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अकबर की धार्मिक नीति
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# वाले को जा • गुहा से फर्मान पिये कि, जो यावचंद्रविवारी बाबर का साण कराते रहेगे । रामतीति वीर प्रशासन में भी कबर ने कोई भेद • पाव नहीं माना । उसने मुखमा के साथ - साथ बहुसंस्था हिन्दु जाति को पी वपनाया तथा हिन्दुओं को उत्तरदायि पर्या पर नियुक्त किया । न्याय देने में नाति, सं, मत, सम्साय बौर प का विचार नहीं पिया गया । बर ने जिस प्रकार प्रशासन बार न्याय की नीति में याति, पव सम्प्रदाय वादि का विमेव नही किया उसी मार दान देने में पी जाति, धर्म, पूर्व व पंडित का मेप नहीं रखा । अपने राज्य में अनेक स्कोप उस्ने जनाधाय मोठे । फतेहपुर सीपी 4 भी दो बहुत बड़े माड कमवाय, इनमें एक का नाम नरपुरा और दूसरे का नाम पुरा था । सरपुरा में मुसलमान फकीरों के लिये ठहरने, पिकाम करने वीर पोस करने की व्यवस्था थी। पापुरा हिन्दू - सालय प्रबन्ध था । षा के लाभार्थ स्सी - ऐसी व्यवस्थाएँ
करने वाला राषा प्रणा का प्रिय क्यों होता। उसने अपनी पार पार्षिक नीति के कारण हिन्दू मुखमान पारसी व नवीर सा मालवियों में संडान बनाये रखा, जिसे उसके विशाल माग्यो पुरता सम्भव हो सकी। 1. हिन्दुओं की दशा में सुधार :
उपार हृदयी पुल्तान कबर ने हिन्दु साथियों पर लगे नेक अनुमित करो को समाप्त कर दिया । मुशलिम सुलतान और शासक हिन्! यात्रियों से उनके तीर्थ स्थानों में दीर्थ यात्रा का वाट करते थे । अबर ! इसे बनावश्यक, अनुचित वीर श्वर की बाराक्षा में प्रविषय समककर १५६३ माप्त कर दिया । छगभग बाठ सो वाँ से भारत में हिन्दुओं पर पुलमान झालो आरा जजिया कर लगाया जाता रहा था । उन । यात बाशा रहती थी कि इस अभिया कर के वापिका दवावगरण हिन्दू
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