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अकबर की धार्मिक नीति
पत्र ८ की जो बाबर का माना जाता है और जिस मैं सदोषत: उसकी उदार नीति का उल्लेख है, स्वीकार करना कठिन है। लेकिन इसका यह अर्थ नही है कि बाबर की उदारता के विषय में जो उल्लेख मिलता है उसका यहां विरोध किया जा रहा है । फरिश्ता ने लिखता है कि बाबर की उपस्थिति से ही दौलत खां के कुटुम्व की हज्जत वची थी । ६
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८ इस पत्र में लिखा है कि है मेरे पुत्र । भारत वर्ष में विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते है । भगवान को धन्यवाद दो कि शहशांह ने इस देश का शासन तुम्हारे सुपुर्द किया है । इस लिये तुम्हारा कर्तव्य है कि १ - धार्मिक पदापात का तुम्हारे ऊपर कोई प्रभाव नही होना चाहिये और निष्पक्ष होकर तुमको न्याय करना चाहिये । जनता के विभिन्न व की धार्मिक भावनाओं का ध्यान रखना चाहिये ।
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विशेष कर तुमको गो-वथ से दूर रहना चाहिये । ऐसा करोगे तो लोगों के दिलों मैं तुम्हें जगह मिलेगी । हस देश के लोग तुम्हारे कृतज्ञ होगे और तुम्हारे साथ उनका कृतज्ञता का दृढ बन्धन हो जायेगा ।
३ तुम किसी जाति के प्रार्थना भवन को मत गिराना और सदैव न्याय प्रिय रहना, जिससे बादशाह और प्रजा का परस्पर सम्वन्ध अच्छा बना
रहे और जिससे देश में शांति वीर सन्तोष रहे ।
४- इस्लाम का प्रचार दमन शास्त्र की अपेक्षा स्नेह शास्त्र से और एहसान से अधिक होगा ।
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५ शिया और सुन्नी के पारस्परिक झगड़ों की ओर ध्यान मत देना, अन्यथा इससे इस्लाम निर्बल होगा ।
६ अपनी प्रजा की विशेषताओं को ऐसा मानना जैसे वर्णं की विभिन्न ऋतुओं को ऐसा करने से शासन को कोई रोग नहीं लगेगा ।
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एस. आर. शर्मा हिन्दी अनुवादक
मथुरा लाल शर्मा भारत मैं मुगल साम्राज्य पृष्ठ ४१