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अकबर की धार्मिक नीति
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अकबर ने मसजिदों का निर्माण करवाया और हिन्दुओं से जजिया तथा यात्रा कर भी वसूल किये । यद्यपि इस अवधि में अकबर मध्य युग के सच्चे मुसलमान सम्राट का प्रतिसप था, किन्तु वह कटटर और मान्य नहीं वा और न ही उसने हिन्दुओं पर धार्मिक अत्याचार किये क्योकि पाकि कटटरता के लिये तो वह स्वभावत: प्रतिलाल था । १५५१ तक उसे कोई धार्मिक सुधार नहीं किये क्योकि शासन प्रबन्ध पूर्ण रूप से बराम खां अधीन था । इस लिये वह धार्मिक कार्य करने और नीति अपनाने के लिये स्वतंत्र नहीं था । जैसे जैसे उसके साम्राज्य का विस्तार होता गया उसका धार्मिक विश्वास मी दिन पर दिन बढ़ता गया । शेख सलीम चिश्ती के कारण वह प्राय: फतहपुर में रहता था । मी से अलग पास ही एक पुरानी सी कोठरी थी उसके पास पत्थर की कसिल पड़ी थी, वहां तारों की शंव में अकेला जाता था । प्रमात का समय ईश्वरारापन में लगाता था, वहुत ही नभृता और दीनता से जप करता था तथा ईश्वर से इवार मागता था । लोगों के साथ भी प्राय: पार्मिकता और बास्ति -कता की ही बात करता था । यहीं से उसकी धार्मिक नीति का विकास ! प्रारम्भ होता है। धार्मिक नीति के विकास का क्रमिक वर्णन -
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अकबर सत्य धर्म को जानने का हक था और हिन्दू - मुसलिम पेद - माव मिटाना चाहता था इसके लिये उसने जो उदार धार्मिक नीति अपनाई उसका कमिक विकास इस प्रकार से है - राजपूत राजकन्याओं से विवाह :
सन् १५३२ ईस्वी के जनवरी महिने ६ अकबर ख्वाजा मुइनुदीन - चिश्ती की यात्रा के लिये बगर गया। रास्ते में पौसा गांव में वर्ष ( जयपुर की पुरानी राजधानी ) के राजा विहारीमल ने अपनी बड़ी रुड़की हरफू बाई को अकबर के साथ व्याह देना स्वीकार कर लिया।
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