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अकबर
की धार्मिक नीति
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इसी तरह एकिन ने बाबर की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि " बाबर के मैं सब प्रशंसनीय बात यह है कि उसके व्यवहार में हमेशा कृपालुता, और मानवता बनी रहती थी यदि उसकी जीवनी में कहीं निर्दय हत्याब का वर्णन आता है तो वह उस युग की विशेषता है, उसके स्वभाव की नही १० अन्य कटटर पंथी सुनी मतावियों की तरह उसने इस्लाम धर्म के काफिरों को सताने का अपना कर्तव्य नहीं बना लिया था । हिन्दू वर्ग के प्रति बाबर का व्यवहार सल्तनत- युग के अन्य शासकों के व्यवहार की भांति बुरा नहीं था ।
हुमायूं की धार्मिक नीति :
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बाबर की तरह हुमायूं भी निष्ठावान मुसलमान था। पांचों वक्त की नमाज वह नियमित रूप से बढ़ता था । और इसके साथ साथ अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों का भी पालन करता था अपने पिता की पांति वह मी साम्प्रदायिक कटटरता से दूर था । सुन्नी होते हुए मी शिया मतावलम्बियों के प्रति उसके हृदय में द्वेष भाव नहीं था । इसका एक कारण तो यह हो सकता है कि बाबर से विरासत में मिली हुई उदार भावना वीर दूसरा उसकी पटरानी हमीदा बानू बेगम शिया थी और विश्वास पात्र सेवक बेराम खां मी शिया ही था । जब वह फारस में था तो राजनैतिक लाभ के लिये शियामत के रीति रिवाजों को भी मानता रहा । यपि उसने परिस्थितिवश ही शियामत ग्रहण किया था क्योंकि फारस का कटटर शियामतावलम्बी शाहतहमस्प हुमायूं को शियामत में दीक्षित करने के लिये उत्सुक था और यदि हुमायूं इसके लिये तैयार नहीं होता तो उसे वह प्रयोग व्दारा ऐसा करने के लिये बाध्य किये जाने की छिपी हुई धमकी दी गई थी ।
एस. आर. शर्मा - हिन्दी अनुवादक मैं
भारत
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मथुरालाल शर्मा मुगल साम्राज्य पृष्ठ ३६
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