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मकबर की धार्मिक नीति
उस समय सिद्धार की यात्रा करने के लिये जाने वालों से कर लिया जाता था । भानुचन्द्र जी के अनुरोथ से अकबर ने वह कर बन्द कर दिया और इसका फनि लिख कर हीरविजय पुरी जी के पास भेज दिया । पानुचन्द्र जी की विद्वता और गहन अध्ययन के कारण अकबर ने ! उन् उपाध्याय की पदवी से विभूषित किया । “१३
मिचन्द्र सूरी ने भी बादशाह पर बच्छा प्रभाव डाला था । उनके उपदेश से बादशाह ने बाणा सूदी १ से १५ तक सात दिन तक कोई जीव हिंसा न करें इस बात का फर्मान निकाला और उसकी स्क। एक नकल अपने ग्यारह प्रार्ता में पेज दी।
विजय सेन सूरी ने भी बादशाह को हीरविजय सूरी की भांति ही वाकर्णित किया था। उन्होने बादशाह को उपदेश देकर अनेक कार्य करवाये । बादशाह ने विजय सैन सूरी की इच्छानुसार सिन्धु नदी में - 1 और कच्छ के काशयों में जिनमें मच्छियां मारी जाती थी, चार महीने 1 तक जाल डालना बन्द करके वहां की मछलियों के प्राण बचाये । गार्यो, बल व मैसों का मारना बन्द किया, (युद्ध ) में किसी को कैद नहीं करना स्थिर किया और मृतक मनुष्य का कर लेना रोक दिया । " १६
जैन धर्माचार्यों तथा मुनीयां का अकबर पर प्रभाव :
अब तक जो तातै लिखी गई है उनसे यह स्पष्ट हो चुका है कि जैन मुनियों ने अकबर पर प्रभाव डाल कर जनहित, धर्म रा तथा जीव
दया की वनेक कार्य करवाये थे । जैनियों के मवाद, सत्य और बल्सिा ! के सिद्धान्तों से अकबर स्थायी रूप से प्रभावित हुआ । मनुष्य या पक्ष
की हिंसा न करने के का सिद्धान्त में अकबर की गहरी वास्था हो गयी थी । अकबर ने समस्त मुगल राज्य में यह ढिढौरा पिटवाया कि कोई
१२ - सुरीश्वर और सम्राट अकबर • हिन्दी अनुवादक कृष्णलाल वर्मा पृ०१५४
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" पृ०१५ !
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