________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अकबर की धार्मिक नीति
१. धार्मिक स्वता व धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना :
❤
अकबर से पूर्व सुलतानों के शासन काल में शासन धर्मसापेदाता की नीति पर आधारित था । इस्लाम धर्म को सर्वोच्चता प्राप्त होने के - कारण सदियों तक मुसलिम शासक वर्ग ने अपनी विधर्मी प्रजा पर अत्याचा किये थे । अकबर ने मारत में धार्मिक मतभेदों और संकीर्ण कविता को नष्ट कर विभिन्न धर्मों को समन्वित करने का सराहनीय कार्य किया । राष्ट्रीयता, सहिष्णुता व उदारता की पावना से प्रेरित होकर बकबर ने विभिन्न की ठतम विचार धारा वीर सत्य के सिद्धान्यों को
126
सूत्र मैं बांधने का प्रयास किया । धार्मिक प क्टटरता, अन्य विश्वास वर बसहिष्णुता के घेरे से उपर उठकर अपने राज्य के धनी व्यक्ति स्वय के साथ उसने समान व्यवहार किया तथा उदारता और सहिष्णुता की नीति अपनाई । उसे यदि सभी में एक ओर कुछ दोष व अमाव दिखाई दिये तो दूसरी बार सत्य बातें मी दिखाई दीं। वह चाहता था कि सम्पूर्ण प्रजा के लिये एक ऐसा सरल एवं सत्य की हो जिसका प्रत्येक व्यक्ति अनुसरण कर सके और धार्मिक मेद भाव हुप्त हो जाये। सीलिये सभी प्रचलित की श्रेष्ठ बार सत्य बातों का समन्वय कर उसने दीनकाही की काया । लेकिन इसके प्रचलन के बाद भी उसने विभिन्न पपववि को धार्मिक स्वतंत्रता दे रखी थी, क्योंकि वह धर्म निरपेक्ष
राज्य की स्थापना करना चाहता था । उसने हिन्दुओं, मुसलमानी व ferent को मंदिर मजिद व गिरजा घर बनवाने तथा अपने अपने - नुसार पूजा-पाठ व उपासना आदि करने की स्वीकृति दे दी । हस - नीति से अकबर ने विभिन्न धर्मों की कटुता का अन्त कर वार्मिक एकता स्थापित की ।
For Private And Personal Use Only
परन्तु दुर्भाग्यवश अकबर का यह धार्मिक एकता और समन्वय का प्रयत्न सफल न हो सका । भारत में हिन्दू व मुसलमान जब इस बीसवी