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मळमर की धार्मिक नीति
मिनहाज लिखता है कि इस प्रकार का कनिष्ठ वीर साधु फकीरी ईश्वर भक्तों तथा धर्म गुरुओं और मागायों के प्रति इतना पयाल क्या! अदालू राजा इस पृष्टि में कमी उत्पन्न नहीं हुवा । " १२२८ में बवासी खलीफा से प्रमाण पत्र लेकर उसने एक नवीन वध्याय जोड़ा वीर पुरी । सल्तनत को धार्मिक मान्यता पी प्राप्त कर दी।
कवन की धार्मिकता उसके धार्मिक स्वरुप की उत्कृष्टता को प्रकट करती है । एक और जहां वह उलेमा वर्ग पर कठोर नियंत्रण रखता था वही पर साधु, फकीर एंव वालिमा के प्रति वह अत्याधिक उदार था । मिनहाज तो उसकी उदारता को उच्चतम विन्दु तक पहुंचा देता है वह लिखता है कि यदि नगर में कोई शेख सैयद सन्त क्यवा बालिम का ! स्वर्गवास हो जाता तो सुल्तान उसके जनाजे के साथ उपस्थित रहता ।" इस प्रकार इस्लाम में उसकी अटूट वास्था थी किन्तु हिन्दुओं से वह घृणा करता था । वह कहा करता था कि ब्राह्मण जो कि कुफ्र के माम है, को देखते ही नष्ट कर देना चाहिए । क्लवन थन्धि था वॉर अपनी वसुसंस्था माता के साथ उसका व्यवहार सहिष्णुता पूर्ण रहा । तुर्की । की श्रेष्ठता में उसका विश्वास था । वस्तुत: पार्मिक वसहिष्णुता के पात्र में वह अपने पर्ववर्ती शासकों से भी बाग था। खिलजी वंश के सुल्तानों की पार्मिक नीति :
लिजी वंश के सुल्तानो की धार्मिक नीति भी बमाणिक हत्याएँ व नृशसंता से परिपूर्ण पी । खिलजीयों में वासवंश की कटटर इस्लामिक धार्मिकता उभर कर सामने वा गई है । इस वंश के शासकों ने मुख्य रूप से कालुदीन फीरोश खिलजी एवम अलाउदीन प्रमुख है।
सुल्तान कारुदीन खिलजी इस्लाम का परम भक्त था यह कहा - करता था"मैं अपनी नीति के विगय में केवल उन लोगों का ही बनुकरण करता हूं जो पैगम्वरों की बाजाओं का पालन करना अपना परम
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