________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अकार की धार्मिक नीति
अब्दुन्नबी इस्लामी में शास्त्र सम्वन्धित सैद्धान्तिक प्री पर परस्पर लड़ छ ।
मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी नै वे सब पुस्तक पढ़ी थी जिन्हें पढकर लोग विदान हो जाते है । जो कुछ गुरुओं ने बतला दिया था, वह सब उन बारश : याद था पर फिर भी धार्मिक आचार्य होना बोर बात है । वाचार्य का काम यह है कि जहां कोई वायत या मंत्र न हो, या कहीं किसी प्रकार का संदेह हो या किसी अर्थ के सम्बन्ध में मतभेद हो वहां वह बुद्धि से काम लेकर निर्णय कर हैकिन मुल्ला बदायूनी में ये सब बाते नहीं थी । इसी तरह शेख अबुल फज की कोली में तों की क्या कमी थी । बीर उनकी ईश्वर दत्त प्रतिमा के सामने किसी की क्या सामयं । जिस तर्क को चाहा जुटकी में उड़ा दिया । विद्वानों में विरोधी का मार्ग तो बुल ही गया था । थोड़े ही दिनों में यह नौबत हो गई । कि थार्मिक सिद्धान्त तो दूर रहें जिन सिद्धान्तों का सम्वन्ध केवल विश्वास से था, उन पर भी बातोप होने लगे और हर बात में तुरा यह है कि - 1 साथ में कोई तर्क और प्रमाण भी हो । यदि तुम सुक बात को मानते हो तो इसका कारण क्या है ? इस तरह अविश्वास बढ़ते बढते बादत लाने में तीन विरोधी दल हो गये । एक मजबूम उल - मुल्क की उपाधि से विभूषित शेख बब्दुल्ला सुलतानपुरी के निर्देशन में और दूसरा अदुन्नवी के नेतृत्व में । ये कटटर सुन्नी मुसलमानों के दल थे उल्माओं के ये दोनों नेता आपस में एक दूसरे को बुरा मला कह कर झगड़ते थे । मखदूम - उठ मुल्क नै बब्बुन्नवी पर खिन ला सरवानी और मीर हश को उनके थार्मिक विश्वास के लिये अन्याय से मरवा डालने का आरोप लगाया। तीसरा वल ब्राहीम शेख मुबारक बऔर उसने पुत्र फैजी व अकुल फल तथा नवीन लोगों का था । ये तीनों भी परस्पर कुफ और बेहज्जती की बात करते थे । मान्ध सुन्नियों ने शंख मुबारक पर धर्म भृष्ट होने और नवीन - पार्मिक पद्धति चलाने का दोषारोपण कर उसै मुत्यु दण्ड दे दिया पर
For Private And Personal Use Only