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अकबर की धार्मिक नीति
पी लिखता है कि वाद विवाद के समय" एक रात उस समय उल्माओं की। गर्दनों की नसे फूल गयों और स्क भयानक शोर गुरु और कोलाहल मच गया सम्राट अक्बर इनके अशिष्ट व्यवहार पर बड़ा ही कोधित हुा ।“२० । इन नेताओं के ऐसे संकी गं, कटटर पन, स्वार्थ और पतित चरित्र से अकबर को अत्यधिक दाम हुवा उसने समझ लिया कि सत्य की खोज उनके क्स की बात नहीं । क की ही नींव खोदने वाले ऐसे मुल्लाओं से उसे स्वभावत: हि होने लगी और वह शिया - सुन्नी, हनफी - शफी के फगड़ों से मुक्त धर्म को स्थापित करने को वातुर हो उठा । १२ विभिन्न काचार्यों से अकबर का सम्पर्क और उनका प्रभाव -
इबादत खाने में इस्लाम धर्म के कटटर नैताओं और उल्लाओं के पतित चरित्र से कटटर हस्लाम में अकबर का विश्वास हिल गया था । कयामत के इस्लामी सिद्धान्तों को उसने मानने से इन्कार कर दिया और इस्लाम की बात तो उसने एक ओर ही रख दी । उसे यह विश्वास ही नहीं होता था
कि कोई स्वर्ग केले जाता है ? यहां से लम्बी बातचीत करके इतनी जल्दी । वापिस वा जावे कि उसका विस्तर गरम का गरम मिले । अब उसने इबादत-: खाने के व्दार दूसरे धर्म - सम्प्रदायों से हिन्दू, जैन, पारसी, हंसाई, के लिये भी खोल दिये । यपि हमादत खाने में धार्मिक विचार - विमर्श होते ही रहे किन्तु अकबर ने अन्य मर्ती बोर सम्प्रदायों के विद्वानों को बुला कर नीजि बैठक आयोजित करनी बारम्भ कर दी। इससे विद्वान लोग बड़ी ही: गम्भीरता और शान्ति से धर्म चर्चा करते थे । उससे अकबर को बहुत आनन्द ! ftat att l Abil razal Says :" The Shaban shah's Court became the home of Inquirers of the seven claims, and the
20 - AL-Badaon1 "rens. by N.H. Love Val. II P. 205.
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