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अकबर की धार्मिक नीति
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According to Smith: The organization can not wall have mrvived the murder of Abul Fazal, Its high priest, so to say, and of course, it ceased to exist with the death of Akbar, 18.
___यपि जहांगीर ने अकबर की भांति शिष्य दीक्षिात करने तथा शस्त व अपने चित्र कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को प्रदान करने के प्रयास किये, पर यह केवल औपचारिक कार्य था । इस तरह दीनालाही के बन्धु समाज का, अकबर कालीन आदर्श वाद का आधार समाप्त हो गया। दीन इलाही के विषय में विभिन्न विद्वानों के मत :
दीनालाही की प्रशंसा और मालोचना में विभिन्न इतिहाकारी और विद्वानों ने अपने अपने मत व्यक्त किये है । अकबर के इस आदर्शवाद मैं बारतोली को चालाकी वीर धुर्तता ही दिखाई दी थी। स्मिथ मी दहता है कि यह थामिक कटटरता का उन्माद था जो मई सन् १५७८ में अकबर को आया । यह उसकी विभिन्न धर्मा में गहन रुचि का लपाण था । जो सन् १५७८-७६ में प्रकट हुआ था, जिसके बाद ही आगामी वर्ण! के सितम्बर में उसने अपनी अचूक व्यवस्था जारी की थी । आगे चलकर - स्मिथ कहता है कि दीन लाही प्रकार की मूर्खता का सारक है बुद्धिमत्ता का नही ----- यह समस्त योजना हास्यास्पद दम्म का परिणाम पी, उसकी अनियंत्रित निरंकुशता की उपज थी । १८ According to Laurence Binyon : " The divine faith was, of course, a failure and destined to failurz, In religious soci el tos toleration is no virtue, 1t is the despised offspring of lukewarmess or indifference, A
18- Sat th | Akbar the great Hosul. P. 222 19. Smith Ak bar the great mogul P. 163-222
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