________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अकबर की धार्मिळ नीति
जब जब उसे विजय श्री प्राप्त होती थी वह भगवान को अनेकानेक धन्यवाद देता था और मानता था कि यह उसकी अनुकम्पा का परिणाम है। पानीपत के युद्ध के बाद भी उसने इसी प्रकार के विकार व्यक्त किये थे । " एक माले की लम्बाई के बराबर जब सूर्य ऊंचा बा गया तो युद्ध शुरु हुना और दोपहर तक चलता रहा । तब शत्रु किकुल हार गया और भगदड़ मच गई । मेरे लोग विजयी हुए और उल्लास से मर गये । भगवान की पया बार कृपा से यह कठिन कार्य मेरे लिये बासान हो गया और वह शक्ति शाली सेना बाथै दिन के पीतर मिटटी में मिल गयी ।"२ सुन्नी मत का अनुयायी होते हुए मी बाबर ने समरकन्द में शियामत को प्रोत्साहन दिया था।
जहां तक बाबर का हिन्दु वर्ग के प्रति व्यवहार का सम्बन्ध है वह अपने युग की परिस्थितियों से ऊपर न उठ सका । राणा सांगा 1 के विरुद्ध उसने जिहाद आरम्म किया था और अपने बादमियों को यह कह । कर उसके विरुद्ध लडने के लिये मडकाया कि वह काफिर है और उसके .
विरुद्ध युद्ध करना उनका धार्मिक कर्तव्य है । बस सब से बच्श यही है कि अपने लिये ये दो वाते ठीक कर लेनी चाहिये कि यदि शत्रु को परास्त । किया तो गाजी ३ हुए बोर मारे गये तो शहीद ४ हुए । दोनों प्रकार से अपनी मुक्ति है बार पदवी बड़ी और बढ़ कर है। विजय प्राप्ति के वाद बाबर ने गाजी का खिताब ५ प्राप्त किया था । चन्देरी के मेदिनीराय . . . . . . . . . . . . . . . ---------- २ - एस० नार० शा - अनुवादक मथुरालाल शर्मा भारत में मुगल साम्राज्य पृ. २३
• गाजी उन्नै कहते है जो दूसरे मतवालों को मारते है। ४ - शहीद वह है जो धर्म के लिये मारे जाते है। ५ - इस विज्य पर बाबर ने पल्ले परुळ यह पदवी धारण की क्योकि इस
बार शच मुसलमान नहीं थे।
For Private And Personal Use Only