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अकबर की धार्मिक नीति
या कटटरता के कारण शासक लोग ईश्वर के भक्तों से स्सा कर लेते थे । बल फजल लिखता है कि"बादशाह प्राय : कहा करता था कि चाहे कोई गलत धर्म के मार्ग पर चलता हो परन्तु यह कौन जानता है कि - उसका मार्ग गलत ही है । ऐसे व्यक्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करना उचित नहीं है।"
तीर्थ - यात्रा कर की समाप्ति अकबर की धार्मिक उदारता वीर सहिष्णुता का ज्वलन्त उदाहरण है । करोड़ों रुपयों की बाय होने पर भी उसने केवल अपनी धार्मिक सहिष्णुता के कारण इसे समाप्त कर दिया । ५ जजिया कर का उन्मूलन •
जजिया की उत्पत्ति भारत में लब से हुई ? इसका यथपि निश्चि समय निर्धारित नहीं किया जा सकता है तथापि कुछ विद्वानों का कहना है कि आठवीं शताब्दी में मुसलमान बादशाह कासिम ने भारतीय प्रया पर यह कर लगाया था । पति तो उसने आय प्रजा को सलाम ग्रहण करने के लिये विवश किया । आर्य प्रजा ने अट धन - दौलत देकर • अपने वार्य धर्म की रक्षा की । फिर हर साल . ही वह प्रजा से रुपया वसूल करने लगा, प्रति वर्ण जो दृव्य कम किया जाता था, उसका नाम: जजिया था । कुछ काल पश्चात् यहां तक हुक्म जारी हो गये थे कि वार्य प्रजा के पास खाने पीने के बाद जो शेण धन माल बचे वह सभी जजिया के सप से खजाने में दाखिल करवा दिया जाये । फरिश्ता के शब्दों मैं कहें तो" मृत्यु तुल्य दण्ड देना ही जिया का उदेश्य था । स्सा दण्ड देकर पी आर्य व प्रजा ने अपने धर्म की रक्षा की थी । स्मिथ ने इस कर के बारे में लिखा है कि - "The Tex nad been originausi
६ बकरबरनामा - हिन्दी अनुवादक मथुरालाल शमां पृष्ठ २४२
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