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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3ਝਦ ਬਾਲ ਸੰਬ + + + + According to V. A. Smith : He is said to have worn the sacred shirt and girdle which every Parsee must wear under his clothes." 3 अकबर स्वल्पाहारी था और सामान्यत: एक ही बार भरपेट भोजन करता था, वह मी प्राय : मध्यान्ह मैं । प्रीतिभोजी या दावों को शेडकर अकबर प्राय : अकेले में ही भोजन करता था । वाल्याकाल में ही उसै आमिण भोजन में ही अमित चि नहीं थी । ज्याँ • ज्या उसकी बायु बढ़ती गई वत्त आमिण भोजन के प्रति उदासीन होता गया ।जीवन! के उत्तर काल में तो वह पूर्णत: निरामिण हो गया था । वह कहता था कि -" यर उचित नहीं कि एक आदमी अपने पेट को पशुओं की का बनाये ।" " हो सकता है कि यह हिन्दुओं और जैनियों के प्रभाव से । हुआ हो लेकिन उसे बामिण पोजन के प्रति शुरू से ही रूचि न थी । उसने स्वयं कहा कि मुझे अपनी छोटी उम्र से ही मांसाहार नीरस लगता है । जब कमी में बाशा देकर मांस बनवाता था तब भी उसको खाने की बहुत ही कम परवाह करता था । इसी स्वभाव से मेरी दृष्टि पशु रसा की बोर गई और मैने पीछे से मांसाहार का सर्वथा त्याग कर दिया । "५ अकबर के इन विचारों से पता कता है कि उसे बामिण मोमा से घोर पृणा थी । ऐसा माना जाता है कि अकबर ने अपनी हिन्दू रानियों के प्रभाव से मोम में मांस, लहसुन व प्याज मी त्याग दिया था । अपनी तरुणावस्था में वह मथपान करता था । १५८० में ताड़ी + 3- Smith ! Akbar the great Megul P. 163. 2-in-1-Akbari Vol. III Translated in to Enath by H.S.Jarrett P. 443. + + + + + + + + + Ain-i-Akbari Vol. III Translated in to English by H.8.Jarrett P.446. + 4 For Private And Personal Use Only
SR No.020023
Book TitleAkbar ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherMaharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay
Publication Year1977
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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