________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
अकबर की धार्मिक नीति
अकबर का विभिन्न धर्माचार्यों से सम्पर्क, खतबा व महजर
-
www.kobatirth.org
-
शिया और सुन्नियों के पारस्परिक गरमागरम वाद विवाद, हीन आरोप प्रत्यारोप तथा देण पूर्ण संघर्ष के कारण मुसलमानी
धर्म पर से अकबर की रुचि हट गई । पर फिर भी वह यही चाहता था कि किसी प्रकार उसे धार्मिक तत्व की बाते मालूम हो । फलत: उसने ३ अक्टूबर १४७८ को हिन्दू, जैन, ईसाई, यही, सूफी, पारसी विद्वानों एंव सन्तों के लिये इबादतखाने का द्वार बोल दिया । इस समय धार्मिक वाद विवाद व गोष्ठियों में भाग लेने वाले विद्वानों में अबुल फजल के अनुसार सूफी दार्शनिक कता, विधि ज्ञाता, सुन्नी, शिया, ब्राह्मण, जति, विडा, चारवार, ईसाई, यहूदी, सानी ( ईसाईयों का एक सम्प्रदाय ) पारसी और अन्य लोग सम्मिलित हुए । (१) जब हम यह देखेंगे कि अकबर की वार्मिक नीति के विकास में इन विभिन्न धर्मो ने क्या सहयोग दिया :
(१) अकबर नामा
अकबर और हिन्दू धर्मं
---
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ww
For Private And Personal Use Only
·
अकबर की प्रकृति हिन्दुओं के उदार आदर्श वाद से बच नहीं सकती थी । राजपूतों के प्रति जो हिन्दुओं का एक लड़ाकू वर्ग था, उसकी नीति के विषय में इससे पूर्व ही लिखा जा चुका है । हिन्दी के प्रसिद्ध कृष्ण भक्त और सन्त सुरदास से अकबर ने बहुत लम्बे समय तक धार्मिक, चर्चाएँ की और उनके संगीत से प्रभावित हुआ । अकबर को सब बातें जानने का शौक था । इस लिये उसने इनकी ओर प्रवृत्त होने का और अधिक प्रयास किया । मोहम्मद हुसैन लिखते है कि सत्य का अन्वेगक
हिन्दी अनुवादक मथुराCTC शर्मा पृष्ठ ४७२.
79