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अकबर की धार्मिक नीति
One night my heart was weary of the burden of 1110, when suddenly between sleeping and waking a strange vision appeared to me, & my spirit was some what comforted."5
इन विचारों से उसके हदय में यह माव कुरित हो गया कि जाति धर्म रहन - सहन के भेद - भाव का विचार किये बिना सभी वग के लोगों की नि:स्वार्थ सेवा से बढ़कर ईश्वर को प्रसन्न करने का अन्य कोई मार्ग नहीं है। ३ - युद्ध बन्दियों को मुसलमान बनाने का निर्णध :
अकबर की इस नवीन नावना का प्रथम ठोस परिणाम यह हुवा : है कि उसने अपने बीसवे जन्म दिन ( १० अप्रैल १६६२६० ) को स्कनवीन आशा प्रसारित की, जिसके अनुसार युद्ध वन्धियों को गुलाम बनाने । तथा उन्हें बल पूर्वक इस्लाम स्वीकार कराने की मनाही कर दी गयी । इससे परे विजीत सेनार लोगों के स्त्री - बच्चों को दास बना लिया • करती थी । बन्दी हिन्दू सैनिकों की पत्तियां, बच्चों और सम्भवन्थियों का उपयोग करने के लिये इन्हें मुसलिम अधिकारियों को सौंप दिया जाता था । यह प्रथा इसलाम धमांनुमोदित मानी जाती थी । बादशाह नै । ईश्वर - भक्ति से और दूरदर्शिता तथा सासद विचार से प्रेरित होकर नादेश दिया कि उसके साम्राज्य से विजयी सेना का कोई सनिक ऐसा काम नही करेगा । सैनिक नाई शेटा हो या बड़ा उसको किसी को कमी दास बनाने का अधिकार नहीं था । अबुल फजल लिखता है कि बादशाह ने समझा कि स्त्रियों और निरपराथ बच्चों को दण्ड देना अन्याय है । यदि पुरुष पृष्टता का मार्ग ग्रहण करते है तो इसमें उनकी पत्नियों का क्या दोण है। यदि पिता बादशाह का विरोध करते है तो उनके बच्चों
5- A1n-1-Akbari Trans. by H.s. varrstt. Vol. II P.435 6- Akbamana Vol. II. P.P. 159-60.
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