरों व सरकारों के सामने हिन्दू प्रथा के अनुसार अग्नि प्रज्वलित करके उसके चतुर्दिक फेरे लगा कर प्राणि ग्रहण की रस्म पूरी की गयी थी और दुल्हन के विदा होने के समय उसके निवास स्थान से लेकर राजमहल तक उसकी पालकी बारों और पूरे मार्ग में सोने की मुहरें अशर्फियां हर्ष और उल्लास में बिखेरी गयी थी । (३) फतेहपुर सीकरी में दीवान ए - बाल में विष्णु स्तम्भ पर अकबर अपना सिंहासन रख कर बैठता था । यह उस वैष्णव परम्परा का प्रभाव है, जिसके अन्तर्गत राजा को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता है । अकबर ने स्वयम् ब्राह्मणों से पूजा पाठ की विधियाँगीर मंत्र - सीखे । वह रात्रि के समय सूर्य के एक सहस्त्र नाम माला पर जपा करता था । बीरबल के अनुरोध पर बादशाह सूर्य की पूजा करने लगा था । बदायूंनी लिखता है कि "A second order was given that the Sun should be worshipped four times a day, in the - ३ - Al-Badaoni Trans. by W.H. Lode Vol. II. P. 341 For Private And Personal Use Only ان Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਰਲਦ ਲੀ ਸੰਲ ਜੀਓ momins & even ina, at noon and midnight. Hi8 majesty had al so one thousand & one Sanskrit names for the sun coll ected, & read tham dally devoutly turning towards the Sun. मुगलहरम माह रानिया बार परिचारिका के रहने से - अकबर ने मुगल राज महलों में अनेक हिन्दू प्रथाएँ वपनाली थी । पार्मिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिये बालों को वामंत्रित किया जाता था ।। मुहम्मद हुसैन लिखते है कि नौरोज ( नव वारम्भ ) के समय वानन्दोत्सव करना तो हरान और तुरान की प्राचीन प्रया है ही, पर उसने उसे ले भी। सिन्दुओं की प्रथा का रंग देकर हिन्दु बना डाला । सौर और चान्द्र दोनों गगनाओं के अनुसार जब जब उसकी बात गांठ पड़ती थी, तब तब । उत्सव होता था । उस समय कुलादान भी होता था । --- पान के बीड़ा ने सब के मुंह लाल कर दिये । गोमांस, लसुन, प्याज वापि ओक प्रदार्थ ! हराम हो गये और बहुत से दूसरे पदार्थ हाल हो गये । ५ हिन्दुओं के जीव हिंसा न करने के सिद्धान्त को अदाबर ने अपना कर उसे कार्यान्वित किया । २६ मई १५६३ को उसने एक फरमान व्दारा - मथुरा, साहर, मंगोटा आदि हिन्दुओं के पवित्र तीर्थ स्थानों में मोर - मारने और सभी प्रकार के बासैट करने की मनाही कर दी। गौमांस का निर्णय कर दिया गया और कहा गया कि जो कोई उसे पारेगा वह मारा जायेगा क्योंकि हिन्दू पंडितों ने यह कहा था कि गाय के मांस से अनेक प्रकार के रोग होते , वल रददी बौर गरिक होता है इत्यादि-इत्यादि अकबर और पारसी धर्म : जरदोस्त यारा प्रचलित क पारसी लोगों ने अपनाया, जो कि जोरास्ट्रियन धर्म कहलाता है । उन दिनों नक्सारी भारत में पारसी धर्म का प्रमुख केन्द्र स्थल था । नवसारी और सूरत में रहने वाले सभी पारसी ४ - A2-badaoni- Trans. by .. Loa Vai.. II. P.332. ५ - अवानरी दरबार - पहला माग हिन्दी अनुवादक रामचन्द्र वर्मा पृ० १२१-२२ For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति पुरोहितों में मैहरजी राणा का प्रमुख स्थान था । मैहर जी ने इबादतलाने में होने वाली गोष्ठियों, प्रवर्ना और वाद - विवाद में भाग लिया । व्यक्तिगत मैटी के समय अकबर ने मेहर जी से पारसी की के विभिन्न पहलुओं पर चर्ति की । मेहर जी ने उकबर को पारसी धर्म के गुप्त वापरणों से परिचित कराया तथा उसके विशेण शदा, रीति, रिवाजो उत्सवा और सिद्धान्तों से अवगत कराया । उसने अकबर को पारसी धर्म के प्रवर्तक, जौरास्टर के किपाग चमत्कारों के विषय में, सूर्य, चन्द्र, अग्नि के प्रति श्रद्धा व भक्ति एक ईश्वर की पूजा, पवित्र, सत्य, सदेह, का पहनना कुश्तरी, नौरोज - ए - खास तथा नौरोजर - धाम के विषय में समझाया । अकबर मैहर जी राणा के पारसी धर्म के सिद्धान्तों के प्रति पादन, उसके विचारों और जीवन की पवित्रता! से हतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने मैहर जी को नवसारी के समीप परचोल में रखी गांव में २०० बीघा जमीन माफी में जीवन निवांह के लिये दे दी । सब१५६५ में दस्तूरजी राणा के निधन के बाद उनका पुत्र मैकुलाइ १५६५ में अकबर के दरबार में गया । वहां उसनेसम्राट से भेंट की अकबर ने इससे प्रसन्न होकर १५६ ६ मैं उसे सौ बीघा भूमि और पुरुस्कार। में दी कैकुबाद को यह भूमि सूरत जि में तारली परगने के तवरी गांव में प्राप्त हुई। पारसी की का अकबर पर प्रभाव : दस्तर मेहर जी राणा के सत्संग और उनके प्रवना, विचारों सथा पारसी की के सिद्धान्तों से उकबर इतना अधिक प्रमावित हुआ कि उसने पारसी धर्म के कुछ सिद्धान्ता, रीति - रिवाजों व परम्पराओं को बफा लिया था । पारसी विधान के अनुसार रामहल में पवित्र अग्नि प्रज्वलित की गयी । बदानी लिखता है कि -" महल के पास ही एक अग्नि मंदिर बनवाया गया था । मुल फजल की देख रेख में For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति । उसमें बराबर अग्नि जलती रहती थी । उसे आज्ञा दी गई थी कि उसमें की अग्नि कमी बुकने न पावे, क्योंकि यह ईश्वर की सब से बड़ी देन और उसके प्रकाश में से एक मुख्य प्रकाश है । ६ पारसियों के समान अकबर अग्नि में चन्दन डाल कर उसके सामने प्रार्थना भी करता था । और उसके प्रति बड़ी श्रद्धा रखता था । मुहम्मद हुसैन लिखते है कि सन् २२ जलसी अकबर ने निस्संकोच भाव से अग्नि को प्रणाम किया । ७अग्नि पंथ या पारसी धर्म में अकबर की निष्ठा एक घटना से स्पष्ट हो जाती है । यह घटना सन १६०३ में घटित हुई अकबर मध्यान्ह के बाद अपने शयथ कक्षा में विश्राम करने का अभ्यस्त था एक सन्ध्या को वह अपने शयन कक्षा में विश्राम करने का समय से आशा से पूर्व ही बाहर निकल आया । पहले उसे वहां कोई नौकर दिखाई नहीं दिया । पर जब वह सिंहासन और कोच के समीप आया तब उसने शासकीय मशालबी को कुंडली मारे शाही कुर्सी के समीप मौत की सी नींद सोये हुए देखा । इस दृश्य से क्रोधित होकर अकबर ने उसे मीनार से नीचे फेंक देने की आज्ञा दी । इससे उसके कई टुकड़े होकर उसका प्राणांत हो गया । सन् १५८० से उसने सूर्य के सामने साष्टांग दण्डवत करना प्रारम्भ कर दिया था । पारसी की एक अन्य प्रथा के अनुसार जब शाम को दीपक जलाये जाते थे तो अकबर स्वयम् और उसके दरबारी प्रकाश के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिये खड़े हो जाते थे क्योंकि अकबर का कहना था कि "To light a Candle is to Commemorate the rising of the) Sun, To whomsoever the Sun sets, what other remedy hath he bat this 9 Ε Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - For Private And Personal Use Only Al-Badaoni Trans. by W. H. Love Vol. II. FP 268-69 ७ अकबरी दरबार पहला भाग हिन्दी अनुवादक रामचन्द्र वर्मा पृ० १२६ Smith: Akbar the great mogul. P. 164. Ain-i-Akbari Trans, by H.S. Jorrett. Vol. III 443. · 31 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org - ए अकबर ने पारसियों की पवित्र सुद्रेह या सदरी बीर कुश्ती भी धारण कर ही थी । सदरी और कुश्तरी पहन कर वह अपने दरबारियों मैं राजसिंहासन पर बैठता था । पादरियों के त्यौहारों बार पवित्र दिनों को भी अकबर ने मनाना प्रारम्भ कर दिया था । १५८२ से उसने पारसियों के नव वर्ण व चौदह त्यौहारों को अपनाना प्रारम्भ कर दिया था । इन चौदह त्योहारों का विवरण हमें वाहन अकबरी मैं मिलता है । पारसियों के ये चौदह त्यौहार इस प्रकार से हैं : 1.19th of Earvardin,2. 3rd of Aribehesht 3.6thof Khurdan 4. 13th of Tir. 5. 7th of Amardad 6. 4th of Shehrivar 7.6th of Meher 8. 10th of Avan. 9. 9th of Adar.10.8th of Deh 11. 15th of Deh, 12.23rd of Deh. 13.2nd of Behman.14.5th of Aspann darmad.10" लेकिन इससे यह नही समझ लेना चाहिये कि अकबर पूर्ण रूपेण उनके धर्म मैं दीक्षित हो गया था तो प्रत्येक धर्म की सत्यता जानना चाहता था । इस लिये उसने पारसी धर्माचार्यों से उनके धर्म के सिद्धान्तों और परम्पराओं का ज्ञान प्राप्त किया । अकबर और जैन धर्म : -------- अबुल फजल ने वाहन ए अकबरी में दरबार में रहने वाले विद्वानों का वर्गीकरण किया है। प्रथम वर्ग में वे लोग थे जो कि दोनों लोकों का रहस्य जानते थे । दूसरे वर्ग में मन और हृदय के ज्ञाता थे, तीसरे वर्ग में धर्म और दर्शन शास्त्र के ज्ञाता, चौथे वर्ग में दारीनिक तथा पांचवे वर्ग ने वे लोग थे जो कि परीक्षण तथा पर्यालोचना पर जाश्रित विज्ञान के जानने वाले थे । इन सम्पूर्ण वग में अबुल फ तीन जैन विनों के नाम गिनाये है । इनमें आचार्य श्री हीरविजयसूरि तो प्रथम वर्ग में थे और विजयसेन सूरि तथा मानुचन्द्र उपाध्याय पांचवे वर्ग • For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - 10- Ain-i-Akbari Vol. I Trans. by Blochman 276. 85 - Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org अकबर की थमिक नीति में थे।" ११ हीरविजय जी ने अकबर को कां का सच्चा स्वसप समझाया कि संसार में वहानी मनुष्य जिस धर्म का नाम लेकर लड़ते है वास्तव में वह धमा नही है । म वह है जिससे वन्त : करण की शुद्धि होती है । इसी तरह उन्होने अकबर को जैन के सिद्धान्तो परम्परावा, नैतिक आचरण के नियाँ तथा उत्सवों का ज्ञान कराया । ___ ययपि अकबर ने गददी पर बैठने के नौ वर्ण बाद अपने राज्य में से जजिया उठा दिया था, जिसका उल्लेख हम कर वार्य है तथापि गुजरात से यह जजिया नही स्टा था क्योंकि उस समय गुजरात अकबर के - अधिकार में नहीं पाया था । इस लिये मूरिजी ने अकबर से खरोध किया कि आप अपने राज्य से जिया उठा दीजिये और तीर्थों में यात्रियों से जो कर लिया जाता था उसे बन्द करने के लिये भी अनुरोध क्यिा - क्योंकि इन दोनों करों से जन साधारण को बहुत ज्यादा कष्ट उठाना पडता था । सूरी जी के अनुरोध से अकबर ने उसी समय दोनो करों को उठा देने के फर्मान लिख दिये । हीरविजय सूरि की तरह शान्तिचन्द्र जी ! को मी बादशाह १ वत मानता था । इस लिये उनके आग्रह से बादशाह ने एक ऐसा फरमान निकाला जिसकी रुह से बादशाह का जन्म जिस महीने में हुवा था उस सारे महीने में, रवीवार के दिनों में, प्रकान्ति के दिनों में, और नवरोज के दिनों में कोई भी व्यक्ति जीव स्सिा ना करें ।। करे ।" - शान्ति चन्द्र जी के प्रभाव से ही अकबर ने अपने तीन लडकी सलीम, मुराद और दानियाल का जन्म जिन महीनों में हुआ था, उन • महीम मी जीवहिंसा निर्णय का फर्मान निकाला । १५ - A1m-1-Akbari Trans, by H.blochmarm- Vol.I. P.607-1617 १५ - सूरीश्वर और सम्राट अकबर • हिन्दी अनुवादक - कृष्णलाल वर्मा पृष्ठ १४५. For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मकबर की धार्मिक नीति उस समय सिद्धार की यात्रा करने के लिये जाने वालों से कर लिया जाता था । भानुचन्द्र जी के अनुरोथ से अकबर ने वह कर बन्द कर दिया और इसका फनि लिख कर हीरविजय पुरी जी के पास भेज दिया । पानुचन्द्र जी की विद्वता और गहन अध्ययन के कारण अकबर ने ! उन् उपाध्याय की पदवी से विभूषित किया । “१३ मिचन्द्र सूरी ने भी बादशाह पर बच्छा प्रभाव डाला था । उनके उपदेश से बादशाह ने बाणा सूदी १ से १५ तक सात दिन तक कोई जीव हिंसा न करें इस बात का फर्मान निकाला और उसकी स्क। एक नकल अपने ग्यारह प्रार्ता में पेज दी। विजय सेन सूरी ने भी बादशाह को हीरविजय सूरी की भांति ही वाकर्णित किया था। उन्होने बादशाह को उपदेश देकर अनेक कार्य करवाये । बादशाह ने विजय सैन सूरी की इच्छानुसार सिन्धु नदी में - 1 और कच्छ के काशयों में जिनमें मच्छियां मारी जाती थी, चार महीने 1 तक जाल डालना बन्द करके वहां की मछलियों के प्राण बचाये । गार्यो, बल व मैसों का मारना बन्द किया, (युद्ध ) में किसी को कैद नहीं करना स्थिर किया और मृतक मनुष्य का कर लेना रोक दिया । " १६ जैन धर्माचार्यों तथा मुनीयां का अकबर पर प्रभाव : अब तक जो तातै लिखी गई है उनसे यह स्पष्ट हो चुका है कि जैन मुनियों ने अकबर पर प्रभाव डाल कर जनहित, धर्म रा तथा जीव दया की वनेक कार्य करवाये थे । जैनियों के मवाद, सत्य और बल्सिा ! के सिद्धान्तों से अकबर स्थायी रूप से प्रभावित हुआ । मनुष्य या पक्ष की हिंसा न करने के का सिद्धान्त में अकबर की गहरी वास्था हो गयी थी । अकबर ने समस्त मुगल राज्य में यह ढिढौरा पिटवाया कि कोई १२ - सुरीश्वर और सम्राट अकबर • हिन्दी अनुवादक कृष्णलाल वर्मा पृ०१५४ " " पृ०१५ ! For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति 83 मी व्यक्ति एक वर्ष में है महीने और है दिन तक जीव हिंसा न करें । उन दिनों में स्वयं बादशाह भी मांसाहार नही करता था । इस बात को बन्यान्य जैनैतर लेखकों ने भी माना है। अवसर का सर्वस्थ गिना जाने वाला शेख अबुल फजल लिखता है कि वह ( अकबर ) आयु की लागजियों का कुछ अंशों में पालन करता हुआ भी शनै: शनै: मांसाहार शेडने का इरादा रखता है । वह बहुत दिन तक प्रत्येक शुक्रवार वीर पश्चात रविवार के दिन मांसाहार का परहेज करता रहा था । अब प्रत्येक सोर महीने की प्रतिपाद को, रविवार को, सूर्य और चन्द्र ग्रहण के दिनों में सौर मास के प्रत्येक त्यौहार में, फरवरदीन के महीने मैं, दो उपवासों के बीच के दिनों में, रजब महीने के सोमवारों में और बादशाह जन्मा था उस बारे महीने में यानी बारे बबान महीने में मांसाहार नही करता है । १५ अकबर ने स्वयम् कहा है कि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Men should annualy refrain from eating meat on the anniversary of the month of May accession as a thanksgiving to the almightly order that the year may pass in prosperity." 16 जैन धर्म के प्रभाव से अकबर ने निश्चित रूप से साम्राज्य में जीव हिंसा का अन्त नहीं तो उसे कम करने का, उसकी तीव्रता और बर्बरता को कम करने का प्रयास अवश्य किया था । पांच पांच सौ चिड़ियों की जी जो नित्य प्रति खाता था, मृगादि पशुओं का जो नित्य शिकार करता था, वही मुसलमान बादशाह जैन साधुओं के उपदेश से इतना दयालु हो गया था । जैन साधुओं के इस महत्व को बदायूंनी मी स्वीकार करता है । वह लिखता है कि सम्राट अन्य सम्प्रदार्थों की अपेक्षा श्रमणों .. 15- Ain-1-Akbari Trans, by H. Blochmann Vol. I PP. 61-62. Trans, by H.S.Jarrett. Vol. III P. 446. 16 -do For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3ਝਦ ਲੀ ਗਰੰਜਨ ਕੀਰ ( जैन साधुओं ) बोर ब्राह्मणों से स्कान्त में विशेष रूप से मिलता था उनके सहवास में विशेष समय बिताता था । वे तिक, शारीरिक, धार्मिक और आध्यात्मिक शस्त्रों में धानति की प्रगति में और मनुष्य जीवन की सम्पूर्णतया प्राप्त करने में दूसरे समस्त ( सम्प्रदायाँ ) . विद्वानों और पंडित पुरुषों को पैदा हर तरह से उन्नत थे । वे अपने मत की सत्यता और हमारे ( मुसलमान ) धर्म के दोण बताने के लिये बुद्धि पूर्वक परम्परागत प्रमाण देते है । वे स्सी उड़ता और मुक्ति से अपने मत का समर्थन करते थे कि उनका कल्पना तुल्य मत स्वत: सिद्ध प्रतीत! होता है । उसकी सत्यता के विरुद्ध नास्तिक भी कई शका नहीं उठा सकता था । " १७ ___ अकबर पर जैनधर्म का इतना अधिक प्रभाव देख कर कुछ लोग तो उसे भी समझने लगे थे लेकिन जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि वस तो प्रत्येक धर्म की सत्यता जानना चाहता था । इस लिये इबादतखाने में होने वाली विचार गोष्ठियों में उसने अनाचार्यों को आमंत्रित - किया । वाद विवाद में उसे जैन धर्म में जो बच्छाश्यां दिखाई दी उन्हें उसने अपना लिया । इसके साथ साथ यह भी अविस्मरणीय है कि जनकल्याण के कार्य, पवित्र तीर्थ स्थानों की सुरक्षा आदि जैन और हिन्दू दोनो माँ के सामूहिक प्रभाव का सुफल था । अकबर और ईसाई धर्म : ___ ईसाई र्म के गढ रहस्यों को समझने के लिये व अकबर ने गोवा से! ईसाई पादरियों को आमंत्रित करने का निश्चय किया । गोवा से प्रथम असुबट मिशन: पुर्तगाली ईसाई पादरियों का जो प्रथम शिष्ट मण्डल, १५८० में - - - - - - - 17- AL-Badaoni Trans. by N.H. Love Vol. II. P. 264. For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਮਝਦਸ਼ੀ ਸੰਤ ਜੀਓ 80 फतेहपुर सीकरी बाया उनके तीन सदस्य थे - रुडोल्फ एक्वाविवा, एण्टनी मांसरेट, और फ्रांसिस हेनरीक्वेज । ३ मार्च १५८० को अकबर नै दीवान - ए - लास में इनका सम्मान किया । इस समय पर पादरियों ने कवर को बाइकिल की एक प्रति मात जिल्दी वाली भेट की । स्मिथ लिखता है कि अकबर ने बड़ी श्रद्धा से इस बाइबिल को ग्रहण क्यिा । उसने इस बाइबिल की प्रत्येक जिल्द को अपनी पगड़ी उतार कर सिर पर रख कर उसका सम्मान किया और हार्थों में हैकर निष्ठा पूर्वक उनको मा मी"! पादरियों ने ईसामसीह को ईश्वर का पुत्र बताया बार ईसाक्ष्यों को अवतार वाद तथा त्रियकता की व्याख्या की। उन्होने पुनरुत्थान, अन्तिम न्यान पवित्र आत्मा, पवित्र मोज, अनुगृह धौर विश्वास, ईसा के देवत्व की बाप सापती आदि अन्य विषयों पर विशुद्ध विवेचन क्यिा और इन पर अकबर की शंकाओं का निराकरण किया । प्रथम ईसाई मिशन के पारियों की धारणा थी कि उनके प्रभाव से अकबर ईसाई नत स्वीकार कर लेगा । परन्तु उनके सतत प्रयत्मा के बाद पी ईसाई धर्म के प्रचार में निराश हो गये थोर अकबर को ईसाई बनाने में असफल रहे । अत: अपने प्रयत्नों में सफल होने पर वे निराग होकर गांव लौट गये । गोवा से वितीय बेसुइट मिशन : रडवर्ड लियोटन और क्रिस्टोफर डी वेगा नामक दो पुर्तगाली पादरी १५९१ में लाहौर पहुंचे । इन पादरियों ने सम्राट से भेट के समय ईसाई धर्म के सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला । इन्होने लार में एक पाठशाला स्थापित की जिसमें उकलर के पुत्र(भुराद और दानियाल ) क पात्र खूसरो तथा अन्य अमीरों और सामन्तो के लड़के पुर्तगाली पाणा पढ़ते थे । कुछ समय बाद इन पादरियों ने उनुभव किया कि अकबर को वास्तव 18. Smith Ak bar the Great Mogul, P. 175. For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति 91 में ईसाई धर्म के विषय में सुनने का एक कौतुल्ल था, श्रद्धा नहीं । अत: । निराश होकर फले के समान इसरा शिष्ट मण्डल भी वापिस लौट गया ।। गोवा से तृतीय सुष्ट मिशन : सन १६६५ में अकबर ने तीसरी बार गोवा के पुर्तगाली वायसराय को विद्वान ईसाइयों का एक शिष्ट मण्डल पेजने के लिये एक बामिनिया ईसाई को पत्र देकर मजा । स्स० बार० मा लिखते है कि इस काम के लिये सेण्ट फ्रांसीस जेवियर के माई का पोता पादरी रोम जेवियट - पापरी हमेनुक पिनरो और ब्रदर बेनेडिक्ट डी गोज को चुना गया । ये तीनों ही अपने अपने पत्र में बड़े योग्य थे ।“ १६ यह मिशन ५ मई १५६५ मैं लाहौर पहुचां । ये लाहार और उसके आस पास के पौत्र में ईसाई धर्म का प्रचार करते थे तथा हिन्दुओं और मुसलमानों को ईसाई बनाते थे । स्स. बार. शर्मा के अनुसार - जब अकबर मई में कासीर गया तो वह अपने साथ पारी जेवियट वोर अगर गोत्र को पी ले गया । ये लोग वहां नवम्बर सन १५६७ तक ठहरे । जब ये लोग वहीं थे तो काश्मीर की घाटी में एक बड़ा इमिपा पड़ा और पदरी ने बहुत से अनाथ बच्चों को, पिन्, गलियों में मरने के लिये छोड़ दिया गया था, ईसाई में दीपित किया । “२० ईसाई धर्म का अकबर पर प्रभाव : अकबर सभी धर्मों के प्राचार्यो, सन्ता, विद्वानों और नेताओं के प्रति उत्यन्त उदार व सहिष्णु था । ईसाइयों के शिष्ट मण्डलों के प्रति भी वह शिष्ट, विनय शील, उदार वीर सहिष्णु था । ईसाई धर्म के सिद्धान्तों से पूर्ण परिचय प्राप्त करने का उत्कृष्ट अभिलाणी होने के • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • 19. एस. बार. मा - हिन्दी अनुवाद मथुरालाल शर्मा (भारत मैमुगल 20 - " " " " सामाज्य)प० २३६ ७ For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकब्र की धार्मिक नीति कारण अकबर ने इन पादरियों के प्रति न केवल अता और शिष्य भाव का की प्रदर्शन क्यिा अपितु इसाइयों के ईसामसीह और मैरी आदि की मूर्तियाँ के प्रति भी यथेष्ट श्रद्धा प्रकट की । इन पादरियों के गिरवाओं में । भी अकबर प्राय : आया जाया करता था । पादरियों की प्रार्थना के समय कुछ दरबारियों के साथ गिरजा घर में जाकर मेरी तथा ईसामसीह के चित्रों को साष्टांग प्रणाम करता था । अकबर ने पादरियों को स्क अस्पताल स्थापित करने की अनुमति दे दी थी । उन अपने धार्मिक वीर सांस्कृतिक संस्कार व समारोह मनाने की मी स्वतंत्रता थी । किसी सा! के देहावसान के बाद उसके श्व को ईसाई धर्म की परम्परानुसार कार्या और मोमबत्तियाँ सहित, लस में नगर में से ले जाने की अनुमति दे दी थी । जैतहट पादरियों ने मुग, दरबार में अपना एक कालेज अथवा मठ मी स्थापित कर लिया था । इन ईसाई पादरियों को उच्च श्रेणी के अतिथी मानते हुए अकबर ने इन्हें प्रत्येक प्रकार की सुख सुविधाएँ ही प्रदान ! नही की बल्कि इनके दाने जाने तथा अन्य प्रकार के सारे खचों को भी स्वयम उठाया । अकबर के ऐसे आतिथयपूर्ण व्यवहार तथा ईसाई की के प्रति - इतनी जिज्ञासा देव कर ईसाई मिशनरी यह समझने लगे कि वह ईसाई की। स्वीकार करने की ओर अग्रसर हो रहा है और इसी धारणा के आधार पर इन लोगों ने गोवा और लिसवन में उप उच्च अधिकारियों को अतिरंजित समाचार मेजने एरु कर दिये । जैसे-सम्राट ने सारे साम्राज्य में से इस्लाम धर्म की समाप्ति कर दी है और मसजिदों को अस्तबलों में परिवर्तित कर दिया है । जब कि वास्तविकता यह थी कि तर्क प्रिय होने के कारग झाला किसी ऐसे भी में विश्वास ही नही कर सकता था, जो कि इल्हाम तथा सत्ता पर आधारित था। . For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org ------ खुतबा व मजहर हबादबाने में मुस्लिम उत्पादों के वाद विवाद से और ईर्ष्या द्वेग तथा आरोप प्रत्यारोप से अकबर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सत्य का इन धार्मिक फगड़ों से कोई सम्बन्ध नहीं है । इस लिये उसने एक और तो इबादत खाने के व्दार हिन्दू, जैन, पारसी व ईसाई सन्तों के लिये खोले तो दूसरी ओर अपने आपको कटटर धर्मांध मुल्लाओं के हानि कारक प्रभाव से स्वतंत्र करने का निश्चय किया । इस हेतु उसने दो दृढ कदम उठाये एक तो इतना पढ़ना और दूसरा बभ्रान्त आज्ञा पत्र अथवा महजर प्रसारित करना । खुतबा पढ़ना : उसकी शान बढ़े - बल्ल T प्रभाव मुख्य मानके पद को ग्रहण करने के लिये तथा उल्मागौ और महत्व को कम करने के लिये शुक्रवार, २२ जून १५७६ को फतेहपुर सीकरी की प्रमुख मसजिद की वेदी पर चढ़कर अकबर ने कवि फैजी बारा कविता में रचित निम्न लिखित बुतबा पड़ा : उस अल्लाह के नाम पर जिसने हमें साम्राज्य प्रदान किया है, जिसने हमें विवेकशील मस्तिष्क तथा शक्तिशाली जाएं दी है, जिसने हमें धर्म और न्याय की ओर प्रेरित किया है, जिसने हमारे हृदय से घी और बुद्धि के अतिरिक्त सब कुछ निकाल दिया है, जिसके गुण मानवी समझ से परे है, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - .. 93 हु- अकबर । २१ अल्ला अकबर ने खुतबे के अन्त में जो अकबर शब्द पढ़े उसके दो अर्थ निकलते है । एक तो यह कि अल्लाह सब से बड़ा है और दूसरा For Private And Personal Use Only 21 AL-Badaoni. Trans. by W.H. Love Vol. II F. 277. Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति अकबर ही अलाह है । अकबर के बो विरोधी थे उन्होंने दूसरे व्यं को सही माना और कटटर धर्माध मुसलमानों को अकबर के विरुद्ध भड़कान प्रारम्भ कर दिया । २२ लेकिन अक्बर ने कहा कि वह इमाम - ए . आदिल है । इस्लामी विधान के अनुसार तो खलीफा और इमाम का पद एक ही व्यक्ति में सम्मिलित होना चाहिये, ए सुल्तानों की योग्यता व निर्बलता के कारण माम का पद उन्नै छोड़ना पड़ा । भारत के बाहर इलामी देशों में राज्य करने वाले सुलतान व्दारा बुतबा पढ़ा जाना कोई नवीन बात नहीं थी, किन्तु भारत में कार धारा जुतबा पढ़ने और इमाम ए आदिल की उपाधि धारण करने से मुसलमानों के बाटर, नुदार व धार्मिक वर्ग में लकी मच गई । रुटटर पंथी मुसलमान समझने लगे कि ! अकबर बतानीय देवी सत्ता का पैगम्बर बनने का प्रयत्म कर रहा है। पर अकबर ने इस विरोध और बारोप की परवाह न की। महजर अथवा बभ्रान्त आज्ञा - पत्र : सितम्बर १५७६ में फजी और अबुल फजल के पिता से मुबारक ने बादशाह के कहने से महजर पेश किया जिसके व्यारा सारे देश में इस्लाम सम्बन्धि विवादों में अकसर को पंच फसटे का अधिकार दिया गया । इस प्रपत्र को मखदूम - उल - मुल, मुख्य सद्र बब्डन्नवी, काजी काहीन मुलतानी, गाजी ला बदस्ती, सामाज्य के मुफती और प्रधान काजी शेख मुबारक तथा अन्य प्रसिद्ध प्रमुख धार्मिक नेता ने स्वीकार करते हुए उस पर अपने हस्ताक्षर किये । इस प्रपत्र का मूल रुप अधोलिखित है . " क्योंकि हिन्दुस्तान अब शांति और सुरक्षा का केन्द्र तथा न्याय नीति वा स्थान बन गया है, जिससे उच्च और निम्न वर्ग के लोगों और! मुख्यत : अध्यात्म विया विशारद विद्वान लोग और वे लोग जो ज्ञान -1 22-Akbamama Vol. III P.P. 277-78. For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਜਦ ਜਨ ਜੀਓ विज्ञान का प्रचार विस्तार करते है तथा मुक्ति के मार्ग दर्शक बने हुए है, वरम और फारस से यहां वाकर बस गये है । अब हम प्रमुख उठेमा, जो केवल कानून के विभिन्न अंगों के ही विशेषज्ञ और ज्ञाता नहीं, तर्क और प्रमाण पर आधारित निया से ही परिचित नहीं है, बल्कि अपनी सच्चाई और सदाशयता के लिये भी प्रसिद्ध है । प्रथम तो हमने कुरान की बायत"श्वर की बोर पैगम्बर की वीर उनकी तुम में, जिन्हें सत्ता प्राप्त है बाजा पालन करणे । " दूसरे सच्ची परम्परा जो बादमी क्यामत! के दिन बुदा का प्यारा होता है, वही असली नेता होता है, जो अमीर! की बाशा का पालन करता है, वह मेरी वाज्ञा का पालन करता है, और जो उसके प्रति विद्रोह करता है, वह मेरे प्रति विद्रोह करता है, सिद्धान्त का और तीसरे तर्क और प्रमाण पर बाधारित अन्य अनेक सबूतों का बच्छी तरह से मम समझ लिया है । और हम इस निश्चय पर पहुंचे है कि न्याय प्रिय राजा का स्थान हश्वरीय दृष्टि में मुगज हिन्द (धार्मिक नेता ) से कहीं ऊंचा होता है।" "आगे हम यह घोणित करते है कि इस्लाम शाह का राजा, मानवता का बाय स्थल, स्वाभिमा का सेनापति, संसार में स्वर का स्वरूप, बगुल फजह जलालुदीन मुहम्मद अकबर, बादशाहे गाजी, सब से अधिक न्याय प्रिय और बुद्धि मान राजा है और उसे ईश्वर का ज्ञान प्राप्त है।" इस लिये यदि भविष्य में ऐसे धार्मिक प्रश्न खड़े हो जिन पर मुजत हिन्दी की राये भिन्न भिन्न हो तो सम्राट अपनी सूक्ष्म दृष्टि और बुद्धिमत्ता के अनुसार सुव्यवस्था की दृष्टि से देश की भलाई के लिये इन विरोधी मतों में से किसी एक को स्वीकार करने की कृपा करेंगे, और यह मत ही उसकी सारी प्रजा पर लागू समझा जायेगा ।" यदि सम्राट कुरान के अनुसार तथा देश के हित में कोई नहीं - For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति २३ www.kobatirth.org 96 खाज्ञा जारी करना उचित समझेंगे तो सभी लोग उसे मानने के लिये बाध्य समझे जायेंगे । और इसका विरोध करने से इस लोक में धार्मिक अधिकार तथा वह धन सम्पदा से वंचित होना पड़ेगा तथा दूसरे लोक मैं कष्ट मिलेगा यह प्रपत्र विशुद्ध भावनाओं के साथ ईश्वर की कीर्ति और इस्लाम के प्रचार के लिये लिखा गया है और हम धर्म प्रमुख उत्पान और प्रमुख धर्म शास्त्रियों ने ६८७ हिजरी के रजब महीने में इस पर हस्ताक्षर किये है। १३ उपर्युक्त प्रपत्रसेवकमर को यह अधिकार प्राप्त हो गया कि वह मुसलिम धर्मशास्त्रियों के विरोधी मतों में से किसी एक को स्वीकार करें तथा मतमेद विहीन मामलों पर किसी भी नीति को निर्धारित करें, बशर्ते कि वह कुरान विहीत न हो। इस प्रकार अब अकबर ने स्वयं वह अधिकार प्राप्त कर लिये जो अब तक उलेमानों के बौर विशेष रूप से प्रमुख सदर के अधिकार माने जाते थे । अब से वह मुसलमान प्रजाजनों के लिये धार्मिक सत्ताधिपति मी बन गया । अकबर के उतना पढ़ने से घोषणा पत्र प्रसारित करने से तथा सभी धर्मो के प्रति सहिष्णुता की नीति अपनाने से अनुदार मुसलमान और उल्माव ने अपना तीव्र असन्तोष प्रगट किया वीर यह दोष लगाया कि वह स्वयं में देवत्व का दावा करता है, अपने लिये ईश्वर के पैगम्बर का प्रक पद प्राप्त करना चाहता है। पर ये आरोप निराधार है, क्योंकि अकबर ने कहा कि वह अपने मैं देवत्व का, ईश्वरीय अंश होने का दावा करने की कल्पना भी नहीं कर सकता । वह इस्लाम का अनादर भी नहीं करता था, अपितु उसके सत्य सिद्धान्तों के प्रति गहरी वास्था रखता था । सन् १५७५ से १५८० तक की इसी अवधि में अकबर ने प्रति वर्ष भारत से मक्का मदीना की तीर्थ यात्रा पर जाने वाले मुखमान यात्रियों के कारवां की व्यवस्था Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Al-Ba da ami. Trans, by W.H.Lowe Vol. II P.P.279-280 For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मकर की धार्मिक नीति 9 राजकोण से की । प्रति वर्ण वह एक प्रमुख अकिारी को हब से यात्रियों की सम्भाल करने की व्यवस्था के लिये उनके साथ वाने जाने के लिये - नियुक्त करता था। और उरे मीर हज या हामी कहा जाता था । २४ महबर की घोषणा के बाद भी अकबर १४ अक्टूबर १७६ को तीर्थ यात्रा के लिये बोर सन्त की मजार से बार्शीवाद प्राप्त करने के लिये अजमेर में । स्वाजा की दरगाह पर गया था । वापसी यात्रा में उसे नमाज के लिये । एक विशेण डेरे या खेमे की व्यवस्था की । इसमें वह नमाज पढ़ता था, जैसा कि कर्म निष्ठ मुसलमान करता है। अमेर के मजार की वह जियारत करता रहा । ३० जुलाई १५६० को अजमेर के स्वाजा की व होने से अकबर ने इस समय अपने पुत्र दानियाल को अपने प्रतिनिधि के रूप में अजमेर मेजा । वानं उसने बहुत सा न गरीव व फकीरों में बांटार५/ ___ इन उपरोक्त उदार में स्पष्ट है कि अनुदार उल्मा ने अकबर पर जो दोग लगाये थे, वे निराधार है। .. . 24Also Bedlami Trans, by W.H.love. Vol. III P.313. 25. Al-Ba daani Trans, By W.H. Love Vol. II P.P, 280-87. + + + + + + + + For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर www.kobatirth.org और Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीन-ए-इलाही For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति अकबर और दीन - र - इलाही वम्बर के धार्मिक विचारों की परिणति दीनालाही में हुई। उसकी धार्मिक नीति के विकास वार विस्तार का यह अन्तिम रुप था । अबुल फजर लिखता है कि जब सामाग्य से ऐसा समय गता है कि - किसी रात्र में सत्योपासना का भाव जाग्रत हो तो लोग अपने शासक की ओर देखेंगे क्योंकि अपने सर्वोच्च पद के कारण शासक ही उनका नेता हो सकता है | --- क बादशाह इस लिए विभिन्न मा में सामन्यस्य का तत्व देख सकता है और इसके विपरीत कमी - कमी साफ तौर से उसको एकत्व में विभिन्नता भी दिखाई दे सकती है । उसका पद बहुत विशिष्ट है । इस लिए वह हर्ष और शोक से परे है । अब समय यही बात वर्तमान युग के शासन ( अकबर ) पर लागू है। ---- वह राष्ट्र का धार्मिक नेता है और समझता है कि ऐसे कर्तव्य का पालन करता - ईश्वर को प्रसन्न करता है । " ! थार्मिक सठियाँ और सत्ता से असन्तुष्ट होकर अकबर ने तर्क को ही धर्म का मूाधार बताया और अपने साम्राज्य में प्रत्येक मत सम्प्रदाय को धार्मिक स्वतन्त्रता और सहिष्णुता प्रदान की । फाप व्यकिार्यों व्दारा क दूसरे के प्रति पृणा को भाव फैलाते देख अकबर को अत्यन्त को ग पहचता था । इसी पार्मिक विदेग को दूर करने के विचार से उसने समी मो का समन्वय करने का प्रयास किया और उसका नाम - 'तवाहिये इलाही (दीन इलाही ) अर्थात देवी स्पेश्वर वाद रता । यह एक सामाजिक • धार्मिक - प्रातृ - सम्प्रदाय था, जिसका संगठन • १ - Ain-1-Akbari vaa. I P.P. 163-64. For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति विभिन्न जातियों को एक दूसरे के अधिक निकट लाने के विचार से किया गया था । इसकी रचना सर्वजनित सहिष्णुता के सिद्धान्त पर की गई थी और स्वयम् सम्राट ने सभी धर्मों में से अच्छी बाते संग्रहीत करके इसमें रखी थी । दी नहलाही के अभ्युदय के कारण : · दीनलाही का अभ्युदय निम्नलिखित कारणों और परिस्थितियों Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से हुआ ए (१) उदार विचार धाराएँ अकबर को विरासत में प्राप्त हुई । जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि वंश परम्परा, पैतृक सहिष्णुता, माता, पिता, संरक्षक और शिक्षाक की उदारता, धार्मिक भावना और विश्वासौं का प्रभाव अकबर पर पड़ा । इन्होंने अकबर की धार्मिक नीति व निष्ठा को उदार पंथी बनाने में बड़ा योगदान दिया । शिक्षक बल लतीफ द्वारा पढाये गये सुलह कुल अर्थात सर्वजनित शान्ति के सिद्धान्तों को वह जीवन पर न मूला । हिन्दु राजकुमारियों के साथ हुए विवाह तथा राजपूत व हिन्दू अधिकारियों के सान्निध्य व सम्पर्क से अकबर हिन्दू धर्म के सिद्धान्तों से अधिकाधिक परिचित होने के साथ साथ विभिन्न धर्मों के प्रति और भी अधिक सहिष्णु और उदार हो गया । इस उदार भावना की परिणति दीन इलाही के रूप में प्रस्फुटित हुई । (२) अकबर के शासन के प्रारम्भ होने के पूर्व व्यापक धार्मिक आन्दोलन नवीन धार्मिक जागृति और चेतना तथा हिन्दू और सूफी सन्तों के असाधारण अध्यात्मवाद ने उदारता, सहिष्णुता, प्रेम और भावना का वातावरण निर्मित कर दिया था । इस वातारण ने ईश्वर की एकता और वर्ग विनाश पर दिया । तथा विभिन्न भों के समन्वय को प्रोत्साहन दिया । हिन्दू मुसलिम सन्तों ने रेपेश्वर वाद और बंधुत्व पर धार्मिक वाला उम्र और साम्प्रदायिक व भाव के उन्मूलन पर, धार्मिक whe - 99 For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मकबर की धार्मिक नीति 100 सहिष्णुता, हिन्दू मुहिम एकता और समन्वय पर व्यक्ति और वात्मा की अभिव्यक्ति पर अधिक बल दिया। इससे अकबर के उपार धार्मिक विचारों और नवीन प्रयोर्गों के लिये मार्ग प्रशस्त हो गया । धीरे धीरे इस नवीन वातावरण के प्रभाव में उसका हृदय समी वगा और माँ के प्रति उदार और सहिष्णु होता गया जो उस युग की प्रमुख मांग थी। अकबर ने इस मांग की पूर्ति करने के लिये बौर सभी धां का समन्वय करने के लिये दीन इलाही की स्थापना की । (३) - अदबर से पूर्व इलाम राज्य धर्म के श्रेष्ठ पद पर प्रतिकित था । जिसके परिणाम स्वरुप राज्य की प्रजा मुसलमानों और गैर मुसलमानों मैं विपकत हो गयी थी। गैर - मुसलमानी अथवा हिन्दुओं के लिये - साम्राज्य के सभी उच्च पदों के व्दार बन्द थे । किन्तु उपार चेता, विवेक ! शील, दूरदर्शी, राजनीतिज्ञ, अकबर इस नीतिपर्ण व्यवस्था का अन्त कर। देना चाहता था । इस लिये उसने ऐसे धर्म बौर नीति को अपनाना चाहा जिससे उसकी प्रजा के एक बहुत बड़े वगै हिन्दुओं के साथ सइ व्यवहार हो सके, उनके पा को हानि न हो, ऐसी धार्मिक नीति और प्रशासकीय कार्य। हो जिससे उसकी आध्यात्मिक पिपासा तो शान्त हो ही, पर उसकी - समस्त प्रजा सार्वजनिक रूप से प्रभावित हो सके वार सब को पद व धर्म की समानता प्राप्त हो सके । इस लिये अकबर ने प्रशासन और सेना में - विभिन्न धमाकास्वियों को ऊंचे ऊंचे पदों पर क्लिा किसी - मेद माव! के नियुक्त किया । राज्यपाल या प्रान्तीय सूबेदार, मनसबदार, वजीर आदि ऊंचे ऊंचे पर्दा पर राजपूतों व अन्य हिन्दुओं को नियुक्त किया गया । इस कार्य से राज्य की दृढ़ता और स्थायित्व के लिये वह समी जातियों, पाँ बार वगााँ के लोगों का सहयोग और सद्भावना चाहता था । अकबर ने बलात धर्म परिवर्तन कर इस्लाम के प्रसार का निमेष - किया वीर तीर्थ यात्रा कर, जजिया कर व अनेक अनुचित करों को - + + + For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org 101 समाप्त कर सबको पवित्र धार्मिक स्थान, देवालय व मंदिर निर्मित करने की स्वतंत्रता दे दी । अकबर ने अपने पूर्ववर्ती सुलतानों की धार्मिक संकीर्णता, कटुता और इस्लामी राज्य की नीति त्याग दी । उसने अपने कार्यों से धर्म निरपेक्ष राज्य स्थापित किया । इस धर्म निरपेक्ष राज्य मैं वह विभिन्न धर्मावलम्बियों को एक ही मंच पर लाने को उत्सुक और प्रयत्न शील था । इस प्रयास का परिणाम दीन इलाही हुआ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४) अकबर धर्मं निष्ठ और चिन्तशील व्यक्ति था, उसे विश्व और मान जीवन - के गूढतम रहस्यों को जानने तथा निरन्तर समझने की अतृप्त पिपासा थी, अध्यात्म ज्ञान प्राप्ति की अनूठी जिज्ञासा थी तथा निरन्तर सत्यान्वेषण करने की अलौकिक प्रवृत्ति भी थी । इसी से बदायूंनी ने भी लिखा है कि - बहुधा अकबर उष्णाकाल में फतेहपुर के राज भवन के समीप एक प्राचीन भवन के निर्जन भाग में पड़े एक प्रस्तर खण्ड पर घण्टौ अकेला का दार्शनिक तथ्यों और जीवन के निगूढ़ रहस्यों पर विचार किया .. करता था । * २ विभिन्न धर्मो के सभी सिद्धान्तों और तत्वों को जानने की उसमें अपूर्व उत्कंठा थी । अकबर की धार्मिक नीति और विचार उसके इस जन्मजात आत्मीय अंकुर व अध्यात्म ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा का प्रस्फुटन था । इसी से वह कमेठ राजकीय जीवन में सत्यान्वेषण के सतत प्रयोग करता था, जिसका परिणाम दीन इलाही के रूप में उदय हुबा । (५) इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों की विशद जानकारी के लिये अकबर ने १५७५ मैं इबादत खाना निर्मित किया और वहां रेखा, सयदों और आलिमों के धार्मिक वाद विवाद और गोष्ठियां सुनी । हमालदत जाने की स्थापना की तो उसने इस्लाम के सच्चे सिद्धान्तों को समझने के लिये थी लेकिन इसका परिणाम उल्टा ही निकला क्योंकि इस्लाम के सिद्धान्तों को समझने की 2- AL-Badaoni Trans. by W.H. Lowe Vol. II P., 203. For Private And Personal Use Only wo Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਝਦ ਲੀ ਰੰਨ ਥੇ 102 बात तो एक बार रती, यहां तो पार्मिक वाद - विवादों में शियाओं और सुन्नियों के पारस्परिक फगई, विदेण, कटुता, आरोप प्रत्यारोप का बाहुल्य हो गया । अकबर को इससे बड़ी निराशा हुई और वह इस को सन्देह की दृष्टि से देखने लगा । जब इमाम के प्रति उसकी निष्ठा कम हो गई तो उसने इबादत खाने में विभिन्न विलिवियों को अपने धर्म के सत्य सिद्धान्तों के प्रवचनों के लिये आमंति क्यिा । उनके धार्मिक विवो वीर प्रवचनों में उसने सत्य की खोज करता चाही । अकबर ने - विन्द, जैन, पारसी, ईसाई व इस्लाम की के सिद्धान्तों का बड़ी सावधानी व लगन से अध्ययन क्यिा । उनके उपदेश, रीति - रिवाजों और उत्सवों के विभिन्न गो का मनन क्यिा । मानव जीवन और विचारों पर उनके प्रभाव को लपिात क्यिा । उकबर या कार्य इकाइत खाने में अपने । दरबार में और व्यक्तिगत भेटों में निरन्तर सात वाँ तक करता रहा । अन्त में अकबर अपने दीर्घ अनुभव, अध्यवसास, धर्म चर्चाओं और अध्ययन के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यपि हर धर्म में सत्य का अंश है, परन्तु प्रत्येक में महत्व पूर्ण कमी है। सभी धमों में कुछ ऐसे - विभिन्न उत्सव व रस्म है, जो परस्पर विरोधी और कटवा उत्पन्न करती है । अतस्व न तो केवल इस म ही और न अन्य धां में से कोई स्क धर्म ही सब को एक राष्ट्रीय स्कता में बांध सकता है । इस लिये अकबर इस समस्या के हल के लिये स्क रेसा में चाहता था जिसमें प्रचलित धाँ की अच्छाश्यां व सच्चाई हो, पर क्लिी धर्म की बुराई न हो । वह ऐसा मैं चाहता था जिसमें साम्प्रदायिक मेद - माओं को विस्माण कर सब लोग शाश्वत धर्म के सार्वभौम व सर्व मान्य आवरण के युक्त सिद्धान्तों के अनुयायी हो सके । धार्मिक व सांस्कृतिक पुर्नजागरण की पृष्ठ इमि में धार्मिक - संकीगता और नेद - भावों से ऊपर उठ कर अकबर अपनी प्रजा में समान धर्म फलाना चाहता था । अकबर ने कहा कि" एक शासक के अधीन - सामाज्य में पदि अनता रस्पर विभक्त है और E एक इधर बाता है और + + + + For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति दूसरा उधर जाता तो यह बड़ा दोष है । अत: हमको चाहियें कि हम सब को एक करदें, परन्तु इस प्रकार कि वे स्कता के साथ एक और सम्पूर्ण हो ताकि किसी धर्म के गुण से वे वंचित न रह जाये एक धर्म साथ उन्हें दूसरे धर्म की अच्छाई का भी लाभ मिल जाय. .. के गुण के साथ इस प्रकार ईश्वर का सम्मान होगा, लोगों को शान्ति प्राप्त होगी और साम्राज्य की रक्षा होगी । ३ अत: अकबर ने विभिन्न धर्मो के सत्य तथा महत्व पूर्ण सिद्धान्त अपने मस्तिष्क में संकलित कर लिये और फिर उन्हें लिपिबद्ध करा लिया । इनमें सब धर्मों का समन्वय था, जो कि दोन हलाड़ी के नाम से विख्यात हुआ । दीन इलाही का स्वरूप : ► Akad me qe mbro - www.kobatirth.org th मुसलिम इतिहासकार तथा कटटर धर्मान्य मुल्ला बदायूंनी ने दोन इलाही को एक नया धर्म माना है । स्मिथ ने भी इसे एक नया धर्मं माना 5 --- He says-Akbar's long-Cherished project of establishing throught his empire one universal religion, formilated & Controlled by himself, was avowed publicly for the first time in 1582," एस०आर० शर्मा का मत है कि ^^ उसने अपनी प्रजा के दोनों मुख्य वर्गी (हिन्दू और मुसलमान ) के पारस्परिक मतभेदों को मिटाने का यत्न किया । उसने दोनों जातियों में परस्पर विवाद की प्रथा का उदाहरण उपस्थित किया । उऊंचे पद और उपाधियों देने में उसने सबको बराबर समझा और सब से बड़ा काम उसने यह किया कि एक नया घ चलाया जिससे एक नये संसार की सृष्टि होगी । .. ' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3- According to Bartoli quoted from Smdth: Akbar the great Magul P,211-12 14 Smith : Akbar the great Mogul P. 209. एस. बार शर्मा हिन्दी अनुवादक मथुरालाल शर्मा For Private And Personal Use Only 103 भारत मैं मुगल साम्राज्य पृ० २६८ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भळसर की धार्मिक नीति 101 परन्तु दीन इलाही कोई नवीन धर्म या सम्प्रदाय नहीं था इसमें जो सब थमाँ के सत्य सिद्धान्तों का समन्वय धा । अकबर की स्वयम की इच्छा मी किसी नवीन धर्म को स्थापित करने की नही थी। इसके अलावा नवीन धर्म के लिये यह बावश्यक है कि उसका कोई क लिखित धर्म ग्रन्थ को, निश्चित प्रार्थना हो, कोई मंदिर या निश्चित उपासना गृह हो, दोई साम्प्रदायिक धार्मिक चिन्न लथवा पुरोहित वर्ग हो । लेकिन दीनइलाही में ऐसा कुछ न था । इस लिये हम दीन इलाही को एक नवीन धर्म। सम्प्रदाय तथवा मत नही कह सकते है और न ही अकबर को उसका प्रवर्तक अथवा पैगम्बर । दीन इछाही तो स्क सामाजिक और धार्मिक संस्था थी जिसका आश्य देश के विभिन्न विलम्वियों को परस्पर मिलाना था । इसकी नीव प्रेस, सच्चाई, समाचरण, संयम और सहिष्णुता पर था. रित थी तथा इसमें सुलह - ए - कुल छ के सिद्धान्त थे । इसमें हिन्दुओं, नियो, पारसियों के सिद्धान्तों का सार था और ईश्वरी एकता का सिद्धान्त था। दीन इलाही का प्रारम : ___ मार्च १५८२ में काकु अभियान से लौट आने के वाद अकबर ने अपने ! प्रमुख अधिकारियों और दरबारियों का एक सम्मेलन काया और उनके - सम्मुख दीन काली का स्वरूप प्रस्तुत किया । उपस्थित रहस्यों ने वीन इलाही के स्वरूप से सहमति प्रगट की और कहा कि बादशाह ईश्वर के बहुत समीप है। उसका पद बहुत ऊंचा और उसकी बुद्धि बड़ी प्रबल है । इस लिये वह सारे साम्राज्य के लिये एक पूर्ण और सार्वजनिक निर्माण के लिये बावश्यक देवता, उत्सव, बलिदान, नियम, रीति रस आदि जो. मी आवश्यक हो, निश्चित करें । इस सभा के बाद अकबर ने एकछ इट। शेख को सब बोर यह पोषित करने मेजा कि अल्पकाल में ही सम्पूर्ण मुगल साम्राज्य में परवार से प्रचारित 4 माना जायेगा और सभी लोग इसे For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकसर की धार्मिक नीति बैठ धर्म मानकर अपनाने को तैयार रहै । " बपानी जो कि शायद उस समय वहां उपस्थित था लिखता है कि इस नये 4 के प्रस्ताव का विरोध सभा में ही गमेर के राजा विहारीमल ने क्यिा । उसने कहा कि यह स्वैश पूर्वक स्वीकार कर लूंगा कि हिन्दुओं और मुसलमानों में प्रत्येक की खराब है । पर हम केवल यह बताये कि नया र्म क्या है और वह क्या मत रखता है, ताकि में विश्वास कर। सकुं । उस पर अकबर थोड़ी देर विचार मग्न रहा और फिर उसने राजा भगवन्त दास को नया धर्म स्वीकार करने के लिये गाग्रह नहीं किया । ७ ॥ बगुल फजल पी इससे सहमत है । इसी प्रकार कुछ वर्षों बाद अकबर ने मानसिंह से पश कि क्या वह दीन इलाही के अन्तर्गत अकबर का शिष्यत्वा स्वीकार करेगा ? इस पर मानसिंह ने उत्तर दिया कि यदि शिष्यत्व। का यही अभिप्राय है कि अपने प्राणों का बलिदान करने को तैयार रहना चाये तो में अपनी जान को हमेशा हथेली पर रखता हूं और इसे प्रमा-1 णित करने के लिये अधिक प्रमार्गा की आवश्यकता नहीं है, किन्तु यदि । इसका अर्थ यह है कि अपने को को छोड़ा जाय तो में हिन्दू है । इसके बाद अकबर ने मानसिह से बातचीत बन्द कर दी और उसे स्थानान्तरित करके बंगाल भेज दिया ।" दीनालाही का विधि विधान : - - - - -- -- - -- - - - - - -- - -- - दीनहलानी का प्रथक विधि विधान था । इस सम्प्रदाय में सम्मिलित होने वाले प्रत्येक अक्ति को अकबर से दीपा लेनी पड़ती थी । जब कोई। व्यक्ति इसका सदस्य होता चालता था तो उबुल फजल के पास, जो इस 6-Smith : Ak bar the great Mogul, P. 212, 7. Al-Ha da oni Trans, by WE, LOW Tal. II. P. 323 Ain-1___Akbari Trans. by H.Blochnam Vol. I. P. 198 Sw AL-Ba da oni Trans, by W.H. Lowe Vol. II P. 375. For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति 106 · * सम्प्रदाय के प्रधान पुरोहित थे जाता और उसे अपने इरादों की पवित्रता और सच्चाई के प्रति सहमत करता था । इसके बाद अबुल फजल इस व्यक्ति को अम्बर के पास ले जाकर उसका परिचय कराता और वह व्यक्ति अपनी पगड़ी अपने हाथ में लेकर, अपना सिर बादशाह के कदमों मैं रखता था । बादशाह उसे उठाता था, उसे सिर पर पगड़ी रखता और उसे शिस्त अथवा अपना स्वरूप प्रदान करता था जिस पर ईश्वर का नाम तथा" बल्लाहो अकबर खुदा होता था । यह बगूठी स्वस्तिक के आकार की होती थी । इस विधि का यह अभिप्राय था कि सम्राट ने उसे शिष्य बनाना स्वीकार कर लिया है। शिष्य से यह आशा की जाती थी कि वह सम्राट के अनुकरण द्वारा अपना सुधार करेगा । तथा आवश्यकतानुसार सम्राट से मौखिक शिक्षा ग्रहण करेगा । दीनइलाही के सदस्य अपने गुरू और दीन इलाही के पैगम्बर सम्राट अकबर की सोने की रत्न जडित प्रतिमूर्ति को रेशम के टुकड़े में लपेट कर अपनी पगड़ी में रखते थे । दीन ही मैं दीक्षित व्यक्तियों को 1 पवित्र शस्त और पवित्र दृष्टि कभी भूल नहीं करती । इस पक्ति को बार बार दोहराते थे । यह दीक्षा समारोह रविवार के दिन होता An ** था, क्योंकि रविवार सूर्य का दिन माना जाता था । दीक्षा देकर शिष्य बनाने से अकबर का तात्पर्य उसे अपना अनुचर बनाना नही अपितु ईश्वर की सेवा में दीक्षित करना था । दीनलाही के सिद्धान्त : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीनालाही के सदस्यों को निम्नलिखित सिद्धान्तों अथवा गुणों का पालन करना पड़ता था । (१) जीवन में उदारता और दानशीलता का पालन करना । (२) सांसारिक इच्छाओं का परित्याग करना । Aim-1-Akbari Vol. I Trans, by H, Blochmann P. P. 174-75: For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਡ੨ ੴ ਸੰਲ ਸੰਰ 107 (३) सब के साथ धीमे स्वर से कोमल वागी, मली बात बार मधुर भाषण से बातचीत करता तथा सहव्यवाहार करता । (४) अच्छे और उड्भुत कार्य करने की इच्छा रखना ।। (५) अपने बन्धुओं से सद्व्यवहार करना और उनकी इच्छाओं को अपनी ईच्छा के ऊपर महत्व देना । (६) इटकर्मियों को क्षामा दान देना और कोष का नरसी से निरा. करण करना । (७) बीवों से पूर्ण विरक्ति और परमात्मा को से लगाव रखना । (E) बपने कर्मों के फलों और प्रभाव पर विचार करना, मान करना, तथा भक्ति व ज्ञान की वृद्धि करना । (६) सांसारिक अस्तित्व के बन्थों से मुक्त होने तथा परलोक के लिये पुण्य संचित करने हेतु लालसा रखना और कार्य करना । (१०) श्वेश्वर वाद में विश्वास करना, भगवत प्रेम और भगवत भक्ति में आत्मा को लगाना और लात्मा का परमात्मा में संयोग करना । हस प्रकार व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता और जीवन के कार्यों के प्रति पवित्र दृष्टिकोण पर हन सिद्धान्तों में अधिक का दिया गया है। ये सिद्धान्त विश्व व्यापी है और गभग प्रत्येक घर में पाये जाते है । दीन इलाही के रीति-रिवाज व नियम : दीन इलाही के रीति - रिवाज व नियम अधोलिजित थे - पीन लाही के अनुयायी जब परस्पर एक दूसरे से मिलते थे तो कमि वादन के लिये एक कहता था । " अल्लाहो अकबर उसके उत्तर में दुसरा जवाव देता था जल्ले • जलाते हू । रेसा वाहने का उदेश्य मनुष्य को उसके जीवन की उत्पत्ति पर सौ कने बार इश्वर की कृतज्ञ स्मृति में ताजा और सजीव रखना था ।" १० दीन इलाही के सभी सदस्थ सम्राट अकबर 10- Ain-1-Akbart Trans, by H. Blochmenn Val.I.P. 175. + + + + + + + + + + + + + + + + + + For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अकबर की धार्मिक नीति को साष्टांग प्रणाम करते थे। जिसे जमीन बोस अथवा सिजदा मी कहा जाता है और जो कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनो धर्मों में प्रचलित थी स्मिथ लिखता है कि दीन इलाही के प्रत्येक सदस्य को अपने जन्म दिन पर दावत देना और दान पुण्य करना पड़ता था । इस प्रकार मृत्यु के पश्चात मोज देने की प्रथा के स्थान पर हर सदस्य को अपने जीवन काल मैं ही सुन्दर श्राद्ध भोज देना पड़ता था, जिससे वह अपनी अन्तिम यात्रा के लिये पुण्य संचय कर सके । ११ जहां तक निम सके, दीनलाही के सदस्यों को मांस भक्षण की छूट थी । जन्म के माह में तो वे मांस को छू भी नही सकते थे । कसाइय मछेरो और चिड़ीमारी के बर्तन ये लोग काम में नहीं लाते थे। लहसुन, प्याज खाना भी निषिद्ध था । ** Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11- Smith: Akbar the great Mogul P. 218. 12- Smith Akbar the great Mosul P. 219 13- Atn-1-akbari Vol, I. P. 166 इस मत के अनुयायों को सूर्य और अग्नि की उपासना करनी पड़ती थी । प्रात: सन्ध्या, मध्यान्ह और मध्य रात्रि चार बार पूर्व दिशा की और मुंह करके पूजा की जाती थी । मृतक मनुष्य के दाह संस्कार के सम्बन्ध में स्मिथ का कहना है कि लोगों के सिर पूर्व की वार तथा पैर दक्षिण की ओर करके दफनाये जाते थे । अकबर ने इसी तरह अपने शिष्यों को भी सोने की आज्ञा दी थी । १२ अबल फजल लिखता है कि "Members should not chhabit with pregnant, 01d and barren women for with girls under the age of puberty " 13. इस्लाम धर्म में नमाज के समय स्वर्ण और जरी के वस्त्रों को पहनने की मनाही है पर दीन इलाही में सार्वजनिक प्रार्थना के समय और दूसरे समय में इनका धारण करना आवश्यक था । इस मत के अनुयायियों For Private And Personal Use Only 108 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति के लिये बाड़ी मुड़ाना आवश्यक था । दीनलाही के अनुयायियों का वर्गीकरण व सदस्य संख्या www.kobatirth.org दीन इलाही के अनुयायििों को चार भागों में विभाजित किया गया था । बदायूंनी के अनुसार बार सीढ़ियाँ थी सम्पत्ति, जीवन, सम्मान और थी बादशाह को अर्पण कर देना । जो इन चारों पदार्थों को अर्पण कर देता था, उसे चार सीढ़ियां मिलती थी। जो एक पदार्थ अर्पण कर देता था उसे एक सीढ़ी । सब दरबारियों ने अपने नाम सिंहासन के बहव शिष्यों की सूची में लिखवा दिये थे । (१४) लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि बदायूंनी ने यहां पर मजाक ही किया है, क्योंकि वह स्वयम् उन सब दरबारियों में नहीं था जिन्होंने चारों पदार्थ सम्राट को अर्पण कर दिये थे । और तब भी वह अपने जीवन के शेण १५ वर्ष तक अकबर के दरबार में रहा था । उसने स्वयम् दीनइलाही अपनाने वाले केवल सोलह दरबारियों के नामों का उल्लेख किया १. बबुल फजल खलीफा २ मुबारक नागोरी, ४ (१४) (१५) " । जब कि बबुल फजल ने दो नाम और लिखे है । मबुल फजल कहता है कि वीरबर के अतिरिक्त वे सब मुसलमान थे लेकिन बदायूंनी के कहने से यह मालुम होता है कि अनुयायियों की संख्या और अधिक होगी । (१५) दीनालाही के साधारण सदस्यों की संख्या भी कुछ हजार से अधिक नही थी किन्तु साम्राज्य के अधिकांश विशिष्ट पुरुष इसमें सम्मिलित नहीं हुए तत्कालीन विशिष्ट व्यक्तियों में से केवल अठारह व्यक्ति ही इसके सदस्य थे । मौलाना मुहम्मद हुसैन ने इन कठारह व्यक्तियों के नाम इस प्रकार गिनाये है - 1 - - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फैजी, दरबार का प्रधान कवि, ३ शेख - जाफर बैग आसफ खां, इतिहास लेखक और कि 109 Aim-1-Akbari Vol. I. P. 191. -do -do P. 209. For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਜਦ ਸੰਨ ਜੀਓ 110 ५ - कासिम काबुली, कवि ६ - अव्दुल समद, दरवार का चित्रकार बार कवि । ७- बाजा बा कोका, मक्के से लौटने पर ८ - मुला शाह - मुहम्मद शाहाबादी, इतिहास - लेखक : सूफी अहमद । १० - सदर जहान, सारे भारत के प्रधान मुफती और ( ११-१२ ) इनके दोनों पुत्र! १३ - मीर शरीफ उपली, १४ - सुल्तान ख्वाजा सदर, १५ - मिरजा! जानी, ठठठे का हाकिम, १६ - नकी शोस्तरी कवि और दो सदी • मन सबदार १७ शेखजादा गोसाला बनारसी १८ बीरबल । १६ मगर्व-न्त दास, मानसिह बोर टोडरमल जैसे लब्ध प्रतिष्ठित उच्च पदाधिकारी पी इसके सदस्य नहीं थे। प्रतिक्षित व्यक्तियों में से केवल बीरक ने ही इसे स्वीकार किया। दीन इलाही की असफलता : दीनालाही अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गया । यह साधारण लोगों को अपनी ओर आकृर्णित नही कर सका और न ही जनता में लोक प्रिय बन सका । दीन इलाही के प्रचार बार प्रसार के लिये अकबर ने ईसाई . मिशनरियों के समान या यूरोप के ईसाई राजाओं के समान कार्य नहीं किये । इसके राज व्यापी प्रचार के लिये अकबर ने राज्य स्तर पर कोई विभाग या अधिकारी नियुक्त नहीं किये, कोहँ नियम या उप नियम नही बनाये । शासकीय या अशासकीय स्तर पर कोई संगठन या संस्था मी स्थापित नही की और न किसी प्रकार का पुरोहित वर्ग ही प्रतिष्ठित किया। दीनालाही स्वीकार करने के लिये अकबर ने किसी को बाध्य नहीं किया । इस मत का अनुयायी बनने के लिये अकबर ने साम, दाम, दण्ड भेद से किसी को बाध्य नहीं किया । इस सम्प्रदाय में सम्मिलित १६ - अकवरी दरबार हिन्दी अनुवादक रामचन्द्र वर्मा पहला भाग ०१४६-४२ For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति होने के लिये अकबर ने किसी को शासकीय सेवाओं में लेने या राज्य के ऊंचे पदों पर नियुक्त करने अथवा अपार धन देने का पलोमन नहीं . दिया । अकबर के सान्निध्य में रहने वाले जिन व्यक्तियों ने दीनालाही: में सम्मिलित होना स्वीकार नहीं पिया, उन पर मी अकबर की अनुकम्पा पूर्ववत ही बनी रही। सत्य तो यह है कि अकबर बड़ा उदार वीर सहन शील था । उसने लोगों को अपनी इच्शनुसार किसी भी धर्म को स्वीकार या वस्वीकार करने तथा अपना व्यक्तिगत धर्म पाने की स्वतंबता दे रखी थी । उसकी धार्मिक नीति और दीन लाही से मतभेद रखने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध पी उसने कोई कदम नहीं उठाये । ऐसी दशा में दीन इलाही के सदस्यों की संख्या में वृद्धि होना असम्भव था । बदायूंनी लिखता है कि अकबर ने दीन इलाही के सदस्य बनाने के लिये शक्ति या दबाव से काम नहीं लिया, यदि वह अधिकारी का प्रयोग करता और इसके प्रसार के लिये थोड़ा भी रुपया व्यय करता तो मेका! नेक सदस्य बना लेता । १७ ___अकबर के दीनालाही का जादर्श उसके युग की भावना बोर पार-1 णाओं से बहुत वागे था । साधारण लोग जो इलाम की कटटरता में विश्वास करते थे, उन्होने या तो दीनालाही को अपनाया नहीं या हिचकिचाहट और संशय से इसे स्वीकार किया । वे इसके राजनीतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय महत्व को समझ नही सके । ऐसा प्रतीत होता कि लावावर की आध्यात्मवादी व धार्मिक विचार धारा उस युग से बहुत बाने थीं । क्योंकि वह युग विभिन्न माँ की पारम्परिक मत • विभिन्नता व संघर्ष का युग था । ऐसे युग में समन्वय और राष्ट्रीय प्रवृति वाले दीन इलाही का प्रसार होना सम्भव था । स लिये दीन-1 हलाही अकबर के देहावसान के साथ ही समाप्त हो गया। 17- A1-Badaani. Trans. by N.H.Lon0 Vol. II P. 323. For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति ..........112 According to Smith: The organization can not wall have mrvived the murder of Abul Fazal, Its high priest, so to say, and of course, it ceased to exist with the death of Akbar, 18. ___यपि जहांगीर ने अकबर की भांति शिष्य दीक्षिात करने तथा शस्त व अपने चित्र कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को प्रदान करने के प्रयास किये, पर यह केवल औपचारिक कार्य था । इस तरह दीनालाही के बन्धु समाज का, अकबर कालीन आदर्श वाद का आधार समाप्त हो गया। दीन इलाही के विषय में विभिन्न विद्वानों के मत : दीनालाही की प्रशंसा और मालोचना में विभिन्न इतिहाकारी और विद्वानों ने अपने अपने मत व्यक्त किये है । अकबर के इस आदर्शवाद मैं बारतोली को चालाकी वीर धुर्तता ही दिखाई दी थी। स्मिथ मी दहता है कि यह थामिक कटटरता का उन्माद था जो मई सन् १५७८ में अकबर को आया । यह उसकी विभिन्न धर्मा में गहन रुचि का लपाण था । जो सन् १५७८-७६ में प्रकट हुआ था, जिसके बाद ही आगामी वर्ण! के सितम्बर में उसने अपनी अचूक व्यवस्था जारी की थी । आगे चलकर - स्मिथ कहता है कि दीन लाही प्रकार की मूर्खता का सारक है बुद्धिमत्ता का नही ----- यह समस्त योजना हास्यास्पद दम्म का परिणाम पी, उसकी अनियंत्रित निरंकुशता की उपज थी । १८ According to Laurence Binyon : " The divine faith was, of course, a failure and destined to failurz, In religious soci el tos toleration is no virtue, 1t is the despised offspring of lukewarmess or indifference, A 18- Sat th | Akbar the great Hosul. P. 222 19. Smith Ak bar the great mogul P. 163-222 For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति २० creed to simple was obvious to the reproach of vagueness and emptiness the religion which was to have united all, pleased none. Akbar who had revolted so far from the intolerance of his ancestral creed, now impaired his own toleration by invidious ordinances against Muhammadan practices... this descendent of con querors who had treated all alien creeds with fierce contempt was warped into oppressing of all faith, the faith in which he was bred." 20. प्रो० एस० वार० शर्मा के मतानुसार जयबर एक उच्च कोटि का राजनीतिज्ञ था और कहा करता था कि एक शासक के अधीन साम्राज्य मैं यदि जनता परस्पर विनत है और एक इधर जाता है और दूसरा उधर जाता है तो यह बड़ा दोष है । अत: हमको चाहिये कि इस प्रकार कि वे हम सब को एक करदे पर एकता के साथ एक और सम्पूर्ण हो, ताकि किसी धर्म के गुण से वे वंचित न रह जाये एक धर्म गुण के साथ साथ उन्हें दूसरे की की अच्छाई का भी लाभ मिल जाय इस प्रकार ईश्वर का सम्मान होगा, लोगों को शान्ति प्राप्त होगी बीई साम्राज्य की रक्षा होगी । २१ 4A डा० ए० एल० श्रीवास्तव का मत है कि दीन इलाही की स्थापना मै अकबर का महान राजनैतिक उद्देश्य यह था कि इसके द्वारा वह हिन्दू और मुसलमान धर्मों को मिला सके और मुगल साम्राज्य मे राजनैतिक एकता कायम कर सके । २२ Laurence Binyon २१ एस. आर. शर्मा हिन्दी अनुवादक एम. एल. २२ ए. रू. श्रीवास्तव मुगल कालीन भारत पृ० - - www.kobatirth.org 0 · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Akbar - Short Biographies No. 21 PP 131-32 मे मुगल साम्राज्य पृ०२६८ शर्मा भारत २०१ 11: W Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकलर की धार्मिक नीति दीनालाही की वालोचना व समीपा: - -- -- - - - --- - - उपरोक्त मतों से स्पष्ट है कि दीनालाही के विषय में परस्पर विरोधी मत और विचार प्रकट किये गये है स्मिथ तथा लॉरेन्स विनयान ने दीनहलानी की कटु आलोचना की है उनके मतानुसार अकबर अपनी पूजा कराने वाला खुशामदी व्यक्ति था । अत : उसने इस नवीन धर्म का प्रचार किया । जिससे कि वह ईश्वर का इत बालाया जा सके । इसके अलावा राजसत्ता, अधिकार, धन सम्पन्नता और ऐश्वर्य ने अकबर का सिर फेर दिया था, इस लिये उसने एका नवीन सम्प्रदाय की स्थापना की और अपने को उसका गुरु अथवा पैगम्बर कहाँ । उसने धर्म और राजनीति दोनों को मिटा दिया । इस लिये वह काफल रहा और दीन रुपी दा अन्त निराशाशतक दुआ । इन मों का खण्डहन आधुनिक भारतीय इतिहासकारों ने किया है जिनमें स्स. आर. मा अथा ए. एल. श्रीवास्तव प्रमुख है। उनके मतानुसार अकबर बहुत ही विनीत तथा निराभिमानी पुरुण था और दीन इलाही की स्थापना उसने ठापने आडम्बर की संतुष्टि के लिये नहीं की थी । दीन इलाही की स्थापना के पीछे अबाबर का उद्देश्य लोगों में अपने अधीन किसी सम्प्रदाय के चंगुल में फंसाने का नहीं था । वह साम्राज्य सत्ता प्राप्ति के साथ साथ, पोप, सलीफा अथवा पैगम्बर ननने की कोई महत्वाकांपा मी नहीं रखता था । वा' दीनबहस ही के द्वारा मिथया प्रकार की संतुष्टि मी नही करना चाहता था । और न ही वह अपनी अनुपम प्रशंसा या देवतुल्य पजा का इच्छुक था। आरूक नवीन धर्म स्थापित करके थी पूर्वतक जनने का लक्ष्य मी अकबर का नहीं था, क्योंकि यदि दीन लाही की स्थापना में लकवर के ये उद्देश्य होते तो वह इसके प्रचार के लिये राज्य के सभी अधिकारी, शक्तियाँ, और साधना का अधिकतम उपयोग करता परन्तु उसने ऐसा नहीं किया । For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति 115 निष्कर्ण रूप में हम कह सकते है कि दीन लाही अकबर के पोथे व फूठे बपिमान की उपज था । हास्यास्पद निरर्षक योजना और निरकुंश एकतंत्र का रुप मी नहीं था, यदि ऐसा होता तो वह अपने सम्बन्धियाँ मित्रों तथा दरबारियों को दीन इलाही स्वीकार करने को - काता, उन पर उसे लादने का प्रयत्न करता । वह तो उदार व सं . निरपेडा विचार धारा का श्रेष्ठ शासक था । वह हिन्दुओं और मुसलमानों को स्क राष्ट्रीय धर्म में बांधना चाहता था, दोनो जातियों में - राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक वार धार्मिक स्कता स्थापित करता चाहता था, विमिन मा के सिद्धान्तों का स्की में समन्वय करना चाहता था। इस लिये हम कह सकते है कि दीन काही अकबर की . समन्वय प्रवृत्ति और उदार सहिष्णु प्रकृति की महान बभिव्यक्ति पी।। इस्लाम दमन के सम्बन्ध में अकबर पर लगाये गये धारोप : दीनलाही के सम्बन्ध में परिचय प्राप्त कर लेने के पश्चात प्रश्न यह उठता है कि क्या कबर ने इस्लाम धर्म को त्याग दिया था ? इस प्रश्न के उत्तर में हमें अकबर पर लगाये गये गारोप तथा उनकी समीक्षा करके या देखना होगा कि वास्तविकता व्या है ? स्मिथ तथा इल्जर हेग बादि इतिहासकारों का मत है कि जब एक और अकबर ने प्रत्येक के लिये सहिष्णु नीति का बकम्चन किया। तो दूसरी और उसने कटटर परसाम धर्म को हानि पहुंचाई । यह विचार ! धारा ईसाई धर्म प्रचारको तथा बदायनी देने कथन पर आधारित है। बेकारीज ने भी बदायूनी के मत का समर्थन किया और अकदर पर बाधुनिक र यूरोपीय इतिहासकारों ने इस्लाम की ओर से मुंह मोड़ने का आरोप लगाया । बदायुनी की पुस्तक "मुन्तखब-उता-तवारीख" के आधार पर तथा ईसाई धर्म प्रचारको के कथनों के आधार पर अकबर पर जो इस्लाम कां को शेड़ने का दोगारोपण किया गया है उसके For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਦਲੀ ਰੀਲ ਜੀਰ 118 लिये अधोलिखित उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं - (१) बदायुनी लिखिता है कि " अकबर ने नमाज वर्जित कर दी थी उसने । दरबार में नमाज पड़ना निषिद्ध कर दिया था । दरबार - र - जाम में अजान बन्द करवा दी थी, जो कि पांच समय पड़ी जाती थी । उसने - लोगों को अपने स्वयम् तथा अपने बच्चों के लिये मुहम्मद वार अहमद नाम रखने की मनाही कर दी थी, क्योंकि वह मुहम्मद के नाम से घृणा करने लगा था । इस लिये का जहां पैगम्बर मुहम्मद का नाम जाता था, वहां! वां उसने नाम परिवर्तित कर दिये । २३ (२) अकबर ने नमाज के समय रेशमी वस्त्रों और आपूषणों के पहनने की। सनुमति दे दी जब कि इस्लाम में मैं नमाज के समय जरी के वस्त्र धारण करना निषेध है। (३) मुसलमानी धर्म के अनुसार रोजा रखना, ईद का त्योहार मनाना, ! मुसलिम त्योहारों को मनाना वादि अकबर ने छोड़ दिया था और इनके स्थान पर उसने दीवाली, होली, रपा बन्या से हिन्दू त्योहारी। को अपना लिया था। (४) ईसाई पादरी पीन्हीरो लिखता है कि इस बादशाह ने मुहम्मद के कुठे धर्म को नष्ट कर दिया, उसे बिलकुल बदनाम कर दिया । इस शहर में न तो कोई मसजिद है, नकुरान । जो मसजिद पहले से थी, उन्हें । घोड़ों का अस्तबल या गोदाम बना दिया गया है । मुसलमानों को . अत्यन्त लज्जित करने के लिये प्रत्येक शुक्रवार को ४० या ५० सूवर लाकर बादशा के सामने लड़ाये जाते है । वह उनके खांगों (दंष्टा ) को लेकर । सोने में मदा कर रखता है | बादशाह ने अपना एक नया धर्म बनाया है, जिसका वह स्वयम् पैगम्बर है | २५ 23- AZ-Badamni Trans, by K.H. Lowe Vol. II P. 324 24 - Al-Badamni Trans, by WH, Lowe Vol. II P. 204,6 For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Bਦ ਛੀ ਸੰਠ ਸੰਥਿ ५, उसने मुसलिम तीर्थ यात्रियों को प्रोत्साहित नहीं किया । मुसलमानों की हब के यात्रियों को राजकीय घन से भेजना बन्द कर दिया था। ६. अकबर नै एड मसजि गिरवा दी थीं कुछ को पा विरुद्ध कार्मा में उपयोग करना प्रारम्भ कर दिया था | मुड मसजि को लूटा और कई मग्न व गिरती हुई मसजिदों का जीणोद्वार नहीं करवाया। ७. अकबर ने अपनी मुसलमान प्रजा को हवामत करा कर दाड़ी बनाने की बनुमति दे दी थी तथा जुवा खेलने व सद लेने की अनुमति दे दी जबकि इस्लाम में हन बातों का निर्णष है। ८. अकबर ने बयान के लिये बनी दीवारों को तड़वा दिया । €. And th : Says - The 81J dah or prostration, hitherto considered la wul only in divino worship, was declared to be the duo of the emperor...25. १०. अकबर ने खुतबा पढ़ा वीर मजहर अथवा बभ्रान्त बाज्ञा पत्र प्रसारित किया । बवानी का कहना है कि महजर पर मुल्लार्वा व शेखों से जबरदस्ती हस्तातर करा लिये गये । २६ ११ अकबर ने हिन्दुओं का पड़ा देकर गोवय बन्द करा दिया, सूर्य व वग्नि की पूजा करने लगा तथा हिन्दू संस्कारों को अपनाने लगा। १२ दीनालाही के मुसलिम अनुयायियों के पैर पश्चिम की बोर अर्थात मुकपानी के तीर्थ स्थान मक्का की बोर तथा सिर पर्व की बोर रख कर • दफनाया जाता था । जब कि मुसलमानों को पश्चिम की ओर सिर तथा पूर्व की बौर पर रख कर दफनाया जाता था । १३. बकबर नै वरवी मामा को प्रोत्साहन नहीं दिया और कुरान की प्रतियां नष्ट करवा दी। 125- Smath : Akbar the great mosal P. 220. 12641-Badaani Trans. by h.H. Lover val. II P. 287 For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४. अकबर ने इस्लाम के कानूनों और वादेशों को रदद कर दिया । १५. अकबर ने सूमर और कुत्ते पाले तथा चीर्ती और सूबरों के मांस की छूट दे दी । विशेष दिनों में उसने मांस खाना निषेध कर दिया । निशेध के दिनों में यदि कोई मनुष्य गाय अथवा पशुओं की हत्या करता था तो उसे दण्ड का भागी बनना पड़ता था कभी-कभी तो प्राण दण्ड की सजा दी जाती थी । २७ - १६ मुता विवाह को नियमित घोषित कर दिया गया था । १७. सन् १५८१-८२ के बीच अकबर के विरोधी अनेक शेखों और फकीरों को देश से निर्वासित करके कन्चार में भेज दिया गया। वहां उनकी घोड़ों का मूल्य चुकाने में बेच दिया गया । २८ बारोपों की समीक्षा : 113 इस्लाम दमन के सम्बन्ध में अकबर की जो उपर्युक्त आलोचनाएँ की गयी है उनमें से कुछ तो बिलकुल निराधार है। इन आरोपों की समीक्षा हम निम्नलिखित रूप से कर सकते हैं : १. अभी तक विधि ग्रन्थों में ऐसा कोई प्रमाण नही मिलता है जिससे यह कहा जाये कि अकबर ने नमाज पढ़ना निषिद्ध कर दिया था । केवल बदायूंनी के ग्रन्थ के बाचार पर ही हमें यह नही मान लेना चाहिये कि अकबर ने नमाज वर्जित कर दी थी । बदायूंनी कटटर मुसलमान था हो सकत है कि उसने इस लिये अकबर की आलोचना के लिये ऐसा लिखा हो । दूसरी बोर ईसाई धर्म प्रचारकों, जिन्होने कि अकबर पर सलाम दमन के आरोप लगाये है के लेखों से हमें यह ज्ञात होता है कि सर्व साधारण मुसलमान मी नित्य पांच बार नमाज पढ़ता था । सन् १५७६ में खुतबा पढ़ने के बाद 27- Al-Badaoni Trans. by W.H. Lowe Vol. II P. 331 28- Al-Badaoni Trans. by W.H. Lowe Vol. II P. 308. For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अक्र की धार्मिक नीति 119 बकबर ने घमासन से नीचे उतर कर नमाज मी पढ़ाई । दीनालाही के प्रसाई रण के भी कई वर्षों बाद अबुल फजल की मृत्यु के बाद तथा उसकी कद्र । पर कबर ने स्वयम् नमाज पढ़ी । यह कहना मी व्यर्थ है कि नमाज के समय रेशमी वस्त्र तथा बाभूषण पहनना अनिवार्य कर दिया था क्योंकि इस बात का अभी तक कोई फरमान उपलब्ध नही हुवा है न ही इस बात। का प्रमाण है कि रमजान मैं रोजा न रखने का आदेश दिया गया हो। अकबर के विरुद्ध विहार व बंगाल में जब मुल्लाओं की थामिक प्रणा से । युद्ध हुवा था, तब उनष्कृित मसजिदों में नमाज और जान बन्द कर दी गयी थी। २. मका व मदीना की तीर्थ यात्रा पर मी अकबर ने कोई प्रति बन्ध नहीं लगाया । मक्का की तीर्थ यात्रा पूर्ववत की भांति जारी रही । १५७७ में शाह बबू तुराब के नेतृत्व में राजकीय व्यय से हज के यात्रियों का एक कारवां भेजा गया था । सन् १५८० में जब मीर बड तुराब मक्का की तीर्थ यात्रा से लौटा तो वह अपने साथ एक मारी पागाण लाया था। जिस पर कहा जाता था कि मुहम्मद पावर के पांव का निशान बंकित था । बस राव ने कहा कि स्क पवचित सुलतान फिरोज के समय - सलीव जाल बुलारी लाया था । यत्र चिन्ह दूसरे पर का है । अकबर जानता था कि यह बात सच नहीं है । विशेषज्ञों ने भी इसे असत्य सिद्ध कर दिया था, फिर मी अकबर ने आदेश दिया कि यात्रियों का कारवां राजधानी से चार कोस की दूरी पर ठहरे । अकबर के लिये बहुत अच्छा शामियाना बड़ा किया गया और बड़े बड़े अफसरों और विद्वानों के साथ । वहां वह गया । उसने पद चिन्ह वाले पत्थर को अपने कन्धे पर रखा बार कुछ श ले गया और फिर अफसरों ने उसको कन्धे पर रखा, बन्त में उसको मीर बह तुराब के मकान में रख दिया गया । २६ दीनालाही के प्रसारण २६ - अकबरनामा - हिन्दी अनुवादक - मथुरालाल शर्मा पृ० १८४ + + + + 4. . For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोलत अकबर की धार्मिक नति __ 120 के बाद भी सन १५५6 में बहुत से मुसलमान स्त्री - पुरुषों को हर जाने की स्वीकृति दी गई थी। तृतीय ईसाई शिष्ट मण्डल के पारी जब वाये तो उन्होने मी अनेक मुसलमान स्त्री पुरुर्गा को हज जाते देखा। ३. अकबर पर यह बारोप लगाया गया कि उसे हजरत मोहम्मद तथा : वहमद के नाम से घृणा हो गयी थी । यह धारोप भी निराधार है । अकबर का स्वयम् का नाम कालुद्दीन मुहम्मद अकबर था । लड़कों का बहमद एव मुहम्मद के नाम से नामकरण करना साधारणतयासभी स्थानों । पर प्रच्छातित था । इसके अलावा मुहम्मद शब्द उसकी राजकीय मुद्राओं पर बंक्ति किया जाता था । उसने पैगम्बर मुहम्मद के नाम से घृणा नहीं की । मुहम्मद या अहमद नाम न रखने के पीछे सबर की यह भावना थी कि इस प्रकार नाम रखना पैगम्बर मुहम्मद बार इस्लाम की बन्य विभूतियों के प्रति सम्मान प्रकट करना है। इस बात को तो बदायुनी ने मी! स्वीकार किया है कि पृष्ट और दुष्ट स्त्री को मुहम्मद की पुत्री फातिवा के नाम से पुकारता अनपयुक्त होगा । ४. दाड़ी बनवाना एक सामाजिक और सांस्कृतिक परम्परा है बार उससे इस्लाम धर्म का पतन या अवहेलना नहीं होती । दाड़ी वनवाने की अनुमति हाजी हाहीम के फतवे से हो गयी थी । यदि दाड़ी। बनबाने से इस्लाम की उपेक्षा होती तो मुसलमानों का आधे से अधिक विश्व इस्लाम की उपेक्षा कर उससे पृथक हो जाता । इसके अलावा अकबर ! के शासन काल के पश्चात के समय के चित्रों से ज्ञात होता है कि दरवारी ! तथा सरदार सूब दाड़ियां रखते थे । यदि उकबर ने अपनी दाड़ी कटादी तथा उसके कुछ दरबारियों ने उसका स्तुसरण किया तो इससे यह नहीं समझ लेना चाहिये कि अकबर ने इस्लाम का दमन किया । ५. सन १५७८-७६ में शेल ताजुद्दीन ने सिजदा अथवा साष्टांग प्रणाम प्रारम्भ किया और इसे मी बोस कहा गया । कटटर इस्लामी धारणावों के अनुसार सिजदा केवल अल्लाह के लिये ही है, परन्तु हराम के कुछ धर्म . For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति 121 शास्त्रियों के अनुसार जो मनुष्य पूर्णत्व को प्राप्त हो चुका है वीर - जिसमें श्वर का देवत्व है उसे सिजवा किया जा सकता है। बादशाह इनसान - ए - कामिल है, इस लिये उसे सिजदा करना चाहिये वीर इसे सिजदा - ए - तामि कहा जाता था । तर्क की दृष्टि से यह ठीक है। लेकिन यहां यह उल्लेखनीय है कि बकवर सब समय सिजदा करने पर बाध्य! नही करता था और इसे सिजदा नहीं, जमी बोस कहा जाता था। ६. अकबर पर यह आरोप लगाया गया कि उसने मुसलिम त्योहारी ! को छोड़कर हिन्दू त्योहारों को अपना लिया था लेकिन इसके विरुद्ध मी यह ता दिया जा सकता है कि तुर्क व मंगोलों के स्वभाव का यह लचीला पन था कि वे अपने से अधिक श्रेष्ठ संस्कृति के तत्वों को अपना लेते थे । सुल्ताना रजिया ने भारतीय परम्परा के अनुसार राजकीय छत्र । रखने की प्रथा अपना ली तो सिकन्दर लोदी ने प्राचीन भारतीय हिन्दू राजाओं की स्वर्ण के लादान की प्रथा ग्रहण कर ली । यदि अकबर ने! भी ऐसी ही भारतीय परम्परा, रीति - रिवाज और त्योहार अपना ! लिये तो यह सामाजिक और सांस्कृतिक बात थी, थामिक नहीं । इसके अतिरिक्त उसकी अधिकांश प्रजा हिन्दू थी और वह हिन्दुओं के सानिध्या व सम्पर्क में अधिक था राज्य को स्थायित्व व दृढ़ता प्रदान करने के लिये ! और हिन्दुओं को सन्तुष्ट करने के लिये हिन्दुओं की ऐसी परम्परा अपनाना या उनके त्योहार मनाना एक राजनीतिक और न्याय संगत बात थी । ७. इस्लामी परम्परा के अनुसार एक व्यक्ति चार विवाह कर चार पत्नियां रख सकता है। एक बार बादतखाते में अकबर के बादेश पर - विद्वान मुल्ला और शेखों के बीच इस प्रश्न पर वाद-विवाद आयोजित किया गया कि एक व्यक्ति कितने विवाह कर सकता है ? बदायुनी ने। स्वयम् लिखा है कि इस वाद विवाद में इमाम, मलिक और शिया लो। For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मकर की धार्मिक नीति ने मुता विवाग को कानूनी व वैध माना तथा बदायूनी नै स्वयम् एस । विवार के लिये अपनी अनुमति दे दी थी । ३० इसके बाद यदि विवाह के प्रश्न पर मतमेव हर तो इसके लिये अकबर को दोगी नहीं ठहराया जा सकता। ८. अकबर ने हाथी, ऊंच, रीक, बीते, सूबर, कुत्ते, मैसे, - खच्चर तथा कई प्रकार के पक्षी पाल रखे थे। इससे दीनालाही या इस्लाम का कोई सम्बन्ध नही वाता । स्वयम बदानी ने भी स्वीकार किया है कि बीते के मांस का उपयोग मुसलमान मध्य एशिया में करते - 1 थे । ३१ सन १५६८-६ में चित्तौड़ के पैरे के समय अर्थात दीनलाही प्रसारण के कई वर्ग पूर्व अकबर की सेना में तुर्क, राजपूत वादि विभिन्न जातियों के लोग थे । कां अकबर ने तुकों के लिये चीते के मांस का बोर राजपूर्ता के लिये सूबर के मांस का उपयोग करने की अनुमति दे दी थी, पर सभी मुसलमानों ने ऐसा नहीं किया । स्सा प्रतीत होता है कि बदायनी ने इस आदेश की खींचातानी की है। ६. अकबर ने फारसी के प्रचार में उन्नति की तथा संस्कृत स्व हिन्दी को भी वाश्य दिया । पर बाबी को नष्ट करने का न तो उसने । कोई नियम बनाया और न ही बाज्ञा दी । बदायूनी की मांति कुछ - कटटर लोग संस्कृत को प्रोत्साहन मिलने से ही बरबी की ववनति समक । इस प्रकार यह नि:सन्देह कहा जा सकता है कि अकबर ने अपने पूर्वजों के क का दमन करने के लिये कदापि प्रयल नहीं किया था । इस्लाम की उपेक्षा करने के लिये उस पर जो वारोप लगाये गये है वे निराधार, निर्मल तथा थोपे है । बपानी कटटर पाप मुसलमान था 30- A1-Badaani Trans. by N.H.Love Vol. II P. 213 31 - Al-Hadaant Trans. by h.H.Lom Vol. II P. 317. For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Exਦ ਲੀ ਗਲ ਕੀਰ 123 उसने अकबर के सुधारों को संकीर्ण दृष्टि कोण से देला वीर अकबर पर इलाम दमन के बारोप लगाये । इसी प्रकार जब ईसाई धर्म प्रचारको के उद्देश्य पूरे नही हुए तो उन्होंने अकबर के बारे में भिथया बाते लिखनी प्रारम्भ कर दी। सत्य तो यह है कि अकबर ने न तो कुरान का अनादर किया ! वीर न ही मसजिद का । उसने न तो बाबी की उपेक्षा की बोर न ही इस्लाम धर्म की । यह निर्विवाद है कि अकबर मृत्यु पर्यन्त ईश्वर में विश्वास करता रहा त्या हज नगने वाले मुसलिम यात्रियों की मी . व्यवस्था की । अंग्रेज राबत सर टामसरों का मत है कि अकबर अपने समस्त जीवन में मुसलमान ही रहा और मुसलमान रहते हुए ही उसकी मृत्यु हुई। -0 For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धार्मिक नीति परिणाम For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org 15 मर की धार्मिक नीति पार्मिक नीति के परिणाम - - - - - - - - - अकबर के पूर्व दिल्ली सुल्तानों ने राजसत्ता को हरामी स्वरूप प्रदान किया तथा उसे क वत्यन्त संकीर्ण, साम्प्रदायिक और मानव स्मार्थ विरोधी ईशसत्तात्मक मान लिया था । अकबर ने इस साम्प्रदायिक शि अधीन सत्ता के स्तरों को ऊपर उठाकर सर्व माननीय ईशसत्ता के उत्तर तल पर पहुंचा दिया । उसने एक संकीर्ण साम्प्रदायिक राजसत्ता की विबार धारा को परिष्कृत तथा परिवर्तित कर दिया । बाबर ने भारत के प्रचलित अनेक माँ का शास्त्रीय विधि से निरीक्षण किया था जिसके फल स्वरूप वह इस निकर्ष पर पहुंचा कि प्रत्येक में में सत्य विमान है और यह कहना गलत है कि सत्य केवल इस्लाम धर्म तक ही सीमित है जो कि इसरे कों की अपेक्षा नया है । अत: उसने एक ाम की को राज्य धर्म 1 से पृथक करके पीन लाती नामक नया धर्म को उस स्थान पर स्थापित - 1 किया । यह नवीन धर्म र सार पूर्ण विश्वास था तथा उसमें प्रत्येक में मैं से लिये हुए उत्तम नियम संयुक्त थे । दीनालाही की स्थापना के बाद भी अकलर ने उपनी प्रजा को व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता देने की नीति का अनुसरण क्यिा क्योंकि वादशाह को यह पूर्ण विश्वास था कि प्रत्येक धम में सत्यांश है, उनमें श्विर भी है चाहे उसकी उपासना मंदिर, मसजिद अथवा गिरजा घर में की जाये । उसका कहना था कि प्रत्येक धर्म को समान समझना चालिये, प्रत्येक मानुयायी को अपने घर में विश्वास करने और पालन करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी नाहिये । इस्लाम धर्म को उच्च स्थान से उतार कर दूसरे में के बराबर रखने के लिये ही उसने यह सब किया । उसकी इस थामिक नीति के परिणाम भिन्नलिखित हुए - For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति १. धार्मिक स्वता व धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना : ❤ अकबर से पूर्व सुलतानों के शासन काल में शासन धर्मसापेदाता की नीति पर आधारित था । इस्लाम धर्म को सर्वोच्चता प्राप्त होने के - कारण सदियों तक मुसलिम शासक वर्ग ने अपनी विधर्मी प्रजा पर अत्याचा किये थे । अकबर ने मारत में धार्मिक मतभेदों और संकीर्ण कविता को नष्ट कर विभिन्न धर्मों को समन्वित करने का सराहनीय कार्य किया । राष्ट्रीयता, सहिष्णुता व उदारता की पावना से प्रेरित होकर बकबर ने विभिन्न की ठतम विचार धारा वीर सत्य के सिद्धान्यों को 126 सूत्र मैं बांधने का प्रयास किया । धार्मिक प क्टटरता, अन्य विश्वास वर बसहिष्णुता के घेरे से उपर उठकर अपने राज्य के धनी व्यक्ति स्वय के साथ उसने समान व्यवहार किया तथा उदारता और सहिष्णुता की नीति अपनाई । उसे यदि सभी में एक ओर कुछ दोष व अमाव दिखाई दिये तो दूसरी बार सत्य बातें मी दिखाई दीं। वह चाहता था कि सम्पूर्ण प्रजा के लिये एक ऐसा सरल एवं सत्य की हो जिसका प्रत्येक व्यक्ति अनुसरण कर सके और धार्मिक मेद भाव हुप्त हो जाये। सीलिये सभी प्रचलित की श्रेष्ठ बार सत्य बातों का समन्वय कर उसने दीनकाही की काया । लेकिन इसके प्रचलन के बाद भी उसने विभिन्न पपववि को धार्मिक स्वतंत्रता दे रखी थी, क्योंकि वह धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना करना चाहता था । उसने हिन्दुओं, मुसलमानी व ferent को मंदिर मजिद व गिरजा घर बनवाने तथा अपने अपने - नुसार पूजा-पाठ व उपासना आदि करने की स्वीकृति दे दी । हस - नीति से अकबर ने विभिन्न धर्मों की कटुता का अन्त कर वार्मिक एकता स्थापित की । For Private And Personal Use Only परन्तु दुर्भाग्यवश अकबर का यह धार्मिक एकता और समन्वय का प्रयत्न सफल न हो सका । भारत में हिन्दू व मुसलमान जब इस बीसवी Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति धार्मिक सदी के उत्तराये में ही इसके लिये तत्पर नहीं है तो इससे पूर्व सोही सदी मैं तो वीर भी पीछे थे। वास्तव में अकबर धार्मिक एकता बीर मन्वय लाने के अपने प्रयत्नों में सफल हुआ क्योंकि वह समय से बागे था । उस समय के हिन्दू बीर मुमान दोनों ही उसके धार्मिक विचारों को समझने में असमर्थ रहे। फिर भी अकबर ने अपनी नीति और सिद्धान्तों सेािर्मिक दृष्टिकोण, सॉन्च कटुता, असहिष्णुता, पारस्परिक आदि को समाप्त कर दिया और विभिन्न धर्मों के सिद्धान् की एकता तथा धार्मिक व सामाजिक माहवारे की भावना को प्रोत्साहित किया। कम से कम अपने शासन काल तक उसने सभी विकावयाँ की वार्मिक स्वतंत्रता देवर राज्य को की निरपेक्ष बनाये रखा । प्रथा में किसी मी धर्म अथवा मत को मानने वाला व्यक्ति वपनी इच्छानुसार अपने वार्मिक रीति-रिवाज का पालन कर सकता था । वपने धर्म की उपासना व पूजन की विधी अपना सकता था । उसमें राज्य की बोर से किसी भी प्रकार का स्तरीय नहीं किया जाता था । २. विभिन्न कविलियर्या में संतुलन रहने से साम्राज्य की सुरक्षा : For Private And Personal Use Only 127 अकबर के विशाल साम्राज्य की सुरक्षा के लिये कह वावश्यक था कि वह विभिन्न धर्माविवियों में संतुलन बनाये रखे । मध्य युग में वही प्रथम सम्राट था जिसने इस बात का स्पष्ट बनुनय कर लिया था कि उसकी प्रजा के सभी व्यक्तियों के साथ, बाहे वे किसी भी सम्प्रदाय या वर्ग के हो, उसका व्यवहार न्याय संगत, निष्पक्ष एवं समान होना चाहिये । उससे पूर्व सुलतान के शासन काल में ऐसी नीति का अभाव होने से हिन्दुब मैं बसल्योग, विशेष क्या विद्रोह की प्रवृत्ति कबती होती गयी थी । कबर ने मेद भाव और पापा की नीति को त्याग कर सुह की नीति अपनाई | हिन्दू, मुख्मान, पारसी, ईसाई, जैन, बार यहूदी बादि प्रत्येक पर उसकी दृष्टि समान थी। इतना ही नहीं उसने हर - ए Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति ............................................... # वाले को जा • गुहा से फर्मान पिये कि, जो यावचंद्रविवारी बाबर का साण कराते रहेगे । रामतीति वीर प्रशासन में भी कबर ने कोई भेद • पाव नहीं माना । उसने मुखमा के साथ - साथ बहुसंस्था हिन्दु जाति को पी वपनाया तथा हिन्दुओं को उत्तरदायि पर्या पर नियुक्त किया । न्याय देने में नाति, सं, मत, सम्साय बौर प का विचार नहीं पिया गया । बर ने जिस प्रकार प्रशासन बार न्याय की नीति में याति, पव सम्प्रदाय वादि का विमेव नही किया उसी मार दान देने में पी जाति, धर्म, पूर्व व पंडित का मेप नहीं रखा । अपने राज्य में अनेक स्कोप उस्ने जनाधाय मोठे । फतेहपुर सीपी 4 भी दो बहुत बड़े माड कमवाय, इनमें एक का नाम नरपुरा और दूसरे का नाम पुरा था । सरपुरा में मुसलमान फकीरों के लिये ठहरने, पिकाम करने वीर पोस करने की व्यवस्था थी। पापुरा हिन्दू - सालय प्रबन्ध था । षा के लाभार्थ स्सी - ऐसी व्यवस्थाएँ करने वाला राषा प्रणा का प्रिय क्यों होता। उसने अपनी पार पार्षिक नीति के कारण हिन्दू मुखमान पारसी व नवीर सा मालवियों में संडान बनाये रखा, जिसे उसके विशाल माग्यो पुरता सम्भव हो सकी। 1. हिन्दुओं की दशा में सुधार : उपार हृदयी पुल्तान कबर ने हिन्दु साथियों पर लगे नेक अनुमित करो को समाप्त कर दिया । मुशलिम सुलतान और शासक हिन्! यात्रियों से उनके तीर्थ स्थानों में दीर्थ यात्रा का वाट करते थे । अबर ! इसे बनावश्यक, अनुचित वीर श्वर की बाराक्षा में प्रविषय समककर १५६३ माप्त कर दिया । छगभग बाठ सो वाँ से भारत में हिन्दुओं पर पुलमान झालो आरा जजिया कर लगाया जाता रहा था । उन । यात बाशा रहती थी कि इस अभिया कर के वापिका दवावगरण हिन्दू For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नति 129 विवश होकर इस्लाम गृहग कर लेंगे । इस्लाम स्वीकार नपरने वाले हिन्दुओं से यह कर दण्ड के रुप में लिया जाता था । पर हरलामी प्रथा का वन्त बर १४ को जजिया कर समाप्त कर दिया । इस प्रसार हस कर की समाप्ति से राज्य की नीतिबा परिवर्तन पुर । १५२ में बाबर नै खाने साम्राज्य में गुलामी प्रथा का बन्चर दिया और कगि परवार में सहस्त्रां गुहार्मा की मुक्ति की घोषणा हम समय सिधुओं में बनेक सामाजिक योग, बनिष्ट कारी.. हाडियां और अप्रथा प्रचलित थी जैसे - मसान की बहुलता, पाठ • विवार, यह पत्नीत्व, सती प्रथा, विधवाओं की विडम्बनार बार नारपीय बीवन, नरपति, श्यावृत्ति बापि । म पो निराकरण व समाप्ति के लिये कबर ने वादेश प्रणारित किये । मदिरापान को नियंत्रति करने के लिये बाबर ने कुछ नियम लाये । मुक्त रूप से भराव का बनाना, वैसा और पीना तिमिर कर दिया । मपिरा का मूल्य कातून बारा निर्धारित कर दिया गया और साम्सना प्राप्त सराव की दुगने लोग दी गयी । बाल विवाह को रोकने के रिये उसने कबामा दी किडा सोलह वर्ष और लडकी का यादह वर्ष की अवस्था से पहले विवाह किया जाये । उसने पार्विवाह का निर्णय किया और इस बाताप्रबन्ध किया कि वृक्ष स्त्रियां युवकों के साथ विवाह न करें । विषया पिव -बार बतरणातीय विवाह को प्रोत्साहित किया गया। उस साप हिन्दुओं में पति की पिता पर सती होने की प्रथा प्रपछि पी। अपर नै यत वादेश दिया किसी भी स्त्री को उसकी छया के विरुद्ध सती होने के लिये पिकान किया जाये । यदि का से कोई हिन्दु नारी बपने पति के शव के साथ सती होना पाहे वो उसे रोग न जाये। For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नीति इसी प्रकार अकबर नै सिसादृत्ति पर नियंत्रण छगा दिया । राणा में प्रचलित कन्या को दूर करने का प्रयास किया । वैश्यावृति को रोने बार उनकी कती हुई संस्था को कम करने के लिये रूपृथा नगर की स्थापना की और उसका नाम शैतानपुरा रखा । न सुधारों से हिन्दुओं में व्याप्त राजनीति सामाजिक व पाकिहीनता व व्यवीयता की भावना कम हो गई। इसके साथ साथ । इन प्रयाओं की समाप्ति से हिन्दुओं की सा पी सुपर गई । ५. सामाज्य में मैक - गोड का वातावरण : बाबर की उधार धार्मिक नीति से साज्य में हिन्- मुस्लिम मैल बोल का वातावरण बन गया । मुसलमान होने पर भी सादर । हिन्दुओं की अनेक प्रकार और त्योहार अपना लिये । रखने अपने समान में हिन्दू रानियां और उनकी वासियों व परिपाकिार्याहिये हिन्दू! पर्म की उपासना, पूजा, व्रत, उपवास, हवन, सुहान तथा अन्य पाकि और सामाकि कार्य करने की स्वतंत्रा दे दी । इसका प्रभाव रतवार की अन्य पुसलिम वैगर्मा और महिलाओं पर भी पड़ा । अकबर स्वया - हिन्दु सोलार रसा बन्थन, पारा, दीवाली, होडी, कांत वीर शिवरात्रि वापि मनाने गा । यह स्वयन हिन्दू रागावा मान पशहरे को दरबार करने मा था और अपने परमारियों को भी हिन्दुओं त्योहारों तथा फारसनारोके त्योहार मान के लिये प्रोता. हित करता था। बकबर ने हिन्दू राजाओं के फरोबा पल बोर छान पी ज्या पी उपना की थी। उसने स्वया बना बार बपने पुत्र का छान किया। था । जब अकबर ने अपने पुत्रों के विवाह हिन्दु राजपूत रास्मारियों के किये तब उने १ हिन्दू विवाह प्रथा अपनाई और कुछ प्रमुख मुसलिम रस्म कामी पाठन किया । इक्बर सिन्दुओं के त्योगरों विशेष र पारे For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਕਦ ਸੰਸ਼ ਜੀਓ 131 समय और मुहमानों के बारावफात बोर के त्यागर मय पावत देता था और उनमें हिन्दू क्या पुमान पोतों वर्षों के बाद कारियों, सामता बीर परमारियों को बामंत्रित करता था । उसने हिन्दुओं की वेश मा व पगड़ी को अपनाया । बपने सम्बन्चिर्या की मृत्यु पर हिन्दुओं के समान पी सिर, दाड़ी व माकर शोरमनाया । उसने हिन्दुओं और मुसलमानों को बार प्रमोद पान पी! एक साप ही उपलन कराये। __ बाबर ने हिन्दू मुहिम संमृति पी सम्बय किया । दोनों वगामी शिक्षा हेतु पदम उठाये । पति के साथ मातब स्थापित व्यैि । माता के साप साप वनेक हिन्दू पाठशाला और संवा विद्यालयों का निर्माण किया गया । से मिले विषाय और उन शिसा हेतु शिक्षण संस्थार स्थापित की गई मां हिन्दू और मुसलमान दोनों जातियों के विधार्थी शिक्षा करते थे। उनक मारतीय बौर मुसलिम विपार पारा के भारा फारपी को पाणित्या और सांस्कृतिक सप पिया । हिन्दुओं, पुमान बायोपा न्य व अन्य साम्या सुपार फारसी र देने से विभिन्न वर्ग जातियां परम्पर कमरे वार्षिक विचारों से बात हो गयी। इस प्रकार अकबर काल में साम्राज्य में मेल - बोजा वातावरण रहा। ५. नवीन स्थापित गड - साम्राज्य की बावस्याता एंव उसकी प्राय: हिन्दुस्थान में पुगी को भी क विदेशी मान कर हीनता बार पणा की दृष्टि से देखा जाता था। भारत में बाबर के पूर्व वेदर की सूट मार, उसके या बोर विध्वंस के कार्य, व हत्यार वारि कारग, मुगो के प्रति पारतीयों में स्वाभाविक पृणा हो गई थी। गवर और मांयूका शासन मी बल्पकालीन की रण । उन्होंने भारत For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ਝਦ ਲੀ ਰੀਲ ਰ 132 - - - -- में कोई स्सी लोगोफारी कार्य नहीं किये जिससे माता पर उनका प्रभाव पड़ा हो और उन्हें मता का सौहाई मिला हो । अत: इस नवीन स्थापित मुगल साम्राज्य की सुरक्षा के लिये क बावश्यक था कि सभी वा का साम्राज्य को सहयोग मिले । इस आवश्यकता की पूर्ति के लिये अकबर नै निष्पा हो सभी वाँ के साथ समावना की नीति अपनाई । बार्मिक पक्षापात को त्याग कर सब को अपने - अपने का पालन करने की स्वतंत्रता दी गई । अन्य को पर लगे मेक सुचित प्रतिवन्ध हटा दिये ।। साम्राज्य के उच्च पदों पर मिा किसी भेद • भाव के नियुक्तियां की गई । इससे प्रभावित हो सभी वर्गों ने साम्राज्य को दृढ बनाने के लिये सहयोग दिया । इस प्रकार अकबर की उदार धार्मिक नीति से नवीन स्थापित मुगल साप्राज्य की बावश्यकता की पूर्ति हो सकी । ६. उल्मार्वा की शक्ति, प्रभाव बार अधिकार का छास : अकबर बारा तवा पढ़ने, महजर या अप्रांत वाज्ञा पत्रपौगित करने तथा दीनालाही स्थापित करने से सपा, शो बार मुझ-1 मुल्लाओं के अधिकार कम हो गये थे, उनकी शक्ति सीण हो गई थी और प्रभाव नगण्य हो गया था । उल्माओं के प्रति लोगों की का, पक्ति और सम्मान कम हो गया था । उल्मा वर्ग के कुछ प्रभाव शाठी व्यक्ति जो प्रशासन में नियुक्ति क्येि गये थे, उनके पदों से पृथक कर दिये गये क्योंकि उनके विरुद्ध प्रष्टाचार व गबन के बारोप थे । इससे राजनीति बार प्रशासन में उनका प्रभाव लुप्त हो गया था। इससे प्रशासन वोर न्याय व्यवस्था में उला वर्ग हस्तपोप नही कर सका तथा प्रशासन शांति पूर्ण, निष्पा एंव व्यवस्थित रहा । जहां विभिन्न , सम्प्रदाय: वीर वर्ग संघर्ग रत थे, वहां पीन लाही नै बल्प काल के लिये समी • धमाकम्वियाँ और वर्षों के लोगों को एक सूत्र में बांध दिया । मुल्ला की मान्यता से मुक्त होकर अकबर ने और पी वाि पार्मिक उदारता For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मकबर की धार्मिक नीति 133 सहिष्णुता वीर समान व्यवहार की नीति को कार्यान्वित किया । ७. हिन्दुओं का मुगल साम्राज्य को सहर्ष स्वीकार करता : - - - - - - - अकबर नै प्रत्येक पत्र में हिन्दुओं के साथ सइव्यवहार किया । हिन्दुओं पर लगे अनेक अनुचित करों को हटा दिया क्योंकि उसका कल्ला! था कि सभी मनुष्यों से अच्छे सम्बन्ध रखना मेरा कर्तव्य है। उसने अपने । शासन काल में इस बात की अनुमति दे दी थी कि यदि कोई ऐसा हिन्दु । जिसको क पूर्वक मुसलमान बना लिया गया था, फिर अपने पूर्वजों का । धर्म ग्रहण करना चाहता हो तो उसे अपने का में जाने दिया जाये । हिन्दुओं पर कुरान के नियमो बार कुरान के अनुसार शासन करने की नीति त्याग दी गई । हिन्दू लेखा - जोखा और हिसाव किताव में बड़े दा होते थे, उतरव सुलतानों के शासन काल में वे केवल राजस्व विभाग के छोटे सामान्य कर्मचारी के पद पर की नियुक्ति होते । राज्य के अंधे पर्दा पर मुसलमानों के स्काधिकार को त्याग कर हिन्दुओं। को योग्यता व निष्पाता से प्रतिभा के वाधार पर शासन में नियुक्त करने से हिन्दू कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि हो गई । साम्राज्य के १३७ मनसबदारों में से १५ मनसबदार हिन्दू थे वार ६ से बकि प्रान्तों के दीवान हिन्दु थे । परिणाम स्वरूप हिन्दुओं ने अपनी स्वामिभक्ति ददाता वोर ईमानदारी से मुगल साम्राज्य के प्रशासन में महत्व पूर्ण योग दिया । टोडरमल इसका उदाहरण है। बकबर नै कैलो, पैसा और मेड़ों के मांस का प्रयोग बन्द करवा दिया था । हिन्दु साहित्य स्व संस्कृति को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से उसने गों का फारसी में नुवाद करवाया । रामायण, महाभारत, वेद वादि का फारसी में अनुवाद हुवा । बीरबल, मानसिह बार बद्धरहीम खानखाना जैसे योग्य हिन्दी कवियों को उसने प्रश्य दिया । अकबर के हन कार्यों से हिन्दू जो कि वमी तक मुगओं को विदेशी For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अकबर की धार्मिक नीति www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 131 समझ रहे थे, सहर्षं मुगल साम्राज्य को स्वीकार कर लिया । ८. राजपूतों की सेवाएं मुगल साम्राज्य की कई पीढ़ियों को प्राप्त : For Private And Personal Use Only अकबर प्रथम मुसलिम बादशाह था, जिसने राजपूतों के साथ उदारता ! यता और मैत्री का व्यवहार किया । सल्तनत काल में सुलतानों ने राजपूतों के प्रति संकीर्णता, धमन्चिता और आंतक की नीति अपनाई थी । इस लिये वे अपने राजवंशों को चिरस्थाई और दृढ़ बनाने में असफल रहे । परन्तु अकबर अपनी उदार, सहिष्णु और मैत्री पूर्ण राजपूत नीति के कारण पूर्व सुलतानों की अपेक्षा अधिक सफल रहा। राजपूत से अपने सम्बन्ध की दृढ बारे स्थाई बनाने के लिये बकबर ने प्रमुख राजपत राजवंशों ! की राज कन्याओं से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये । अकबर ने आमेर, बीकानेर तथा जैसलमेर की राज कन्याओं से विवाह किये। जिन राजपत राजाओं ने अकबर से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये अथवा आत्म समर्पण कर दिया, उन राजपूत नरेश, सामान्तौ और सम्वन्धियों को उनकी योग्यता और प्रतिभा के अनुसार सैनिक और असैनिक पद पर नियुक्त किया गया । इससे अकबर को अनेक वीर और रणकुशल सेना नायकों, प्रशासकों प्रान्त पतियों और राजनीतिज्ञ की अमूल्य और अनूत पूर्व सेवाएँ प्राप्त हो गयी । इन्होंने बाल एंव आन्तरिक विद्रोहों का दमन कर - साम्राज्य में शांति स्थापित करने में महान योगदान दिया । वे मुगल साम्राज्य की रीढ की हडडी बन गये । बामेर की राजकुमारी, हरकू बाई! से उत्पन्न पुत्र सलीम को अकबर ने अपना उत्तराधिकारी बनाया । इस विवाह ( अकबर का हरकू बाई ) के महत्व के बारे में डा० बेनीप्रसाद ने लिखा है कि यह विवाह भारत की राजनीति में नवयुग के उदय का प्रतीक था, इससे देश में उत्तम शासकों की पीढ़ियां चली और इससे मुगल सम्राटा की बार पुश्तों तक मध्य कालीन भारत के सर्वोच्च सेनानायक और कूट नीतिज्ञों की सेवाएँ प्राप्त हो सकी । - Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की थामिळ नीति 185 सन १९५६ में जब अकबर राज्य सिंहासना रुक हुवा था तब उसके पास कोई निश्चित साम्राज्य नहीं था। किन्तु सन १६०५ मैं उसकी मृत्यु के समय उसने अपने उत्तराधिकारी के लिये उत्तरी भारत में विस्तृत वीर सुसंगठित राज्य छोड़ा था । यह अकबर की राजपूर्ता के प्रति सदभावना का ही परिणाम था । जहांगीर और शाहजहां का जाज्वल्यमान युग राजपा के ही सहयोग से निर्मित हुवा था । इस तरह अकबर की उदार नीति से मुगल साम्राज्य की कई पीढ़ियों को राजपूतों की सेवाप्राप्त हुई । For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra * अकबर लेखक से० अतहर अव्वास रिजवी ?? की धार्मिक नीति ** "" अबुल फजल "1 Abdul Quadir Bada oni. Vincent A. Smith. Sir Wolseley Ha16. www.kobatirth.org ग्रन्थ सूची पुस्तक का नाम खिलजी कालीन भारत तुगलक कालीन भारत माग - १ - भाग २ शम्सुल उल्मा मौलाना मुहम्मद हुसैन आजाद १ अकबरनामा हिन्दी अनुवादक एम. एल. शर्मा प्रकाशका 2. Ain-1-Akbari Vol.I Trans in Ring11 sh by H.Blochmann, Second edition. Combridge History of India Vol. IV. अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय 3.Ain-1-Akbari Vol.III Trans, by H.S. Jarrett. For Private And Personal Use Only "" Al-Bada oni or Muntakhabut Tawarikh Vol. II. Dreams toy Wwini loure Akbar the great Mogul. अकबरी दरबार हिन्दी अनुवादक रामचन्द्र वर्मा पहला भाग । "" कैलाश पुस्तक सदन ग्वालियर Asiatic Society of Bengal -do Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - do सन् १६५५ Oxford at the clarendon press, १६५६ +++++++++++ १६५७५ १६७५ 1927 1948 1924 1929 Combridge at 1937 the University press. काशी नागरी प्रचारिणी सभा १६२४ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की थाळ नीति पुस्तक का नाम प्रकाशक भी विषाविजयजी एस.पार. शमा सूरीश्वर और सम्राट श्री विजय धर्म- सम्वत अकबर हिन्दी अनुवादक लक्ष्मी ज्ञान मंदिर १९८० श्री कृष्णलाल वर्मा आगरा। मारत में मुगल साम्राज्य लक्ष्मीनारायण १६७३ ! हिन्दी अनुवादक स्म. अग्रवाल वागरा-३ रू. शर्मा । मुगलकालीन भारत शिक्काल अग्रवाल १६५७ एण्ड कम्पनी 3001 बार्शीवादीला श्रीवास्तव - - - - - - - - . . . . . . - - - - - - - - - - - - - For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only