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अकबर की धार्मिक नीति
मुसलमान अनुयायी तथा कर्मचारी जो विदेशी माड़े के टट्टू होने के कारण अपनी स्वार्थ सिद्धी से ही मुख्यत : प्रेरित होते थे, उन पर पूरी तरह - मरोसा नहीं किया जा सकता था। उसे यह बात स्पष्ट हो गयी थी कि यदि उसे भारत वर्ष में अपने राज्याधिकार को सुरक्षित रखना है तो उसे । यहीं के प्रमुख - प्रमुख राजनैतिक तत्वों का सहयोग व समर्थन प्राप्त करता है बावश्यक है । इस तरह अपनी पर्शिता से कबर ने उस तथय को हत्याम कर लिया जिसे समझने में उसके पिता और पिता मह ने की थी। इसी नीति का अनुसरण करते हुए उसने राजपूत राजकन्याओं से विवाह किये । जनवरी १५६२ में अकबर फतेहपुर सीकरी से अजमेर के खाजा मुख्नुदीन चिश्ती की मजार की यात्रा के लिये गया । यात्रा के बाद बब वह लोटा तो सांभर में सका बार यहां ६ फरवरी १५६२ को पार की राजकन्या हरकू बाई का विवाह अकबर से कर दिया गया ।" बामेर के राजा की देखा • देखी बीकानेर, जैसलमेर, पारवाड़, तथा डूंगर-1 पुर के राज पत राज्यों ने भी अकबर से विवाह सम्बन्ध करके अपनी • अपनी राजकन्याओं की डोख्यिां मुगल रतवास में मेषी ।
अकबर ने अपनी म राजपत रानियों को हिन्दु म त्याग कर - इस्लाम ग्रहण करने के लिये बाध्य नहीं किया । उसने राजमहल में हिन्दू रानियाँ और उनकी सहचरियों को उनके हिन्दू धर्म के अनुसार पूजा - पाठ करने, मनन चिन्तन करने और धार्मिक संस्कारों को मानने की पूरी स्वतंत्रता दे रखी थी । अकबर की प्रमुख हिन्दू रानी, बामेर के मारमल की पुत्री हर बाई के लिये मुगल रम में तुलसी का पौधा लगाया गया था । न रानियों के प्रभाव से बकबर सूर्य की उपासना करता था और कमी-कमी तिला मी लगाता था । इस प्रकार राजपत कन्याओं से विवाह करने से एक बार तो अकबर को साम्राज्य में हिन्दुओं का सहयोग मिला तथा दूसरी
7- Akbamama Voi. II P. P. 154-58.
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