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अकबर की धार्मिक नीति
मैं अपनी बीम रूपी तलवार का उपयोग करते थे । पा समर्थन कारों में इतना वितंडावाद खड़ा हो जाता था कि, स्क पदा वाला इसरे पता वाले को बेवकूफ और ढोगी बताने लग जाता था । "१८ इन वाद - विवाद और धार्मिक चर्चावों के दौरान इन विद्वानों की संकीर्णता, अभद्रता तथा वकार का नग्न नृत्य प्रारम्भ हवा । स विद्वान किसी बात को हलाल कहता था तो इसरा उसी को हराम प्रमाणित कर देता! था । वे स्वयम् अकबर की उपस्थिति में ही बापे से बाहर हो जाते थे। और परस्पर एक दूसरे को काफिर बतलाते थे । अबुल - फक और फैजी मी आ गये थे । तथा दरबार में उनके पदापाती पी उत्पन्न हो गये थे । ये लोग स्क दूसरे के कामों की पोल खोलते थे, बेईमानियों के बनेक किस्से सुनाते थे, जैसे पीन - इजियों बार विद्वानों को दान में दी गयी रकम के विषय में मखदूम • उल - मुल्क की मानी, बदुन्नबी पर हत्या करने का आरोप बादि । प्रत्येक विद्वान की यही इच्छा थी कि जो कुछ में कह उसी को सब ब्रस वाश्य माने । जो जरा भी ची चपढ़ करता था उसके लिये काफिर होने का फतवा रखा हुआ था । कुरान की वायते और कहावले सब के तर्क का आधार थीं । पुराने विद्वानों के दिये हुए जो फतवे अपने मतलब के होते थे, उन्हें भी वे कुरान कीवायतों के समान ही प्रमाणिक बतलाते थे । “विद्वानों की यह दशा थी कि
बातों की तलवारे लीन कर पिल पड़ते थे, क्ट मरते थे और वापस में तर्क वितर्क तथा वाद - विवाद करके एक दूसरे को पूरी तरह से दबाने का ही प्रयत्न करते थे । शैल सदर बोर मखदूम - उल - मुल्क की तो यह दशा थी कि वापस में गुत्थम गुत्था तक कर बैठते थे । " १६. बदायूनी
१८ • AL-bndaoni Trans. by ki.Love Vol. II P. 262. १६ अकबरी दरबार हिन्दी अनुवाद रामचन्द्र वर्मा पहला भाग पृ०७५-७६
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