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अकबर की थमिक नीति
में थे।" ११
हीरविजय जी ने अकबर को कां का सच्चा स्वसप समझाया कि संसार में वहानी मनुष्य जिस धर्म का नाम लेकर लड़ते है वास्तव में वह धमा नही है । म वह है जिससे वन्त : करण की शुद्धि होती है । इसी तरह उन्होने अकबर को जैन के सिद्धान्तो परम्परावा, नैतिक आचरण के नियाँ तथा उत्सवों का ज्ञान कराया ।
___ ययपि अकबर ने गददी पर बैठने के नौ वर्ण बाद अपने राज्य में से जजिया उठा दिया था, जिसका उल्लेख हम कर वार्य है तथापि गुजरात से यह जजिया नही स्टा था क्योंकि उस समय गुजरात अकबर के - अधिकार में नहीं पाया था । इस लिये मूरिजी ने अकबर से खरोध किया कि आप अपने राज्य से जिया उठा दीजिये और तीर्थों में यात्रियों से जो कर लिया जाता था उसे बन्द करने के लिये भी अनुरोध क्यिा - क्योंकि इन दोनों करों से जन साधारण को बहुत ज्यादा कष्ट उठाना पडता था । सूरी जी के अनुरोध से अकबर ने उसी समय दोनो करों को उठा देने के फर्मान लिख दिये । हीरविजय सूरि की तरह शान्तिचन्द्र जी ! को मी बादशाह १ वत मानता था । इस लिये उनके आग्रह से बादशाह ने एक ऐसा फरमान निकाला जिसकी रुह से बादशाह का जन्म जिस महीने में हुवा था उस सारे महीने में, रवीवार के दिनों में, प्रकान्ति के दिनों में, और नवरोज के दिनों में कोई भी व्यक्ति जीव स्सिा ना करें ।। करे ।" - शान्ति चन्द्र जी के प्रभाव से ही अकबर ने अपने तीन लडकी सलीम, मुराद और दानियाल का जन्म जिन महीनों में हुआ था, उन • महीम मी जीवहिंसा निर्णय का फर्मान निकाला ।
१५ - A1m-1-Akbari Trans, by H.blochmarm- Vol.I. P.607-1617 १५ - सूरीश्वर और सम्राट अकबर • हिन्दी अनुवादक - कृष्णलाल वर्मा
पृष्ठ १४५.
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