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अकबर की धार्मिक नति
He said, If I were guilty of an in just act; I would ri se in Judgement against my solr." 7.
यपि अकबर की कोषाग्नि शीघ्र ही शान्त हो जाती थी, लेकिन उसका कोष होता बहुत भयंकर था और कोषावेश में वह मयंकर दण्ड ३ बैठता था । कोथा वेश में उसने अपने थायमाई बाधम खां को किले की - दीवार से गिरवा कर मरवा दिया था, मामा मुखमम को कठोर दण्ड दिया था तथा राजाल के एक मशाल बी को, जो सो गया था, दुर्ग की दीवार से फिक्या कर वय करवा दिया था । परन्तु अकबर का स्साशेष बल्पकाठीक ही होता था । सामान्यत: वह पर्ण बात्म नियंत्रण बरतता। था । पराजित शत्रु के प्रति वह मानवोचित उदार व्यवहार करता था - परन्तु विरोधियों के प्रति उतना ही कठोर हो जाया करता था । विदेशी राजकुमारों, विदेशियों, विदेशी से उसके संरक्षण में आये राजकुमारों के प्रति वा अधिक शिष्टता, नम्रता और उदारता का व्यवहार करता था।
_खकबर को विभिन्न प्रकार के आमोद - प्रमोद और बासेट में सचि थी । वह जंगल में भयंकर से भयंकर शेरों, चीती तथा हाधियों का! शिकार करता था । वह स्वय वक निशाने बाज, बहमुत लक्ष्य मेदी बार चतुर शिकारी था । कर प्रवीण अस्वारोही था और घर से र हाथियों को वश में कर लेने की उसमें अपूर्व सामता थी। घुड़सवारी में उसकी रुचि थी तथा घोड़े की पीठ पर बैठ कर वह प्राय : दिन में पचास - साठ किला मीटर इर की यात्रा कर देता था। उसे धूसैबाजी, भल्लयुद्ध तथा पहलवान की कुश्तियां देखने की मी रूचि थी । कभी कभी वह वर्ग • संघर्ण में मी! रूचि लेता था । हो सकता है कि इस प्रकार के संघर्ग देखने की उसमें । तुर्की और मंगोल परम्परा रही हो । चौगान खेलने, संगीत सुनने, पोलो खेल देखने, विदुणों के काम तथा बाजीगरों के करतब व मदारियों के
7 - An-i-Akbart Vol. III Trans, by 1.5.Jarrett P.434
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