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की धार्मिक नीति
अकबर
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तुगलक काल में धार्मिक नीति के नवीन पदा मी हमारे समक्ष जाते हैं ।
डुगलक वंश का प्रथम शासक गयासुदीन तुगलक अपने निजी जीवन मैं कटटर सुन्नी मुसलमान था । खुसरो की हत्या करने के बाद वह एक श्रेष्ठ इस्लामी शासक के रूप में पदासीन हुवा | अतः उसको धर्मान्य होना स्वभाविक सा ही था । यही कारण है कि इस्लामी नियमों के विरूद्ध व्यवहार करने पर वह शेख निजामुद्दीन बोलिया से भी अत्यन्त नाराज था ।
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हिन्दुओं के प्रति गयासुदीन का व्यवहार प्रशंसनीय नहीं था । अलाउद्दीन के अनेक नियमों को उसने जारी रखा और हिन्दु को सम्पि एकत्रित करने की अशा नहीं दी गयी । जहां तक अधिक कर न लगाने का प्रश्न है इसके सम्बन्ध में बरनी स्पष्ट लिखता है कि सुल्तान नै हिन्दुओं पर अधिक कर इस लिये नहीं लगाया कि वह निराश होकर अपनी भूमि तथा व्यवसाय छोड़कर भागने पर वाध्य नहीं करना चाहता था । इस प्रकार ग्यासुदीन का भी हिन्दुओं के प्रति व्यवहार उचित नहीं था ।
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मोहम्मद तुगलक के जाते ही धार्मिक क्षेत्र में हम नवीन मोड देखते है । अपने प्रारम्भिक काल में उसने वर्म निरपेक्षता का परिचय दिया, और प्रशासन आदि में उलैमा पर नियंत्रण रखा । अशरफ तो यहां तक लिखते है कि भारतीय मुसलमानों की योजनावद्ध रूप से मनाही कर दी गई थी और सुल्तान विदेशी लोगों पर विश्वास करने लगा । यही नहीं वरनी को इस वात का बड़ा दुख था कि सुल्तान उलेमा आदि की हत्या करने में किसी प्रकार की हिचकिचाहट, प्रदर्शित नहीं करता था । यही कारण है कि उसने मौहम्मद तुगलक व को एक विचित्र शासक के रूप मैं प्रदर्शित किया है । उसने हिन्दुओं को भी उच्च पद देना प्रारम्भ कर दिया था । डा० मेहदी हुसैन ने अपनी पुस्तक राज एन्ड फल बफ दी मुहम्मद बिन तुगलक में रतन नामक हिन्दू का विवरण दिया है जो